09 Oct आर्थिक स्थिरता की ओर : मौद्रिक नीति समिति की 10वीं बैठक
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के अंतर्गत ‘ भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास, भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति, विकास से संबंधित मुद्दे और रोज़गार , समावेशी विकास और इससे उत्पन्न मुद्दे ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की 10वीं बैठक, रेपो दर, रिवर्स रेपो दर , नकद आरक्षित अनुपात , वैधानिक तरलता अनुपात ’ खंड से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में, 9 अक्टूबर 2024 (बुधवार) को भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee – MPC) ने लगातार 10वीं बार नीतिगत रेपो दर को 6.50% पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया है।
- भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से पांच सदस्यों ने इस निर्णय के पक्ष में मतदान किया, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना है।
मौद्रिक नीति क्या होता है ?
- मौद्रिक नीति एक व्यापक आर्थिक नीति उपकरण है जिसका उपयोग केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को बढ़ाने या घटाने के लिए और अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिए करते हैं, ताकि कुछ विशिष्ट आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।
- इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक स्थिरता बनाए रखना, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) मौद्रिक नीति का संचालन करता है।
- मौद्रिक नीति के माध्यम से, केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में ऋण की उपलब्धता को विनियमित करता है और आर्थिक नीति के अंतिम उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है।
मौद्रिक नीति के प्रमुख उपकरण :
मौद्रिक नीति के प्रमुख उपकरणों में निम्नलिखित शामिल होते हैं –
- रेपो दर : वह दर जिस पर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण प्रदान करता है।
- रिवर्स रेपो दर : वह दर जिस पर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों से अतिरिक्त नकदी को अवशोषित करता है।
- नकद आरक्षित अनुपात (CRR) : वाणिज्यिक बैंकों को अपनी कुल जमा का एक निश्चित प्रतिशत केंद्रीय बैंक के पास रखना होता है।
- वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) : वाणिज्यिक बैंकों को अपनी कुल जमा का एक निश्चित प्रतिशत तरल संपत्तियों में निवेश करना होता है।
मौद्रिक नीति समिति (MPC) की पृष्ठभूमि :
- मौद्रिक नीति समिति (MPC) की स्थापना भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत भारत की मौद्रिक नीति निर्माण में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए की गई थी।
- मौद्रिक नीति समिति (MPC) की स्थापना से पहले, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर सभी महत्वपूर्ण ब्याज दर को निर्धारित करने का निर्णय अपने विवेक के आधार पर लेते थे।
संरचना और उद्देश्य :
- मौद्रिक नीति समिति (MPC) का मुख्य उद्देश्य आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए मुद्रास्फीति को एक निर्धारित लक्ष्य के भीतर बनाए रखना है।
- संशोधित (वर्ष 2016 में) RBI अधिनियम, 1934 की धारा 45ZB के तहत केंद्र सरकार को छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) का गठन करने का अधिकार है।
- पहली बार इसका गठन 29 सितंबर, 2016 को किया गया था।
- भारत में इस समिति का गठन उर्जित पटेल समिति की सिफारिशों के आधार पर किया गया था।
- मौद्रिक नीति समिति (MPC) में कुल छह सदस्य होते हैं, जिनमें से तीन सदस्य भारतीय रिजर्व बैंक से और तीन केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत बाहरी सदस्य होते हैं।
- भारतीय रिजर्व बैंक का गवर्नर इस समिति का पदेन अध्यक्ष होता है।
- वर्तमान में, राम सिंह, सौगत भट्टाचार्य और नागेश कुमार नए बाहरी सदस्यों के रूप में नियुक्त किये गए हैं और कार्यरत हैं, जिन्होंने अक्टूबर 2024 में समाप्त हुए पिछले सदस्यों का स्थान लिया है।
बैठक और मतदान की प्रक्रिया :
- मौद्रिक नीति समिति की बैठक वर्ष में कम से कम चार बार होती है।
- इस समिति की प्रत्येक बैठक के लिए कम से कम चार सदस्यों की उपस्थिति आवश्यक है।
- इसके प्रत्येक सदस्य के पास एक वोट (मत) देने का अधिकार होता है।
- मतों की बराबरी की स्थिति में गवर्नर के पास दूसरा या निर्णायक मत देने का अधिकार होता है।
मौद्रिक नीति रिपोर्ट : भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) प्रत्येक छह महीने में एक मौद्रिक नीति रिपोर्ट जारी करता है, जिसमें मुद्रास्फीति की व्याख्या और आगामी 6-8 महीनों के लिए मुद्रास्फीति के अनुमान दिए जाते हैं।
मौद्रिक नीति का प्रमुख उद्देश्य :
मौद्रिक नीति के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
- अर्थव्यवस्था के विकास को गति प्रदान करना : आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करना और समग्र विकास को बढ़ावा देना।
- मुद्रास्फीति को नियंत्रित कर मूल्य स्थिरता बनाए रखना : मुद्रास्फीति को नियंत्रित कर मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करना।
- रोजगार सृजन करना : रोजगार के अवसरों को बढ़ाना और बेरोजगारी को कम करना।
- विनिमय दर को स्थिर रखना : विदेशी मुद्रा बाजार में स्थिरता बनाए रखना।
मौद्रिक नीति का महत्त्व :
- मूल्य स्थिरता बनाए रखने में सहायक : मूल्य स्थिरता के माध्यम से मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सकता है।
