शिल्प और संस्कृति का मिलन : राष्ट्रपति भवन में कोणार्क के पहियों का समर्पण

शिल्प और संस्कृति का मिलन : राष्ट्रपति भवन में कोणार्क के पहियों का समर्पण

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 1 के अंतर्गत ‘ भारतीय कला एवं संस्कृति, प्राचीन भारतीय इतिहास, भारतीय वास्तुकला, ओडिशा मंदिर वास्तुकला शैली ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ भारतीय विरासत स्थल एवं संस्कृति, कोणार्क सूर्य मंदिर , यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल , राष्ट्रपति भवन , राजा नरसिंहदेव प्रथम , गंग वंश , नागर वास्तुकला शैली , कोणार्क के पहिए ’ खंड से संबंधित है।) 

 

खबरों में क्यों ? 

 

  • हाल ही में, राष्ट्रपति भवन के सांस्कृतिक केंद्र और अमृत उद्यान में कोणार्क के प्रसिद्ध बलुआ पत्थर से बने चार पहियों की प्रतिकृतियाँ स्थापित की गई हैं। 
  • यह पहल राष्ट्रपति भवन में भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण धरोहरों और विरासतों को संरक्षित करने और इसके ऐतिहासिक महत्व को बढ़ावा देने की दिशा में उठाए गए विभिन्न प्रयासों के एक हिस्से के अंतर्गत किया गया है।

 

इस पहल का मुख्य उद्देश्य :

  • भारत के राष्ट्रपति भवन के उद्यान में कोणार्क के इन पहियों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य देश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को आगंतुकों के समक्ष प्रस्तुत करना, उसकी महत्ता का प्रसार करना और उसे व्यापक रूप से प्रचारित करना है।
  • इस पहल का एक उद्देश्य भारत के भावी पीढ़ियों के लिए अपने देश की सांस्कृतिक विरासतों और ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण धरोहरों को संरक्षित रखने के प्रति जागरूकता फैलाकर इसके संरक्षण को बढ़ावा देना भी है।

 

कोणार्क सूर्य मंदिर का ऐतिहासिक और स्थापत्य महत्त्व : 

 

  • कोणार्क सूर्य मंदिर को सन 1984 ई. में उसके अद्वितीय ऐतिहासिक और स्थापत्य कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण होने को पहचानते हुए यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया गया था। 
  • यह मंदिर ओडिशा के मंदिर वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है और सूर्य देवता के रथ के आकार में निर्मित किया गया है। 
  • कोणार्क सूर्य मंदिर के पहिए को भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक के रूप में देखे जाते हैं।
  • यह मंदिर ओडिशा के पुरी जिले के पास स्थित है, जो पूर्वी ओडिशा का एक पवित्र नगर है। 
  • इसका निर्माण 13वीं शताब्दी (1238-1264 ई.) में राजा नरसिंहदेव प्रथम ने कराया था, जो गंग वंश के एक महान सम्राट थे। 
  • यह मंदिर न केवल गंग वंश की वास्तुकला और शक्ति का प्रतीक है, बल्कि उस समय के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य एवं महत्त्व को भी दर्शाता है। 
  • पूर्वी गंग राजवंश, जिसे रूधि गंग या प्राच्य गंग भी कहा जाता है, ने 5वीं शताब्दी से लेकर 15वीं शताब्दी तक कलिंग क्षेत्र पर शासन किया था।

 

कोणार्क सूर्य मंदिर की प्रमुख विशेषताएँ :   

 

  1. कोणार्क सूर्य मंदिर अपनी अद्वितीय और जटिल वास्तुकला, साथ ही शानदार मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है। 
  2. मंदिर का शिखर, जिसे रेखा देउल कहा जाता था, एक समय ऊंचा और अत्यंत भव्य था, लेकिन 19वीं शताब्दी में यह ध्वस्त हो गया। 
  3. मंदिर की संरचना में पूर्व दिशा की ओर स्थित जगमोहन (दर्शक कक्ष या मंडप) पिरामिड आकार में है, जबकि इसके सामने नटमंदिर (नृत्य हॉल) स्थित है, जो वर्तमान में छत विहीन है। 
  4. नटमंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है और ओडिशा की पारंपरिक मंदिर वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करता है।
  5. कोणार्क मंदिर न केवल भारतीय स्थापत्य कला का एक अद्भुत नमूना है, बल्कि यह उस काल की धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का जीवंत प्रतीक भी है।
  6. इसका निर्माण ओडिशा मंदिर वास्तुकला शैली में किया गया है।

