पृथ्वी को स्वस्थ बनाना : 2025 में मरुस्थलीकरण पर कार्रवाई का आह्वान

पृथ्वी को स्वस्थ बनाना : 2025 में मरुस्थलीकरण पर कार्रवाई का आह्वान

पाठ्यक्रम – सामान्य अध्ययन -3- पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी – हमारी पृथ्वी को स्वस्थ बनाना : 2025 में मरुस्थलीकरण पर कार्रवाई का आह्वान

प्रारंभिक परीक्षा के लिए : 

विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस 2025, वनोन्मूलन, सतत विकास लक्ष्य, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), मिट्टी का लवणीकरण  

मुख्य परीक्षा के लिए : 

भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण के मुख्य कारण और परिणाम क्या है? मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की मुख्य विशेषताएं और भूमिका क्या है?

 

खबरों में क्यों?

 

 

  • हाल ही में 17 जून 2025 को विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस मनाया गया, जिसका मुख्य विषय था — “भूमि को पुनः स्थापित करें, अवसरों को अनलॉक करें।” 
  • संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक लगभग 16 मिलियन वर्ग किलोमीटर भूमि — जो क्षेत्रफल में दक्षिण अमेरिका के बराबर है — गंभीर रूप से क्षरण के खतरे में है। 
  • वर्तमान समय में , भूमि क्षरण और सूखे के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रतिवर्ष 878 बिलियन डॉलर का नुकसान हो रहा है। 
  • विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि यदि 1.5 बिलियन हेक्टेयर भूमि को पुनर्जीवित किया जाए, तो यह एक ट्रिलियन डॉलर मूल्य की पुनर्स्थापना अर्थव्यवस्था को जन्म दे सकता है। यह परिदृश्य निजी निवेश और भागीदारी की तत्काल और सशक्त आवश्यकता को रेखांकित करता है।

 

वैश्विक संकट के रूप में भूमि क्षरण की व्यापकता और परिणाम : 

 

  1. भूमि क्षरण की चपेट में विशाल भूभाग : अनुमान है कि 2050 तक लगभग 16 मिलियन वर्ग किलोमीटर भूमि, जो दक्षिण अमेरिका के कुल क्षेत्रफल के बराबर है, गंभीर रूप से क्षरित हो सकती है। इसका सीधा असर हमारे पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि उत्पादन और जैव विविधता पर पड़ेगा।
  2. बढ़ता आर्थिक बोझ : भूमि क्षरण और सूखे के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रति वर्ष $878 बिलियन का भारी नुकसान होता है। यह आंकड़ा 2023 में प्रदान की गई कुल वैश्विक सहायता राशि से तीन गुना अधिक है, जो इस समस्या की आर्थिक गंभीरता को दर्शाता है।
  3. आजीविका और खाद्य सुरक्षा पर खतरा : भूमि की उर्वरता घटने से कृषि उत्पादकता में कमी आती है, जिससे खाद्य असुरक्षा बढ़ती है। विशेष रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में लाखों लोग विस्थापित होने को मजबूर हैं।
  4. जलवायु और पर्यावरणीय दुष्परिणाम : भूमि क्षरण से जैव विविधता का तेजी से नुकसान होता है, जल चक्र बाधित होता है, और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि होती है, जिससे जलवायु परिवर्तन की गति तेज होती है।
  5. सुरक्षा संबंधी चुनौतियां : संसाधनों की कमी, विशेषकर संवेदनशील क्षेत्रों में, संघर्ष, पलायन और अस्थिरता को बढ़ावा देती है, जिससे वैश्विक सुरक्षा पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

 

मरुस्थलीकरण के मुख्य कारक : 

 

