आतंकवाद : मनुष्यता के प्रति विद्वेषी विचारधारा या हिंसा के दर्शन की विकृति?

आतंकवाद : मनुष्यता के प्रति विद्वेषी विचारधारा या हिंसा के दर्शन की विकृति?

सामान्य अध्ययन – 3 आंतरिक सुरक्षा 

 

खबरों में क्यों?

 

 

  • हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हुए भयावह आतंकी हमले में 26 नागरिकों की जान चली गई और अनेक लोग घायल हो गए। 
  • इस भीषण घटना के बाद केंद्र सरकार ने सभी दलों को साथ लेकर एक आपात बैठक बुलाई गई और  पूरे देश में इस हमले की तीव्र भर्त्सना की जा रही है। 
  • भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मधुबनी में आयोजित एक जनसभा में कहा कि इस हमले के पीछे जो भी तत्व हैं—चाहे वे साजिशकर्ता हों या सहायता देने वाले—उन्हें ऐसी सज़ा दी जाएगी जो उनकी सोच से परे होगी। 
  • केन्द्र सरकार की यह प्रतिक्रिया देश की सुरक्षा के प्रति उसकी अडिग निष्ठा और आतंकवाद के विरुद्ध उसकी कठोर नीति को स्पष्ट रूप से दर्शाती है।
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आतंकवाद : भय और हिंसा की राजनीति क्या होता है ? 

 

 

  1. जब किसी राजनीतिक, धार्मिक या वैचारिक मकसद को हासिल करने के लिए जानबूझकर आम नागरिकों के खिलाफ हिंसा, धमकी या भय का इस्तेमाल किया जाता है, तो उसे आतंकवाद कहा जाता है। 
  2. यह ऐसा सुनियोजित प्रयास होता है, जिसका लक्ष्य समाज में अस्थिरता, डर और अव्यवस्था फैलाना होता है। अक्सर यह निर्दोष लोगों को निशाना बनाकर सरकारों पर दबाव बनाने या व्यापक जनमत को प्रभावित करने की रणनीति के रूप में किया जाता है।
    आतंकवादी संगठन सीमाओं से परे काम करते हैं और आधुनिक सुरक्षा ढांचे की कमजोरियों का लाभ उठाते हैं। 
  3. पारंपरिक युद्धों के विपरीत, आतंकवाद न तो किसी नियम का पालन करता है और न ही किसी चेतावनी का मोहताज होता है। इसके हमले अकस्मात होते हैं और व्यापक जनजीवन, शांति और मानवाधिकारों को गहरी चोट पहुंचाते हैं।
  4. इसके प्रभाव केवल हताहतों तक सीमित नहीं रहते—बल्कि यह सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करता है, आर्थिक विकास की गति रोकता है, समुदायों के बीच तनाव और अविश्वास को बढ़ाता है, तथा राष्ट्रों पर मानसिक और वित्तीय भार बढ़ाता है।

 

भारत में हाल ही में हुए आतंकवादी हमले : 

 

तारीख जगह हताहतों की संख्या विवरण
अप्रैल 2025 पहलगाम, जम्मू और कश्मीर 26 की मौत, कई घायल नागरिकों को निशाना बनाकर किए गए आतंकवादी हमले से राष्ट्रीय आक्रोश और प्रतिक्रिया भड़क उठी।
मई 2023 राजौरी, जम्मू-कश्मीर 5 नागरिकों की मौत एक गाँव पर आक्रमण; इसमें पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन के शामिल होने का संदेह है।
अप्रैल 2023 पुंछ, जम्मू-कश्मीर 5 सैनिक मारे गए उग्रवादियों ने सेना के एक वाहन पर घात लगाकर हमला किया; एक संदिग्ध सीमा पार समूह शामिल था।
मार्च 2022 सुंजुवान, जम्मू 2 की मौत, 4 घायल जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने सेना कैंप के पास आत्मघाती हमला किया।
फरवरी 2019 पुलवामा, जम्मू-कश्मीर सीआरपीएफ के 40 जवान मारे गये जैश-ए-मोहम्मद की ओर से काफिले पर आत्मघाती हमला किया गया।
नवंबर 2008 मुंबई, महाराष्ट्र 166 की मौत, 300 से अधिक घायल लश्कर-ए-तैयबा द्वारा समन्वित हमला; कई स्थान शामिल हैं।

 

भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर आतंकवाद की चुनौती : 

 

