भारत के बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच / जमा प्राप्ति में कमी

भारत के बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच / जमा प्राप्ति में कमी

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 के ‘  भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास, भारत में बैंकिंग प्रणाली एवं बैंकिंग क्षेत्र और एनबीएफसी ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत भारत के बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच / जमा प्राप्ति में कमी ’ खंड से संबंधित है। इसमें PLUTUS IAS के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख ‘ दैनिक करेंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ भारत के बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच / जमा प्राप्ति में कमी ’ से संबंधित है।)

 

ख़बरों में क्यों ? 

 

 

 

  • भारतीय बैंकिंग प्रणाली की वर्तमान स्थिति के संबंध में हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार में  भारत में बैंक जमा राशि की कमी या ‘डिपॉजिट क्रंच’ का सामना कर रही है। इस स्थिति का मुख्य कारण बचत खातों में जमा धन की वृद्धि दर में कमी और बैंकों द्वारा उच्च ब्याज दरों पर ऋण देने की प्रवृत्ति को बताया गया है।
  • वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारतीय बैंकों में सबसे कम जमा प्राप्ति हुई है, जिसके परिणामस्वरूप विगत दो दशकों में ऋण-जमा अनुपात काफी असंतुलित हो गया है। इस परिस्थिति में भारतीय बैंकों के पास नए ऋण देने के लिए पर्याप्त धन नहीं बचा है।
  • डिजिटल भुगतान की बढ़ती प्रवृत्ति और नकदी के प्रति लोगों की बढ़ती निर्भरता ने भी जमा राशि में कमी को प्रभावित किया है। बैंकों को अपनी जमा दरों को बढ़ाने और नए ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अधिक प्रतिस्पर्धी बनना पड़ रहा है।
  • 01 अप्रैल 2007 से भारतीय रिज़र्व बैंक देश में मौद्रिक स्थिरता सुनिश्चित करने की जरूरतों के संबंध में अनुसूचित बैंकों के लिए बिना किसी न्यूनतम नियत दर या उच्चतम दर के आरक्षित नकदी निधि अनुपात निर्धारित करता है।

 

बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच / जमा प्राप्ति में कमी क्यों होता है ?

 

 

 

  • वित्तीय वर्ष 2023 – 24 में भारतीय बैंकों को नकदी जमा प्राप्ति अर्थात डिपाॅज़िट क्रंच के संकट का सामना करना पड़ा था।
  • वर्तमान में ऋण-जमा अनुपात 80%-20% के साथ वर्ष 2015 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर है।
  • जमा नकदी का अनुपात यह इंगित करता है कि किसी बैंक का कितना जमा ऋण के लिए प्रयोग किया जा रहा है।
  • भारतीय बैंकिंग प्रणाली में वर्ष 2023-24 के दौरान ऋण वृद्धि में तेजी आई है, जबकि जमा वृद्धि दर में कमी देखी गई है। परिणामस्वरूप, ऋण-जमा अनुपात में असंतुलन उत्पन्न हो गया है, जो पिछले दो दशकों में सबसे अधिक है।
  • ऋण-जमा अनुपात में असंतुलन का मुख्य कारण ऋण में वृद्धि है, जो खुदरा और सेवा क्षेत्रों में अधिक ऋण देने के कारण हुई है। इसके अलावा, निजी निवेश में वृद्धि और सरकारी पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी ने भी ऋण मांग को बढ़ाया है।
  • भारत में बैंकों में जमा करने वाली राशि में वृद्धि में कमी के कई कारण हैं। उच्च मुद्रास्फीति और बढ़ती ब्याज दरों के कारण लोगों ने अपनी बचत को अन्य निवेश विकल्पों में लगाना प्रारंभ किया है, जिससे बैंकों में जमा राशि में कमी आई है।
  • भारत में बैंकों के डिजिटलीकरण और नए वित्तीय प्रौद्योगिकी समाधानों के उदय ने भी जमा वृद्धि को प्रभावित किया है।
  • भारत में ऋण-जमा अनुपात में असंतुलन के निहितार्थ व्यापक हैं। बैंकों को अपने जोखिम प्रबंधन और ऋण नीतियों को मजबूत करने की आवश्यकता है। 
  • इसके साथ ही, बैंकों को अपने जमा आधार को विविधता प्रदान करने और नए जमा उत्पादों को विकसित करने की जरूरत है। इसके अलावा, वित्तीय साक्षरता और जन-जागरूकता अभियानों को बढ़ाने की भी आवश्यकता है, ताकि लोग बैंकिंग प्रणाली में अधिक जमा करने के लिए प्रेरित हों।

 

नकद आरक्षित अनुपात क्या होता है ?

