02 Dec उपासना स्थल अधिनियम, 1991 और संभल में स्थित जामा मस्जिद विवाद
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 के अंतर्गत ‘ भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था , भारतीय संविधान ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 से संबंधित प्रावधान , भारत में विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा समाधान ’ खंड से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में संभल की जिला न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया कि संभल में स्थित जामा मस्जिद एक प्राचीन हरि हर मंदिर की भूमि पर बनाई गई थी।
- इस याचिका के बाद, संभल की जिला न्यायालय ने शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिया, जिसमें यह दावा किया गया कि सन 1526 में मुग़ल सम्राट बाबर ने इस मस्जिद का निर्माण हिंदू मंदिर की जगह पर किया था।
- याचिकाकर्ताओं, जिनमें एक स्थानीय महंत और वकील हरि शंकर जैन भी शामिल हैं, ने इस स्थान के धार्मिक पहचान को बदलने की मांग की थी।
- सर्वेक्षण के दूसरे चरण के बाद, 24 नवंबर को संभल में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके परिणामस्वरूप व्यापक स्तर पर हिंसा और पुलिस गोलीबारी की घटनाएं सामने आईं।
उपासना स्थल अधिनियम, 1991 से संबंधित विधिक सन्दर्भ क्या है ?
- इस विवाद के संदर्भ में उपासना स्थल अधिनियम, 1991 चर्चा का विषय इसलिए बन गया है क्योंकि इस मस्जिद को प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 के तहत संरक्षित स्मारक के रूप में मान्यता प्राप्त है और इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया है।
- संभल की जिला न्यायालय का यह आदेश एकपक्षीय आधार पर पारित किया गया था, जिसका अर्थ है कि इस विवाद के मामले में दायर याचिका को दोनों पक्षों को सुने बिना जिला न्यायालय द्वारा स्वीकार कर ली गईथी , जिससे इस मामले के संबंध में निष्पक्षता से जाँच होने की चिंता बढ़ गई है।
मस्जिद का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :
- इस मस्जिद का निर्माण मुग़ल सम्राट बाबर के सेनापति मीर हिंदू बेग द्वारा सन 1528 के आसपास किया गया था।
- इसकी वास्तुकला में प्लास्टर के साथ पत्थर की चिनाई का उपयोग किया गया है, जो बदायूँ की मस्जिद से मेल खाती है।
- ऐतिहासिक दृष्टि से, हिंदू परंपरा का मानना है कि इस मस्जिद में एक प्राचीन विष्णु मंदिर के कुछ हिस्से शामिल हैं।
उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के मुख्य बिंदु :
- प्रारंभिक संदर्भ : भारत में इस अधिनियम को बाबरी मस्जिद विवाद, वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद पर हिंदू समूहों के दावों के बाद लागू किया गया था।
- मुख्य उद्देश्य : इस अधिनियम का उद्देश्य 15 अगस्त, 1947 तक उपासना स्थलों की जो स्थिति थी को उसी स्थिति में यथावत स्थिर बनाए रखना है और भविष्य में इन स्थलों पर दावों से संबंधित विवादों को रोकना है।
- धार्मिक चरित्र : यह अधिनियम किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप को स्थिर करने की कोशिश करता है, जैसा कि वह 15 अगस्त, 1947 को था।
- नए दावों पर रोक : इसने पूजा स्थलों की ऐतिहासिक स्थिति को लेकर किसी भी समूह द्वारा नए दावों को रोकने और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने की कोशिश की है।
उपासना स्थल अधिनियम, 1991 की मुख्य विशेषताएँ :
- पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप वही रहना चाहिए जो 15 अगस्त, 1947 को था।
- यह किसी पूजा स्थल को अन्य धर्म या संप्रदाय में बदलने पर रोक लगाता है।
- 15 अगस्त, 1947 तक उपासना स्थलों की स्थिति में बदलाव से संबंधित सभी लंबित कानूनी कार्यवाही समाप्त की जानी चाहिए।
- विधिक कार्यवाही केवल तभी जारी रह सकती है, यदि यह 15 अगस्त, 1947 के बाद के बदलाव से संबंधित हो।
उपासना स्थल अधिनियम, 1991 से संबंधित प्रमुख अपवाद :
- भारत में यह अधिनियम प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल अधिनियम, 1958 के तहत आने वाले प्राचीन स्मारकों पर लागू नहीं होता।
- इस अधिनियम के तहत अयोध्या में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद इस अधिनियम से बाहर है।
उपासना स्थल अधिनियम, 1991 से संबंधित प्रमुख दंडात्मक प्रावधान :
- किसी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप को बदलने की कोशिश करने पर व्यक्ति को 3 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
- जो लोग ऐसे कार्यों को बढ़ावा देते हैं या उसमें भाग लेते हैं, उन्हें भी दंडित किया जाएगा।
उपासना स्थल अधिनियम, 1991 से संबंधित प्रमुख कानूनी चुनौतियाँ :
- न्यायिक समीक्षा से रोकना : अधिनियम को इस आधार पर चुनौती दी जा रही है कि यह न्यायिक समीक्षा को रोकता है, जो संवैधानिक सिद्धांत है।
