13 May पहलगाम से सिंधु तक : पहलगाम आतंकी हमला और सिंधु जल संधि का निलंबन
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ भारतीय राजनीति, शासन एवं राजव्यवस्था, महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठन, भारत के हित्तों से संबंधित महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संधि और समझौते, भारत और पाकिस्तान के बीच की सिंधु जल संधि, सिंधु जल संधि का निलंबन, आतंकवाद और सुरक्षा, भारत की विदेश नीति और सामरिक हित ’ खण्ड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ अनुच्छेद 370, सिंधु जल संधि, वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF), विश्व बैंक, स्थायी सिंधु आयोग, एकीकृत चेक पोस्ट, सिंधु और उसकी सहायक नदियाँ, रतले जलविद्युत परियोजना, ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF), स्थायी मध्यस्थता न्यायालय ’ खण्ड से संबंधित है। )
खबरों में क्यों?
- हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसरन घाटी में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद केंद्र सरकार ने सुरक्षा के मोर्चे पर सख़्त रुख अपनाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने इस घटना के जवाब में पाकिस्तान के विरुद्ध पाँच सूत्रीय कार्य योजना को स्वीकृति प्रदान की है।
- इस क्रूर हमला एवं दुर्भाग्यपूर्ण घटना में 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई थी। पाकिस्तान में सक्रिय प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) से संबद्ध ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने कथित तौर पर इस हमले की जिम्मेदारी ली है।
पहलगाम आतंकी घटना के प्रतिक्रिया के रूप में भारत द्वारा उठाए गए पाँच निर्णायक कदम :
- सिंधु जल समझौते पर रोक और अस्थायी रूप से निलंबन : भारत ने 1960 में हुए सिंधु जल संधि को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है। यह निर्णय तब तक प्रभावी रहेगा जब तक पाकिस्तान आतंकवादियों को अपनी सीमा से गतिविधियाँ चलाने की अनुमति देना बंद नहीं करता। इस कदम से भारत जल संसाधनों का उपयोग पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए कर सकेगा, जो कि पहले कभी नहीं किया गया।
- अटारी-वाघा सीमा पर आवागमन बंद : पंजाब के अटारी स्थित एकीकृत चेक पोस्ट (आईसीपी) को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया है। इसके परिणामस्वरूप, व्यक्तियों और वस्तुओं का सीमा पार आवागमन पूरी तरह से रुक गया है। केवल उन लोगों को 1 मई 2025 तक वापस आने की अनुमति दी जाएगी जिनके पास वैध यात्रा दस्तावेज़ हैं।
- सार्क वीज़ा छूट योजना समाप्त : भारत ने पाकिस्तानी नागरिकों के लिए दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) की वीज़ा छूट योजना (एसवीईएस) को रद्द कर दिया है। पहले जारी किए गए सभी एसवीईएस वीज़ा अब मान्य नहीं माने जाएंगे।
- पाकिस्तानी सैन्य सलाहकारों को निष्कासित करना : भारत सरकार ने नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान के रक्षा, नौसेना और वायु सलाहकारों को ‘अवांछित व्यक्ति’ घोषित करते हुए उन्हें तुरंत देश छोड़ने का आदेश दिया है। प्रतिक्रियास्वरूप, भारत भी इस्लामाबाद से अपने सैन्य सलाहकारों को वापस बुलाएगा।
- इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग में कर्मियों की संख्या में कटौती : भारत इस्लामाबाद स्थित अपने उच्चायोग में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या को 1 मई 2025 तक 55 से घटाकर 30 कर दिया है। यह कदम दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों में एक महत्वपूर्ण कमी को दर्शाता है और आधिकारिक स्तर पर द्विपक्षीय बातचीत को सीमित करने का संकेत देता है।