 

ओडिशा मंदिर वास्तुकला या कलिंग वास्तुकला शैली :

 

  • ओडिशा मंदिर वास्तुकला, जिसे कलिंग वास्तुकला भी कहा जाता है, नागर वास्तुकला शैली का एक विशिष्ट रूप है, जो विशेष रूप से पूर्वी भारत में प्रचलित है। 
  • यह स्थापत्य शैली ओडिशा के धार्मिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती है और भारतीय स्थापत्य कला में अपनी अलग पहचान बनाती है। 
  • ओडिशा के मंदिरों की शिल्पकला और संरचनात्मक विशेषताएँ भारतीय मंदिर निर्माण की परंपरा में एक महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
  • ओडिशा मंदिर वास्तुकला के प्रमुख तीन घटक होते हैं: रेखापिडा (मुख्य शिखर), पिधादेउल (मंदिर का आधार) और खाकरा (आंतरिक संरचना) 
  • इन तीनों भागों का संयोजन मंदिर की भव्यता, धार्मिक महत्व और एक आकर्षक एवं अदभुत सौंदर्य को संयुक्त रूप से परिभाषित करता है। 
  • इन मंदिरों का निर्माण आम तौर पर प्राचीन कलिंग क्षेत्र में हुआ है, जो वर्तमान में ओडिशा राज्य के पुरी जिले में स्थित है। 
  • इन प्रमुख मंदिरों में भुवनेश्वर (प्राचीन त्रिभुवनेश्वर), पुरी और कोणार्क के सूर्य मंदिर शामिल हैं। 
  • ओडिशा की वास्तुकला का एक प्रमुख तत्व है मंदिर के शिखर की विशिष्टता, जिसे ‘ देउल ’ कहा जाता है। 
  • यह शिखर न केवल ऊंचा और सीधा होता है, बल्कि इसके शीर्ष पर एक हल्का झुकाव भी देखा जाता है। 
  • इसके अलावा, मंदिरों में एक अन्य महत्वपूर्ण संरचना ‘ जगमोहन होती है, जो मुख्य मंदिर से पहले स्थित होती है और भक्तों को पूजा और दर्शन के लिए एक समर्पित पवित्र स्थान प्रदान करती है।
  • मंदिरों की बाहरी दीवारों पर जटिल नक्काशी और चित्रकला की जाती है, जो इनकी स्थापत्य कला की समृद्धि और भव्यता को प्रदर्शित करती है। 
  • इन मंदिरों के आंतरिक भाग अपेक्षाकृत सरल होते हैं, जिसमें संरचनाएँ व्यवस्थित और ध्यानमग्न रूप से डिजाइन की जाती हैं। 
  • इन मंदिरों की संरचना प्रायः वर्गाकार होती है, लेकिन ऊपर की ओर यह गोलाकार रूप में परिवर्तित हो जाती है, जो मंदिर की वास्तुकला को आकर्षक और मनोहक बनाता है। 
  • इन मंदिरों के चारों ओर एक प्राचीर (दीवार) होती है, जो न केवल मंदिर को बाहरी प्रभावों से सुरक्षा प्रदान करती है, बल्कि इसे एक पवित्र क्षेत्र के रूप में स्थापित करती है। 

 

कोणार्क चक्र का महत्व : 

 

