फेल मतलब फेल : केंद्र सरकार द्वारा ‘ नो डिटेंशन पॉलिसी ’ की समाप्ति

फेल मतलब फेल : केंद्र सरकार द्वारा ‘ नो डिटेंशन पॉलिसी ’ की समाप्ति

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 के अंतर्गत ‘ भारतीय संविधान और शासन व्यवस्था , भारत में शिक्षा क्षेत्र से संबंधित मुद्दे , राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 की विशेषताएँ , नो डिटेंशन पॉलिसी के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क , भारत में शैक्षिक सुधारों से संबंधित सरकारी पहल ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियम, 2024 , राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संवर्द्धित शिक्षा कार्यक्रम से संबंधित नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे ’ खंड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों?

 

  • हाल ही में केंद्र सरकार ने केंद्रीय विद्यालयों, जवाहर नवोदय विद्यालयों और अन्य सरकारी स्कूलों में कक्षा 5 और 8 के लिए “नो-डिटेंशन” नीति को समाप्त करने का निर्णय लिया है। 
  • यह बदलाव “निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियम, 2024” के तहत एक राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से किया गया है। 
  • केंद्र सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किए गए इस संशोधन के बाद, स्कूल अब उन छात्रों को अगली कक्षा में प्रमोट या पदोन्नति नहीं कर सकेंगे, जो आवश्यक मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं।

 

नो-डिटेंशन पॉलिसी क्या है ?

 

शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) की धारा 16 के तहत नो-डिटेंशन नीति की शुरुआत की गई थी। जिसका उद्देश्य था कि बच्चों को बिना फेल होने के डर के शिक्षा प्राप्त हो, जिससे वे स्कूल छोड़ने के बजाय पढ़ाई में ध्यान केंद्रित कर सकें। इसके परिणामस्वरूप कक्षा 8 तक के छात्रों को फेल करने पर रोक लगा दी गई थी। इस नीति के तहत दो महत्वपूर्ण प्रावधान थे:

  1. किसी भी बच्चे को स्कूल से नहीं निकाला जाएगा।
  2. किसी भी छात्र को कक्षा में फेल नहीं किया जाएगा।

 

केंद्र सरकार द्वारा निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियम, 2024 से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य :

 

  • शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 को वर्ष 2019 में संशोधित किया गया था ताकि नो-डिटेंशन नीति को समाप्त किया जा सके। 
  • केंद्र सरकार द्वारा इस संशोधित अधिनियम को लागू करने के नियमों को स्थगित कर दिया गया और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की शुरुआत के बाद उन्हें राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF) के अनुरूप बनाने के लिए वर्ष 2024 में इसे पारित किया गया है। 
  • शिक्षा का अधिकार (RTE) संशोधन अधिनियम, 2019 के बाद असम, बिहार, गुजरात और तमिलनाडु सहित 18 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों ने इस नीति को समाप्त कर दिया। 
  • हरियाणा और पुदुचेरी ने अभी तक इस पर निर्णय नहीं लिया है जबकि आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने इसे लागू करना जारी रखा है।
  • शिक्षा के क्षेत्र में स्कूली स्तर पर किया गया यह संशोधन बच्चों की शिक्षा में सुधार लाने और उन्हें अधिक प्रभावी तरीके से सशक्त बनाने के उद्देश्य से किया गया है।

 

संशोधित नियमों के प्रमुख बिंदु :

 

  1. छात्रों के समग्र विकास और प्रदर्शन को प्राथमिकता देते हुए मूल्यांकन करना : अब छात्रों के समग्र विकास को प्राथमिकता दी जाएगी और पाठ को रटने के स्थान पर सीखने पर जोर दिया जाएगा।
  2. पुनः परीक्षा देने का अवसर प्रदान करना : वार्षिक परीक्षा में अनुत्तीर्ण छात्रों को दो महीने का अतिरिक्त प्रशिक्षण देकर पुनः परीक्षा का अवसर दिया जाएगा।
  3. पुनः परीक्षा में भी असफल होने पर अगली कक्षा में प्रमोट न करना : यदि छात्र पुनः परीक्षा में भी असफल होते हैं, तो उन्हें उसी कक्षा में रोक दिया जाएगा।
  4. विशेष मार्गदर्शन और सुधारात्मक उपाय किए जाने का प्रावधान : अगली कक्षा में प्रमोट न होने वाले छात्रों के लिए विशेष मार्गदर्शन और सुधारात्मक उपाय किए जाएंगे।
  5. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत कमजोर छात्रों को विशेष ध्यान देना : राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत कमजोर छात्रों को विशेष सहायता दी जाएगी।