पहलगाम में हुए हमले के पीछे संभावित भू-राजनीतिक परिदृश्य :
- कश्मीर को लेकर भारत की नीतियाँ और पाकिस्तान का नज़रिया : वर्ष 2019 में भारत द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करना और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर भारत के दावे को पाकिस्तान अपनी संप्रभुता के लिए सीधी चुनौती मानता है। पाकिस्तान की घटती प्रासंगिकता और कश्मीर में शांति स्थापित करने के भारत के प्रयासों के मद्देनज़र, पाकिस्तान संभवतः क्षेत्र में अपनी पकड़ फिर से मज़बूत करने के लिए हिंसा का सहारा ले रहा है।
- बढ़ता अंतरराष्ट्रीय अलगाव और कूटनीतिक अकेलापन : हाल के वर्षों में अमेरिका, खाड़ी राष्ट्रों तथा यहां तक कि चीन जैसे पारंपरिक साझेदार भी पाकिस्तान से दूरी बनाते दिखे हैं। पाकिस्तान की गिरती वैश्विक साख, बार-बार आतंकवाद से जुड़े आरोप और रणनीतिक सहयोग में कमी इसकी वजहें रही हैं। विशेष रूप से 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी के बाद पाकिस्तान की रणनीतिक उपयोगिता भी घट गई है, जिससे वह वैश्विक मंच पर अलग-थलग पड़ गया है।
- आर्थिक संकट और आंतरिक अस्थिरता : पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लगातार गिर रही है, महंगाई बढ़ रही है और सरकारी संस्थाएँ कमज़ोर हो रही हैं, जिससे देश तेज़ी से अस्थिरता की ओर बढ़ रहा है। पश्चिमी सीमा पर बलूच विद्रोह और लगातार हो रही आतंकवादी गतिविधियों के कारण विदेशी निवेशक पाकिस्तान में रुचि नहीं दिखा रहे हैं, जिससे उसकी आर्थिक समस्याएँ और बढ़ गई हैं और सुधार की उम्मीदें धूमिल हो गई हैं।
- वैश्विक भू-राजनीतिक संकेत : पहलगाम हमले का समय, जब प्रधानमंत्री मोदी सऊदी अरब की यात्रा पर थे और अमेरिकी उपराष्ट्रपति भारत आने वाली थीं, यह दर्शाता है कि पाकिस्तान अपनी क्षेत्रीय ताकत दिखाना चाहता है और यह संदेश देना चाहता है कि दक्षिण एशिया में उसका प्रभाव अभी भी बरकरार है।
- कूटनीतिक पुनर्स्थापन की कोशिश : अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना के बावजूद, पाकिस्तान अपने बढ़ते अलगाव के बीच इस हमले के कारण मिलने वाले अंतर्राष्ट्रीय समुदायों के ध्यान को कूटनीतिक रूप से फिर से जुड़ने के एक अवसर के रूप में देख सकता है।
सिंधु जल समझौते का महत्व :
- विश्व बैंक की मध्यस्थता से नौ वर्षों की चर्चा के बाद, सन 1960 में पाकिस्तान के कराची में भारत और पाकिस्तान द्वारा सिंधु जल संधि’ (Indus Waters Treaty – IWT) पर हस्ताक्षर किए गए।
- यह समझौता सिंधु नदी प्रणाली को दो हिस्सों में बाँटता है: पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास और सतलुज), जिनका निर्बाध उपयोग भारत को मिलता है, और पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम और चिनाब), जो पाकिस्तान के लिए आरक्षित हैं और उसे कुल जल का लगभग 80% प्रदान करती हैं।
- इस संधि के तहत, भारत को पश्चिमी नदियों का सीमित गैर-उपभोग्य उपयोग, जैसे कि नौवहन, कृषि और जलविद्युत उत्पादन, कुछ निर्धारित डिज़ाइन और परिचालन शर्तों के अधीन करने की अनुमति है।
- सिंधु जल संधि ने स्थायी सिंधु आयोग (पीआईसी) की स्थापना करके वार्षिक बातचीत और सहयोग का एक ढाँचा तैयार किया। इसने विवादों के समाधान के लिए तीन-स्तरीय प्रणाली भी बनाई, जिसमें पीआईसी स्तर पर समाधान, तटस्थ विशेषज्ञ (विश्व बैंक या दोनों देशों द्वारा संयुक्त रूप से नियुक्त), और आवश्यकता पड़ने पर मध्यस्थता न्यायालय शामिल हैं।