 

  • नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) एक महत्वपूर्ण मौद्रिक नीति उपकरण है जिसका इस्तेमाल केंद्रीय बैंक द्वारा अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। यह विनियमन विश्व के लगभग हर देश में लागू होता है। सीआरआर वह न्यूनतम प्रतिशत है जिसे वाणिज्यिक बैंकों को अपने जमा के रूप में केंद्रीय बैंक में नकदी के रूप में रखना अनिवार्य होता है। इसकी गणना बैंकों की शुद्ध मांग और समय देनदारियों के प्रतिशत के रूप में की जाती है, जिसमें बचत खाते, चालू खाते, और सावधि जमा शामिल होते हैं।
  • सीआरआर का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बैंकों के पास अपने ग्राहकों की नकदी निकासी की मांगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नकदी हो। यह बैंकों को अत्यधिक ऋण देने से रोकता है और उन्हें अधिक जोखिम लेने से बचाता है। सीआरआर दर को आरबीआई द्वारा समय-समय पर संशोधित किया जाता है ताकि बाजार में नकदी की स्थिति के अनुसार उचित संतुलन बनाया जा सके। इसके अलावा, सीआरआर बैंकों को अपने जमाकर्ताओं के लिए एक निश्चित नकदी आरक्षित रखने के लिए बाध्य करता है, जिससे वे अपने जमाकर्ताओं की तत्काल नकदी निकासी की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। इस प्रकार, सीआरआर बैंकिंग प्रणाली की स्थिरता और विश्वसनीयता को बढ़ाता है और वित्तीय संकट के समय में बैंकों को अपने जमाकर्ताओं की नकदी निकासी की मांगों को पूरा करने में सक्षम बनाता है।

 

भारतीय बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच / जमा प्राप्ति में कमी होने का प्रमुख कारण :

 

  • बैंकों में जमा नकदी का संकट तब उत्पन्न होता है जब बैंकों के पास अपने ग्राहकों को उधार देने के लिये पर्याप्त धनराशि नहीं होती है। परिणामस्वरूप, व्यवसायों के सुचारु संचालन में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं, और कर्मचारियों को वेतन प्राप्त करने में देरी होती है। यह आर्थिक स्थिरता और वित्तीय व्यवस्था को बाधित कर सकता है।
  • बेहतरीन बाज़ार प्रदर्शन एवं बढ़ती वित्तीय जागरूकता के कारण निवेशक तेज़ी से उच्च – रिटर्न, इक्विटी – लिंक्ड उत्पादों की ओर अधिक उन्मुख हो रहे हैं, जिससे बैंकों के समक्ष जमा प्राप्त करने और ऋण वृद्धि के समर्थन की दोहरी चुनौती उत्पन्न होती है।
  • भारत में बैंकों में जमा राशि के एक हिस्से को नियामक आवश्यकताओं जैसे- नकद आरक्षित अनुपात (CRR) तथा वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) ऋण देने योग्य धन को कम करने एवं जमा के लिये प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने के लिए अलग रखा जाता  है।
  • हाल की तिमाही में बैंकों ने धीमी जमा वृद्धि के बीच ऋण को बढ़ावा देने के लिए अपने अधिशेष SLR होल्डिंग्स का उपयोग किया, लेकिन जैसे-जैसे SLR बफर्स कम होते हैं, उन्हें लाभप्रदाता के साथ जमा दर में बढ़ोतरी को संतुलित करने की चुनौती का सामना करना पड़ता है।
  • बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा, वैकल्पिक निवेश विकल्पों तथा वास्तविक संपत्तियों की ओर बदलाव के बीच खुदरा जमा को आकर्षित करने के लिये बैंकों में पिछले वित्त वर्ष में जमा दरों में वृद्धि हुई।
  • HDFC तथा HDFC बैंक के विलय के परिणामस्वरूप HDFC के ऋण तथा जमा को बैंकिंग प्रणाली में शामिल किया गया, जिसने समग्र आँकड़ों में योगदान दिया।

 

भारत के बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच के परिणाम :

 

 

  • उच्च CD अनुपात से बैंक की महँगी, बड़ी जमाओं पर निर्भरता बढ़ जाती है, जिसकी पूर्ति उसके मुख्य जमाकर्त्ताओं से नहीं हो सकती है और संभावित रूप से उच्च बहिर्वाह के कारण तरलता जोखिम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • इससे ऋण तक सीमित पहुँच के कारण व्यवसायों को तरलता संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच  होने से भारत में कर्मचारियों के वेतन में देरी हो सकती है, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हो सकती है।
  • अतः इससे समग्र रूप से एक गंभीर आर्थिक प्रभाव हो सकता है। इसलिए भारत में सरकार द्वारा बैंकिंग क्षेत्र को स्थिर करने हेतु तत्काल कोई ठोस और प्रभावी उपाय किए जाने की आवश्यकता है।

