जैन धर्म की वर्तमान प्रासंगिकता

जैन धर्म की वर्तमान प्रासंगिकता

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1‘ प्राचीन भारतीय इतिहास, कला एवं संस्कृति और भारत में सामाजिक – सांस्कृतिक सुधार आंदोलन ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ भारत में सामाजिक – सांस्कृतिक सुधार आंदोलन और जैन धर्म ’ खंड से संबंधित है। इसमें PLUTUS IAS टीम के सुझाव भी शामिल हैंयह लेख ‘ दैनिक करेंट अफेयर्स ’  के अंतर्गत जैन धर्म की वर्तमान प्रासंगिकता ’  से संबंधित है।)

 

 

खबरों में क्यों ? 

 

 

  • हाल ही में 21 अप्रैल 2024 को भारत के प्रधानमंत्री ने नई दिल्ली के भारत मंडपम में महावीर जयंती के शुभ अवसर पर भगवान महावीर के 2550वें निर्वाण महोत्सव का उद्घाटन किया है। 
  • भारत के प्रधानमंत्री ने भगवान महावीर की मूर्ति पर चावल और फूलों की पंखुड़ियों से श्रद्धांजलि अर्पित की और स्कूली बच्चों द्वारा भगवान महावीर के जीवन पर आधारित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम “वर्तमान में वर्धमान” नामक नृत्य नाटिका की प्रस्तुति भी देखी। 
  • इस अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री ने एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया है।

 

महावीर जयंती का परिचय : 

 

 

 

  • महावीर जयंती, जैन समुदाय में सबसे पवित्र त्योहारों में से एक है। यह पर्व प्रतिवर्ष 21 अप्रैल को मनाया जाता है।
  • यह दिन वर्धमान महावीर के जन्म का प्रतीक है, जो जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे और जो जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के उत्तराधिकारी बने थे।
  • भगवान महावीर ने अपने जीवन में अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, और अस्तेय जैसे पंचशील सिद्धांतों का उपदेश दिया। उन्होंने सभी जीवों के प्रति करुणा और प्रेम का संदेश दिया। 
  • महावीर जयंती अहिंसा के इस महान संदेश को याद दिलाती है और लोगों को सभी प्राणियों के प्रति दयालु होने के लिए प्रेरित करती है।
  • वस्तुतः महावीर जयंती पूरे विश्व के विभिन्न समुदायों को सामाजिक न्याय और समानता के लिए प्रेरित करती है। 
  • इस दिन को शांति और अहिंसा के संदेश को बढ़ावा देने के लिए भी मनाया जाता है।
  • इस दिन जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा भगवान महावीर की मूर्ति के साथ एक जुलूस निकाला जाता है जिसे रथ यात्रा कहा जाता है।
  • इस अवसर पर स्तवन अथवा जैन प्रार्थनाओं का पाठ करते हुए भगवान की मूर्तियों का औपचारिक स्नान कराया जाता है जिसे अभिषेक कहा जाता है।

 

भगवान महावीर का परिचय : 

 

 