- पूर्वव्यापी कट-ऑफ तिथि का अतार्किक और मनमाना पूर्ण होना : भारतीय संविधान के जानकर आलोचको का एक वर्ग इसे एक मनमानी, अतार्किक और पूर्वव्यापी कट-ऑफ तिथि (15 अगस्त, 1947) लागू करने के रूप में देखते हैं, जिसे अन्यायपूर्ण माना जाता है।
- हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख समुदायों को विवादित धार्मिक स्थलों पर दावे करने से रोकना : यह कानून हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख समुदायों को विवादित धार्मिक स्थलों पर दावे करने से रोककर उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, यह भी दावा किया जा रहा है।
उपासना स्थल अधिनियम, 1991 पर उच्चतम न्यायालय का दृष्टिकोण :
- उच्चतम न्यायालय का वर्ष 2022 का निर्णय : भारत में उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2022 में यह स्पष्ट किया कि 15 अगस्त, 1947 को किसी स्थल के धार्मिक चरित्र की समीक्षा की जा सकती है, लेकिन इस संबंध में इसके धार्मिक चरित्र को बदलने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
- धार्मिक चरित्र में बदलाव पर निषेध : न्यायालय ने यह भी माना कि उपासना या पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप को बदलना उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के तहत निषिद्ध है।
- न्यायिक प्रक्रिया पर प्रभाव : संभल की जिला न्यायालय द्वारा शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिए जाने का निर्णय संबंधी व्याख्या ने जिला न्यायालयों के लिए पूजा स्थलों से संबंधित विवादों पर सुनवाई के अवसर खोल दिए हैं, हालांकि धार्मिक प्रकृति में परिवर्तन पर रोक बनी रहती है।
निष्कर्ष और आगे की राह :
- संवैधानिक सिद्धांतों के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता : हाल के मामलों ने भारत में धर्मनिरपेक्षता, न्यायिक समीक्षा और धार्मिक अधिकारों जैसे संवैधानिक सिद्धांतों के बीच संतुलन बनाए रखने की जटिलताओं को उजागर किया है, जो ऐतिहासिक स्मारकों के धार्मिक चरित्र को संरक्षित करने की कोशिश करते हैं।
- कानूनी प्रणाली की भूमिका : यह देखना अभी बाकी है कि क्या कानूनी प्रणाली पूजा स्थल अधिनियम के उद्देश्यों को बनाए रखने में सक्षम होगी या अदालतें कुछ अपवादों के लिए रास्ता ढूंढेंगी, जैसा कि कुछ याचिकाकर्ता विवादित धार्मिक स्थलों पर दावे करने का सुझाव दे रहे हैं।
- भविष्य की दिशा को आकार देने में न्यायालय का हस्तक्षेप होना : भारत में उपासना स्थलों से संबंधित विवादों के मामलों में निरंतर वृद्धि हो रही है , जिससे आगामी सुनवाई में न्यायालय का हस्तक्षेप इन विवादों के भविष्य की दिशा को आकार दे सकता है।
- उपासना स्थल अधिनियम, 1991 की समीक्षा की आवश्यकता : उपासना स्थल अधिनियम की आलोचनाओं और कमियों को दूर करने के लिए इसकी गहन समीक्षा की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करता है और न्यायिक समीक्षा की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित नहीं करता है।
- धार्मिक विविधता और विभिन्न समुदायों के अधिकारों का सम्मान करते हुए एक संतुलन बनाना अत्यंत जरूरी : भारत के विभिन्न नागरिकों के धार्मिक विशिष्टता के संरक्षण और विभिन्न समुदायों के अधिकारों का सम्मान करते हुए एक संतुलन बनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- निष्पक्षता और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए पारदर्शिता और सार्वजनिक परामर्श को शामिल करने की जरूरत : निष्पक्षता और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक परामर्श को शामिल कर पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिए, और विशिष्ट धार्मिक स्थलों के मामले को इस अधिनियम से अलग रखने के कारणों की समीक्षा करनी चाहिए।
स्त्रोत – पीआईबी एवं द हिन्दू।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- यह अधिनियम पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र को स्थिर रखने के लिए लागू होता है।
- यह अधिनियम पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र को बदलने की अनुमति देता है।
- यह अधिनियम सभी पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र में परिवर्तन करने पर रोक लगाता है।
- यह अधिनियम केवल 15 अगस्त, 1947 के बाद हुए बदलावों को मान्यता देता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
A. केवल 1 और 4
B. केवल 1 और 3
C. केवल 2 और 4
D. केवल 2 और 3
उत्तर – B
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के प्रावधानों का जामा मस्जिद विवाद पर प्रभाव और इसके कानूनी, धार्मिक एवं सामाजिक पहलुओं पर विस्तृत विचार करें। इस विवाद से जुड़े विभिन्न पक्षों के दृष्टिकोण और इसका भारतीय न्यायपालिका पर पड़ने वाला प्रभाव भी विश्लेषित करें। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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