  1. कोणार्क चक्र भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का महत्वपूर्ण प्रतीक है। 
  2. यह 13वीं शताब्दी में विकसित सूर्यघड़ी के रूप में समय मापने और खगोलशास्त्र में भारतीय उन्नति का उदाहरण प्रस्तुत करता है। 
  3. कोणार्क मंदिर का स्वरुप एक विशाल रथ के रूप में है, जिसे 7 घोड़े खींचते हैं, जो सप्ताह के सात दिनों का प्रतीक हैं। 
  4. इसमें 24 पहिए हैं, जो 24 घंटों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि 12 जोड़ी पहिए 12 महीनों का प्रतीक हैं।
  5. प्रत्येक पहिए का व्यास 9 फीट 9 इंच होता है और इसमें 8 मोटी और 8 पतली तीलियाँ होती हैं, जो प्राचीन सूर्यघड़ी के रूप में काम करती हैं। 
  6. पहियों पर जटिल नक्काशी की गई है, जिसमें पत्तियाँ, जानवर, और विभिन्न मुद्राओं में महिलाओं की आकृतियाँ शामिल हैं, जो कला और प्रतीकवाद की समृद्ध परंपरा को दर्शाती हैं।
  7. सूर्यघड़ी के रूप में पहिए समय मापने के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करते हैं। 
  8. चौड़ी तीलियाँ तीन घंटे के अंतराल को दर्शाती हैं, पतली तीलियाँ 1.5 घंटे को, और स्पोक्स के बीच की मालाएँ 3 मिनट के अंतराल को दर्शाती हैं। 
  9. मंदिर के शीर्ष पर स्थित चौड़ा स्पोक मध्यरात्रि को चिह्नित करता है, जो डायल समय को प्रदर्शित करने के लिए वामावर्त घूमता है।

 

कोणार्क चक्र का समकालीन महत्व और निष्कर्ष :

 

 

  1. कोणार्क चक्र का समकालीन महत्व इस बात में निहित है कि यह न केवल ओडिशा की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है, बल्कि भारतीय स्थापत्य और तकनीकी कला की उत्कृष्टता का भी जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है। 
  2. आज, यह चक्र भारतीय मुद्रा पर भी अंकित किया गया है, जिससे ओडिशा की समृद्ध सांस्कृतिक पहचान और इतिहास को वैश्विक मंच पर पहचान मिल रही है। विशेष रूप से, पुराने 20 रुपये और नए 10 रुपये के नोटों पर कोणार्क चक्र की उपस्थिति ओडिशा की ऐतिहासिक विरासत को सम्मानित करती है और भारतीय सांस्कृतिक पहचान को सशक्त बनाती है।
  3. 5 जनवरी 2018 को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी किए गए 10 रुपये के नोट पर कोणार्क चक्र को अंकित किया गया, जो इस प्राचीन शिल्पकला के समकालीन महत्व को बताता है। 
  4. कोणार्क मंदिर का यह चक्र अब भारतीय मुद्रा में केवल एक सांस्कृतिक प्रतीक नहीं है, बल्कि यह देश की विविधता, सांस्कृतिक समृद्धि और ऐतिहासिक गौरव को भी दर्शाता है। 
  5. कोणार्क मंदिर की वास्तुकला ने भारतीय मंदिर निर्माण की परंपरा में एक नया दृष्टिकोण पेश किया है। यह शैली न केवल स्थापत्य कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का भी एक अनूठा प्रतीक बन चुकी है, जो आज भी भारतीय कला और संस्कृति का गौरव बढ़ा रही है। 
  6. निष्कर्ष के रूप में, कोणार्क चक्र न केवल एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि यह भारतीय स्थापत्य, कला और विज्ञान के समृद्ध इतिहास का जीवित प्रतीक है। आज भी यह चक्र भारतीय स्थापत्य कला, सांस्कृतिक समृद्धि की पहचान, राष्ट्रीय गौरव और समृद्ध विरासत के प्रतीक को जीवित रखता है, जो भविष्य में भी भारतीय संस्कृति की पहचान के रूप में बना रहेगा।

 

स्त्रोत – पी आई बी एवं द हिन्दू।

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारतीय स्थापत्य/ वास्तुकला कला के संदर्भ में निम्नलिखित शैलियों पर विचार करें। 

  1. रेखापिडा (मुख्य शिखर)
  2. पिधादेउल (मंदिर का आधार)
  3. खाकरा (आंतरिक संरचना)
  4. जगमोहन (दर्शक कक्ष या मंडप)

उपर्युक्त में से कौन ओडिशा मंदिर वास्तुकला या कलिंग वास्तुकला शैली का उदाहरण है ? 

A. केवल 1 और 3 

B. केवल 2 और 4 

C. इनमें से कोई नहीं। 

D. उपरोक्त सभी। 

उत्तर – D

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. “ भारत के प्राचीन मंदिरों की स्थापत्य कला या वास्तुकला प्राचीन भारत के इतिहास, कला एवं संस्कृति के ज्ञान के एक विश्वसनीय एवं अति महत्त्वपूर्ण स्रोतों में से एक है।” इस कथन की विवेचना कीजिए। (शब्द सीमा – 250 अंक – 15 ) 

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