कृत्रिम बुद्धिमत्ता युद्ध और ऊर्जा की आवश्यकता : भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक चेतावनी

कृत्रिम बुद्धिमत्ता युद्ध और ऊर्जा की आवश्यकता : भारत के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक चेतावनी

पाठ्यक्रम – सामान्य अध्ययन – 2 – अंतर्राष्ट्रीय संबंध- AI युद्ध और ऊर्जा अनिवार्यता: भारत के लिए एक रणनीतिक जागृति काल

प्रारंभिक परीक्षा के लिए : 

सैन्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) कार्यक्रम, कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित युद्ध, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, DRDO, डीपसीक तकनीक, प्राथमिक विकास क्षेत्र

मुख्य परीक्षा के लिए : 

रक्षा अभियानों के संदर्भ में C4ISR क्या है? भारत के लिए चीन-पाकिस्तान सैन्य AI गठजोड़ के सुरक्षा निहितार्थ क्या है?

 

खबरों में क्यों?

 

 

  • हाल ही में चीन ने एक बार फिर वैश्विक सुरक्षा मंच पर हलचल मचा दी है। डीपसीक मॉडल की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा शुरू होने से पहले ही उसने अपने सैन्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) कार्यक्रम को तेज़ी से आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है। 
  • “कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित युद्ध” की अवधारणा के अंतर्गत पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) युद्ध संचालन में एआई तकनीकों का सक्रिय एकीकरण कर रही है। इसमें ऐसी प्रणालियाँ शामिल हैं जो उच्च सटीकता के साथ तेज़ी से फायरिंग करती हैं, और ऐसे जनरेटिव एआई-सक्षम ड्रोन भी हैं जो दुश्मन के रडार पर स्वतः हमला करने की क्षमता रखते हैं। डीपसीक तकनीक की प्रगति से इन क्षमताओं को और बल मिलने की संभावना है। 
  • रक्षा क्षेत्र में सुरक्षा के दृष्टिकोण से चीन की यह बढ़त न केवल तकनीकी दृष्टि से उल्लेखनीय है, बल्कि वैश्विक रक्षा विशेषज्ञों के लिए एक नई चिंता का कारण भी बनती जा रही है।

 

वैश्विक रक्षा परिदृश्य में सैन्य एआई का उभरता प्रभाव : 

 

  1. चीन का “स्मार्ट युद्ध” दृष्टिकोण : पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) अपने सैन्य अभियानों में एआई को रणनीतिक रूप से एकीकृत कर रही है। इसमें तेज़ी, सटीकता और स्वायत्त निर्णय क्षमताओं को बढ़ाने हेतु आर्टिलरी सिस्टम, ड्रोन तकनीक और युद्धक्षेत्र की वास्तविक समय में विश्लेषण प्रणाली को शामिल किया गया है।
  2. जनरेटिव एआई-सक्षम चीनी ड्रोन : चीन ऐसे ड्रोन विकसित कर रहा है जो जनरेटिव एआई द्वारा संचालित होकर स्वचालित रूप से शत्रु की रडार प्रणालियों की पहचान और हमले कर सकें। यह तकनीक मानवीय हस्तक्षेप और प्रतिक्रिया समय को न्यूनतम कर देती है।
  3. डीपसीक तकनीक द्वारा सैन्य क्षमताओं में उन्नयन : डीपसीक मॉडल चीन के निगरानी, लक्ष्य निर्धारण और स्वायत्त लड़ाकू प्रणालियों को तकनीकी मजबूती देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
  4. यूक्रेन का एआई-आधारित सामरिक प्रयोग : रूस-यूक्रेन संघर्ष में, यूक्रेन ने एआई-आधारित ड्रोन और उपग्रह डेटा की सहायता से हमले और निगरानी को अधिक प्रभावी बनाया है, जिससे यह प्रदर्शित होता है कि एआई तकनीक युद्ध शक्ति में संतुलन ला सकती है।
  5. इज़राइल का “लैवेंडर” एआई सिस्टम : गाजा संघर्ष के दौरान इज़राइल ने कथित रूप से “लैवेंडर” नामक एआई प्रणाली का उपयोग कर 37,000 से अधिक लक्ष्यों की पहचान की, जिससे यह संघर्ष एआई-आधारित लक्ष्यीकरण से संचालित युद्धों में शामिल हो गया।
  6. अमेरिका की एआई आधारित वॉरगेमिंग में प्रगति : अमेरिकी सेना पूर्वानुमानित युद्ध अभ्यास, खतरे का मॉडलिंग, रसद योजना और डिजिटल ट्विन सिमुलेशन जैसी प्रक्रियाओं में एआई का इस्तेमाल कर युद्ध की तैयारियों को सशक्त बना रही है।
  7. नाटो का बहु-डोमेन एआई समावेशन : नाटो विभिन्न क्षेत्रों – ज़मीन, आकाश, समुद्र, अंतरिक्ष और साइबर स्पेस – में एआई का समन्वित उपयोग सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी निवेश कर रहा है। संगठन सुरक्षित, नैतिक और इंटर ऑपरेबल एआई समाधानों पर भी जोर दे रहा है।
  8. नागरिक-सैन्य प्रौद्योगिकी का समन्वय : अमेरिका बनाम चीन : चीन और अमेरिका दोनों ही नागरिक क्षेत्रों से प्राप्त नवाचारों — जैसे क्लाउड एआई, रोबोटिक्स और क्वांटम कंप्यूटिंग — को रक्षा प्रणालियों में समाहित कर रहे हैं, जिससे उनके सैन्य-तकनीकी क्षेत्र का विस्तार हो रहा है।

