जलवायु परिवर्तन का प्रतिकूल प्रभाव बनाम जीवन का अधिकार

जलवायु परिवर्तन का प्रतिकूल प्रभाव बनाम जीवन का अधिकार

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र –  2 एवं 3 के  ‘ शासन व्यवस्था, जैव विविधता और पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकारों से संबंधित मुद्दे ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ जीवन का अधिकार, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, लेसर फ्लोरिकन, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से संरक्षण का अधिकार और मानवाधिकार, अनुच्छेद 51A(g), एम.सी. मेहता बनाम कमल नाथ (2000), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रमखंड से संबंधित है। इसमें PLUTUS IAS टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख ‘दैनिक करंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘  जलवायु परिवर्तन का प्रतिकूल प्रभाव बनाम जीवन का अधिकार ’ से संबंधित है।)

 

खबरों  में क्यों ?  

 

 

  • भारत में जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकारों के बीच के अंतर्संबंधों को जीवन के अधिकार के साथ जोड़कर एक विस्तृत चर्चा करते हुए भारत के उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है। 
  • भारत के उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लेसर फ्लोरिकन के संरक्षण से संबंधित मामले के संबंध में आया है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को भारतीय संविधान में वर्णित लोगों के जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) और समता का अधिकार (अनुच्छेद 19) के आधार पर दिया गया है।
  • भारत के उच्चतम न्यायालय के इस निर्णय ने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) के संरक्षण हेतु राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनें स्थापित करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। 
  • इस निर्णय के माध्यम से, न्यायालय ने जलवायु परिवर्तन को मानवाधिकारों के साथ जोड़कर एक नई दिशा प्रदान की है। 
  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 51A(g) के तहत नागरिकों की पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी और एम.सी. मेहता बनाम कमल नाथ केस में पर्यावरणीय न्याय के सिद्धांतों को रेखांकित करते हुए, न्यायालय ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संघर्ष में नागरिकों और राज्य की भूमिका को मजबूत करते हुए पर्यावरणीय न्याय का व्याख्या किया है। 
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के साथ, यह निर्णय भारत में जलवायु न्याय के लिए एक मजबूत आधार प्रस्तुत करता है।
  • भारत में सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि जलवायु परिवर्तन से बचाव का अधिकार और एक स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण का अधिकार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

 

भारत में नागरिकों के मौलिक अधिकार बनाम जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से संरक्षण का अधिकार क्या है ? 

 

 

 

भारत में नागरिकों के मौलिक अधिकार और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से संरक्षण का अधिकार निम्नलिखित है – 

जीवन और आजीविका का अधिकार :  जलवायु परिवर्तन चरम मौसमी घटनाओं के माध्यम से जीवन के अधिकार को प्रभावित करता है। तटीय क्षेत्रों में समुद्र के स्तर की वृद्धि से लोगों को अपने घरों और आजीविका से विस्थापित होने का खतरा है।

स्वच्छ जल और स्वच्छता तक पहुँच :  जलवायु परिवर्तन से जल स्रोतों पर असर पड़ता है, जिससे जल की कमी और प्रदूषण हो सकता है, जो स्वच्छ जल और स्वच्छता के अधिकार को प्रभावित करता है।

स्वास्थ्य और कल्याण: जलवायु परिवर्तन से गर्मी से संबंधित बीमारियाँ और मौतें बढ़ सकती हैं, जिससे स्वास्थ्य का अधिकार प्रभावित होता है। खाद्य सुरक्षा और पोषण पर भी इसका असर पड़ता है।

प्रवासन और विस्थापन : जलवायु परिवर्तन से प्रेरित घटनाएँ जैसे समुद्र के स्तर में वृद्धि और मरुस्थलीकरण से लोगों को पलायन करने या विस्थापित होने के लिए मजबूर किया जा सकता है।

आदिवासियों के अधिकार : जलवायु परिवर्तन से आदिवासी समुदायों की आजीविका और सांस्कृतिक प्रथाओं पर असर पड़ता है, जो प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं।

 

संवैधानिक प्रावधानों के तहत जलवायु परिवर्तन के संबंध में भारत के उच्चतम न्यायालय की वर्तमान व्याख्या का अर्थ / निहितार्थ :

 

 

 

  • भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 48A, और 51A(g) की व्याख्या करते हुए, इन्हें जीवन के अधिकार और समानता के अधिकार के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता दी है।
  • एम.सी. मेहता बनाम कमल नाथ मामले में, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार जीवन के अधिकार का ही विस्तार है। 
  • हालिया निर्णयों में, न्यायालय ने जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने के अधिकार को विशिष्ट अधिकार के रूप में मान्यता दी है, जिससे भारत में पर्यावरण संरक्षण प्रयासों के लिए कानूनी आधार मजबूत हुआ है। 
  • यह निर्णय जलवायु परिवर्तन पर निष्क्रियता के विरुद्ध कानूनी चुनौतियों के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है और जलवायु परिवर्तन के मानवाधिकार आयामों की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय मान्यताओं के अनुरूप है।

 

जलवायु परिवर्तन शमन को संतुलित करने की राह में महत्वपूर्ण चुनौतियाँ : 

 

 

 

जलवायु परिवर्तन के साथ मानवाधिकार संरक्षण के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध है। जलवायु परिवर्तन को संतुलित करने की राह में महत्वपूर्ण चुनौतियाँ निम्नलिखित है – 

