02 Aug डोनाल्ड ट्रम्प का ट्रेड वॉर 2.0 : टैरिफ से परेशानी और उठते नए वैश्विक तनाव
पाठ्यक्रम – सामान्य अध्ययन – मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र – 2 – अंतर्राष्ट्रीय संबंध और महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, महत्वपूर्ण प्राधिकरण और आयोग
प्रारंभिक परीक्षा – परस्पर शुल्क, टैरिफ, विश्व व्यापार संगठन (WTO), अंतरिम व्यापार समझौता, अमेरिका के राष्ट्रपति, IEEPA कानून, भारत‑यूएस व्यापार समझौता
ख़बरों में क्यों?
- हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 1 अगस्त 2025 को एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किया, जिसके अंतर्गत 66 से 70+ देशों से आयात पर 10% से 41% तक के नए “पारस्परिक टैरिफ” लगाए गए हैं। ये 7 अगस्त 2025 से प्रभावी होंगे ।
- भारत जैसे प्रमुख व्यापारिक साझेदार को इस श्रेणी में 25% शुल्क का सामना करना होगा, जिससे अनेक भारतीय निर्यात क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव संभव है।
टैरिफ (Tariff) क्या होता है?
- पारंपरिक परिभाषा : आयात (या कभी-भारतीय निर्यात) पर सरकार द्वारा लगाया गया कर।
- परस्पर शुल्क (Reciprocal Tariffs) : अमेरिका उन देशों पर दर निर्धारित करता है, जो अमेरिकी निर्यात पर ऊँचे शुल्क लगाते हैं। इसका उद्देश्य निष्पक्ष (fair) व्यापार सुनिश्चित करना होता है ।
उदाहरण :
- अप्रैल 2025 में घोषित “मुक्ति दिवस” कार्यकारी आदेश (Executive Order 14257) के तहत सभी आयातों पर 10% सामान्य शुल्क लागू किया, और कुछ 50–60 देशों (भारत सहित) पर 26% तक की विशिष्ट परस्पर शुल्क (Reciprocal Tariffs) 9 अप्रैल 2025 से लागू हुई।
- 1 अगस्त 2025 के नए आदेश में यह सीमा बढ़ाकर 25% (भारत), एवं उच्च‑जोखिम देशों के लिए 41% तक कर दी गई।
टैरिफ (Tariff) लगाने का मुख्य उद्देश्य :
- व्यापार असंतुलन कम करना: अमेरिका अपने व्यापार घाटे को संतुलित करना चाहता है।
- प्रतिस्पर्धी असमानता दूर करना: उन देशों को जवाब देना जो अमेरिकी उत्पादों पर अत्यधिक शुल्क लगाते हैं।
- बातचीत में दबाव बढ़ाना: ताकि द्विपक्षीय समझौते (जैसे भारत‑यूएस व्यापार समझौता) जल्दी हों।
इससे वैश्विक व्यापार पर पड़ने वाला प्रभाव :
- वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि होना : वस्तुएँ महँगी हो जाएँगी, जससे उपभोक्ता अधिक शुल्क चुकाएँगे, और अमेरिकी आयातकों की लागत बढ़ेगी।
- प्रभावित देशों से अमेरिका में निर्यात कम होना व्यापार में गिरावट होना : प्रभावित देशों से अमेरिका में निर्यात कम हो सकता है, जिससे वे बाजार खो सकते हैं।
- साख और तनाव में वृद्धि होना : विश्व व्यापार संगठन (WTO) में चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं, और व्यापार संबंधों में तनाव होगा।
- आपूर्ति श्रृंखला का बाधित होना : मल्टीनेशनल कंपनियाँ और विनिर्माण इकाइयाँ प्रभावित हो सकती हैं, खासकर यदि कच्चा माल ऊँचा हो जाए।
भारत पर इससे पड़ने वाला प्रभाव :
शुल्क की राशि के कारण भारतीय के लिए निर्यात का महँगा होना :
- भारत को 25% का नया टैरिफ भुगतना होगा और आयातित वस्तुओं की अमेरिकी कीमतें बढ़ाएँगी और भारतीय निर्यात महँगा होगा।
प्रमुख प्रभावित क्षेत्र :
- वस्त्र एवं परिधान,
- फार्मास्युटिकल्स,
- ऑटो पार्ट्स,
- आभूषण एवं रत्न,
- आईटी हार्डवेयर/इलेक्ट्रॉनिक्स (हालांकि कुछ इलेक्ट्रॉनिक मदों को फिलहाल छूट मिली है)।
- निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता : इन क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धात्मक प्राइसिंग घटेगी; जैसे अमेरिकी बाजार में भारतीय वस्तुओं की अपील और मांग में कमी संभव है।