 

चीन-पाकिस्तान का एआई रक्षा गठबंधन : भारत के लिए चुनौतीपूर्ण संकेत

 

  1. रणनीतिक तकनीक का हस्तांतरण : चीन ने 2020 में स्थापित पाकिस्तान के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड कंप्यूटिंग सेंटर (CAIC) को महत्वपूर्ण तकनीकी सहायता प्रदान की है, जिससे उसकी सैन्य एआई क्षमताएं सुदृढ़ हो रही हैं।
  2. संज्ञानात्मक और इलेक्ट्रॉनिक प्रभुत्व केंद्रित क्षेत्र : इस सहयोग का उद्देश्य संज्ञानात्मक युद्ध, रियल-टाइम निर्णय प्रणाली और एआई-सक्षम साइबर संचालन को मज़बूत करना है, जो आधुनिक युद्ध की नई परिभाषाएं हैं।
  3. ऑपरेशन सिंदूर में एआई की संभावित भूमिका : रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान ने संभवतः “ऑपरेशन सिंदूर” में एआई उपकरणों का उपयोग किया था, जिसमें चीनी उपग्रह डेटा और विश्लेषण प्रणाली ने सहायता की थी।
  4. दोहरे-उपयोग वाली तकनीक से उत्पन्न जोखिम : इस गठबंधन से भारत के समक्ष एक नया सुरक्षा परिदृश्य उभरता है, जहाँ नागरिक तकनीकों — जैसे इमेज रिकग्निशन, एनएलपी और ड्रोन स्वार्म — का सैन्य हथियारों में रूपांतरण संभव है।
  5. क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने भारत की रणनीतिक चिंताएं : भारत को इस दो तरफा एआई-सक्षम खतरे के संदर्भ में अपनी निगरानी, साइबर डिफेंस और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताओं में आत्मनिर्भरता विकसित करने की आवश्यकता है, ताकि क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखा जा सके।

 

भारत की सैन्य एआई क्षमता : संभावनाएँ, चुनौतियाँ और रणनीतिक दिशा

 

  1. भारत की धीमी लेकिन महत्वाकांक्षी शुरुआत : भारत ने सैन्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता की दिशा में कदम 1986 में डीआरडीओ के अधीन “कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोबोटिक्स केंद्र (CAIR)” की स्थापना से उठाया। इस पहल का फोकस स्वायत्त प्रणालियों, स्मार्ट हथियार प्रणालियों और रोबोटिक्स पर रहा, लेकिन प्रगति अपेक्षाकृत धीमी रही है।
  2. प्राथमिक विकास क्षेत्र : वर्तमान में भारत स्वायत्त जमीनी वाहनों, निगरानी तंत्र, रसद प्रबंधन, लक्ष्य पहचान और निर्णय सहायता प्रणालियों के क्षेत्र में एआई तकनीकों का विकास कर रहा है। इन प्रयासों का नेतृत्व CAIR और DRDO जैसे संस्थान कर रहे हैं।
  3. सीमित पैमाने पर तैनाती : वर्तमान समय में भले ही पायलट प्रोजेक्ट और प्रोटोटाइप तैयार किए गए हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर सैन्य एआई की तैनाती अभी दूर की बात है। असंगठित अनुसंधान, धीली संस्थागत प्रक्रिया और सामंजस्य की कमी इसकी प्रमुख बाधाएँ हैं।
  4. निजी क्षेत्र की भूमिका सीमित : भारत के रक्षा तकनीकी तंत्र में एआई स्टार्टअप्स, निजी कंपनियों और शैक्षणिक संस्थानों की भागीदारी तुलनात्मक रूप से कम है, जबकि चीन और अमेरिका इस क्षेत्र में नागरिक-सैन्य समन्वय को काफी हद तक सुदृढ़ कर चुके हैं।
  5. रणनीतिक अंतराल और कार्रवाई की आवश्यकता : चीन-पाकिस्तान के एआई गठबंधन के मद्देनज़र भारत को अपने घरेलू एआई नवाचार, साइबर-लचीलापन और डेटा-आधारित रक्षा संरचनाओं को सशक्त करने की सख्त आवश्यकता है।