- सिंधु जल संधि से जुड़े हालिया घटनाक्रमों में, भारत ने 2023 में पहला नोटिस जारी कर किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं पर आपत्ति जताते हुए संधि में संशोधन का अनुरोध किया। हालाँकि ये परियोजनाएँ “रन-ऑफ-द-रिवर” प्रकार की हैं और इनका उद्देश्य नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित किए बिना बिजली पैदा करना है, पाकिस्तान ने इन्हें संधि का उल्लंघन बताया है। भारत ने 2024 में एक और नोटिस जारी कर संधि की समीक्षा और संशोधन की मांग की है।
- सिंधु जल संधि का अनुच्छेद XII (3) दोनों देशों के बीच विधिवत रूप से स्वीकृत समझौते के माध्यम से संधि में बदलाव की अनुमति देता है।
- भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने का कदम, जो इसकी स्थापना के बाद पहली बार हुआ है, सीमा पार आतंकवाद से जुड़े जल कूटनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है।
- वियना संधि सम्मेलन (Vienna Convention on the Law of Treaties) का अनुच्छेद 62 किसी भी देश को संधि से हटने या उसे अस्वीकार करने की अनुमति देता है यदि ऐसी परिस्थितियाँ बदल जाएँ जो संधि की निरंतरता को अस्थिर करती हों। भारत इसी सैद्धांतिक आधार पर संधि की समीक्षा की ओर बढ़ रहा है।
सिंधु जल संधि का निलंबन : भारत और पाकिस्तान के लिए संभावित प्रभाव :
- भारत के लिए रणनीतिक और व्यावहारिक लाभ : सिंधु जल संधि को आंशिक या पूर्ण रूप से स्थगित करना भारत को अपनी नदी प्रणालियों के प्रबंधन में अधिक स्वतंत्रता प्रदान करता है। विशेष रूप से पश्चिमी नदियों—झेलम, चिनाब और सिंधु—पर नियंत्रण के संदर्भ में भारत को वह लचीलापन मिल सकता है जो पहले संधि की तकनीकी और प्रक्रियागत सीमाओं के कारण संभव नहीं था।
- जलविद्युत परियोजनाओं में तीव्रता : भारत अब किशनगंगा और रतले जैसी जलविद्युत परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ा सकता है। निर्माण और संचालन के दौरान पाकिस्तान की तकनीकी आपत्तियों या निरीक्षण की बाध्यता से बचा जा सकता है।
- बाँधों की दीर्घकालिक उपयोगिता और कार्यक्षमता को बढ़ाने में आसानी : मानसून की ऊँचाई पर ही जलाशय की सफाई जैसे नियमों से मुक्ति मिलने से बाँधों की दीर्घकालिक उपयोगिता और कार्यक्षमता बढ़ाई जा सकेगी।
- नदी – प्रवाह तंत्र के नियंत्रण की सीमाएँ : हालांकि, भारत फिलहाल इस स्थिति का तात्कालिक उपयोग करके पाकिस्तान की जल आपूर्ति में किसी बड़े बदलाव की स्थिति में नहीं है, क्योंकि आवश्यक बुनियादी ढांचे—जैसे बड़े जलाशय या डायवर्जन टनल—अभी पर्याप्त नहीं हैं।
- पाकिस्तान के लिए जोखिम और अस्थिरता : संधि के स्थगन से सर्वाधिक खतरा पाकिस्तान की जल आधारित अर्थव्यवस्था और कृषि प्रणाली को है, जो सिंधु नदी प्रणाली पर अत्यधिक निर्भर है।
- कृषि और खाद्य सुरक्षा पर संकट : पाकिस्तान की लगभग 80% कृषि भूमि सिंधु जल पर आधारित है। संधि में व्यवधान आने से फसलों की सिंचाई, पीने के पानी की उपलब्धता और हाइड्रोपावर उत्पादन प्रभावित हो सकता है, जिससे खाद्य असुरक्षा और ऊर्जा संकट उत्पन्न हो सकता है।
- आर्थिक अस्थिरता की आशंका : सिंधु नदी प्रणाली का देश की अर्थव्यवस्था में लगभग एक-चौथाई योगदान है। जल प्रवाह में संभावित अनिश्चितता से सकल घरेलू उत्पाद पर दबाव पड़ सकता है।
- सूचना प्रवाह में बाधा उत्पन्न होना : यदि भारत नदी प्रवाह संबंधित आँकड़ों को साझा करना बंद करता है, तो इससे पाकिस्तान की बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली, जल प्रबंधन रणनीतियाँ और योजना निर्माण गंभीर रूप से प्रभावित होंगे।