- आर्थिक मूल्यांकन : सिटी रिसर्च और स्व‑विश्लेषणों के अनुसार, भारत को अनुमानित $7 अरब सालाना नुकसान का सामना करना पड़ सकता है, और कुल निर्यात का लगभग 87% प्रभावित हो सकता है । लगभग $66 अरब अमेरिकी निर्यात भारत प्रभावित हो सकता है ।
- नीति‑वार्ता : भारत और अमेरिका मई‑जुलाई 2025 तक एक अंतरिम व्यापार समझौते (BTA phase‑1) पर चर्चा कर रहे थे, ताकि ये शुल्क न लागू हों।
क्रियान्वयन संबंधी प्रमुख चुनौतियाँ :
- कानूनी वैधता : संयुक्त राज्य की अदालत ने मई 2025 में निर्णय दिया कि “Liberation Day” टैरिफ IEEPA कानून के तहत अवैध था और इसे निष्पादित नहीं किया जा सकता ।
- शीर्ष अदालत में चुनौती : यदि अमेरिका का सर्वोच्च न्यायालय इस को निर्णय पलट दे, तो कार्यकारी आदेश और शुल्क लागू नहीं रह पाएंगे।
- अस्पष्टताएँ : टैरिफ की श्रेणियाँ जटिल हैं; जैसे कनाडा को आदेश कुछ और प्रभावी तिथि, EU को दरों में भिन्नता हो सकती है।
- वैश्विक बाजार अस्थिरता : शेयर‑बाजार में गिरावट, मुद्रा उतार‑चढ़ाव, और व्यापार निवेश प्रभावित हुए हैं।
समाधान की राह :
- दो‑पक्षीय समझौता (BTA Phase‑1) : भारत और अमेरिका सितंबर-अक्टूबर 2025 तक व्यापार समझौते की पहली कड़ी पूरी करना चाहते हैं, जिसमें शुल्क में छूट, निर्यात सुलभता और नियमों का समंजन शामिल है।
- क्षेत्रीय वार्ता : वस्त्र, फार्मा, ऑटो जैसे प्रमुख क्षेत्रों में विशेष बातचीत के जरिए छूट और नियम निर्धारित किए जाएंगे।
- प्रतिस्थापन नीतियाँ : भारत ने EV बैटरी और मोबाइल फोन निर्माण के लिए कुछ इनपुट्स पर आयात शुल्क समाप्त कर स्थानीय उत्पादन बढ़ाने और कर प्रभाव कम करने की कोशिश की है।
- क़ानूनी रणनीति : अगर अमेरिकी अदालतों के फैसले अंतिम हो जाते हैं, तो भारत वैश्विक व्यापार मंचों पर इसे चुनौती दे सकता है।
निष्कर्ष :
- ‘पारस्परिक टैरिफ’ अब केवल शुल्क नियम नहीं, बल्कि वैश्विक रणनीतिक व्यापार उपकरण बन चुके हैं। इन उपायों का लक्ष्य अमेरिका-केंद्रित वाणिज्यिक लाभ, घाटा संतुलन और दबाव सृजन है। भारत, एक प्रमुख निर्यातक के रूप में, इन परिवर्तनों से निर्यात में कमी, प्रतिस्पर्धा में गिरावट और आर्थिक दबाव का सामना कर सकता है। चुनौतियों में कानूनी जटिलताएं, व्यापारिक अनिश्चितता और वैश्विक बाजार की अस्थिरता शामिल हैं। समाधान के रूप में दो‑पक्षीय वार्ता, छूट नीतियाँ, घरेलू उत्पादन में वृद्धि और वैश्विक मंचों पर कानूनी प्रतिक्रिया आवश्यक है।
स्त्रोत – पी.आई.बी एवं इंडियन एक्सप्रेस।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
- अप्रैल 2025 के “मुक्ति दिवस” आदेश के अनुसार भारत के निर्यात पर तत्काल 25% समरूप शुल्क लागू हुआ।
- अवैध घोषित उच्चतम न्यायालय ने 1अगस्त 2025 के आदेश को रद्द कर दिया है।
- अमेरिका ने 1अगस्त 2025 को भारत सहित 70 देशों पर 10% से 41% तक टैरिफ लगाया, जिसमें भारत पर 25% शुल्क तय किया गया।
- भारत पर लगाए गए नई शुल्कों में ऑटो पार्ट्स पर पूरी तरह छूट मिली है।
उपर्युक्त विकल्पों में से कौन‑सा कथन सही है?
A. केवल 1 और 3
B. केवल 2 और 4
C. केवल 3
D. इनमें से कोई नहीं।
सही उत्तर – C
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित ‘पारस्परिक टैरिफ नीति’ के संदर्भ में वैश्विक व्यापार पर इसके प्रभाव, भारत के समक्ष उत्पन्न चुनौतियाँ तथा भारत की संभावित रणनीतियों का समग्र विश्लेषण प्रस्तुत कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
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