- आर्थिक विकास सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना : मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था में मूल्य स्थिरता बनाए रखने और आर्थिक विकास सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- उपभोग, बचत, निवेश और पूंजी निर्माण का प्रबंधन करना : यह उपभोग, बचत, निवेश और पूंजी निर्माण जैसे आर्थिक चरों का प्रबंधन करती है।
- मुद्रा आपूर्ति को बढ़ाना : इसके तहत मुद्रा आपूर्ति को बढ़ाकर व्यापार क्षेत्र को प्रोत्साहित करती है, जिससे अधिक रोजगार सृजित होता है।
- विनिमय दरों को संतुलित करना : यह बाजार में मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करके मुद्रा विनिमय दरों को संतुलित करती है।
भारत में मौद्रिक नीति की सीमाएँ :
- बैंकिंग सुविधाओं के प्रति जागरूकता का अभाव : भारत में अधिकांश लोग बैंकिंग सेवाओं के बजाय नकदी का उपयोग करना अधिक पसंद करते हैं। इससे बैंकों की ऋण निर्माण क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
- अविकसित मुद्रा बाजार : भारत का मुद्रा बाजार अपेक्षाकृत कमजोर है, जो आरबीआई की नीतिगत कार्रवाइयों की प्रभावशीलता को सीमित करता है। कमजोर बाजार संरचना के कारण आरबीआई द्वारा उठाए गए कदमों का अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाता है, ऐसी स्थिति मौद्रिक नीति के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डालती है।
- काला धन (Black Money) : भारत में काले धन का अस्तित्व में होना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी समस्या है। काले धन का लेन-देन आधिकारिक रूप से दर्ज नहीं होता, जिससे उधारकर्ता और ऋणदाता अपने लेन-देन को गुप्त रखते हैं। इससे धन की आपूर्ति और मांग असंतुलित रहती है, जो मौद्रिक नीति के कार्यान्वयन में रुकावट डालता है।
- विरोधाभासी उद्देश्य : आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए विस्तारवादी नीतियों की आवश्यकता होती है, जबकि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए संकुचनकारी नीतियों की आवश्यकता होती है। इन दोनों उद्देश्यों के बीच संतुलन बनाना एक चुनौती है, जिससे मौद्रिक नीति – निर्माण के निर्धारण में कठिनाई उत्पन्न होती है।
- मुद्रा प्रणालियों की सीमाएँ : भारत में विभिन्न प्रकार की ब्याज दरें मौजूद हैं, जिन्हें समुचित रूप से नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण है। मौद्रिक नीति के अधिकांश उपकरणों में कुछ न कुछ सीमाएँ होती हैं, जो उनकी प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं।इन सीमाओं के कारण भारत की मौद्रिक नीति को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
समाधान और आगे की राह :
- ब्याज दरों में संशोधन किया जाना : मौद्रिक नीति समिति (MPC) की 10वीं बैठक में ब्याज दरों के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। समिति ने यह सुनिश्चित किया कि ब्याज दरों का स्तर आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए अनुकूल हो, ताकि उपभोक्ता और व्यवसाय दोनों की निवेश क्षमता बढ़ सके।
- महंगाई पर नियंत्रण : महंगाई को नियंत्रित करने के लिए कठोर कदम उठाने का निर्णय लिया गया। समिति ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) को ध्यान में रखते हुए उपायों को लागू करने की योजना बनाई, ताकि आम आदमी की खरीद शक्ति बनाए रखी जा सके।
- वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना : इस समिति ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं पर चर्चा की। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि आर्थिक गतिविधियों में सभी वर्गों की भागीदारी हो, विशेष रूप से उन वर्गों की जो पारंपरिक वित्तीय सेवाओं से वंचित रह जाते हैं।
- नियमित समीक्षा की आवश्यकता : समिति ने आगे की बैठकों में आर्थिक संकेतकों की नियमित समीक्षा करने का संकल्प लिया। इससे यह सुनिश्चित होगा कि मौद्रिक नीति समयानुकूल और प्रभावी बनी रहे।
- अनुसंधान और विकास : नीति निर्माण में अनुसंधान और विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। इसके लिए विशेषज्ञों की एक टीम बनाई जाएगी, जो मौद्रिक नीति के विभिन्न पहलुओं पर गहन अध्ययन करेगी।
- जन जागरूकता को बढ़ाना : आर्थिक स्थिरता के महत्व के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इससे लोगों को मौद्रिक नीतियों और उनके प्रभावों के बारे में समझने में मदद मिलेगी।
- इस बैठक में लिए गए निर्णयों और विचारों के आधार पर, आर्थिक स्थिरता की दिशा में एक नई राह प्रशस्त होगी, जो न केवल वर्तमान चुनौतियों का सामना करेगी, बल्कि भविष्य में भी एक मजबूत आर्थिक व्यवस्था के ढांचा का निर्माण करेगी।
स्रोत – पीआईबी एवं इंडियन एक्सप्रेस।
Download plutus ias current affairs Hindi med 9th Oct 2024
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. मौद्रिक नीति समिति की 10वीं बैठक के दौरान निम्नलिखित में से कौन से संभावित प्रभावों पर विचार किया गया?
- लोन की EMI पर प्रभाव
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति
- विदेशी मुद्रा भंडार
- वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव
उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
A. केवल 1, 2 और 4
B. केवल 2, 3 और 4
C. इनमें से कोई नहीं।
D. उपरोक्त सभी।
उत्तर – A
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की 10वीं बैठक में लिए गए निर्णयों, विशेष रूप से रेपो दर को 6.5% पर अपरिवर्तित रखने और मौद्रिक नीति के रुख को ‘तटस्थ’ करने के प्रभावों पर चर्चा करें। इस संदर्भ में, यह चर्चा करें कि ये हालिया निर्णय भारतीय अर्थव्यवस्था पर मुद्रास्फीति, जीडीपी वृद्धि और ऋण बाजार के संभावित प्रभावों को किस प्रकार प्रभावित करेंगे? ( शब्द सीमा – 250 अंक -15 )
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
No Comments