29 May जहाजों से समुद्री प्रदूषण : समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक उभरता खतरा
पाठ्यक्रम मानचित्रण :
सामान्य अध्ययन – 3 – पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी – जहाजों से समुद्री प्रदूषण : महासागर स्वास्थ्य के लिए एक उभरता हुआ खतरा
प्रारंभिक परीक्षा के लिए :
पर्यावरण संरक्षण, मार्पोल सम्मेलन (MARPOL 1973/78), समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, समुद्री सुरक्षा प्रोटोकॉल, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO), समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS – 1982), बेसल कन्वेंशन (1989)
मुख्य परीक्षा के लिए :
जहाजों से तेल रिसाव क्या है? वे हानिकारक क्यों हैं और हम उन्हें कैसे साफ कर सकते हैं? जहाज प्रदूषण को कम करने में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) की क्या भूमिका है?
खबरों में क्यों?
- हाल ही में केरल के तट पर लाइबेरियाई झंडे वाला एक मालवाहक जहाज डूबने से समुद्री पर्यावरण को गंभीर खतरा पैदा हो गया है, जिसके बाद अधिकारियों ने पर्यावरण आपातकाल घोषित कर दिया है। कोच्चि के पास हुई इस घटना के कारण जहाज से तेल और खतरनाक रसायनों का रिसाव हुआ है, जो पहले से ही पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील तटीय क्षेत्र और उसकी समृद्ध समुद्री जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा है।
- उस जहाज पर सवार सभी 24 चालक दल के सदस्यों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है, लेकिन डूबे कंटेनरों से फैलते तेल और रसायनों ने समुद्री पारिस्थितिकी, स्थानीय समुदायों के स्वास्थ्य और तटीय व्यवसायों को लेकर गंभीर आशंकाएं खड़ी कर दी हैं।
- इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए आपातकालीन टीमें सक्रिय रूप से काम कर रही हैं, ताकि रिसाव को सीमित किया जा सके और आगे के नुकसान को रोका जा सके।
- यह घटना समुद्री सुरक्षा प्रोटोकॉल और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को फिर से उजागर करती है, कि समुद्री परिवहन में सुरक्षा और पारिस्थितिक संतुलन के बीच संतुलन बनाए रखना कितना आवश्यक है।
जहाजों के कारण होने वाला समुद्री प्रदूषण क्या है?
- जहाजों से होने वाले समुद्री प्रदूषण से तात्पर्य जहाज-आधारित परिचालन, दुर्घटनाओं या लापरवाही के माध्यम से समुद्र में तेल, प्लास्टिक, रसायन, गिट्टी का पानी, सीवेज और वायु प्रदूषकों जैसे हानिकारक पदार्थों के छोड़े जाने से है। दुनिया भर में बढ़ते समुद्री व्यापार के साथ, जहाजों से होने वाला समुद्री प्रदूषण एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। यह सिर्फ तेल रिसाव तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कई अन्य स्रोत शामिल हैं जो हमारे महासागरों और तटीय क्षेत्रों को लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं।
समुद्री प्रदूषण प्रदूषण के प्रमुख स्रोत :
- तेल और ईंधन का रिसाव : बड़े टैंकरों और मालवाहक जहाजों से होने वाला तेल रिसाव सबसे विनाशकारी होता है, जब वे आपस में टकराते हैं, फंसते हैं या डूब जाते हैं।
- ठोस कचरा और प्लास्टिक अपशिष्ट : पैकेजिंग, मछली पकड़ने के पुराने उपकरण और कूड़े का गलत तरीके से निपटान समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण को बढ़ाते हैं। तूफानों में जहाजों से गिरने वाले कंटेनर भी प्लास्टिक कचरे का एक बड़ा स्रोत हैं।