  • भारत को पिछले कुछ दशकों से आतंकवाद के रूप में एक गहरी और जटिल सुरक्षा चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। यह खतरा न केवल नागरिक जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि देश की आंतरिक स्थिरता, अर्थव्यवस्था और वैश्विक छवि को भी गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाता है।
  1. मानवीय क्षति और गहरा सदमा : पुलवामा (2019) जैसे जघन्य आतंकी हमलों ने न केवल अनगिनत जानें ली हैं, बल्कि बचे लोगों और पूरे देश को एक गहरे मनोवैज्ञानिक आघात से भी भर दिया है।
  2. आंतरिक सुरक्षा में अस्थिरता : भारत में जम्मू-कश्मीर में जारी उग्रवाद और माओवादी हिंसा देश की आंतरिक शांति और व्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा है। वर्ष 2022 में अकेले जम्मू-कश्मीर में 230 से अधिक आतंकी वारदातें दर्ज की गईं, जो स्थिति की गंभीरता को दर्शाती हैं।
  3. सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद : जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन पड़ोसी देशों की सीमा से संचालित होते हैं, जिसमें पाकिस्तान की संलिप्तता अक्सर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी रहती है।
  4. अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव : आतंकी हमलों के कारण निवेशकों का भरोसा डगमगाता है और पर्यटन उद्योग बुरी तरह प्रभावित होता है। अनुमान है कि प्रत्येक बड़ी आतंकी घटना से देश को लगभग ₹1,500-2,000 करोड़ का आर्थिक नुकसान होता है।
  5. सामाजिक समरसता के लिए खतरा उत्पन्न करना : आतंकवाद का मुख्य उद्देश्य समुदायों के बीच विद्वेष पैदा करना और सामाजिक एकता को खंडित करना है, जैसा कि मुंबई में हुए 26/11 के भयावह हमलों में स्पष्ट रूप से देखा गया।
  6. सुरक्षा तंत्र पर भारी दबाव : आतंकवाद से निपटने के लिए रक्षा और आतंकवाद विरोधी अभियानों पर भारी मात्रा में धन खर्च करना पड़ता है। वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए रक्षा बजट ₹6.21 लाख करोड़ आवंटित किया गया है, जो इस चुनौती की गंभीरता को दर्शाता है।
  7. साइबर जगत और कट्टरता का प्रसार : आजकल आतंकवादी संगठन युवाओं को बरगलाने और कट्टरपंथी विचारधारा फैलाने के लिए ऑनलाइन माध्यमों का तेजी से उपयोग कर रहे हैं, जो एक नई और गंभीर चुनौती है।
  8. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छवि धूमिल होना : भारत में बार-बार होने वाले आतंकवादी हमलों से वैश्विक मंच पर भारत की प्रतिष्ठा प्रभावित होती है। इसके बावजूद, भारत अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र के व्यापक सम्मेलन को पारित कराने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है।

 

आतंकवाद के विरुद्ध भारत सरकार की रणनीतियाँ : 

 

 

  • भारत सरकार ने आतंकवाद के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए बहुस्तरीय और समग्र दृष्टिकोण अपनाया है। इन प्रयासों का उद्देश्य न केवल हमलों को रोकना है, बल्कि आतंक की जड़ों को भी समाप्त करना है।
  1. कानूनों को सशक्त बनाना : गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) जैसे कानूनों को कठोर बनाया गया है, जिससे सुरक्षा एजेंसियों को आतंकवादियों और उनके नेटवर्क पर सीधे कार्रवाई करने के लिए व्यापक अधिकार मिल सके।
  2. जांच एजेंसियों की क्षमता में वृद्धि : राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को और अधिक अधिकार तथा संसाधन प्रदान कर उसे देशव्यापी आतंकवाद-निरोधी अभियानों का नेतृत्व करने में सक्षम बनाया गया है।
  3. सूचना साझाकरण तंत्र : मल्टी-एजेंसी सेंटर (MAC) के माध्यम से केंद्रीय और राज्य स्तरीय एजेंसियों के बीच खुफिया जानकारी का त्वरित आदान-प्रदान सुनिश्चित किया गया है।
  4. पुलिस और अर्धसैनिक बलों का आधुनिकीकरण : पुलिस बलों के आधुनिकीकरण (एमपीएफ) जैसी योजनाओं के माध्यम से, उन्हें आधुनिक हथियार, उन्नत निगरानी तकनीक और विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है, जिससे उनकी प्रतिक्रिया क्षमता में वृद्धि हो सके।
  5. सीमा पर तकनीकी निगरानी : भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर ड्रोन, सेंसर और स्मार्ट फेंसिंग जैसी उन्नत तकनीकों की मदद से घुसपैठ रोकने के उपाय किए गए हैं।
  6. साइबर सुरक्षा और निगरानी : CERT-In और अन्य एजेंसियाँ डिजिटल माध्यमों पर आतंकी गतिविधियों, प्रचार और धन-संचालन पर कड़ी निगरानी रख रही हैं।
  7. आतंकी वित्तपोषण पर नकेल कसना : वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) के साथ समन्वय स्थापित करके, धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत सख्त नियम लागू किए गए हैं और आतंकवाद से जुड़े संदिग्ध खातों को सील किया जा रहा है।
  8. जन जागरूकता और सामुदायिक सहभागिता : खुफिया जानकारी जुटाने और कट्टरवाद के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए सामुदायिक पुलिसिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है, खासकर संवेदनशील क्षेत्रों में लोगों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है।
  9. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा : आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक स्तर पर सहयोग महत्वपूर्ण है। भारत द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों के माध्यम से आतंकवाद-निरोध, खुफिया जानकारी साझा करने और संयुक्त राष्ट्र, एससीओ, एफएटीएफ जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय रूप से भाग ले रहा है।

