एशिया – प्रशांत जलवायु रिपोर्ट 2024

एशिया – प्रशांत जलवायु रिपोर्ट 2024

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के अंतर्गत ‘ पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी , भारतीय एवं वैश्विक अर्थव्यवस्था , पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण , महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ , सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ एशिया – प्रशांत जलवायु रिपोर्ट 2024 , एशियाई विकास बैंक , उच्च ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन , जलवायु परिवर्तन , सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में संभावित गिरावट ’ खंड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ?

 

 

  • हाल ही में, एशियाई विकास बैंक (ADB) ने एशिया-प्रशांत (APAC) क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए अपनी ‘ एशिया – प्रशांत जलवायु रिपोर्ट 2024 ’ जारी की है। 
  • एशियाई विकास बैंक द्वारा जारी इस रिपोर्ट में यह चेतावनी भी दी गई है कि यदि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो एशिया-प्रशांत के इस क्षेत्र में जिन देशों की अर्थव्यवस्था कमजोर हैं उन्हें अभूतपूर्व और अत्यंत गंभीर आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ सकता है। 
  • इस रिपोर्ट में क्षेत्रीय आर्थिक संकट की गंभीरता को रेखांकित करते हुए भारत की जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उन नीतियों का भी उल्लेख किया गया है, जीवाश्म ईंधन पर अपनी अत्यधिक निर्भरता को कम करने के प्रयासों को प्राथमिकता दे रहा है और इसके साथ – ही – साथ  स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के अपने प्रयासों को और अधिक गति से तेज करने का प्रयास कर रहा है।

 

एशिया-प्रशांत जलवायु रिपोर्ट 2024 का मुख्य निष्कर्ष : 

 

जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाला आर्थिक प्रभाव :

 

  1. अर्थव्यवस्था और जीडीपी में संभावित रूप से गिरावट का होना : अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन इसी गति से बढ़ता रहा, तो एशिया-प्रशांत क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में 2070 तक 17% की गिरावट आ सकती है, और 2100 तक यह गिरावट 41% तक पहुँच सकती है। 
  2. भारत के जीडीपी पर पड़ने वाला प्रभाव : भारत में 2070 तक जीडीपी में 24.7% तक की कमी आने का अनुमान है। इसके अलावा, बांग्लादेश, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसी देशों को भी गंभीर आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

आर्थिक नुकसान का प्रमुख कारण :

 

  1. समुद्र स्तर में वृद्धि : समुद्र स्तर के बढ़ने से 2070 तक करीब 300 मिलियन लोग तटीय बाढ़ के खतरे से प्रभावित हो सकते हैं। इससे होने वाली आर्थिक हानि सालाना 3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकती है। 
  2. श्रम उत्पादकता में कमी आना : श्रम उत्पादकता में गिरावट के कारण एशिया-प्रशांत क्षेत्र की जीडीपी में 4.9% और भारत की जीडीपी में 11.6% की कमी हो सकती है।
  3. शीतलन की मांग : जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पन्न वैश्विक भू – तापन और बढ़ते तापमान के चलते क्षेत्रीय जीडीपी में 3.3% की कमी हो सकती है, जबकि भारत में यह गिरावट 5.1% तक पहुँचने का अनुमान है। 
  4. प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान होना और उत्पादकता पर गंभीर असर पड़ना : इस रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन के कारण एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक संकट गहरा सकता है, जिससे न केवल प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान होगा, बल्कि मानव संसाधन और उत्पादकता पर भी गंभीर असर पड़ेगा।

 

जलवायु परिवर्तन का पारिस्थितिकी तंत्र और वनों पर पड़ने वाला प्रभाव :

 

  • जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप पर्यावरणीय संकट बढ़ते जा रहे हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र और वन क्षेत्रों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं। इस परिवर्तन के कारण आने वाली प्राकृतिक आपदाएँ, जैसे बाढ़, तूफान, भूस्खलन, और अन्य मौसमीय घटनाएँ, पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बिगाड़ रही हैं। 
  1. एशिया-प्रशांत क्षेत्र में वार्षिक नदी – बाढ़ से होने वाला नुकसान :  वर्ष 2070 तक, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में वार्षिक नदी बाढ़ से लगभग 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होने का अनुमान है। विशेष रूप से भारत में आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्रों में इस नुकसान का आंकड़ा 400 और 700 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकता है। 
  2. प्राकृतिक आपदाओं के तहत जीवन और संपत्ति का गंभीर नुकसान होना : रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते तापमान के कारण तूफान, बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं में वृद्धि होगी, खासकर भारत-चीन सीमा जैसे  क्षेत्रों में भूस्खलन की घटनाएँ 30-70% तक बढ़ सकती हैं, जिससे जीवन और संपत्ति को गंभीर नुकसान होगा। 
  3. उष्णकटिबंधीय तूफान और अत्यधिक वर्षा की घटनाओं का होना : उष्णकटिबंधीय तूफान और अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ, खासकर पहाड़ी इलाकों में बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति को और बिगाड़ सकती हैं। इस प्रकार की घटनाएँ पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाती हैं और जीवन-यापन के लिए आदर्श परिस्थितियों को अस्थिर कर देती हैं। 
  4. वन उत्पादकता पर पड़ने वाला प्रभाव : जलवायु परिवर्तन के कारण उच्च उत्सर्जन के कारण वर्ष 2070 तक एशिया-प्रशांत क्षेत्र में वन उत्पादकता में 10-30% की गिरावट आने का अनुमान है। भारत सहित दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में इस गिरावट का प्रभाव अधिक गंभीर हो सकता है, जहाँ वन क्षेत्रों की उत्पादकता में 25% से अधिक की कमी देखी जा सकती है। 
  5. पर्यावरणीय असंतुलन पैदा होना : जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से पारिस्थितिकी तंत्र और वन क्षेत्रों पर गंभीर असर पड़ने की संभावना है, जो ना केवल पर्यावरणीय असंतुलन पैदा करेंगे, बल्कि आर्थिक और सामाजिक तंत्र पर भी भारी दबाव डालेंगे। इस संकट से निपटने के लिए तत्काल उपायों की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में होने वाली तबाही को कम किया जा सके और पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।

 

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उठाए जाने वाला समाधानात्मक उपाय : 

 

  • जलवायु परिवर्तन से प्रभावी रूप से निपटने के लिए विभिन्न देशों और क्षेत्रों को कई निर्णायक कदम उठाने की आवश्यकता है। इसके तहत उत्सर्जन में कमी, वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था और स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों का अधिकतम उपयोग जैसे प्रमुख पहलू शामिल हैं। 
  1. नेट-ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य और अंतराल : एशिया-प्रशांत (APAC) क्षेत्र की 44 अर्थव्यवस्थाओं में से 36 देशों ने नेट-ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य निर्धारित किए हैं, लेकिन केवल चार देशों ने इसे कानूनी रूप से लागू किया है। भारत ने 2070 और चीन ने 2060 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित किया है, लेकिन इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रभावी और समयबद्ध रणनीतियों की जरूरत है। 
  2. जलवायु वित्त में बड़े अंतराल को पाटने के लिए निजी निवेश को आकर्षित करना और उपयुक्त नीतिगत ढांचा तैयार करना :  जलवायु अनुकूलन और जोखिमों से निपटने के लिए हर साल 102 से 431 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बीच निवेश की आवश्यकता है। 2021-2022 के दौरान, इस दिशा में केवल 34 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश हुआ, जो कि आवश्यक राशि से काफी कम है। यह दर्शाता है कि जलवायु वित्त में बड़े अंतराल को पाटने के लिए निजी निवेश को आकर्षित करना और उपयुक्त नीतिगत ढांचा तैयार करना आवश्यक है। 
  3. नवीकरणीय ऊर्जा और कार्बन बाजार : रिपोर्ट यह बताती है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का अधिकतम उपयोग करना अनिवार्य है। इसके साथ ही, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय कार्बन बाजारों का विस्तार भी महत्वपूर्ण है, ताकि उत्सर्जन की कीमत तय की जा सके और उत्सर्जन घटाने के उपायों को प्रोत्साहित किया जा सके।
  4. कार्बन उत्सर्जन को घटाने के लिए ठोस रोडमैप प्रदान करने की जरूरत : हालाँकि अधिकांश APAC देशों ने उत्सर्जन को नेट-ज़ीरो तक पहुंचाने के लक्ष्य घोषित किए हैं, परंतु उन देशों में से कुछ ने ही इसे कानूनी ढांचे में सम्मिलित किया है। जलवायु जोखिमों को संबोधित करने के लिए, COP27 जैसी वैश्विक जलवायु रणनीतियाँ तैयार करने की अभी भी कमी है। इस संदर्भ में, केवल चार देशों के पास ही ऐसी नियतात्मक और शीर्ष-डाउन योजनाएँ हैं जो उत्सर्जन घटाने के लिए ठोस रोडमैप प्रदान करती हैं। 
  5. नवीकरणीय ऊर्जा और लागत-कुशल समाधान की अत्यंत आवश्यकता : जलवायु परिवर्तन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर जोर दिया गया है, जिससे शुद्ध-शून्य उत्सर्जन की दिशा में प्रगति की जा सके। इसके साथ ही, घरेलू और वैश्विक कार्बन बाजारों के विस्तार से लागत-कुशल समाधान सामने आएंगे, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आवश्यक हैं।