- बैलस्ट जल का विसर्जन : जहाज अक्सर एक जगह से दूसरी जगह जाते समय अपने बैलस्ट टैंकों में पानी भरते हैं, जिसमें विदेशी समुद्री जीव और रोगाणु होते हैं। इस पानी को दूसरी जगह छोड़ने पर ये जीव नए समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में घुसकर वहां की जैव विविधता को नुकसान पहुंचाते हैं।
- सीवेज और गंदा पानी : क्रूज़ और यात्री जहाजों से निकलने वाला अनुपचारित सीवेज और गंदा पानी सीधे तटीय जल को प्रदूषित करता है, जिससे समुद्री जीवन और मानव स्वास्थ्य को खतरा होता है।
- वायु प्रदूषण और समुद्री अम्लीकरण : जहाजों से निकलने वाले सल्फर ऑक्साइड (SOx), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और अन्य कण न केवल वायु प्रदूषण बढ़ाते हैं, बल्कि समुद्री जल को अम्लीय भी बनाते हैं, जिससे समुद्री जीवों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- रासायनिक और खतरनाक पदार्थों का रिसाव : उर्वरक, औद्योगिक रसायन और सॉल्वैंट्स जैसे जहरीले पदार्थों का आकस्मिक रिसाव समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से प्रदूषित करता है।
समुद्री प्रदूषण में वृद्धि के प्रमुख कारण :
- वैश्विक समुद्री यातायात में वृद्धि : वैश्विक व्यापार में उछाल के कारण मालवाहक जहाजों, टैंकरों और क्रूज़ जहाजों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है।
- पुराने जहाज और रखरखाव की कमी : पुराने और खराब रखरखाव वाले जहाजों में तकनीकी खराबी और रिसाव का खतरा अधिक होता है, जिससे प्रदूषण की आशंका बढ़ जाती है।
- कमजोर अपशिष्ट प्रबंधन : कई जहाजों पर सीवेज, गंदे पानी और कचरे के समुचित उपचार और निपटान की सुविधाएँ अपर्याप्त होती हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय नियमों का लचर क्रियान्वयन : MARPOL जैसे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के नियमों का कमजोर प्रवर्तन, खासकर खुले समुद्र में, जहाजों को प्रदूषण नियंत्रण मानकों का पालन न करने की छूट देता है।
- सुविधा झंडा नीति : कुछ जहाज ऐसे देशों में पंजीकृत होते हैं जहाँ पर्यावरण मानक उदार होते हैं, जिससे वे सख्त प्रदूषण नियंत्रणों से बच निकलते हैं।
- मालवाहक कंटेनरों की क्षति और समुद्री कूड़ा : खराब मौसम या खराब लोडिंग के कारण कंटेनर समुद्र में गिर जाते हैं, जिससे प्लास्टिक और खतरनाक सामग्री का रिसाव होता है।
- बैलस्ट जल प्रबंधन की कमी : बैलस्ट जल का अनुपचारित निर्वहन जैविक प्रदूषण और आक्रामक प्रजातियों के प्रसार का कारण बनता है।
- निम्न गुणवत्ता वाले ईंधन का उपयोग : जहाजों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उच्च-सल्फर ईंधन हानिकारक प्रदूषक छोड़ते हैं, जो वायु और समुद्री जल दोनों को प्रदूषित करते हैं।
- आकस्मिक रिसाव और टक्करें : समुद्री यातायात की बढ़ती सघनता दुर्घटनाओं की संभावना को बढ़ाती है, जिसके परिणामस्वरूप तेल और रासायनिक रिसाव होते हैं।
जहाज-जनित प्रदूषण के गंभीर प्रभाव :
- समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश : तेल और रासायनिक रिसाव प्रवाल भित्तियों, मछलियों और समुद्री स्तनधारियों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे समुद्री खाद्य श्रृंखला बाधित होती है।
- स्थानीय जैव विविधता का नुकसान होना : बैलस्ट जल से आने वाली आक्रामक प्रजातियां स्थानीय समुद्री वनस्पतियों और जीवों के लिए खतरा पैदा करती हैं।