  • जैन ग्रंथों और धार्मिक साहित्यों  के अनुसार, भगवान महावीर का जन्म चैत्र माह (हिंदू कैलेंडर अनुसार) के शुक्ल पक्ष के 13वें दिन वर्तमान बिहार के पटना से कुछ किलोमीटर दूर बिहार के कुंडलग्राम (अब कुंडलपुर) में हुआ था। जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, महावीर जयंती आमतौर पर मार्च या अप्रैल महीने में मनाई जाती है।
  • उस समय कुंडलग्राम वैशाली राज्य की राजधानी मानी जाती थी। 
  • महावीर जयंती जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर, भगवान महावीर के जन्म का उत्सव है। भगवान महावीर का जन्म ईसा पूर्व 599 में हुआ था।
  • हालाँकि, महावीर के जन्म का वर्ष विवादित है। श्वेतांबर जैनियों के अनुसार, महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व में हुआ था जबकि दिगंबर जैन 615 ईसा पूर्व को उनका जन्म वर्ष मानते हैं। 
  • उनके पिता कुंडलग्राम के राजा सिद्धार्थ और उनकी माता जो लिच्छवी राज्य की राजकुमारी थी, रानी त्रिशला ने अपने पुत्र का (उनका ) नाम वर्धमान रखा था।
  • बचपन में भगवान महावीर का नाम वर्धमान था यानी  – ‘ जो बढ़ता है ‘।
  • श्वेतांबर समुदाय की मान्यताओं के अनुसार, महावीर की मां ने 14 सपने देखे थे, जिनकी बाद में ज्योतिषियों ने व्याख्या की, जिनमें से सभी ने यह कहा कि महावीर या तो सम्राट बनेंगे या ऋषि (तीर्थंकर) बनेंगे। 
  • जब महावीर 30 वर्ष के हुए, तो उन्होंने सत्य की खोज में अपना सिंहासन और परिवार दोनों का त्याग कर  दिया और ज्ञान की खोज में एक तपस्वी के रूप में 12 वर्षों तक निर्वासित जीवन जीते रहे। 
  • 12 वर्षों तक कठिन तपस्या करने के बाद उन्हें 42 वर्ष की आयु में “ कैवल्य “ अर्थात “सर्वज्ञता या ज्ञान” की प्राप्ति हुई थी। 
  • इस दौरान उन्होंने अहिंसा का प्रचार करते हुए सभी प्राणियों के प्रति श्रद्धा और दयालुता का व्यवहार किया। 
  • उन्हें “महावीर” अर्थात (महान नायक) भी कहा जाता है। 
  • अपने समस्त इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने के कारण उन्हें ‘ जैन या जितेन्द्रिय ’ भी कहा जाता है। 
  • उन्हें निर्ग्रन्थ भी कहा जाता है।  जिसका अर्थ है – “ जो सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त है।
  • उन्होंने पावा या पावापुरी ( वर्तमान पटना के पास ) में अपना पहला उपदेश दिया था।
  • यह माना जाता है कि जब वर्धमान महावीर 72 वर्ष के थे, तब उन्हें निर्वाण की प्राप्ति हुई।

 

जैन धर्म क्या है ?

 

 

  • जैन धर्म, जिसका नाम जिन शब्द से आया है, जिसका अर्थ है-  ‘विजेता’
  • अतः यह एक प्राचीन भारतीय धर्म है जो आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति की शिक्षा देता है। 
  • तीर्थंकर, जिन्हें ‘नदी निर्माता’ कहा जाता है, वे आध्यात्मिक गुरु होते हैं जो जैन धर्म के अनुयायियों को  इस सांसारिक जीवन के प्रवाह से पार ले जाते हैं।
  • जैन धर्म में अहिंसा को सर्वोच्च महत्व दिया गया है। 
  • जैन धर्म  के पांच महाव्रत हैं –  अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), अपरिग्रह (गैर-आसक्ति), और ब्रह्मचर्य (शुद्धता)। इन व्रतों का पालन करके, जैन अनुयायी कर्मों के बंधन से मुक्त होने की दिशा में अग्रसर होते हैं।
  • जैन धर्म के तीन मुख्य सिद्धांत हैं –  सम्यक् दर्शन (सही विश्वास), सम्यक् ज्ञान (सही ज्ञान), और सम्यक् चरित्र (सही आचरण)। इन्हें ‘त्रिरत्न’ भी कहा जाता है, जो जैन धर्म का मूलाधार हैं।
  • समय के साथ, जैन धर्म दो प्रमुख संप्रदायों में विभाजित हो गया। एक श्वेतांबर के रूप में, जो सफेद वस्त्र पहनते हैं, वहीं दूसरा दिगंबर के रूप में , जो नग्न रहते हैं, के रूप में विभक्त हो गया। 
  • जैन धर्म  के ही दोनों संप्रदाय जैन धर्म के मूल सिद्धांतों का पालन करते हैं, लेकिन उनके अनुष्ठान और प्रथाएँ भिन्न- भिन्न  होती हैं।
  • जैन दर्शन का एक महत्वपूर्ण विचार यह है कि सभी जीवित प्राणियों को चोट न पहुँचाना चाहिए, जिसमें मनुष्य, जानवर, पौधे, और कीड़े तक शामिल हैं। 
  • जैन धर्म की मान्यता है कि पूरी दुनिया सजीव है, यहाँ तक कि पत्थरों, चट्टानों और पानी में भी जीवन है।
  • संथारा की प्रथा जो जैन धर्म का ही हिस्सा है और जिसे श्वेतांबर संप्रदाय संथारा और दिगंबर संप्रदाय सल्लेखना कहते हैं, एक आमरण अनशन की प्रथा है जो जैन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
  • इस प्रथा को भारतीय दंड संहिता के तहत दंडनीय अपराध घोषित करने के राजस्थान उच्च न्यायालय के निर्णय को निखिल सोनी बनाम भारत संघ मामले में चुनौती दी गई थी, और यह मामला अभी भी भारत के सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है।