- सीमित राजनयिक विकल्प का होना : पाकिस्तान इस स्थिति में विश्व बैंक या किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर मध्यस्थता की मांग कर सकता है और चीन जैसे अपने सहयोगियों से समर्थन की अपेक्षा कर सकता है, परंतु आर्थिक चुनौतियाँ और राजनयिक अलगाव उसकी प्रतिक्रिया को सीमित कर सकते हैं।
भारत की पाकिस्तान-नीति : एक दीर्घकालिक रणनीतिक दृष्टिकोण :
- सुरक्षा अवसंरचना और प्रतिरोध क्षमता का विस्तार : भारत को अपनी सीमाओं की रक्षा के लिये तकनीकी उन्नयन और सामरिक तैयारी को प्राथमिकता देनी चाहिए। अत्याधुनिक निगरानी प्रणालियाँ, जैसे ड्रोन आधारित निगरानी, सेंसरयुक्त स्मार्ट फेंसिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित विश्लेषण के जरिये सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा को अभेद्य बनाया जा सकता है। साथ ही, अग्रिम चौकियों पर तैनात बलों का नियमित आधुनिकीकरण और प्रशिक्षण सुनिश्चित किया जाना चाहिए। यह प्रतिरोधक क्षमता न केवल संभावित घुसपैठ को रोक सकती है, बल्कि पाकिस्तान द्वारा कश्मीर घाटी में तनाव बढ़ाने के प्रयासों को भी प्रभावी ढंग से विफल कर सकती है।
- अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आक्रामक कूटनीति : भारत को वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान की आतंकवाद समर्थक भूमिका को बार-बार उजागर करते रहना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यह एक प्रमुख मुद्दा बने रहना चाहिए, जहाँ भारत को यह रेखांकित करना होगा कि पाकिस्तान की धरती पर पनप रहे आतंकी नेटवर्क केवल भारत ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया और विश्व शांति के लिये खतरा हैं। भारत को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 51 के अंतर्गत आतंकवाद के विरुद्ध आत्मरक्षा व सामूहिक कार्रवाई के अधिकार का आह्वान करते हुए, वैश्विक समर्थन जुटाना चाहिए। इसके साथ ही, पाकिस्तान को आतंकवाद के वित्तपोषण में संलिप्तता के आधार पर FATF (Financial Action Task Force) की ब्लैकलिस्ट में डालने की पुरज़ोर वकालत करनी चाहिए, जिससे उस पर आर्थिक और राजनीतिक दबाव बढ़े।
- सक्रिय आतंकवाद विरोधी रणनीति अपनाने की जरूरत : भारत को सीमावर्ती संवेदनशील क्षेत्रों पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए एक सक्रिय आतंकवाद विरोधी रणनीति अपनानी चाहिए। इसमें न केवल सुरक्षात्मक उपाय शामिल होने चाहिए, बल्कि शांति, बहुलवाद और राष्ट्रीय एकता पर ज़ोर देने वाले जन जागरूकता अभियानों के माध्यम से एकता को बढ़ावा देना भी आवश्यक है।
स्त्रोत – पी. आई. बी एवं द हिन्दू।
Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 13th May 2025
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. निम्नलिखित में से किन-किन भू-राजनीतिक कारणों को पहलगाम हमले के पीछे संभावित कारक माना गया है?
- पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय अलगाव की स्थिति।
- अफगानिस्तान में तालिबान की बढ़ती शक्ति।
- भारत द्वारा अनुच्छेद 370 का निरसन।
- पाकिस्तान का बढ़ता आर्थिक संकट।
नीचे दिए गए कूट के माध्यम से सही उत्तर का चयन करें :
A. केवल 1, 2 और 3
B. केवल 1, 3 और 4
C. इनमें से कोई नहीं।
D. उपरोक्त सभी।
उत्तर – B
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. हाल ही में पहलगाम (जम्मू-कश्मीर) में हुए आतंकी हमले की पृष्ठभूमि में भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान के विरुद्ध अपनाई गई पाँच सूत्रीय कार्य योजना, सिंधु जल संधि के निलंबन के भू-राजनीतिक प्रभाव और भारत की दीर्घकालिक पाकिस्तान के प्रति विदेश नीति को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
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