11 May भारत में एलपीजी के मूल्य में वृद्धि का सामाजिक – पारिस्थितिक प्रभाव
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 के ‘ भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था और सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, गरीबी और भूख से संबंधित मुद्देप्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष फार्म सब्सिडी ’ और सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 के ‘भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास, पर्यावरण प्रदूषण, नवीकरणीय ऊर्जा, काष्ठ ईंधन पर निर्भरता के सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY), तरलीकृत पेट्रोलियम गैस, बायोगैस, नवीकरणीय ऊर्जा, PAHAL योजना, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना ’ खंड से संबंधित है। इसमें PLUTUS IAS टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख ‘ दैनिक करंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ भारत में एलपीजी के मूल्य में वृद्धि का सामाजिक – पारिस्थितिक प्रभाव ’ से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में भारत में ऊर्जा के स्वच्छ और सस्ते स्रोतों के संबंध में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार LPG की कीमतों में वृद्धि ने भारत में सामाजिक-पारिस्थितिक प्रभावों को उजागर किया है।
- एक अध्ययन के अनुसार, पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में कई परिवार अभी भी लकड़ी जैसे पारंपरिक ईंधन पर निर्भर हैं, जिससे भारत में पर्यावरणीय चुनौतियां और सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं।
- इस सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार इस स्थिति ने भारत में सस्ते और सुलभ ईंधन विकल्पों की आवश्यकता को भी रेखांकित किया है। भले ही सरकार ने LPG के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हों।
- भारत में LPG की कीमतों में वृद्धि के कारण, जलपाईगुड़ी के लगभग आधे दुकानदार वाणिज्यिक सिलेंडर की उच्च लागत, ₹1,900, के कारण लकड़ी का उपयोग कर रहे हैं।
- इस क्षेत्र की लगभग 38.5% आबादी गरीबी रेखा के नीचे है और अधिकांश लोग चाय बागानों में दैनिक मजदूरी, ₹250, पर काम करते हैं। ऐसी स्थिति में, लकड़ी का उपयोग खाना पकाने के ईंधन के रूप में जारी रखना अप्रत्याशित नहीं है। इससे न केवल वनों का क्षरण होता है, बल्कि लोगों को जंगली जानवरों के साथ खतरनाक मुठभेड़ों का जोखिम भी उठाना पड़ता है।
भारत में एलपीजी के मूल्य में वृद्धि का सामाजिक – पारिस्थितिक प्रभावों के अध्ययन के महत्वपूर्ण आयाम :
भारत में एलपीजी के मूल्य में वृद्धि का सामाजिक-पारिस्थितिक प्रभावों का अध्ययन निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर केंद्रित है –
- वनों पर निर्भरता : जलपाईगुड़ी के स्थानीय समुदायों की खाना पकाने के लिए वैकल्पिक ईंधन की सीमित पहुंच के कारण वनों पर अत्यधिक निर्भरता है।
- आर्थिक बाधाएं : 1500 रुपए से अधिक मूल्य के LPG सिलेंडर अनेक परिवारों के लिए, विशेषकर गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के लिए, अव्यवहार्य हैं।
- सरकारी पहलें : प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना जैसी सरकारी योजनाओं ने LPG के प्रयोग को बढ़ावा दिया, परंतु बाद में कीमतों में वृद्धि ने इसे चुनौतीपूर्ण बना दिया।
- पहुंच और वितरण की समस्याएं : ग्रामीण क्षेत्रों में LPG की पहुंच और वितरण में सुधार के बावजूद, उच्च कीमतों के कारण कई परिवार नियमित रूप से सिलेंडर रिफिल नहीं करा पाते।
- पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव : काष्ठ ईंधन की निर्भरता से वनों का क्षरण और मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ता है, जिससे वन पारिस्थितिकी, वन्यजीव आवास और स्थानीय आजीविका प्रभावित होती है।
- संधारणीय विकल्प : पश्चिम बंगाल वन विभाग और संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के सहयोग से सतत् वन प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने की पहलें।