 

एशियाई विकास बैंक ( Asian Development Bank ) :

 

 

  • एशियाई विकास बैंक (ADB) 1966 में स्थापित हुआ था और इसका मुख्य उद्देश्य एशिया में आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और गरीबी उन्मूलन में मदद करना है। यह क्षेत्रीय विकास बैंक, एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों में विकास कार्यों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है। 

 

सदस्यता और प्रमुख शेयरधारक :

 

  • एशियाई विकास बैंक के कुल 69 सदस्य देश हैं, जिनमें से 49 एशिया-प्रशांत क्षेत्र से हैं। यह बैंक जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा सबसे अधिक वित्तीय योगदान प्राप्त करता है, और इन दोनों देशों के पास इस बैंक के सबसे बड़े शेयर हैं। भारत इस बैंक का चौथा सबसे बड़ा शेयरधारक है। 

 

मुख्यालय और मुख्य उद्देश्य :  

 

  • एशियाई विकास बैंक का मुख्यालय फिलीपींस के मनीला में स्थित है। यह बैंक समृद्ध, समावेशी और टिकाऊ एशिया-प्रशांत क्षेत्र की दिशा में काम कर रहा है, और इसके कार्यों का एक महत्वपूर्ण पहलू जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटना है। रिपोर्ट के अनुसार, ADB की यह प्रतिबद्धता स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं, ताकि क्षेत्र में लचीला और स्थिर विकास संभव हो सके। 
  • एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank) का उद्देश्य एशिया-प्रशांत क्षेत्र में समग्र विकास और समृद्धि को बढ़ावा देना है। इसके द्वारा किए जाने वाले प्रयासों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने, गरीबी उन्मूलन, और सतत विकास के लिए आवश्यक उपायों को लागू करना शामिल है, जो क्षेत्रीय विकास में स्थिरता और समावेशिता सुनिश्चित करते हैं।

निष्कर्ष : 

 

 

  • एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank) की एशिया-प्रशांत जलवायु रिपोर्ट 2024 इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के गंभीर आर्थिक प्रभावों का संकेत देती है। बढ़ते समुद्र स्तर और चरम मौसम घटनाओं के कारण लाखों लोग जोखिम में हैं, जिससे तात्कालिक कार्रवाई की आवश्यकता है। नीतियों को मजबूत करना, अनुकूलन के लिए वित्तपोषण बढ़ाना और नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करना इन चुनौतियों को कम करने के लिए आवश्यक कदम हैं। एडीबी के अध्यक्ष मासात्सुगु असकावा के अनुसार – ” जलवायु के प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल और समन्वित कार्रवाई जरूरी है, अन्यथा देर हो सकती है। “ जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें नीति, वित्तीय निवेश और स्वच्छ ऊर्जा शामिल हैं। जलवायु वित्त में अंतराल को पाटने और उत्सर्जन घटाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए, ताकि हम 2050 तक वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को हासिल कर सकें।

 

स्त्रोत – पीआईबी एवं इंडियन एक्सप्रेस।

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. एशियाई विकास बैंक (ADB) ने एशिया – प्रशांत जलवायु रिपोर्ट 2024 में निम्नलिखित में से कौन सी चेतावनी दी है ?

  1. एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है।
  2. जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकासशील देशों को अधिक सहायता दी जानी चाहिए।
  3. यदि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कदम नहीं उठाए गए, तो इस क्षेत्र के कमजोर अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों को गंभीर आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ेगा।
  4. एशिया-प्रशांत क्षेत्र में केवल कृषि क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन का असर होगा।

उपर्युक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

A. केवल 1 और 3 

B. केवल 2 और 4 

C. इनमें से कोई नहीं। 

D. उपरोक्त सभी। 

उत्तर – A

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. एशिया – प्रशांत जलवायु रिपोर्ट 2024 के संदर्भ में भारत के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों की प्रभावशीलता और दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए आवश्यक नीतियों पर विस्तृत रूप से चर्चा करते हुए इस दिशा में भारत सरकार द्वारा किए गए प्रयासों, चुनौतियों और संभावित समाधान पर भी विचार करें। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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