  1. वनोन्मूलन : वनों की अंधाधुंध कटाई से मिट्टी की स्थिरता घट जाती है, जिससे कटाव और क्षरण में तेजी आती है।
  2. असंतुलित कृषि पद्धतियां : अत्यधिक खेती, एकल फसल उत्पादन और रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग से मिट्टी के आवश्यक पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं।
  3. अतिचारण : पशुओं द्वारा अत्यधिक चराई से वनस्पति आवरण नष्ट हो जाता है, जिससे मिट्टी हवा और पानी के कटाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती है।
  4. शहरीकरण : अनियोजित शहरी विस्तार से उत्पादक कृषि भूमि का नुकसान होता है और भूमि सील हो जाती है।
  5. जलवायु परिवर्तन : बढ़ते तापमान और अनियमित वर्षा पैटर्न सूखे और भूमि क्षरण को बढ़ावा देते हैं।
  6. जल अभाव : सीमित जल उपलब्धता मिट्टी के स्वास्थ्य और वनस्पति के विकास को सीधे प्रभावित करती है।
  7. मिट्टी का लवणीकरण : खराब सिंचाई पद्धतियों से मिट्टी में नमक का जमाव हो जाता है, जिससे उसकी उर्वरता कम हो जाती है।
  8. गरीबी और संसाधनों का अति उपयोग : गरीबी और असंतुलित जीवनशैली अक्सर संसाधनों के अत्यधिक उपयोग की ओर ले जाती है, जिससे भूमि क्षरण की समस्या और भी गंभीर हो जाती है।

 

भूमि पुनरुद्धार : एक बड़ा आर्थिक और पर्यावरणीय अवसर :

 

  1. बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता : वर्ष 2030 तक वैश्विक भूमि पुनरुद्धार लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन लगभग $1 बिलियन के भारी निवेश की आवश्यकता होगी।
  2. उच्च प्रतिफल की संभावना : भूमि पुनरुद्धार में निवेश किए गए प्रत्येक $1 के लिए, बेहतर पारिस्थितिकी सेवाओं और आजीविका के माध्यम से $7 से $30 तक का प्रतिफल मिल सकता है। यह एक अत्यंत आकर्षक निवेश अवसर है।
  3. ट्रिलियन डॉलर का अवसर : विश्व भर में 1 बिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि को पुनःस्थापित करने से वार्षिक $1.8 ट्रिलियन तक का भारी आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकता है।
  4. नवीन आर्थिक क्षेत्र का विकास : भूमि पुनरुद्धार एक ट्रिलियन डॉलर के वैश्विक आर्थिक क्षेत्र के रूप में विकसित होने की क्षमता रखता है, जो सतत विकास में महत्वपूर्ण योगदान देगा।
  5. पर्यावरणीय लाभ : पुनरुद्धार से मिट्टी की उर्वरता, जल उपलब्धता, जैव विविधता और कार्बन अवशोषण में वृद्धि होती है, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आवश्यक हैं।
  6. रोजगार सृजन की अपार संभावनाएं : पुनरुद्धार पहलें, विशेष रूप से विकासशील क्षेत्रों में, कृषि, वानिकी और पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में लाखों हरित रोजगार सृजित कर सकती हैं।
  7. वर्तमान वित्त पोषण का अंतराल : वर्तमान में, निजी क्षेत्र कुल पुनरुद्धार वित्तपोषण में केवल 6% का योगदान देता है, जो एक बड़े निवेश अंतराल को दर्शाता है।
  8. निजी क्षेत्र की भागीदारी की आवश्यकता : भूमि की पूर्ण आर्थिक और पारिस्थितिक क्षमता को खोलने के लिए अधिक निजी निवेश और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) अत्यंत आवश्यक है।

 

क्षेत्रीय मुख्य आकर्षण :

 

