12 Apr अमेरिका – चीन टैरिफ युद्ध 2025 बनाम विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाएँ
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ अंतर्राष्ट्रीय संबंध, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, भारत और इसके पड़ोसी देश, भारत की व्यापार नीति और बाह्य क्षेत्र सुधार, वैश्विक व्यापार संघर्ष और उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर उनका प्रभाव ’ खण्ड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ G – 20 और क्वाड देश, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग, विश्व व्यापार संगठन, ब्रिक्स, सेमीकंडक्टर, दुर्लभ मृदा तत्त्व, भारत-अमेरिका कॉम्पैक्ट पहल ’ खण्ड से संबंधित है। )
खबरों में क्यों?
- हाल ही में अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव एक बार फिर चरम पर पहुँच गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीनी आयात पर 145% तक शुल्क बढ़ाने के निर्णय के प्रतिउत्तर में चीन ने भी कड़ा रुख अपनाते हुए अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ दर को 84% से बढ़ाकर 125% तक कर दिया है।
- गौरतलब है कि इससे पहले राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत समेत अनेक देशों के साथ पारस्परिक शुल्क प्रणाली को अस्थायी रूप से, 90 दिनों के लिए, स्थगित करने की घोषणा की थी, किन्तु इस निर्णय से चीन को बाहर रखा गया था।
- इन जवाबी आर्थिक कदमों के चलते वैश्विक व्यापार जगत में अस्थिरता की आशंकाएँ गहराने लगी हैं, और विशेषज्ञ इस टकराव को अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संतुलन के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में देख रहे हैं।
अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ में वृद्धि के प्रमुख कारण :
अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ में वृद्धि के प्रमुख कारण निम्नलिखित है :
अमेरिका के दृष्टिकोण से :
- व्यापार घाटा : अमेरिका का चीन के साथ भारी व्यापार घाटा, जो 2024 में 295 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, एक मुख्य चिंता का विषय है। अमेरिका इसे वैश्विक व्यापार में एक बड़ी असंतुलन के रूप में देखता है और इसे अपनी अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा मानता है।
- अनुचित व्यापार प्रथाएँ : अमेरिका चीन पर बौद्धिक संपदा की चोरी और प्रौद्योगिकी के जबरन हस्तांतरण का आरोप लगाता है। यह आरोप अमेरिकी कंपनियों के लिए निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को बाधित करता है।
- घरेलू उद्योगों की सुरक्षा : अमेरिकी सरकार अपने घरेलू उद्योगों को बचाने के लिए टैरिफ का उपयोग कर रही है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां चीनी प्रतिस्पर्धा अत्यंत मजबूत है।
चीन के दृष्टिकोण से :
- प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई : चीन ने अमेरिकी टैरिफ में वृद्धि के जवाब में अपने टैरिफ बढ़ाए हैं। यह दोनों देशों के बीच चल रहे व्यापार विवाद का एक महत्वपूर्ण भाग या अंग है।
- आपूर्ति शृंखला की रणनीतिक पुनर्रचना : अमेरिका और चीन दोनों महत्त्वपूर्ण आपूर्ति क्षेत्रों — जैसे अर्धचालक, दुर्लभ मृदा तत्त्व, और इलेक्ट्रिक वाहन घटक — में अपनी पारस्परिक निर्भरता कम करने की दिशा में कदम उठा रहे हैं। अमेरिका ने ‘चिप्स ऐक्ट’, भारत के साथ भारत-अमेरिका कॉम्पैक्ट पहल, और वियतनाम के साथ सहयोग जैसे उपायों के ज़रिए वैकल्पिक आपूर्ति मार्गों की खोज शुरू कर दी है।
- भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा : टैरिफ युद्ध से अलग, यह संघर्ष ताइवान, दक्षिण चीन सागर, और उच्च तकनीक क्षेत्रों में प्रभुत्व को लेकर भी है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में वैश्विक नेतृत्व के लिए आपसी प्रतिस्पर्धा ने इस आर्थिक टकराव को और भी अधिक जटिल बना दिया है।
- वैकल्पिक मार्गों से टैरिफ की चोरी करना : अमेरिकी टैरिफ से बचने के लिए चीनी कंपनियाँ वियतनाम और मलेशिया जैसे तीसरे देशों के माध्यम से माल भेज रही हैं। इससे क्षेत्रीय व्यापारिक तनाव भी बढ़ रहा है, क्योंकि अमेरिका अब इन देशों के ज़रिए हो रहे अप्रत्यक्ष व्यापार को रोकने की कोशिश कर रहा है।
अमेरिका और चीन के बीच होने वाले व्यापार युद्ध के संभावित जोखिम :
