भारत के नौकरशाही में लेटरल एंट्री बनाम कड़ी प्रतिस्पर्धा

भारत के नौकरशाही में लेटरल एंट्री बनाम कड़ी प्रतिस्पर्धा

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 के अंतर्गत ‘ भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था , भारतीय संविधान , सामाजिक – न्याय , नौकरशाही में लेटरल एंट्री , देश के लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में सिविल सेवा की भूमिका ’ खण्ड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ नौकरशाही में लेटरल एंट्री स्कीम (LES) , नीति आयोग, मूल अधिकार , संघ लोक सेवा आयोग , अन्य पिछड़ा वर्ग , अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति , सर्वोच्च न्यायालय , द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ’ खण्ड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ?

 

 

  • हाल ही में, भारत में निजी क्षेत्र के पेशेवरों को वरिष्ठ नौकरशाही में अनुबंध के आधार पर शामिल करने वाली लेटरल एंट्री योजना (LES) एक कानूनी और राजनीतिक विवाद का कारण बन गई है। 
  • भारत के नौकरशाही के क्षेत्र में लेटरल एंट्री योजना वर्ष 2019 से लागू हुई थी और इसके तहत अब तक 63 नियुक्तियाँ की जा चुकी हैं। हालांकि, इसके कार्यान्वयन में वैधानिक ढाँचे की कमी और हाशिये पर स्थित समुदायों के आरक्षण अधिकारों पर चिंता जताई जा रही है। 
  • इस योजना से संबंधित पहला कानूनी विवाद फरवरी 2020 में उत्पन्न हुआ था , जब IFS अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने इस योजना के प्रक्रियागत और विधिक जटिलताओं को लेकर नैनीताल केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) में इसे चुनौती दी थी।

 

नौकरशाही में लेटरल एंट्री योजना से संबंधित मुख्य चुनौतियाँ : 

 

लेटरल एंट्री योजना से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. योजना की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठना : इस योजना को संविधान के अनुच्छेद 309 के विपरीत बताया गया है, जो संसद और राज्य विधानसभाओं को लोक सेवकों की भर्ती और उनके सेवा नियमों को विनियमित करने का अधिकार प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, इस योजना के तहत आरक्षण प्रावधानों को समाप्त करने से सामाजिक न्याय और संविधानिक सिद्धांतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  2. बहुत कम समय का कार्यकाल होने के कारण शासन में स्थिरता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अपर्याप्त होना : लेटरल एंट्री के तहत नियुक्तियों के लिए निर्धारित तीन वर्ष का कार्यकाल बहुत कम समझा जाता है, क्योंकि यह शासन में स्थिरता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अपर्याप्त है।
  3. रिक्तियों के लिए पैनल-बद्ध अधिकारियों की अधिक संख्या और सामूहिक भर्ती प्रक्रिया : सरकार ने इसे अनुच्छेद 310 के आधार पर उचित ठहराया है, जो राष्ट्रपति को विशेषज्ञों की नियुक्ति का अधिकार देता है। हालांकि, आलोचक इस पर आपत्ति जताते हैं कि यह योजना वरिष्ठ अस्थायी पदों पर बड़े पैमाने पर नियुक्ति के लिए नहीं है। इसके साथ ही, अधिकारियों की भारी संख्या को देखते हुए इसकी वास्तविक आवश्यकता पर सवाल उठाए गए हैं, क्योंकि प्रत्येक पद के लिए 18 पैनलबद्ध अधिकारी नियुक्त हैं।
  4. योजना के पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठना : इस योजना के तहत निजी क्षेत्र के पेशेवरों की भर्ती से सरकारी नीतियों पर उनका प्रभाव पड़ने की संभावना बढ़ सकती है, जिससे पूर्वाग्रह और हितों का टकराव उत्पन्न हो सकता है। इसके अलावा, पृष्ठभूमि जांच और सतर्कता मंजूरी की सख्त प्रक्रिया की कमी से इस योजना के पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।
  5. नौकरशाही के मनोबल पर नकारात्मक असर पड़ने की संभावना : लेटरल एंट्री की संख्या में वृद्धि से मौजूदा नौकरशाहों के मनोबल पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। वे इसे बाहरी हस्तक्षेप के रूप में देख सकते हैं, जिससे पदानुक्रम और प्रशासन में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है, और यह शत्रुता को भी बढ़ावा दे सकता है।

 

लेटरल एंट्री स्कीम (LES) से संबंधित प्रमुख बिंदु :

 

 

  1. लेटरल एंट्री की शुरुआत : LES, जिसे 2018 में लागू किया गया, एक विशेष भर्ती प्रक्रिया है, जो निजी क्षेत्र के पेशेवरों को सामान्य प्रतियोगी परीक्षाओं को छोड़कर सीधे मध्य-स्तरीय या उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त करने की सुविधा देती है। इन्हें संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा तीन साल के अनुबंध पर नियुक्त किया जाता है, और इसे अधिकतम पाँच वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है।
  2. आरक्षण के प्रावधान से बाहर रखना : इस योजना के तहत भर्ती किए गए व्यक्तियों को “एकल पद” माना जाता है, इसलिए इन्हें SC, ST, OBC और EWS श्रेणियों के लिए आरक्षण के कोटे से बाहर रखा गया है।
  3. भर्ती आंकड़े : वर्ष 2018 से अब तक 63 व्यक्तियों को लेटरल एंट्री के माध्यम से सरकारी पदों पर नियुक्त किया गया है। इनमें से 57 अगस्त 2023 तक कार्यरत थे। हालांकि, आरक्षण संबंधी विवादों के कारण UPSC ने अगस्त 2024 में 45 वरिष्ठ पदों पर नई भर्ती पर रोक लगा दी है।