 

C4ISR का महत्व और बहु-डोमेन युद्ध :

 

  1. C4ISR का परिचय : C4ISR – अर्थात् कमांड, कंट्रोल, कम्युनिकेशन, कंप्यूटर, इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रिकॉनिसेंस – आधुनिक सैन्य अभियानों की रीढ़ है। यह संकल्पना युद्ध के हर चरण में निर्णय क्षमता और गति प्रदान करती है।
  2. युद्धक्षेत्र में बहु-डोमेन समन्वय : C4ISR प्रणाली थल, जल, नभ, अंतरिक्ष और साइबरस्पेस में एकीकृत कार्रवाई को संभव बनाती है, जिससे तत्काल और समन्वित सैन्य प्रतिक्रिया दी जा सके।
  3. कृत्रिम बुद्धिमत्ता से समृद्ध C4ISR : कृत्रिम बुद्धिमत्ता के माध्यम से C4ISR प्रणाली को भविष्यसूचक विश्लेषण, रीयल-टाइम सेंसर फ्यूज़न और स्वायत्त प्रतिक्रिया जैसी क्षमताएँ मिलती हैं, जिससे युद्ध की संभावनाओं का पूर्वानुमान और कार्रवाई संभव होती है।
  4. भारत के रक्षा तंत्र में एकीकरण की चुनौतियाँ : भारत के रक्षा तंत्र में अभी तक एआई-आधारित C4ISR प्रणालियों का व्यापक समावेशन नहीं हो पाया है, जिससे ISR विश्लेषण और निर्णय प्रक्रिया में सीमाएँ बनी हुई हैं।
  5. चीन की बढ़त और भारत के लिए चेतावनी : चीन ने न केवल अत्याधुनिक C4ISR क्षमताओं का विकास किया है, बल्कि साइबर और विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम प्रभुत्व में भी बढ़त बना ली है, जिससे भारत की सुरक्षा रणनीति को पुनर्संरचित करने की आवश्यकता पैदा हो गई है।
  6. भारत में C4ISR पारिस्थितिकी क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता : भारत को चाहिए कि वह निजी टेक उद्योग, अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसियों और रक्षा अनुसंधान निकायों के बीच सहयोग को बढ़ावा दे, ताकि C4ISR पारिस्थितिकी को आधुनिक बनाया जा सके।
  7. रणनीतिक संतुलन हेतु मजबूत प्रणाली अनिवार्य : AI-सक्षम और बहु-डोमेन प्रतिक्रियाओं में दक्ष C4ISR प्रणाली के बिना भारत भविष्य के समन्वित युद्धों में रणनीतिक संतुलन बनाए रखने में पिछड़ सकता है।

 

ऊर्जा अवसंरचना : एआई आधारित युद्ध की अदृश्य रीढ़ :

 