क्षेत्र गिरावट की सीमा पुनर्स्थापना लक्ष्य मुख्य बातें
उप-सहारा अफ्रीका विश्व की 45% भूमि क्षरित हो चुकी है 440 मिलियन हेक्टेयर 10 मिलियन स्थायी नौकरियाँ सृजित करने की संभावना, साहेल क्षेत्र पर ध्यान केन्द्रित
लैटिन अमेरिका और कैरिबियन वैश्विक क्षरित भूमि का 14% 220 मिलियन हेक्टेयर से अधिक टिकाऊ भूमि उपयोग और कृषि-पारिस्थितिकी नियोजन पर जोर
पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका लगभग 90% भूमि पहले ही क्षरित हो चुकी है 150 मिलियन हेक्टेयर से अधिक जल संकट और बढ़ते तापमान का सामना करते हुए लचीली कृषि पर ध्यान केंद्रित करना
कोलंबिया (मेजबान, 2025) 30% भूमि क्षरित; 40% मिट्टी लवणीय 560,000 हेक्टेयर भूमि पुनर्स्थापन के अधीन कृषि वानिकी, टिकाऊ कॉफी/पशुपालन, तथा जलग्रहण पुनरुद्धार पर ध्यान केन्द्रित करना।

 

मरुस्थलीकरण से निपटने में यूएनसीसीडी (UNCCD) की भूमिका :

 

  1. व्यापक सदस्यता : भारत सहित 197 पक्षकारों द्वारा हस्ताक्षरित, यूएनसीसीडी लगभग सार्वभौमिक वैश्विक प्रतिनिधित्व और सहयोग सुनिश्चित करता है, जो इसे एक शक्तिशाली वैश्विक पहल बनाता है।
  2. रणनीतिक दृष्टिकोण : यूएनसीसीडी प्रभावी भूमि प्रशासन के लिए राष्ट्रीय कार्य योजनाओं (NAPs), क्षेत्रीय समन्वय और वैश्विक साझेदारी के माध्यम से विभिन्न पहलों को क्रियान्वित करता है। यह एक बहु-स्तरीय दृष्टिकोण अपनाता है।
  3. मुख्य उद्देश्य : इसका प्राथमिक उद्देश्य सतत भूमि प्रबंधन को बढ़ावा देना, सूखे के प्रति लचीलापन बढ़ाना और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के हिस्से के रूप में 2030 तक भूमि क्षरण तटस्थता (LDN) प्राप्त करना है।
  4. विज्ञान और नीति का आपस में समन्वय : विज्ञान-नीति इंटरफ़ेस (SPI) के माध्यम से, यूएनसीसीडी साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को मजबूत करता है, जो वैश्विक भूमि बहाली प्रयासों को मार्गदर्शन देने के लिए आवश्यक है।
  5. निगरानी और रिपोर्टिंग : यह प्रदर्शन संकेतकों और राष्ट्रीय रिपोर्टिंग का उपयोग करते हुए एक मजबूत निगरानी प्रणाली के माध्यम से कार्यान्वयन परिणामों पर नज़र रखता है, जिससे प्रगति का आकलन किया जा सके।
  6. वित्तीय और तकनीकी नवाचार संसाधन जुटाना : यूएनसीसीडी सार्वजनिक और निजी हितधारकों के साथ मिलकर काम करता है ताकि भूमि बहाली और प्रकृति-आधारित समाधानों में निवेश बढ़ाने के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता जुटाई जा सके।

 

आगे की राह : 

 

