जनहित या राजकोषीय घाटा : भारत में लोकलुभावनवादी योजनाओं का वित्तीय विश्लेषण

जनहित या राजकोषीय घाटा : भारत में लोकलुभावनवादी योजनाओं का वित्तीय विश्लेषण

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ भारत की राजनीति एवं शासन व्यवस्था , सर्वोच्च न्यायालय , राजकोषीय घाटा , मिड-डे मिल योजना , लोकलुभावनवादी घोषनाएं और योजनाएं , नकद हस्तांतरण , सार्वजनिक वितरण प्रणाली , महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ नीति आयोग , भारत निर्वाचन आयोग , सब्सिडी , चुनावों में फ्रीबीज के लाभ और हानियाँ , समाधान/ आगे की राह ’ खंड से संबंधित है। )

 

खबरों में क्यों ?

 

  • भारत में विभिन्न राज्यों में हाल ही हुए एक सर्वेक्षण यह बताता है कि शहरी भारतीयों का मुफ्त वस्तुओं के प्रति दृष्टिकोण मिश्रित है, जो चुनावी अभियानों में एक विभाजनकारी मुद्दा बन गया है। 
  • भारत के प्रधानमंत्री द्वारा सन 2022 में “रेवड़ी संस्कृति” की आलोचना करने के बाद चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा वस्तुओं को मुफ्त में बांटने की घोषनाओं की स्थिरता और नैतिकता पर एक बार फिर से भारत में लोकलुभावनवादी योजनाओं का वित्तीय विश्लेषण पर बहस तेज हो गई है। 
  • इस सर्वेक्षण में भारत की 56% आबादी ने मुफ्त वस्तुओं को अनावश्यक, 78% ने इसे मत प्राप्त करने की रणनीति और 61% ने इसके राष्ट्रीय वित्त पर प्रभाव की चिंता जताई। 
  • भारत के अमीर वर्गों के 84% जनता ने इसे आर्थिक रूप से हानिकारक बताया, जबकि निम्न आय वर्ग में यह आंकड़ा 46% था, जो स्वास्थ्य सेवा पर सरकारों द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी को उचित मानते हैं।

 

“ किसी आदमी को एक मछली दो तो तुम एक दिन के लिए उसका पेट भरोगे लेकिन अगर किसी आदमी को मछली पकड़ना सिखा दो तो तुम जीवन भर के लिए उसके पेट भरने का उपाय कर दोगे।’’ ( “Give a man a fish and you feed him for a day, teach a man to fish and you feed him for a lifetime.”)

 

भारत में योजनाओं से संबधित फ्रीबीज ( निःशुल्क ) संस्कृति क्या होता है ? 

 

  • भारत में फ्रीबीज (निःशुल्क) संस्कृति को समझने के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट में इसे “एक लोक कल्याणकारी उपाय” के रूप में परिभाषित किया गया है, जो नागरिकों को निःशुल्क प्रदान किया जाता है। 
  • भारतीय रिजर्व बैंक की उस रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि फ्रीबीज स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी व्यापक और दीर्घकालिक लाभ प्रदान करने वाली सार्वजनिक या मेरिट वस्तुओं (public/merit goods) से भिन्न होते हैं।
  • भारत में भारत में लोकलुभावनवादी योजनाएं या फ्रीबीज आमतौर पर चुनावी रणनीतियों का हिस्सा होते हैं, जिनका उद्देश्य लोगों को तत्काल लाभ देना होता है, जबकि सार्वजनिक वस्तुएं समाज के समग्र विकास के लिए जरूरी होती हैं।

 

निःशुल्क योजनाएं (फ्रीबीज) और कल्याणकारी राज्य (वेलफेयर स्टेट) के बीच मुख्य अंतर : 

 

  • कल्याणकारी योजनाएं जहां समाज या राज्य पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं, वहीं निःशुल्कता (फ्रीबीज) राज्य या व्यक्ति की राज्य पर निर्भरता और उससे उत्पन्न विकृति को पैदा कर सकती है।
  • फ्रीबीज उन वस्तुओं और सेवाओं का समूह हैं जो उपयोगकर्ताओं को बिना किसी शुल्क के उपलब्ध कराए जाते हैं। इनका लक्ष्य सामान्यतः अल्पकालिक लाभ पहुँचाना होता है, जो अक्सर मतदाताओं को आकर्षित करने या लोकलुभावन वादों के तहत एक प्रकार की रिश्वत के रूप में देखे जाते हैं। उदाहरण के लिए, निःशुल्क लैपटॉप, टीवी, साइकिल, बिजली और पानी जैसे उपहार फ्रीबीज के श्रेणी में आते हैं।
  • राज्य द्वारा संचालित कल्याणकारी योजनाएं जहाँ सुविचारित कार्यक्रम होती हैं, जिनका उद्देश्य लक्षित जनसंख्या को लाभ पहुँचाना और उनके जीवन स्तर में सुधार करना है। ये योजनाएं नागरिकों के प्रति संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के लिए बनाई जाती हैं, और इन्हें सामाजिक न्याय, समानता और मानव विकास को बढ़ावा देने के लिए देखा जाता है। इसके अंतर्गत सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), और मध्याह्न भोजन योजना जैसी योजनाएं शामिल हैं। 
  • अतः किसी भी कल्याणकारी राज्य में फ्रीबीज और कल्याणकारी योजनाएं विभिन्न दृष्टिकोण और प्रभाव के साथ एक साथ काम करती हैं, जो समाज में उनकी भूमिका को स्पष्ट करती हैं।