 

आतंकवाद विरोध में भारत को आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ : 

 

  1. सीमा पार से आतंकवाद का समर्थन : आतंकवादी संगठनों को पड़ोसी देशों से लगातार समर्थन मिलता रहता है, जिसके कारण उनके सुरक्षित ठिकानों को पूरी तरह से नष्ट करना एक कठिन कार्य बना हुआ है।
  2. खुफिया जानकारी में कमियां और समन्वय का अभाव : विभिन्न एजेंसियों और राज्यों के बीच वास्तविक समय पर खुफिया जानकारी का निर्बाध आदान-प्रदान अभी भी एक चुनौती है, जिससे समय पर निवारक कार्रवाई करने में विलंब हो सकता है।
  3. आधुनिक तकनीक का दुरुपयोग : आतंकवादी एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप, ड्रोन और साइबर उपकरणों जैसी आधुनिक तकनीकों का तेजी से इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे उन्हें ट्रैक करना और रोकना मुश्किल हो गया है।
  4. कट्टरता और ऑनलाइन कट्टरपंथ का प्रसार : सोशल मीडिया और चरमपंथी ऑनलाइन सामग्री के माध्यम से युवाओं, खासकर कमजोर क्षेत्रों के लोगों को आसानी से कट्टरपंथी बनाया जा रहा है।
  5. आतंकी वित्तपोषण के गुप्त नेटवर्क : हवाला और फर्जी दान जैसे अवैध वित्तीय चैनल नियामक प्रयासों के बावजूद आतंकी गतिविधियों के लिए धन मुहैया कराते रहते हैं।
  6. न्यायिक प्रक्रिया में देरी और कानूनी जटिलताएं : आतंकवाद से जुड़े मामलों में लंबी कानूनी प्रक्रियाएं, साक्ष्यों की स्वीकार्यता में कठिनाई और प्रक्रियात्मक विलंब आतंकवाद विरोधी कानूनों की प्रभावशीलता को कम करते हैं।
  7. मानवाधिकार बनाम सुरक्षा का द्वंद्व : कठोर सुरक्षा उपायों और नागरिकों की स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखना एक जटिल मुद्दा है, जिससे अक्सर सार्वजनिक प्रतिक्रिया या शक्ति के दुरुपयोग की आशंका बनी रहती है।
  8. सीमाओं की भेद्यता और भौगोलिक चुनौतियां : जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में दुर्गम भूभाग घुसपैठ और हथियारों की तस्करी में सहायक होता है।
  9. राज्य-स्तरीय तैयारियों में असमानता : विभिन्न राज्यों की पुलिस बलों की क्षमताओं, प्रशिक्षण और संसाधनों में अंतर एक एकीकृत राष्ट्रीय प्रतिक्रिया में बाधा उत्पन्न करता है।

 

आतंकवाद के विरुद्ध सरकार के लिए प्रस्तावित रणनीतियाँ : 

 