  1. ऊर्जा-संवेदनशील एआई प्रौद्योगिकियाँ : AI आधारित प्रणालियाँ – जैसे मशीन लर्निंग, ड्रोन स्वार्म, एनएलपी और निगरानी प्रणालियाँ – लगातार उच्च ऊर्जा इनपुट की मांग करती हैं, जो पारंपरिक ऊर्जा तंत्र से पूरा करना कठिन होता जा रहा है।
  2. ऊर्जा के नए किले के रूप में डेटा केंद्र : एआई-आधारित सैन्य प्रणालियाँ युद्धक्षेत्र की सूचनाओं को रीयल-टाइम में संसाधित करने के लिए ऊर्जा-गहन डेटा केंद्रों पर निर्भर हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा अवसंरचना का नया आधार बनते जा रहे हैं।
  3. वैश्विक ऊर्जा-सैन्य समीकरण में बदलाव : अब देश अपने रक्षा ऊर्जा ढांचे को फिर से डिज़ाइन कर रहे हैं ताकि एआई-समर्थित बहु-डोमेन युद्ध संचालन को निर्बाध रूप से समर्थन मिल सके।
  4. एक रणनीतिक विकल्प के रूप में परमाणु ऊर्जा : अनिश्चित नवीकरणीय स्रोतों की तुलना में परमाणु ऊर्जा AI के लिए आवश्यक स्थिरता और स्केलेबिलिटी प्रदान करती है, जो आधुनिक सैन्य ऊर्जा रणनीतियों का केंद्र बनती जा रही है।
  5. ग्रिड स्थिरता की सैन्य अनिवार्यता : बिजली में अस्थिरता से एआई आधारित सैन्य प्रणालियों की प्रभावशीलता बाधित होती है। इसलिए, रक्षा संरचनाओं को स्थायी और निर्बाध रूप से चलने के लिए ऊर्जा आपूर्ति की आवश्यकता होती है।
  6. सह-स्थान रणनीति और SMR का उभरता रोल : AI हब्स के पास छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) की तैनाती, सुरक्षित और लचीले डेटा प्रोसेसिंग के लिए एक व्यावहारिक रणनीति बनकर उभरी है।
  7. ऊर्जा एक रणनीतिक परिसंपत्ति के रूप में :  ऊर्जा अब केवल एक संसाधन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा योजना का अभिन्न हिस्सा है – विशेष रूप से एआई-सक्षम सैन्य अभियानों में इसकी भूमिका निर्णायक होती जा रही है।

 

भारत की परमाणु ऊर्जा की कमी :

 

  1. वर्तमान क्षमता घाटा : भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता मात्र 7.5 गीगावाट है, जो दक्षिण कोरिया (~24 गीगावाट) जैसे रणनीतिक समकक्षों से काफी पीछे है।
  2. रक्षा एआई तत्परता पर प्रभाव : कम परमाणु उत्पादन 24/7 सैन्य तत्परता के लिए आवश्यक बड़े पैमाने पर एआई प्रणालियों के संचालन को सीमित करता है।
  3. नवीकरणीय निर्भरता से अस्थिर ग्रिड : पर्याप्त भंडारण के बिना सौर/पवन ऊर्जा पर अत्यधिक निर्भरता ने भारत के ग्रिड को संवेदनशील प्रणालियों के लिए अविश्वसनीय बना दिया है।
  4. तापीय निवेश का पुनरुद्धार : बिजली की कमी के कारण, भारत स्वच्छ कोयला और हाइब्रिड तापीय स्रोतों में निजी क्षेत्र के निवेश पर पुनर्विचार कर रहा है।
  5. छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर) खेल-परिवर्तक के रूप में : एआई केंद्रों के लिए स्थानीयकृत, उच्च दक्षता वाली बिजली सुनिश्चित करने के लिए एसएमआर को डेटा हब के पास तैनात किया जा सकता है।
  6. ऊर्जा और रक्षा नीति का एकीकरण : भारत को सतत तकनीकी परिचालन के लिए अपनी परमाणु ऊर्जा योजना को रक्षा आधुनिकीकरण योजनाओं के साथ जोड़ने की आवश्यकता है।
  7. रणनीतिक ऊर्जा योजना की तात्कालिकता : ऊर्जा सुधार के बिना, भारत को एआई-सक्षम लड़ाकू क्षमताओं और डिजिटल युद्धक्षेत्र श्रेष्ठता में पिछड़ने का खतरा है।

 

भारत के लिए रणनीतिक सिफारिशें :

 