 

लोकलुभावनवादी निःशुल्क योजनाओं (फ्रीबीज) के लाभ : 

 

  1. लोकतंत्र में पारदर्शिता और संवाद का निर्माण और सार्वजनिक सहभागिता का होना : निःशुल्क योजनाएं सरकार के प्रति जनता का भरोसा बढ़ाती हैं, जिससे लोकतंत्र में पारदर्शिता और संवाद का निर्माण होता है।
  2. मतदाताओं की जागरूकता और संतोष में वृद्धि होना : विभिन्न प्रकार के अध्ययन बताते हैं कि निःशुल्क योजनाएं मतदाताओं की जागरूकता और संतोष में वृद्धि करती हैं। जैसे कि – उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में लैपटॉप और साइकिल योजनाएं।
  3. आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना : देश के कम विकसित राज्यों या क्षेत्रों में निःशुल्क योजनाएं वहां के कार्यबल की उत्पादकता बढ़ाकर आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करती हैं। जैसे कि –  सिलाई मशीन या लैपटॉप वितरण जैसी योजनाएं।
  4. छात्र/छात्राओं के नामांकन और स्कूल ड्रॉपआउट दर में कमी लाने में सहायक : बिहार और पश्चिम बंगाल में साइकिल जैसी योजनाएं छात्राओं के नामांकन और ड्रॉपआउट दर को सुधारने में सहायक रही हैं।
  5. वंचित वर्गों को बुनियादी सेवाएं प्रदान कर उनकी जीवन गुणवत्ता में सुधार लाने में सहायक होना : निःशुल्क योजनाएं गरीब और वंचित वर्गों को बुनियादी सेवाएं प्रदान कर उनकी जीवन गुणवत्ता में सुधार लाती हैं, जैसे कि स्कूल यूनिफॉर्म और स्वास्थ्य बीमा जैसी योजनाएं।
  6. निर्धनता अनुपात में कमी लाने में सहायक : खाद्य सब्सिडी ने भारत में निर्धनता अनुपात को 7% तक कम करने में मदद की है।
  7. स्वास्थ्य खर्चों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना : राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना ने गरीब परिवारों के लिए स्वास्थ्य खर्चों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  8. आय असमानता में कमी होना : निःशुल्क योजनाएं संसाधनों का समान वितरण करके आय असमानता को कम कर सकती हैं, जैसे कि ऋण माफी।
  9. किसानों की साख क्षमता में सुधार होना : ऋण माफी योजनाओं ने किसानों की साख क्षमता को बेहतर बनाने में मदद की है।

 

लोकलुभावनवादी निःशुल्क योजनाओं (फ्रीबीज) से होने वाली हानियाँ :

 

  1. लाभार्थियों में आत्मनिर्भरता की भावना में बाधा उत्पन्न होना : निःशुल्क योजनाएं लाभार्थियों में आत्मनिर्भरता की भावना को कमजोर कर सकती हैं, जिससे वे भविष्य में और अधिक मुफ्त योजनाओं की अपेक्षा करने लगते हैं। उदाहरण के लिए, 1 रुपए प्रति किलो चावल या मुफ्त बिजली जैसे लाभ उन्हें सरकारी जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह बना सकते हैं। ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि तमिलनाडु में 41% मतदाता इन योजनाओं को मतदान में महत्वपूर्ण मानते हैं।
  2. राजकोषीय घाटा का बढ़ना : निःशुल्क योजनाएं सार्वजनिक व्यय, सब्सिडी, और ऋण में वृद्धि कर सकती हैं, जिससे राजकोषीय घाटा बढ़ता है। कृषि ऋण माफी या बेरोज़गारी भत्ते जैसी योजनाएं सरकार के बजटीय संसाधनों पर दबाव डालती हैं, जिससे अन्य क्षेत्रों में निवेश करने की क्षमता प्रभावित होती है।
  3. संसाधनों का गलत तरीके से आवंटन होना : निःशुल्क योजनाओं के कारण राज्य का संसाधन अधिक उत्पादक क्षेत्रों से हटकर निःशुल्क योजनाओं पर खर्च होते हैं, जिससे राज्य के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मोबाइल फोन या लैपटॉप जैसी योजनाओं के लिए बड़े खर्च से सड़कें, पुल और सिंचाई प्रणालियों में निवेश की कमी आ सकती है।
  4. नवाचार और गुणवत्ता में कमी आना : निःशुल्क योजनाएं वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, मुफ्त साइकिल या लैपटॉप अक्सर बाजार में उपलब्ध उत्पादों की तुलना में कम गुणवत्ता वाले होते हैं।
  5. पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना : निःशुल्क योजनाएं जल, बिजली, और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग को बढ़ावा देती हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुँच सकता है। मुफ्त बिजली या पानी जैसी योजनाएं लोगों में जल संरक्षण और उर्जा संरक्षण के प्रति जागरूकता को कम कर सकती हैं। कैग की रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब में मुफ्त बिजली के कारण उपयोग और दक्षता में कमी आई है। इन हानियों के कारण, निःशुल्क योजनाओं के कार्यान्वयन में संतुलन और जिम्मेदारी की आवश्यकता है।