- वैश्विक मंदी का खतरा होने की संभावना : अमेरिका और चीन वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और उनके बीच व्यापार युद्ध से वैश्विक मंदी हो सकती है। अमेरिका और चीन संयुक्त रूप से वैश्विक GDP का 43% हिस्सा रखते हैं। यदि दोनों अर्थव्यवस्थाओं में एक साथ मंदी आती है, तो इसका असर वैश्विक स्तर पर महसूस किया जाएगा। WTO के अनुसार, इस संघर्ष से वैश्विक GDP में 7% तक गिरावट आ सकती है।
- उत्पाद डंपिंग और स्थानीय उद्योगों पर असर : अमेरिका में बाजार पहुंच सीमित होने के कारण चीन अपनी अधिशेष वस्तुएं — जैसे स्टील और सोलर पैनल — सब्सिडी दरों पर अन्य बाजारों में बेच सकता है। इससे यूरोप, भारत और ब्रिटेन जैसे देशों के स्थानीय उद्योगों को नुकसान, रोज़गार में कटौती, और संरक्षणवाद में वृद्धि संभव है।
- सामरिक संसाधनों का शस्त्रीकरण : गैलियम, जर्मेनियम और लिथियम जैसे दुर्लभ मृदा तत्वों पर चीन का नियंत्रण अमेरिका-चीन संबंधों को तकनीकी शीत युद्ध की दिशा में ले जा सकती है। भारत जैसे देश, जो इलेक्ट्रॉनिक्स और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रहे हैं, इस आपूर्ति बाधा से ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियान बाधित हो सकते हैं।
- वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में बाधा उत्पन्न होना : जो देश चीन के विनिर्माण पर या अमेरिका की तकनीक पर निर्भर हैं, उन्हें सीमा पार अस्थिरता और लागत में बढ़ोतरी का सामना करना पड़ सकता है। वैकल्पिक आपूर्ति जैसे रीशोरिंग (पुनः-स्थापन) और नियर-शोरिंग प्रयास महंगे व समय लेने वाले होते हैं। कई देश चीनी उत्पादों या अमेरिकी तकनीकों पर निर्भर हैं, और व्यापार युद्ध से उनकी आपूर्ति शृंखलाएं बाधित हो सकती हैं।
- वैश्विक ध्रुवीकरण और बहुपक्षीय सहयोग को नुकसान पहुँचना : यह व्यापारिक संघर्ष विभिन्न देशों को किसी एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के पक्ष में साथ खड़े होने के लिए बाध्य कर सकता है, जिससे बहुपक्षीय सहयोग को नुकसान पहुँचेगा और वैश्विक आर्थिक शासन प्रणाली कमजोर हो सकती है।
भारत पर अमेरिका-चीन व्यापार टकराव के संभावित प्रभाव :
- आपूर्ति तंत्र में बाधाएँ उत्पन्न होना : भारत की अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, ऑटोमोबाइल कलपुर्जे और दवा निर्माण जैसे क्षेत्रों में, कई चीनी उत्पादों और कच्चे माल पर निर्भर है। यदि अमेरिका-चीन व्यापार विवाद और गहराता है, तो आयातित वस्तुओं पर बढ़े हुए शुल्क और शिपमेंट में देरी के कारण भारत में इन उत्पादों की लागत में इज़ाफा हो सकता है। इससे मोबाइल, लैपटॉप, वाहन आदि उपभोक्ता वस्तुएं न केवल महंगी होंगी, बल्कि समय पर उपलब्ध भी नहीं होंगी।
- भारत के फार्मास्युटिकल उद्योग के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न होना : भारत के दवा उद्योग की रीढ़ कहे जाने वाले API (Active Pharmaceutical Ingredients) का बड़ा हिस्सा चीन से आयात किया जाता है। जब वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में रुकावट आती है या लागत बढ़ती है, तो दवाओं की कीमतें भी बढ़ जाती हैं। इसका प्रभाव न केवल घरेलू स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ेगा, बल्कि भारत के फार्मा उत्पादों के वैश्विक निर्यात को भी प्रभावित करेगा।
- भारत की आर्थिक वृद्धि और महँगाई पर असर : वैश्विक व्यापार में मंदी भारत की GDP को धीमा कर सकती है, जैसा कि 2018-19 में हुआ जब अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के चलते भारत की GDP वृद्धि दर 8.3% से घटकर 4.2% रह गई। इसके साथ ही, जब आयातित वस्तुएं महंगी हो जाती हैं, तो महँगाई दर में वृद्धि स्वाभाविक है। इससे घरेलू उपभोक्ता खर्च पर दबाव बढ़ता है और व्यापारिक लागतें भी ऊँची हो जाती हैं।
- भारत के लिए निर्यात क्षेत्र में नए अवसर उत्पन्न होने की संभावनाएँ : जहाँ एक ओर व्यापार युद्ध से संकट उत्पन्न होता है, वहीं दूसरी ओर यह अवसर भी बन सकता है। अमेरिका द्वारा चीन से आने वाले उत्पादों पर अधिक शुल्क लगाने के कारण, भारत जैसे देशों को अमेरिकी बाजार में अपनी भागीदारी बढ़ाने का अवसर मिल सकता है। विशेष रूप से वस्त्र, चमड़ा और हैंडीक्राफ्ट जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में भारत की प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति मजबूत हो सकती है। इससे भारत अमेरिकी बाजार में चीन की हिस्सेदारी को हथियाने की स्थिति में आ सकता है, जिससे भारत में निर्यात को नई ऊर्जा मिल सकती है।