  1. सार्वजनिक-निजी वित्त पोषण में वृद्धि करने की जरूरत : वर्तमान में निजी क्षेत्र का योगदान केवल 6% है। इस बड़े वित्तपोषण अंतर को पाटने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाना और मिश्रित वित्त मॉडल को प्रोत्साहित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  2. प्रकृति-आधारित समाधानों को बढ़ावा देने की जरूरत : पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने के लिए कृषि वानिकी, पुनर्योजी कृषि, वर्षा जल संचयन और मृदा संरक्षण जैसी टिकाऊ प्रथाओं को अपनाना आवश्यक है।
  3. एकीकृत दृष्टिकोण को अपनाने की आवश्यकता : भूमि प्रबंधन प्रयासों को जलवायु अनुकूलन, जैव विविधता संरक्षण, खाद्य सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन लक्ष्यों के साथ संरेखित करना होगा, ताकि एक व्यापक और समन्वित दृष्टिकोण अपनाया जा सके।
  4. स्थानीय समुदायों का सशक्तिकरण करने की जरूरत : जमीनी स्तर पर भागीदारी को मजबूत करने के लिए समुदाय-नेतृत्व वाली और स्वदेशी पहलों को समर्थन देना चाहिए, खासकर कमजोर ग्रामीण क्षेत्रों में।
  5. शासन और भूमि अधिकारों में सुधार की जरूरत : भूमि स्वामित्व प्रणालियों में सुधार और महिलाओं, किसानों और स्वदेशी लोगों के लिए सुरक्षित भूमि अधिकार सुनिश्चित करने से बेहतर प्रबंधन संभव होगा।
  6. अनुसंधान और नवाचार में निवेश को बढ़ावा देने की आवश्यकता : बेहतर निर्णय लेने और प्रभाव आकलन के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान, भू-स्थानिक मानचित्रण और अग्रणी प्रौद्योगिकियों (AI, रिमोट सेंसिंग) के उपयोग को बढ़ावा देना आवश्यक है।
  7. क्षमता निर्माण और जागरूकता : किसानों, अधिकारियों और स्थानीय संस्थाओं को टिकाऊ भूमि प्रबंधन प्रथाओं और सूखे की तैयारी के बारे में प्रशिक्षित करना महत्वपूर्ण है।
  8. ज्ञान साझेदारी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाने की जरूरत : यूएनसीसीडी और क्षेत्रीय गठबंधनों जैसे मंचों के माध्यम से सीमा पार सहयोग, नीति सामंजस्य और ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना वैश्विक प्रयासों को मजबूत करेगा।

 

निष्कर्ष : 

 

  • वर्तमान में हमारा ग्रह एक अभूतपूर्व वैश्विक भूमि संकट का सामना कर रहा है, जिसके दूरगामी परिणाम पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और मानवीय आजीविका पर पड़ रहे हैं। यह संकट केवल कुछ क्षेत्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव पूरे विश्व पर देखा जा रहा है। यह स्पष्ट है कि भूमि क्षरण एक जटिल और बहुआयामी समस्या है, जिसके समाधान के लिए समन्वित वैश्विक प्रयासों, पर्याप्त निवेश और नवीन दृष्टिकोणों की आवश्यकता है। भूमि की बहाली एक पर्यावरणीय अनिवार्यता से कहीं अधिक है – यह वैश्विक आर्थिक लचीलेपन, सामाजिक स्थिरता और मानव कल्याण की आधारशिला है। क्षरित भूमि को बहाल करना पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने, खाद्य और जल सुरक्षा में सुधार करने, स्थायी आजीविका बनाने और जलवायु संकट से निपटने का एक शक्तिशाली अवसर प्रदान करता है। यह एक जीत-जीत समाधान का प्रतिनिधित्व करता है जो लोगों और ग्रह दोनों का पोषण करता है और दीर्घकालिक समृद्धि को अनलॉक करता है। जैसा कि UNCCD के कार्यकारी सचिव इब्राहिम थियाव ने ठीक ही कहा है –  “पुनर्स्थापित भूमि अनंत अवसरों की भूमि है… भूमि के बिना, आजीविका, शांति या समृद्धि नहीं हो सकती।”

 

स्त्रोत – पी.आई.बी एवं द हिन्दू। 

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीसीडी) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. यह पर्यावरण और विकास को टिकाऊ भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
2. यूएनसीसीडी का मुख्यालय बॉन, जर्मनी में स्थित है।
3. भारत ने बॉन चैलेंज के अंतर्गत 10 मिलियन हेक्टेयर से अधिक बंजर भूमि को पुनः उपजाऊ बनाने का संकल्प लिया है।
उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
A. केवल 1 और 2
B. केवल 2 और 3
C. केवल 1 और 3
D. 1, 2 और 3

उत्तर – D

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण द्वारा उत्पन्न वैश्विक खाद्य सुरक्षा, आजीविका और पर्यावरणीय स्थिरता पर खतरे को देखते हुए, और UNCCD के प्रयासों व 2025 में मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के आयोजन को ध्यान में रखते हुए, क्षरित भूमि को बहाल करने के प्रमुख कारणों, प्रभावों और अवसरों पर विस्तार से चर्चा कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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