- तटीय क्षेत्रों का प्रदूषण : ठोस कचरा, सीवेज और समुद्र में तैरता हुआ माल समुद्र तटों को गंदा कर देता है, जिससे स्थानीय आवास और आजीविका प्रभावित होती है।
- मत्स्य संपदा का क्षरण : प्रदूषित पानी मछली के भंडारों और प्रजनन क्षेत्रों को नुकसान पहुंचाता है, जिससे मछली पकड़ने वाले समुदायों की आजीविका पर सीधा असर पड़ता है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरा : प्रदूषित समुद्री भोजन और दूषित जल स्रोत तटीय समुदायों में बीमारियों और दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं।
- पर्यटन उद्योग को नुकसान : गंदे समुद्र तट, मृत समुद्री जीव और तेल के रिसाव पर्यटकों को आकर्षित नहीं करते, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भारी घाटा होता है।
- वायु गुणवत्ता में गिरावट : जहाजों से निकलने वाले प्रदूषक तटीय और वैश्विक वायु गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं, जिससे श्वसन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
- महासागरीय अम्लीकरण और जलवायु परिवर्तन : जहाजों के उत्सर्जन से वायुमंडल में CO2 की मात्रा बढ़ती है, जिससे समुद्री अम्लीकरण और ग्लोबल वार्मिंग की प्रक्रिया तेज होती है।
वैश्विक समुद्री पर्यावरण संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय विधिक व्यवस्था :
प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और समझौते :
- मार्पोल सम्मेलन (MARPOL 1973/78) : यह अंतर्राष्ट्रीय संधि समुद्री जहाजों से उत्पन्न प्रदूषण की रोकथाम के लिए सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत व्यवस्था है। इसमें तेल, हानिकारक द्रव, सीवेज, ठोस कचरा और वायु प्रदूषण को सीमित करने के लिए छह तकनीकी परिशिष्ट शामिल हैं।
- समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCLOS – 1982) : यह सम्मेलन सभी देशों को समुद्री पर्यावरण के संरक्षण की कानूनी ज़िम्मेदारी सौंपता है और राष्ट्रीय समुद्री सीमा (12 नॉटिकल मील) एवं विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में प्रदूषण नियंत्रण के उपायों को वैधता प्रदान करता है।
- बैलास्ट जल प्रबंधन संधि (2004) : इस समझौते का उद्देश्य जहाजों द्वारा बैलास्ट जल के माध्यम से आक्रामक प्रजातियों के प्रसार को रोकना है। यह उपचारित जल निर्वहन के स्पष्ट मानदंड तय करता है ताकि समुद्री जैव विविधता को संरक्षित रखा जा सके।
- बेसल कन्वेंशन (1989) : यह समझौता खतरनाक अपशिष्टों के सीमापार आवागमन, विशेष रूप से जहाजों के विघटन से उत्पन्न अपशिष्ट के निर्यात और निपटान को नियंत्रित करता है, जिससे पर्यावरणीय अन्याय से बचाव किया जा सके।
- लंदन कन्वेंशन (1972) एवं प्रोटोकॉल (1996) : यह संधि समुद्र में जहरीले और खतरनाक अपशिष्टों के डंपिंग पर नियंत्रण लगाती है। प्रोटोकॉल इसे और अधिक कठोर बनाता है, जिससे केवल कुछ निर्दिष्ट अपशिष्टों के सीमित निस्तारण की अनुमति मिलती है।
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) : संयुक्त राष्ट्र की यह विशेष संस्था वैश्विक नौवहन सुरक्षा और समुद्री पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए सभी प्रमुख सम्मेलनों के समन्वय, कार्यान्वयन और निगरानी की भूमिका निभाती है।
प्रवर्तन से जुड़ी मुख्य चुनौतियाँ :