  1. खुफिया तंत्र का एकीकरण : केंद्रीय और राज्य स्तर की एजेंसियों के बीच वास्तविक समय पर खुफिया जानकारी का निर्बाध प्रवाह सुनिश्चित किया जाए। एकीकृत कमांड और नियंत्रण केंद्र स्थापित करके समन्वय को और अधिक प्रभावी बनाया जाए।
  2. आधुनिक सुरक्षा अवसंरचना में निवेश : उन्नत निगरानी तकनीकों, साइबर खुफिया उपकरणों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) आधारित खतरे का पता लगाने वाली प्रणालियों में पर्याप्त निवेश किया जाए, ताकि सुरक्षा व्यवस्था को और अधिक मजबूत किया जा सके।
  3. सीमा सुरक्षा को अभेद्य बनाना : जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर जैसे संवेदनशील सीमा क्षेत्रों को स्मार्ट बाड़, गति संवेदक और ड्रोन आधारित निगरानी प्रणाली से पूरी तरह से सुरक्षित किया जाए।
  4. कट्टरता निवारण के लिए विशेष पहल : जेलों और संवेदनशील समुदायों में लक्षित डी-रेडिकलाइजेशन (कट्टरता उन्मूलन) कार्यक्रम शुरू किए जाएं। ऑनलाइन चरमपंथी सामग्री की कड़ी निगरानी और रोकथाम सुनिश्चित की जाए।
  5. त्वरित न्यायिक प्रणाली की स्थापना : आतंकवाद से जुड़े मामलों की त्वरित सुनवाई और समय पर न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रशिक्षित न्यायाधीशों वाली विशेष फास्ट-ट्रैक अदालतों का गठन किया जाए।
  6. आतंकी वित्तपोषण के स्रोतों पर प्रहार : गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ), मुखौटा कंपनियों और हवाला जैसे अवैध वित्तीय नेटवर्क पर कड़ी निगरानी रखी जाए। वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (एफएटीएफ) जैसे वैश्विक निकायों के साथ सहयोग को और मजबूत किया जाए।
  7. पुलिस बलों का क्षमता विकास : पुलिस और अर्धसैनिक बलों को नियमित और आधुनिक प्रशिक्षण, उन्नत उपकरण और अंतर-राज्यीय समन्वय के लिए मंच प्रदान किए जाएं, ताकि उनकी दक्षता बढ़ाई जा सके।
  8. सामुदायिक पुलिसिंग को प्रोत्साहन : स्थानीय समुदायों के साथ विश्वास और सहयोग का माहौल बनाया जाए, ताकि वे संदिग्ध गतिविधियों की समय पर जानकारी दे सकें। यह प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को मजबूत करेगा।
  9. वैश्विक आतंकवाद विरोधी प्रयासों का नेतृत्व : संयुक्त राष्ट्र में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन (सीसीआईटी) के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने के प्रयासों को फिर से सक्रिय किया जाए।

 

निष्कर्ष :

 

 

  • भारत के समक्ष आतंकवाद एक जटिल और बहुआयामी चुनौती के रूप में विद्यमान है, जो न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा बल्कि सामाजिक समरसता और आर्थिक प्रगति पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। हालिया घटनाएँ, विशेषकर जम्मू-कश्मीर में, इस संकट की निरंतरता और इसकी बदलती रणनीतियों को उजागर करती हैं। यद्यपि सरकार द्वारा कानूनी सुधारों, खुफिया तंत्र को सुदृढ़ करने और वैश्विक साझेदारियों के विस्तार जैसे प्रयास किए गए हैं, परंतु सीमा पार से हो रहे हमलों, विचारधारात्मक कट्टरता और तकनीकी माध्यमों के दुरुपयोग से उत्पन्न खतरों के समाधान हेतु समग्र और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। भारत को न केवल अपने आंतरिक सुरक्षा तंत्र को सशक्त बनाना चाहिए, बल्कि वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के विरुद्ध निर्णायक नेतृत्व की भूमिका भी निभानी चाहिए। अपने नागरिकों के लिए न्याय, शांति और लचीलापन (resilience) सुनिश्चित करते हुए, भारत को इस वैश्विक चुनौती का सामना करने के लिए एकजुट होकर कार्य करना होगा। इन परिस्थितियों में, भारत को सुरक्षा की दृष्टि से न केवल तकनीकी और रणनीतिक सुदृढ़ता प्राप्त करनी होगी, बल्कि समावेशी विकास, क्षेत्रीय सहयोग, और सामाजिक भागीदारी को भी प्राथमिकता देनी होगी। आतंकवाद से लड़ाई केवल सैन्य या कानूनी उपायों तक सीमित न होकर एक समग्र और समन्वित नीति की मांग करती है।
  • इस दिशा में भारत को न केवल अपनी आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करते हुए नागरिकों के बीच विश्वास और शांति बनाए रखनी होगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर आतंकवाद विरोधी प्रयासों में एक निर्णायक और अग्रणी भूमिका निभाते रहना चाहिए। केवल इसी समन्वित दृष्टिकोण के माध्यम से भारत एक सुरक्षित, समावेशी और स्थिर भविष्य की ओर अग्रसर हो सकता है।

 

स्त्रोत – पी.आई.बी एवं द हिन्दू। 

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में आतंकवाद के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) का गठन गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत किया गया था।
2. मल्टी-एजेंसी सेंटर (एमएसी) केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच खुफिया समन्वय के लिए जिम्मेदार है।
3. 26/11 मुंबई हमले को जैश-ए-मोहम्मद ने अंजाम दिया था।
उपरोक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
A. केवल 1 और 2
B. केवल 2
C. केवल 1 और 3
D. 1, 2 और 3

उत्तर-  B

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. आतंकवाद भारत की आंतरिक सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय छवि के लिए एक निरंतर खतरा बना हुआ है। इस संदर्भ में भारत को आतंकवाद से निपटने में किन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? सरकार द्वारा अब तक इस खतरे से निपटने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए गए हैं? साथ ही, राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिक्रिया प्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए आप किन अतिरिक्त उपायों की सिफारिश करेंगे? ( शब्द सीमा – 250 अंक- 15 अंक )

 

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