  1. स्वदेशी एआई अनुसंधान एवं विकास में तेजी लाना : सैन्य-स्तर के एआई उपकरण बनाने के लिए डीआरडीओ प्रयोगशालाओं, एआई स्टार्टअप्स और प्रमुख संस्थानों (आईआईटी, आईआईएससी) में निवेश बढ़ाएं।
  2. रक्षा-केंद्रित एसएमआर विकसित करना : ऊर्जा लचीलेपन के लिए सैन्य एआई प्रतिष्ठानों के निकट लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों (एसएमआर) की तैनाती में तेजी लाना।
  3. एआई नैतिकता और साइबर सुरक्षा को संस्थागत बनाना : स्वायत्त हथियार प्रणालियों और युद्धक्षेत्र निर्णयों को नियंत्रित करने के लिए मजबूत एआई नैतिकता और साइबर सुरक्षा ढांचे का निर्माण करना।
  4. रक्षा-अकादमिक-उद्योग को त्रिकोणीय बनाने की जरूरत : दोहरे उपयोग वाली एआई प्रौद्योगिकियों में तेजी लाने के लिए समर्पित नागरिक-सैन्य-निजी नवाचार गलियारे शुरू करें।
  5. एआई के लिए रक्षा खरीद को सुव्यवस्थित करना : बलों में एआई प्लेटफार्मों के तेजी से संचालन, स्केलिंग और प्रेरण की अनुमति देने के लिए अधिग्रहण प्रक्रियाओं में सुधार।
  6. ISR और मल्टी-डोमेन C4I नेटवर्क को बढ़ावा देना : विभिन्न क्षेत्रों में निगरानी, ​​लक्ष्यीकरण और प्रतिक्रिया दक्षता में सुधार के लिए AI का उपयोग करके एकीकृत C4ISR सिस्टम का निर्माण करना।
  7. रणनीतिक ऊर्जा-तकनीक संलयन योजना : ऊर्जा नीति को एआई युद्ध की आवश्यकताओं को विशेष रूप से डेटा सेंटर, रक्षा क्लाउड और क्वांटम नेटवर्क के साथ समन्वयित करें।

 

निष्कर्ष : 

 

  1. आधुनिक युद्ध की प्रकृति तेजी से बदल रही है, जहाँ निर्णय अब इंसानी प्रवृत्ति नहीं, बल्कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा वास्तविक समय डेटा, स्वायत्त नियंत्रण और अति-सटीकता के सहारे संचालित होते हैं, लेकिन एआई की प्रभावशीलता केवल कोड या एल्गोरिद्म पर नहीं टिकी होती; इसके पीछे ऊर्जा अवसंरचना, साइबर लचीलापन और एकीकृत प्रणालियों की ठोस नींव आवश्यक है।
  2. भारत अभी भी इन मूलभूत स्तंभों में उल्लेखनीय कमियों से जूझ रहा है, विशेषकर जब इसकी तुलना चीन की तेज़ गति से विकसित हो रही एआई-सक्षम सैन्य रणनीतियों और ऊर्जा-समर्थ डिजिटल क्षमताओं से की जाती है।
  3. यदि भारत को अगली पीढ़ी के युद्ध परिदृश्यों में प्रासंगिक और सक्षम बने रहना है, तो उसे एआई अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाना होगा, नागरिक और सैन्य क्षेत्रों के बीच गहरा समन्वय स्थापित करना होगा, और ऊर्जा योजना—विशेषतः छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) जैसे समाधानों—को रक्षा रणनीति के केंद्र में लाना होगा।
  4. आज के बहु-डोमेन युद्ध परिदृश्य में, जहां हर सेकंड निर्णायक हो सकता है, वहाँ एआई युद्ध का “मस्तिष्क” बन गया है, और ऊर्जा उसकी “रीढ़”। 
  5. वर्तमान भारत के लिए यह अनिवार्य है कि वह इन दोनों को न केवल विकसित करे, बल्कि इन्हें रणनीतिक रूप से जोड़कर एक मजबूत और आत्मनिर्भर रक्षा संरचना का निर्माण करे।

 

स्त्रोत – पी. आई. बी एवं द हिन्दू।

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. चीन द्वारा अपनाया गया शब्द “कृत्रिम बुद्धिमत्ता युद्ध” किसको संदर्भित करता है?
(A) मानव बुद्धि के साथ मनोवैज्ञानिक युद्ध।
(B) कमांडरों द्वारा निर्देशित पारंपरिक सैन्य रणनीति।
(C) बहु-डोमेन परिचालनों में एआई और स्वायत्त प्रणालियों का उपयोग।
(D) स्वायत्त हथियार के उपयोग पर नैतिक प्रतिबंध।

उत्तर – (C)

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. आधुनिक युद्ध में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और ऊर्जा अवसंरचना की क्या रणनीतिक भूमिका है, और भारत एआई-सक्षम रक्षा तत्परता प्राप्त करने के लिए अपनी क्षमतागत अंतरालों को कैसे पाट सकता है? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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