04 Apr आश्रय का अधिकार बनाम बुलडोज़र न्याय : सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 के अंतर्गत ‘ भारतीय राजनीति एवं शासन व्यवस्था, भारत का न्यायतंत्र, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप से संबंधित निर्णय और मामले, भारत में मौलिक अधिकारों का संरक्षण और न्यायिक समीक्षा, ध्वस्तीकरण अभियानों में कानून की उचित प्रक्रिया का कार्यान्वयन ’ खण्ड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ संयुक्त राष्ट्र, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, बुलडोज़र न्याय, अनुच्छेद 21, जिनेवा कन्वेंशन, वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र की जरूरत ’ खण्ड से संबंधित है। )
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण द्वारा वर्ष 2021 में घरों पर बुलडोज़र चलाने की घटना को “अमानवीय और अवैध” करार देते हुए इसकी कड़ी आलोचना की है।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में अपना ऐतिहासिक निर्णय देते हुए यह आदेश दिया है कि इससे प्रभावित प्रत्येक परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।
- सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय राज्य के पक्षपाती कार्यों के खिलाफ नागरिकों के आश्रय के अधिकार की रक्षा करने और बिना वजह की तोड़-फोड़ पर रोक लगाने की दिशा में एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण निर्णय / कदम है।
प्रयागराज में ध्वस्तीकरण पर सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय का मुख्य आधार:
- नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के तहत आश्रय का अधिकार : सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि आश्रय का अधिकार, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है। बिना उचित प्रक्रिया के किए गए ध्वस्तीकरण से न केवल न्यायिक निष्पक्षता का उल्लंघन होता है, बल्कि यह मानवीय गरिमा का भी हनन करता है।
- प्रयागराज विकास प्राधिकरण द्वारा उचित प्रक्रिया का उल्लंघन होना : अपने निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि प्राधिकरण मकान मालिकों को अपनी स्थिति स्पष्ट करने का उचित अवसर प्रदान करने में असफल रहा। यह पाया गया कि उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन एवं विकास (UPUPD) अधिनियम, 1973 के तहत नोटिस केवल चस्पा कर दिए गए थे, जबकि उन्हें व्यक्तिगत रूप से या पंजीकृत डाक द्वारा दिए जाने चाहिए थे।
- बुलडोज़र न्याय और भारत में ध्वस्तीकरण आदेशों से संबंधित कानूनी ढाँचा : सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 2024 के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें “बुलडोज़र न्याय” के खिलाफ दिशानिर्देश दिए गए थे। इसमें 15 दिन की पूर्व सूचना, उल्लंघनों का स्पष्ट उल्लेख और प्रभावित व्यक्तियों को ध्वस्तीकरण आदेशों को चुनौती देने का उचित अवसर प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया था। न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि UPUPD अधिनियम, 1973 के तहत नोटिस देने के लिए उचित प्रयासों की अनिवार्यता पहले भी रही है। अतः सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में प्राधिकारियों को याद दिलाया कि भारत में विधि के शासन को कायम रखा जाना चाहिए तथा एकपक्षीय कार्यवाहियों को किसी भी स्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
भारत में संपत्ति ध्वस्तीकरण से संबंधित सर्वोच्च न्यायिक निर्णय का इतिहास :
- मेनका गांधी बनाम भारत संघ, 1978 : सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कानून को न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित होना चाहिए, और “कानून की उचित प्रक्रिया” को सुदृढ़ किया जाना चाहिए ताकि मनमाने तरीके से किए गए ध्वस्तीकरण को असंवैधानिक घोषित किया जा सके।
- ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन, 1985 : इस निर्णय में न्यायालय ने यह पुष्टि की कि आश्रय का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत आता है, और उचित प्रक्रिया के बिना ध्वस्तीकरण करना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
- के.टी. प्लांटेशन (P) लिमिटेड बनाम कर्नाटक राज्य, 2011 : इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 300-A के तहत संपत्ति से वंचित करने का प्रावधान करने वाला कानून न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित होना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिना उचित प्रक्रिया और मानवीय पहलुओं का ध्यान रखे गए ध्वस्तीकरण कार्यों को किसी भी स्थिति में भी अस्वीकार ही किया जाएगा।
मनमाना ध्वस्तीकरण विधि के शासन और मानवाधिकारों पर पड़ने वाला प्रभाव :
- विधि के शासन पर प्रतिकूल प्रभाव : बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के किए गए ध्वस्तीकरण, न्यायपालिका की स्वायत्तता को कमजोर करता है और कार्यपालिका को कानूनी नियंत्रण से बाहर कर देता है। यह स्थिति विधिक शासन के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है, क्योंकि यह सत्ता के अनुशासन और न्यायिक निरीक्षण को नकारती है।
- तत्काल न्याय की एक अस्वीकृत और अवैध अवधारणा को जन्म देना : बिना अदालत की अनुमति या सुनवाई के “तत्काल न्याय” के नाम पर ध्वस्तीकरण करना, न्यायिक प्रणाली के प्रति अवज्ञा को बढ़ावा देता है। बुलडोज़र का प्रतीकात्मक रूप से इस्तेमाल करना, न्याय को जल्दबाजी में और बिना किसी कानूनी आधार के स्थापित करने की कोशिश करता है, जो न केवल अनैतिक है, बल्कि यह अवैध भी है। यह अवधारणा न केवल कानूनी दृष्टिकोण से अनुचित है, बल्कि नैतिक रूप से भी खतरनाक है।