- स्थानीय रूप से स्वीकार्य समाधान : वनों, वन्यजीवन और आजीविका की सुरक्षा के लिए स्थानीय रूप से स्वीकार्य और स्थायी विकल्पों का विकास।
- सामुदायिक भागीदारी : खाना पकाने के लिए वैकल्पिक ईंधन और वन संरक्षण प्रयासों की सफलता के लिए सामुदायिक भागीदारी और हितधारकों के साथ जुड़ाव आवश्यक है।
भारत सरकार द्वारा LPG के प्रयोग में वृद्धि के प्रयास :
भारत सरकार ने ग्रामीण परिवारों में LPG के उपयोग को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं –
- राजीव गांधी ग्रामीण LPG वितरक योजना (2009) : इस योजना के तहत, दूरदराज के क्षेत्रों में LPG वितरण को बढ़ावा दिया गया।
- ‘पहल’ योजना (2015)’ : भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015 में शुरू की गई, इस योजना के तहत LPG सब्सिडी का प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण किया गया।
- सीधे होम-रिफिल डिलीवरी और ‘गिव इट अप’ कार्यक्रम (2016) : भारत सरकार द्वारा वर्ष 2016 में इस योजना को लागू किया गया था । इस योजना के तहत इसने उपभोक्ताओं को अपनी सब्सिडी छोड़ने और उसे जरूरतमंद गरीब परिवारों को LPG कनेक्शन प्रदान करने का विकल्प दिया है।
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) (2016) : वर्ष 2016 में शुरू की गई, इस योजना के तहत, गरीबी रेखा से नीचे के 80 मिलियन परिवारों को LPG कनेक्शन प्रदान किए गए।
- सब्सिडी में वृद्धि (2023) : भारत में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत शुरू की गई इस योजना में प्रत्येक 14.2 किलोग्राम सिलेंडर के लिए 200 रुपए की सब्सिडी प्रदान की गई, जो अक्टूबर 2023 में बढ़कर 300 रुपए हो गई।
LPG कीमतों का सामाजिक प्रभाव :
- कीमतों में वृद्धि : वर्ष 2022 में, भारत में LPG की कीमतें लगभग ₹300/लीटर थीं, जो 54 देशों में सबसे अधिक थी।
- विश्व स्तर पर कीमतें : LPG, पेट्रोल, और डीज़ल की कीमतें विश्व में सर्वाधिक हैं, जिसमें बाह्य कारक और वैश्विक स्तर पर ऊँची कीमतें शामिल हैं।
- क्रय शक्ति समता (PPP) : भारत, PPP डॉलर का उपयोग करते हुए, पेट्रोल की कीमतों के मामले में सूडान और लाओस के बाद तीसरे स्थान पर है।
- ACCESS सर्वेक्षण (2014-2015) : ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद द्वारा आयोजित 2014-2015 ACCESS सर्वेक्षण के डेटा के अनुसार, LPG की लागत ग्रामीण गरीब परिवारों में इसे अपनाने और इसके निरंतर उपयोग में सबसे बड़ी बाधा है।
वैकल्पिक ईंधन का उपयोग :
- ग्रामीण ईंधन उपयोग : वर्तमान समय में भी लगभग 750 मिलियन भारतीय खाना पकाने के लिए लकड़ी, गोबर, कृषि अवशेष, कोयला, और लकड़ी का कोयला जैसे ईंधन का उपयोग करते हैं।
- स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभाव : इस प्रकार के ईंधन स्वास्थ्य खतरों और सामाजिक-आर्थिक तथा पर्यावरणीय प्रभावों से जुड़े हैं।
- हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद, भारत में LPG, पेट्रोल और डीजल की कीमतें विश्व में सर्वाधिक हैं, जिसके महंगे होने में बाह्य कारक और वैश्विक स्तर पर ऊंची कीमतें शामिल हैं। क्रय शक्ति समता (PPP) डॉलर का उपयोग करते हुए, भारत पेट्रोल की कीमतों के मामले में वैश्विक स्तर पर सूडान और लाओस के बाद तीसरे स्थान पर है।
- इस प्रकार, 750 मिलियन भारतीय हर दिन खाना पकाने के लिए ईंधन (लकड़ी, गोबर, कृषि अवशेष, कोयला और लकड़ी का कोयला) का उपयोग करते हैं, जो कई स्वास्थ्य खतरों और सामाजिक-आर्थिक तथा पर्यावरणीय प्रभावों से जुड़े हैं।
भारत में LPG की ऊँची कीमतों के प्रमुख कारक :
भारत में LPG की ऊँची कीमतों के पीछे कई कारक हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं –
- आयात पर निर्भरता : भारत LPG के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, जिसकी 60% से अधिक जरूरतें आयात से पूरी होती हैं। इस आयात निर्भरता का देश में LPG की मूल्य निर्धारण गतिशीलता पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