 

निष्कर्ष / समाधान की राह :

 

  • भारत के बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच के मामले में लगभग 20 वर्षों में सबसे खराब जमा संकट पर तत्काल ध्यान देने के साथ ही रणनीतिक हस्तक्षेप किया जाना आवश्यक है।
  • भारत वर्तमान में बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच के जिस चुनौतीपूर्ण चरण से गुज़र रहा है, वैसी स्थिति में भारत में  बैंकों की सुरक्षा एवं वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना सरकार का सर्वोपरि उद्देश्य बन गया है।
  • अतः भारत के बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच के मामले में समाधान ढ़ूँढने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया और अन्यबैंकों को इस समस्या से निपटने में सहयोग करना होगा।
  • भारत के बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच के समस्या का समाधान के रूप में बैंकों में अधिक से अधिक जमा राशि को प्रोत्साहित करना एवं ऋण वितरण को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है।
  • बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच के समस्या की गंभीरता के बारे में सार्वजनिक जागरूकता हमारी बैंकिंग प्रणाली की सुरक्षा के लिए सामूहिक प्रयासों को प्रेरित कर सकती है।
  • वित्त वर्ष 2025 में ऋण वृद्धि 16 प्रतिशत से घटकर 14 प्रतिशत होने की उम्मीद के बीच, बैंक जमा वृद्धि से आगे निकल रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप एनआईएम में वित्त वर्ष 2024 के 3 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2025 में 2.9 प्रतिशत होने का अनुमान है। 
  • भारत में निजी क्षेत्र के बैंकों को उनके लगभग 93 प्रतिशत के उच्च एलडीआर और लगभग 18 प्रतिशत की क्रेडिट वृद्धि के कारण सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है।
  • भारत के बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच के संकट का समाधान खोजने के लिए, बैंकों को अपनी जमा नीतियों को फिर से तैयार करना होगा और ग्राहकों को अधिक – से – अधिक लाभकारी जमा योजनाएं प्रदान करनी होंगी। 
  • इसके साथ ही, भारत में वित्तीय साक्षरता और जन – धन योजना जैसी सरकारी पहलों के माध्यम से जमा आधार को बढ़ाने की दिशा में काम करना होगा।
  • अंततः भारत में बैंकों को भी नवाचार और ग्राहक-केंद्रित सेवाओं के माध्यम से जमा वृद्धि को प्रोत्साहित करना होगा, जिससे वे इस ‘ डिपॉजिट क्रंच ’ की समस्या का समाधान कर सके। इसके लिए भारत में बैंकों को भी डिजिटल बैंकिंग, वित्तीय समावेशन और ग्राहक संतुष्टि पर विशेष ध्यान देना होगा।

 

स्रोत –  ‘ द हिन्दू एवं इंडियन एक्सप्रेस ’ 

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

प्रश्न.1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :  (2018)

  1. भारतीय रिज़र्व बैंक भारत सरकार की प्रतिभूतियों का प्रबंधन और सेवाएँ प्रदान करता है, लेकिन किसी राज्य सरकार की प्रतिभूतियों का प्रबंधन और सेवाएँ प्रदान करता नहीं है।  
  2. भारत सरकार कोष-पत्र (ट्रेज़री बिल) जारी करती है और राज्य सरकारें कोई कोष – पत्र (ट्रेज़री बिल) जारी नहीं करती है।  
  3. भारत में कोष – पत्र ऑफर अपने समतुल्य मूल्य से बट्टे पर जारी किए जाते है।

उपर्युक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ?

A. केवल 1 और 2

B. केवल 1 और 3

C. केवल 2 और 3

D. केवल 1, 2 और 3

उत्तर –  C

 

प्रश्न. 2. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)

  1. वैधानिक तरलता अनुपात को घटाकर उसे अनुकूलित करना।
  2. सीमांत स्थायी सुविधा दर को बढ़ाना।
  3. बैंक दर को घटाना तथा रेपो दर को भी घटाना।

उपरोक्त कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें :

A.  केवल 1 और 2

B. केवल 2

C. केवल 1 और 3

D. इनमें से सभी।

उत्तर – B

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

प्रश्न.1. बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच से आप क्या समझते हैं? चर्चा कीजिए कि भारत के बैंकों में डिपाॅज़िट क्रंच की प्रमुख समस्याएं क्या है एवं इसका क्या समाधान हो सकता है ? तर्कसंगत उत्तर प्रस्तुत कीजिए। 

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