- जिनेवा कन्वेंशन के तहत निषिद्ध और सामूहिक दंड जैसा व्यवहार करना : जब किसी कथित अपराध के आधार पर घरों को नष्ट किया जाता है, तो इसका असर केवल दोषी पर नहीं पड़ता, बल्कि उन परिवारों पर भी पड़ता है जिनमें महिलाएं, बच्चे और वृद्धजन होते हैं। यह स्थिति सामूहिक दंड जैसी है, जो अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों, विशेष रूप से जिनेवा कन्वेंशन के तहत निषिद्ध है।
- आवास और भूमि अधिकारों से संबंधित व्यापक मानवीय प्रभाव पड़ना : आवास और भूमि अधिकारों से संबंधित नेटवर्क के अनुसार, 2022-23 में 1.5 लाख से अधिक घरों को ध्वस्त कर दिया गया और 7.38 लाख लोग विस्थापित हो गए। यह आंकड़े इस बात का स्पष्ट संकेत देते हैं कि ऐसी कार्रवाइयों के मानवीय और सामाजिक प्रभाव कितने गंभीर हो सकते हैं। यह आंकड़े इस बड़े पैमाने पर होने वाले व्यवधान की गंभीरता को उजागर करते हैं।
- मनोवैज्ञानिक स्तर पर और आर्थिक रूप से संबंधित परिणाम : अचानक घर से बेघर होने से न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक आघात भी होता है। विशेष रूप से, शहरी क्षेत्रों में रहने वाले निर्धन और हाशिए पर जीवन यापन करने वाले लोग शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका की दृष्टि से गंभीर संकटों का सामना करते हैं।
मनमाना ध्वस्तीकरण की रोकथाम के लिए समाधान की राह :
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का कड़ाई से पालन करने को सुनिश्चित करना : सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2024 में दिए गए दिशा-निर्देशों को सभी स्तरों पर लागू करना आवश्यक है। इन दिशा-निर्देशों को राज्य और नगरपालिका कानूनों में समाहित किया जाना चाहिए ताकि हर स्थान पर इनका समान रूप से पालन किया जा सके।
- अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप विधि निर्माण करने की आवश्यकता : संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित विकास आधारित निष्कासन और विस्थापन के सिद्धांतों के अनुसार, निष्कासन और ध्वस्तीकरण की प्रक्रियाओं को राष्ट्रीय स्तर पर कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त करना चाहिए, ताकि वे अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हों।
- विशेष न्यायाधिकरणों का गठन करने एवं संस्थागत ढांचे का सुदृढ़ीकरण करने की जरूरत : अतिक्रमण और ध्वस्तीकरण के मामलों में विवादों का समाधान करने के लिए विशेष न्यायाधिकरणों का गठन किया जाना चाहिए। इन न्यायाधिकरणों को यह अधिकार होना चाहिए कि वे मनमानी कार्रवाइयों पर रोक लगा सकें और उचित समाधान दे सकें।
- जिला स्तर पर फास्ट-ट्रैक न्यायिक प्रणाली को स्थापित करने की आवश्यकता : प्रभावित व्यक्तियों को ध्वस्तीकरण आदेशों का विरोध करने के लिए जिला स्तर पर फास्ट-ट्रैक न्यायिक प्रणाली को स्थापित करने की आवश्यकता है, ताकि मामलों का त्वरित समाधान हो सके।
- वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्रों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता : ध्वस्तीकरण से पहले, प्रभावित व्यक्तियों और प्राधिकरणों के बीच विवादों को सौहार्दपूर्ण तरीके से हल करने के लिए मध्यस्थता और पंचनिर्णय जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्रों का प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
- ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना : सभी ध्वस्तीकरण कार्रवाइयों के बारे में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल स्थापित किया जाना चाहिए, जिसमें नियोजित ध्वस्तीकरण, जारी किए गए नोटिस, अंतिम आदेश और वीडियो रिकॉर्ड शामिल हों।
- पहले पुनर्वास, फिर ध्वस्तीकरण की नीति के तहत पुनर्वास उपायों की नीति को अपनाने की जरूरत : शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में “पहले पुनर्वास, फिर ध्वस्तीकरण” की नीति को अपनाया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि प्रभावित व्यक्तियों को वैकल्पिक आवास प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे कार्यक्रमों का लाभ दिया जाए, और साथ ही आजीविका और मानसिक स्वास्थ्य सहायता भी दी जाए। इन उपायों को लागू करके, मनमाने ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया को नियंत्रित किया जा सकता है, और इससे प्रभावित व्यक्तियों को न्याय प्रदान करते हुए और उसके मानवाधिकारों की सुरक्षा प्रदान की जा सकती है।
स्रोत – पी. आई. बी एवं इंडियन एक्सप्रेस।
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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत में ‘मनमाना ध्वस्तीकरण’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- विधि के शासन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- इससे न्यायिक प्रणाली के प्रति सम्मान बढ़ता है।
- इससे नागरिकों को मनोवैज्ञानिक और आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है।
- ध्वस्तीकरण के लिए केवल प्रशासनिक आदेश पर्याप्त होते हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/ से कथन सही है?
A. केवल 1 और 3
B. केवल 2 और 4
C. इनमें से कोई नहीं।
D. उपरोक्त सभी।
उत्तर – A
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
1. चर्चा कीजिए कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घरों के ध्वस्तीकरण को “अमानवीय और अवैध” करार देते हुए दिए गए ऐतिहासिक निर्णय का कानूनी आधार क्या था और ध्वस्तीकरण की रोकथाम के लिए न्यायालय ने कौन-कौन से समाधानात्मक उपायों को सुझाया है? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
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