  1. व्यापार-बंद : जलवायु शमन उपाय और मानवाधिकारों के बीच टकराव हो सकते हैं। उदाहरण के लिए – जलवायु संरक्षण परियोजनाओं के लिए भूमि उपयोग पर प्रतिबंध या नवीकरणीय ऊर्जा के विकास के कारण विस्थापन हो सकता है।
  2. संसाधनों तक पहुँच :  जलवायु गतिविधियाँ, विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए ऊर्जा, जल, और भोजन जैसे आवश्यक संसाधनों को प्रभावित कर सकती हैं।
  3. पर्यावरणीय प्रवासन : जलवायु – प्रेरित प्रवासन सामाजिक प्रणालियों पर दबाव डाल सकता है और साथ ही मेज़बान समुदायों में संसाधनों और अधिकारों पर संघर्ष का कारण बन सकता है।
  4. अनुकूलन बनाम शमन : जलवायु प्रभावों के अनुकूलन में निवेश के साथ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (शमन) को कम करने के प्रयासों को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  5. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग की जरूरत  :  जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक मुद्दा है और इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। इसके साथ ही यह सुनिश्चित करना भी जरूरी  है कि जलवायु पहल विदेशों में कमज़ोर समूहों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करें।

 

जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के समाधान की राह : 

 

 

 

 

जलवायु परिवर्तन से होनेवाले नकारात्मक प्रभावों के समाधान के लिए हम निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं – 

  • मानवाधिकार-केंद्रित कार्बन मूल्य निर्धारण : कार्बन टैक्स के जरिए एकत्रित राजस्व का उपयोग कर हम स्वच्छ ऊर्जा उपायों, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं, और विकासशील देशों के जलवायु अनुकूलन तथा शमन प्रयासों को सहायता प्रदान कर सकते हैं।
  • हरित प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण और क्षमता निर्माण : विकासशील देशों को किफायती दरों पर हरित प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण करके और उनके विकास के अधिकार से समझौता किए बिना हम उन्हें कार्बन उत्सर्जन कम करने वाले विकास के मार्ग को अपनाने की अनुमति दे सकते हैं।
  • मानवाधिकार प्रभाव आकलन : जलवायु परिवर्तन शमन या अनुकूलन रणनीतियों को लागू करने से पहले, उनके मानवाधिकार प्रभावों का पूर्ण आकलन करना चाहिए, जिससे संभावित जोखिमों की पहचान की जा सके और मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।

 

 

  • मानवाधिकार-केंद्रित कार्बन मूल्य निर्धारण से, कम आय वाले परिवारों को ऊर्जा लागत के बढ़ते प्रभाव से बचाने के लिए प्रगतिशील छूट या लाभांश प्रदान किया जा सकता है, जिससे न्यायपूर्ण परिवर्तन संभव हो। कार्बन टैक्स से प्राप्त राजस्व का उपयोग स्वच्छ ऊर्जा पहलों, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं, और विकासशील देशों के जलवायु प्रयासों के समर्थन में किया जा सकता है।
  • हरित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण के अंतर्गत, विकासशील देशों को हरित प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण किफायती दरों पर करने की सुविधा प्रदान की जा सकती है, जिसमें बौद्धिक संपदा के प्रतिबंधों में ढील देना या प्रौद्योगिकी साझेदारी स्थापित करना शामिल हो सकता है। इससे विकासशील देशों को उनके विकास के अधिकार को बिना समझौता किए कम कार्बन वाले विकास पथ को अपनाने की अनुमति मिलेगी।
  • मानवाधिकार प्रभाव आकलन के माध्यम से, जलवायु परिवर्तन शमन या अनुकूलन रणनीतियों को लागू करने से पहले उनके मानवाधिकार प्रभावों का आकलन किया जा सकता है। इससे संभावित जोखिमों की पहचान में सहायता मिलेगी और यह सुनिश्चित होगा कि समाधान ऐसे बनाए गए हैं जो मानवाधिकारों का सम्मान और सुरक्षा करते हैं।

 

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. जलवायु परिवर्तन का प्रतिकूल प्रभाव बनाम जीवन का अधिकार के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. जलवायु परिवर्तन से बचाव का अधिकार और एक स्वास्थ्यप्रद पर्यावरण का अधिकार नागरिकों का मानवाधिकार है।
  2. एम.सी. मेहता बनाम कमल नाथ मामला स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार और जीवन के अधिकार से जुड़ा हुआ है।
  3. जलवायु परिवर्तन से जल जल की कमी और प्रदूषण हो सकता है, जो स्वच्छ जल और स्वच्छता के अधिकार को प्रभावित करता है।
  4. उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय नागरिकों की पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी के साथ -ही साथ  ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लेसर फ्लोरिकन के संरक्षण से जुड़ा हुआ है।

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

A. केवल 1, 2 और 3 

B. केवल 2, 3 और 4 

C. इनमें से कोई नहीं। 

D. उपरोक्त सभी। 

 

उत्तर – D

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1..चर्चा कीजिए कि मानवाधिकार और जलवायु परिवर्तन से जुड़ा अंतर्राष्ट्रीय समझौता किस तरह नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रभवित करता है ?  तर्कसंगत मत प्रस्तुत कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 ) 

 

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