व्यापार संघर्ष से उत्पन्न प्रभावों को कम करने के लिए अपनाए जाने वाली रणनीतियाँ:
वैश्विक स्तर पर किए जाने वाला प्रयास :
- वैश्विक व्यापार विवादों के समाधान के लिए विश्व व्यापार संगठन (WTO) के अपीलीय निकाय को सक्रिय कर पुनः प्रभावी बनाना आवश्यक : वैश्विक व्यापार विवादों को सुलझाने के लिए WTO के अपीलीय तंत्र को पुनर्जीवित करना अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए G-20 और क्वाड जैसे प्रभावशाली मंचों पर सहयोग बढ़ाना उपयोगी हो सकता है।
- दक्षिण-दक्षिण व्यापारिक सहयोग को मजबूत करने की जरूरत : भारत जैसे उभरते देशों को अफ्रीका और ASEAN देशों के साथ व्यापारिक सहयोग को मजबूत कर अमेरिका-चीन पर निर्भरता कम करनी होगी।
- व्यापक क्षेत्रीय व्यापारिक भागीदारी को मजबूत करने की आवश्यकता : यदि यूरोप और एशिया के बीच व्यापारिक संबंध मज़बूत होते हैं, तो वैश्विक व्यापार धीरे-धीरे अमेरिका-केंद्रित मॉडल से हटकर संतुलित दिशा में जा सकता है। यह BRICS, SCO और APEC जैसे मंच बहुपक्षीय सहयोग को प्रोत्साहित कर सकते हैं। एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग, BRICS और SCO जैसे बहुपक्षीय मंचों को सक्रिय भूमिका निभाते हुए व्यापारिक तनाव को संतुलित करने के प्रयास करने चाहिए।
राष्ट्रीय नीतिगत उपाय :
- नए मुक्त व्यापार समझौतों को को शीघ्र पूरा करने की जरूरत : भारत को यूरोपीय संघ, यूके और GCC देशों के साथ प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौतों को शीघ्रता से निष्पादित करना चाहिए ताकि भारतीय उत्पादों को नए बाज़ारों में बेहतर पहुँच मिल सके।
- स्थानीय विनिर्माण उद्योगों को बढ़ावा देने की आवश्यकता : चीनी आयात पर निर्भरता घटाने के लिए सेमीकंडक्टर, APIs, सौर उपकरण और हाई-टेक उत्पादों के घरेलू उत्पादन को PLI स्कीम और “मेक इन इंडिया” पहल के तहत प्रोत्साहन देना होगा।
- चीन+1 रणनीति के तहत निवेश आकर्षित करने में भारत की भूमिका : PM गति शक्ति और “इन्वेस्ट इंडिया” जैसी योजनाओं के माध्यम से निवेशकों के लिए भूमि, श्रम और लॉजिस्टिक्स की उपलब्धता आसान बनाई जाए, ताकि भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में चीन के विकल्प के रूप में उभरे।
- व्यापार निगरानी तंत्र की स्थापना करने की आवश्यकता : व्यापार में तेजी से बदलती परिस्थितियों पर नजर रखने और टैरिफ बदलावों के प्रभाव का पूर्वानुमान लगाने के लिए एक राष्ट्रीय व्यापार निगरानी एजेंसी का गठन किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष :
- अमेरिका और चीन के बीच चल रही व्यापार प्रतिस्पर्धा न केवल वैश्विक व्यापार तंत्र के लिए चुनौती है, बल्कि भारत के लिए अवसरों का भी द्वार है। विवेकपूर्ण रणनीतियों और प्रभावी नीतिगत निर्णयों के माध्यम से भारत न केवल इन नकारात्मक प्रभावों से निपट सकता है, बल्कि वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति को और भी मजबूत कर सकता है। निष्कर्षतः, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध जहां वैश्विक व्यापार के लिए एक बड़ी चुनौती है, वहीं भारत के लिए यह आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाने तथा वैश्विक बाजार में अपनी भूमिका सशक्त करने का भी एक अवसर है।
स्त्रोत – पी. आई. बी एवं द हिन्दू।
Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 12th April 2025
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत पर अमेरिका-चीन व्यापार टकराव के संभावित प्रभावों के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
- भारत की आपूर्ति शृंखलाएँ बाधित हो सकती हैं।
- भारत के फार्मास्युटिकल उद्योग को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
- भारत की आर्थिक वृद्धि धीमी हो सकती है।
- भारत अमेरिकी बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
A. केवल 1 और 3
B. केवल 2 और 4
C. इनमें से कोई नहीं।
D. उपरोक्त सभी।
उत्तर – D
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. चर्चा कीजिए कि अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापार तनाव का वैश्विक अर्थव्यवस्था, विशेषकर विकासशील देशों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? भारत के संदर्भ में इस टकराव से उत्पन्न संभावित अवसरों और चुनौतियों की भी चर्चा कीजिए, तथा इससे निपटने हेतु उपयुक्त रणनीतियाँ सुझाइए। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
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