 

समाधान / आगे की राह : 

 

 

  1. राजनीतिक दलों द्वारा राजस्व के स्रोतों को स्पष्ट करने की आवश्यकता : राजनीतिक दलों को निःशुल्क योजनाओं की घोषणा से पहले उनके वित्तपोषण के स्रोतों को स्पष्ट करना चाहिए। उन्हें यह भी बताना चाहिए कि इन योजनाओं का राजकोषीय संतुलन, सार्वजनिक व्यय की लागत और दीर्घकालिक संवहनीयता पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
  2. भारत निर्वाचन आयोग की शक्तियों को और अधिक सशक्त करना : भारत में चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा निःशुल्क योजनाओं की घोषणा और कार्यान्वयन की निगरानी के लिए भारत निर्वाचन आयोग को सशक्त किया जाना चाहिए। इसमें राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने और जुर्माना लगाने जैसी शक्तियाँ शामिल होनी चाहिए।
  3. मतदाता जागरूकता अभियान और साक्षरता कार्यक्रम आयोजित करना : मतदाताओं को निःशुल्क योजनाओं के आर्थिक और सामाजिक परिणामों के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है। उन्हें प्रदर्शन और जवाबदेही की मांग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए मतदाता जागरूकता अभियान और साक्षरता कार्यक्रम महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  4. सार्वजनिक चर्चा को प्रोत्साहित करना और न्यायपालिका की भूमिका : निःशुल्क योजनाओं पर संसद में रचनात्मक बहस करना कठिन हो सकता है, इसलिए न्यायपालिका की संलग्नता आवश्यक है। यह विभिन्न उपायों पर विचार करने और सार्वजनिक चर्चा को प्रोत्साहित करने में मदद कर सकती है।
  5. समावेशी विकास : समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करने से गरीबी और असमानता के मूल कारणों का समाधान किया जा सकेगा, जिससे निःशुल्क योजनाओं की निर्भरता कम होगी। यह दीर्घकालिक आर्थिक और सामाजिक लाभ के लिए एक अनुकूल वातावरण भी बनाएगा।

 

निष्कर्ष : 

  • राजनीतिक दल अक्सर मतदाताओं को मुफ्तखोरी की नीतियों के संभावित नुकसान के बारे में जानकारी नहीं देते। हालांकि, जब मतदाता समझेंगे कि इन योजनाओं के चलते उन्हें किन अन्य लाभों से वंचित होना पड़ सकता है, तो संभव है कि वे इन्हें अस्वीकार कर दें। भारतीय अर्थव्यवस्था भारी दबाव में है, और ऐसी लुभावनी योजनाएँ चुनावों में सीमित प्रभाव डाल सकती हैं। राजनीतिक दलों को यह समझना होगा कि नीतियों का चुनावी लाभ अस्थायी हो सकता है, और मतदाताओं को सही जानकारी के साथ निर्णय लेने का अवसर देना आवश्यक है।

 

स्त्रोत्र – द हिन्दू एवं पीआईबी।

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में लोकलुभावनवादी निःशुल्क योजनाओं के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. इसे जीवन गुणवत्ता में सुधार लाने एवं समाज कल्याण में सहायता पहुँचाने के उद्देश्य से किया जाता है। 
  2. इसे आमतौर पर अल्पावधि में लक्षित आबादी को लाभान्वित करने के उद्देश्य से प्रदान किया जाता है।
  3. इसमें व्यय प्राथमिकताओं और संसाधनों का गलत आवंटन होने की संभावना होती है।
  4. यह गरीबी और आय असमानता को कम करने में सहायक होता है।

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

A. केवल 1 और 3

B. केवल 2 और 4 

C. इनमें से कोई नहीं 

D. उपरोक्त सभी।

उत्तर – D 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. चर्चा कीजिए कि किस प्रकार लोकलुभावनवादी घोषनाएं और योजनाएं किसी भी लोकतांत्रिक राज्य में राजकोषीय घाटा को बढ़ाने के साथ-साथ भारत की आर्थिक सुधार की गति पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं ? इनमें निहित सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक प्रभावों की आलोचनात्मक व्याख्या कैसे की जा सकती है? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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