- खुले समुद्र में निगरानी का अभाव : विशाल महासागरीय क्षेत्र के कारण अंतरराष्ट्रीय जल में प्रदूषण की घटनाओं पर नज़र रखना बेहद मुश्किल होता है।
- ‘फ्लैग ऑफ कन्वीनियंस’ प्रणाली : ऐसे देश जहाँ पर्यावरणीय मानदंड शिथिल हैं, वहाँ पंजीकृत जहाज़ कठोर नियमों से बच निकलते हैं। इससे वैश्विक अनुपालन कमजोर होता है।
- बंदरगाह राज्यों की सीमित क्षमता : कई बंदरगाहों में आवश्यक संसाधन, प्रशिक्षण या राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण जहाजों की प्रभावी जाँच नहीं हो पाती।
- तकनीकी अवसंरचना की कमी : विकासशील देशों में उपग्रह, समुद्री रडार और निगरानी नौकाओं जैसी आधुनिक तकनीकों का अभाव प्रभावी प्रवर्तन में बाधा बनता है।
- न्यायिक क्षेत्राधिकार की जटिलता : समुद्र संबंधी अपराधों की कानूनी प्रक्रिया कई देशों की संप्रभुता से जुड़ी होने के कारण मुकदमेबाज़ी जटिल और धीमी हो जाती है।
- शिपिंग उद्योग पर आर्थिक दबाव : लागत में कटौती के कारण अक्सर जहाज संचालक अपशिष्ट उपचार और ईंधन मानकों का पालन करने में कोताही बरतते हैं।
- कमजोर निवारक उपाय और कमज़ोर दंडात्मक प्रावधान : प्रदूषण के लिए दिए जाने वाले जुर्माने या कानूनी कार्रवाई अक्सर इतने हल्के होते हैं कि वे उल्लंघन को रोकने में प्रभावी नहीं होते हैं।
- घटनाओं की विलंबित रिपोर्टिंग : प्रदूषण की कई घटनाएं या तो रिपोर्ट ही नहीं की जाती है या इतनी देर से रिपोर्ट की जाती हैं कि प्रभावी प्रतिक्रिया देना मुश्किल हो जाता है।
निष्कर्ष :
- समुद्री प्रदूषण की बढ़ती घटनाएँ वैश्विक समुद्री शासन की खामियों को उजागर करती हैं। MARPOL, UNCLOS जैसे प्रमुख विधिक उपकरणों के बावजूद, वास्तविक प्रवर्तन और निगरानी तंत्र की कमी के चलते प्रभावी नियंत्रण संभव नहीं हो पाया है।
- केरल तट पर हालिया जहाज़ दुर्घटना इस ओर स्पष्ट संकेत देती है कि केवल कानून बनाना पर्याप्त नहीं, बल्कि वैश्विक सहयोग, प्रौद्योगिकी में निवेश, स्थानीय क्षमता निर्माण और कठोर दंडात्मक उपायों की भी सख्त आवश्यकता है।
- टिकाऊ और जिम्मेदार नौवहन प्रणाली विकसित करने को सुनिश्चित करना न केवल हमारे महासागरों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि उन लाखों लोगों की आजीविका और कल्याण को सुरक्षित करने के लिए भी आवश्यक है जो समुद्री संसाधनों पर निर्भर हैं।
स्त्रोत – पी. आई. बी एवं द हिन्दू।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. समुद्री नौवहन से सामान्यतः जुड़े निम्नलिखित प्रदूषकों पर विचार करें:
1. गिट्टी का पानी
2. सल्फर ऑक्साइड
3. माइक्रोप्लास्टिक
4. औद्योगिक अपशिष्ट जल
उपर्युक्त में से कौन सा सीधे तौर पर जहाजों से होने वाले प्रदूषण से जुड़ा हुआ है?
A. केवल 1 और 2
B. केवल 1, 2, और 3
C. केवल 1, 2, और 4
D. उपरोक्त सभी।
उत्तर – B
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. चर्चा कीजिए कि जहाज़ों से होने वाला समुद्री प्रदूषण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, तटीय अर्थव्यवस्थाओं और मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा क्यों है? इसके प्रमुख स्रोत, प्रभाव, अंतरराष्ट्रीय कानूनी ढाँचा और प्रवर्तन में आने वाली चुनौतियाँ क्या हैं? इस संदर्भ में महासागर शासन को मजबूत करने के लिए किन उपायों की आवश्यकता है? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
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