 

सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री के लाभ :

 

  1. विशेषज्ञ पेशेवरों की भर्ती : लेटरल एंट्री से प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, और वित्त जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञ पेशेवरों की भर्ती संभव हो पाती है, जिससे ऐसे क्षेत्रों में ज्ञान का अभाव पूरा होता है, जिसे सामान्य सिविल सेवक नहीं कर सकते। अतः यह योजना ज्ञान की कमी को दूर करने में मदद करती है।
  2. कुशल प्रशासन : यह योजना सरकारी एजेंसियों में दक्षता बढ़ाने और लगभग 1500 IAS अधिकारियों की कमी को पूरा करने में सहायक हो सकती है, जिससे प्रशासन में सुधार आता है।
  3. कार्य संस्कृति में सुधार : इस योजना के तहत निजी क्षेत्र से आए पेशेवरों से सरकार के कामकाजी ढांचे में सुधार की संभावना है, जिससे अधिक गतिशील और परिणाम-उन्मुख शासन की दिशा में बढ़ावा मिलेगा  जो भारत में नौकरशाही की निष्क्रियता में सुधार कर सकता है।
  4. बहु-अभिकर्ता सहभागी और समावेशी शासन को बढ़ावा मिलना : यह योजना निजी क्षेत्र और गैर-लाभकारी संस्थाओं के पेशेवरों को सरकारी कार्यों में शामिल करने की दिशा में सहायक होती है, जिससे बहु-अभिकर्ता सहयोग और सहभागी शासन की स्थिति को बढ़ावा मिलता है।

 

समाधान / आगे की राह :

 

 

  1. दोहरी प्रवेश प्रणाली : भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने एक दोहरी प्रवेश प्रणाली का प्रस्ताव किया था, जिसमें 25 से 30 वर्ष के आयु वर्ग के लिए पारंपरिक भर्ती प्रक्रिया और 37 से 42 वर्ष के आयु वर्ग के लिए मध्य-करियर पार्श्व प्रवेश की व्यवस्था शामिल थी। इस प्रणाली का उद्देश्य था, संबंधित क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले व्यक्तियों को सरकार में लाना। इसके अतिरिक्त, युवा और गतिशील प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए संयुक्त सचिव पदों के लिए आयु सीमा में छूट देने का भी सुझाव दिया गया था।
  2. लेटरल एंट्री से आए प्रवेशकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण सुनिश्चित करना : निजी क्षेत्र से सरकारी पदों पर आने वाले पार्श्व प्रवेशकर्ताओं को प्रभावी रूप से सरकारी कामकाजी माहौल में समायोजित करने के लिए व्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता है। इसके लिए एक समर्पित प्रशासनिक विश्वविद्यालय की स्थापना की जानी चाहिए, जो इन व्यक्तियों को प्रशासनिक प्रक्रियाओं और सरकारी कार्यशैली में प्रशिक्षित कर सके।
  3. शासन प्रणाली में प्रतिस्पर्धा, नवाचार और क्षेत्रीय विशेषज्ञता में वृद्धि होना : यदि IAS और IPS अधिकारियों को निजी क्षेत्र में अनुभव प्राप्त करने का अवसर दिया जाता है, तो इससे शासन प्रणाली में प्रतिस्पर्धा, नवाचार और क्षेत्रीय विशेषज्ञता में वृद्धि हो सकती है। यह सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र के बीच प्रभावी तालमेल स्थापित करने में सहायक होगा, जिससे शासन की कार्यक्षमता में सुधार हो सकता है।

 

स्त्रोत – इंडियन एक्सप्रेस। 

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. लेटरल एंट्री योजना (LES) के तहत नियुक्त किए गए व्यक्तियों के बारे में कौन सा कथन सही है?

  1. उन्हें आरक्षण के प्रावधान से बाहर रखा गया है।
  2. उन्हें केवल सरकारी प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से भर्ती किया जाता है।
  3. उन्हें विशेष श्रेणियों जैसे SC, ST, OBC, EWS के तहत आरक्षण मिलता है।
  4. उन्हें अनुबंध पर नियुक्त किया जाता है और उसके कार्यकाल को बढ़ाया जा सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा कथन सही है ?

A. केवल 1 और 4

B. केवल 1 और 3 

C. केवल 2 और 4 

D. केवल 2 और 3 

उत्तर – A 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में निजी क्षेत्र के पेशेवरों को वरिष्ठ नौकरशाही में अनुबंध के आधार पर शामिल करने वाली लेटरल एंट्री योजना (LES) से संबंधित कानूनी, संवैधानिक और प्रशासनिक पहलुओं की प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं, और इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए किस प्रकार के समाधान या सुधार आवश्यकता है ? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

 

 

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