 

जैन धर्म की वर्तमान प्रासंगिकता और निष्कर्ष : 

 

 

  • जैन धर्म का उदय भारतीय उपमहाद्वीप में हुआ और इसकी शिक्षाएँ आज भी विश्व भर में प्रासंगिक हैं।
  • जैन धर्म के अनुयायी अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच महाव्रतों का पालन करते हैं। ये व्रत न केवल व्यक्तिगत जीवन में बल्कि समाजिक जीवन में भी एक आदर्श जीवन शैली की नींव के रूप में महत्वपूर्ण हैं।
  • जैन धर्म की शिक्षाएँ व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाती हैं और समाज में अहिंसा और शांति के महत्व को बढ़ावा देती हैं। 
  • जैन धर्म का मूल सिद्धांत-  ‘जियो और जीने दो’ है, जो सभी जीवों के प्रति सम्मान और करुणा की भावना को प्रोत्साहित करता है
  • भगवान महावीर ने अपने अनुयायियों को असत्य और मैथुन त्यागने, लालच और सांसरिक वस्तुओं का मोह छोड़ने, हर प्रकार की हत्याएं और हिंसा बंद करने का संदेश दिया था। 
  • वर्त्तमान समय में भी उनके उपदेशों में विश्व की सभी समस्याओं का निराकरण करने की अनूठी क्षमता है।
  • जैन धर्म के प्रसार में भगवान महावीर की शिक्षाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। उनके उपदेशों ने न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में लोगों को एक नैतिक और आध्यात्मिक जीवन जीने की प्रेरणा दी है। उनकी शिक्षाओं ने लोगों को आत्म-साक्षात्कार की ओर अग्रसर किया है और एक अधिक समझदार और संवेदनशील समाज की नींव रखी है। 
  • इस प्रकार, महावीर जयंती केवल एक धार्मिक उत्सव भर ही नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक भी है। 
  • जैन धर्म की शिक्षाएँ और भगवान महावीर का जीवन, उनकी शिक्षाएँ और उनके उपदेश आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी कि उनके समय में थीं, भगवान महावीर का उपदेश आज भी संपूर्ण विश्व के लिए शांति और सद्भाव की दिशा में एक मार्गदर्शक प्रकाश पुंज की तरह हैं। 

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत की धार्मिक प्रथाओं के संदर्भ में “स्थानकवासी” संप्रदाय का संबंध किससे है? (UPSC – 2018)

A. बौद्ध मत / धर्म ।

B. जैन मत / धर्म ।

C. वैष्णव मत / धर्म ।

D. शैव मत/ धर्म। 

 

उत्तर-  B

 

Q.2. प्राचीन भारतीय इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से बौद्ध धर्म या जैन धर्म दोनों में समान रूप से विद्यमान था/थे? ( UPSC – 2012)

  1. तप और भोग की अति का परिहार ।
  2. वेद – प्रमाण्य के प्रति अनास्था ।
  3. कर्मकांडों और बाह्य आडम्बरों  का निषेध।  

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर का चयन करें : 

A. केवल 1

B. केवल 2 और 3

C. केवल 1 और 3

D. 1, 2 और 3

उत्तर –  B

 

Q.3. अनेकांतवाद निम्नलिखित में से किसका मूल सिद्धांत और दर्शन है? ( UPSC – 2009)

A. बौद्ध धर्म ।

B. जैन  धर्म ।

C. सिख  धर्म। 

D. वैष्णव  धर्म  ।

उत्तर – B

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. चर्चा कीजिए कि प्राचीन भारत में कठोर कर्मकांड, बलि – प्रथा और बहुदेववाद के दर्शन की अवधारणा पर आधारित वैदिक धर्म के बावजूद भी, छठी शताब्दी में भारत में एक मध्यममार्गी और एकेश्वरवादी विश्वास और दर्शन के विकास का मुख्य कारण क्या था और  वर्तमान समय में वैश्विक शांति और सद्भाव के संदर्भ में जैन धर्म की क्या प्रासंगिकता है? तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक -15 ) 

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