- मूल्य निर्धारण : भारत में LPG की कीमतें मुख्य रूप से प्रोपेन और ब्यूटेन के औसत सऊदी अनुबंध मूल्य (CP) से प्रभावित होती हैं। LPG गैसों का मिश्रण है जिसमें ब्यूटेन और प्रोपेन मुख्य होते हैं, और इसमें ब्यूटेन का प्रतिशत सीमित होता है। CP, LPG व्यापार के लिए सऊदी अरामको (Aramco) द्वारा निर्धारित अंतर्राष्ट्रीय मूल्य है।
- मूल्य वृद्धि : औसत सऊदी CP वित्त वर्ष 20 में USD 454 प्रति टन से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में USD 710 हो गया, जिससे LPG की कीमतों में वृद्धि हुई। विश्लेषकों का मानना है कि इस वृद्धि का कारण एशियाई बाजारों, विशेषकर पेट्रोकेमिकल उद्योग में, जहाँ प्रोपेन एक महत्वपूर्ण फीडस्टॉक के रूप में कार्य करता है, की बढ़ती मांग है।
- आयात गतिकी : अप्रैल-सितंबर 2022 में भारत की कुल खपत 13.8 मिलियन टन में से 8.7 मिलियन टन LPG का आयात किया गया, जो आयातित LPG पर भारत की निर्भरता को दर्शाता है।
- उपभोक्ताओं पर प्रभाव : मार्च 2023 में प्रति सिलेंडर 50 रुपए की हालिया बढ़ोतरी से दिल्ली में 14.2 किलोग्राम भार वाले घरेलू LPG सिलेंडर की कीमत में 4.75% की वृद्धि हुई। करों और डीलर कमीशन का सिलेंडर की खुदरा कीमत में केवल 11% ही योगदान होता है, जिसमें लगभग 90% LPG की लागत के लिए जिम्मेदार होता है, और इसका मुख्य कारण पेट्रोल और डीजल की कीमतें न होकर, करों में बढ़ोतरी है।
समाधान / आगे की राह :
- नवीकरणीय ऊर्जा का प्रसार : सौर, पवन, और जलविद्युत जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने से काष्ठ ईंधन की आवश्यकता में कमी लाई जा सकती है। इसके लिए विभिन्न देशों ने फीड-इन टैरिफ, कर छूट, और सब्सिडी जैसी नीतियों के माध्यम से प्रोत्साहन दिया है।
- उन्नत चूल्हे का वितरण : पारंपरिक चूल्हों की तुलना में, उन्नत चूल्हे (Improved Cook Stoves – ICS) अधिक कुशलतापूर्वक काष्ठ ईंधन जलाते हैं, जिससे इसकी खपत में कमी आती है। नेपाल में किए गए प्रयोगों से पता चला है कि ICS के उपयोग से काष्ठ ईंधन की जरूरत में 50% तक की कमी हो सकती है।
- ग्लोबल अलायंस फॉर क्लीन कुकस्टोव्स की पहल : इस संगठन ने विकासशील देशों में 80 मिलियन से अधिक उन्नत चूल्हे वितरित करके काष्ठ ईंधन पर निर्भरता कम करने में मदद की है।
- वैकल्पिक ईंधन का उपयोग : कृषि अपशिष्ट से निर्मित बायोगैस, पेलेट्स, और ब्रिकेट्स जैसे वैकल्पिक ईंधनों का उपयोग बढ़ाने से काष्ठ ईंधन की मांग में कमी आ सकती है। यह सतत् ऊर्जा स्रोतों की ओर एक कदम हो सकता है।
- सतत् वन प्रबंधन : सतत् वन प्रबंधन की प्रथाओं को अपनाने से काष्ठ ईंधन की निकासी और वनों के पुनर्जनन के बीच संतुलन स्थापित किया जा सकता है, जिससे पर्यावरण पर काष्ठ ईंधन की खपत के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
स्रोत: द हिंदू एवं पीआईबी।
Download plutus ias current affairs Hindi med 11th May 2024
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.11. भारत की जैव-ईंधन की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव-ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किनका उपयोग कच्चे माल के रूप में हो सकता है? ( UPSC – 2020)
- कसावा
- क्षतिग्रस्त गेहूँ के दाने
- मूँगफली के बीज
- कुलथी (Horse Gram)
- सड़ा आलू
- चुकंदर
उपरोक्त में से कौन सा विकल्प सही उत्तर है ?
A. केवल 1, 3, 4 और 6
B. केवल 2, 3, 4 और 5
C. 1, 2, 3, 4, 5 और 6 सभी।
D. केवल 1, 2, 5 और 6
उत्तर – D
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1.“वहनीय (एफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनेबल) विकास लक्ष्यों (एस.डी.जी.) को प्राप्त करने के लिए अनिवार्य हैं।” भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिए। (UPSC CSE – 2018)
Q.2. भारत में एलपीजी के मूल्य में बढ़ोतरी का सामाजिक-पारिस्थितिक प्रभावों के प्रमुख कारकों को रेखांकित करते हुए भारत में LPG की कीमतों के बढ़ने के प्रमुख कारकों, चुनौतियों और उसके समाधान की विस्तृत एवं तर्कसंगत चर्चा कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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