 

स्कूली शिक्षा में नो-डिटेंशन पॉलिसी के पक्ष और विपक्ष में तर्क : 

 

पक्ष में तर्क :

 

  1. स्कूल छोड़ने की दर में कमी आना : नो-डिटेंशन नीति का प्रमुख उद्देश्य उन छात्रों की संख्या को कम करना था जो फेल होने के डर से स्कूल छोड़ देते थे।
  2. सतत और व्यापक मूल्यांकन (CCE) करना : इस नीति में एकल परीक्षा के बजाय, विद्यार्थी की प्रगति का निरंतर मूल्यांकन किया जाता है, जिससे छात्रों को परीक्षा के तनाव से राहत मिलती है और उनका समग्र विकास होता है।
  3. समावेशी शिक्षा को प्रोत्साहन देना : यह नीति सभी छात्रों को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर देती है, चाहे उनका शैक्षणिक प्रदर्शन जैसा भी हो। इससे यह सुनिश्चित हुआ कि सभी बच्चे स्कूल में बने रहें।
  4. प्राथमिक शिक्षा में जवाबदेही की आवश्यकता पर राज्य की मांग : कई राज्यों ने इस नीति के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए, जिसमें प्राथमिक शिक्षा में जवाबदेही की आवश्यकता पर बल दिया गया था।
  5. राष्ट्रीय शिक्षा नीति ( NEP ) 2020 के अनुरूप होना : राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत, यह निर्णय लिया गया कि शिक्षा में योग्यता आधारित प्रणाली लागू की जाए, जो नो-डिटेंशन नीति के साथ मेल खाता है।
  6. वैश्विक प्रथाएँ : कई देशों जैसे फिनलैंड और अमेरिका में फेल होने के बजाय छात्रों का निरंतर मूल्यांकन किया जाता है, जिससे छात्रों की वास्तविक प्रगति पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

 

विपक्ष में तर्क :

  1. अधिगम के बजाय अन्य प्रशासनिक कार्यों पर ज्यादा ध्यान देना : नो-डिटेंशन नीति के कारण छात्रों और शिक्षकों में आत्मसंतोष की भावना आ गई, जिसके कारण शिक्षा के स्तर में गिरावट आई। कई स्कूलों ने अधिगम के बजाय अन्य प्रशासनिक कार्यों पर ज्यादा ध्यान दिया।
  2. अधिगम में कमी आना : ASER 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण भारत में कक्षा 3 के केवल 20% छात्र कक्षा 2 की पाठ्य सामग्री पढ़ सकते हैं।
  3. उच्च कक्षाओं में असफलता की बढ़ती दर का होना : वर्ष 2023 में कक्षा 10 और 12 में 65 लाख छात्र अनुत्तीर्ण हुए, जो शिक्षा में बुनियादी अंतर को दर्शाता है।
  4. निम्न स्तर पर कौशल और ज्ञान की प्राप्ति होना : बिना उचित कौशल के स्वैच्छिक पदोन्नति से छात्र उच्च कक्षाओं में असफल हो जाते हैं।
  5. जवाबदेही का अभाव होना : इस नीति के कारण छात्रों और शिक्षकों के बीच जवाबदेही कम हो गई है, क्योंकि छात्रों को उनके प्रदर्शन के आधार पर प्रमोट नहीं किया जाता।
  6. मूल कारणों का समाधान नहीं होना : आलोचकों के एक वर्ग का यह मानना है कि इस नीति में खराब शिक्षण परिणामों के मूल कारणों, जैसे अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण और बुनियादी ढांचे की कमी का समाधान नहीं किया गया है।

 

शिक्षा का अधिकार :

  1. भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत शिक्षा पहले एक राज्य का विषय था। लेकिन 1976 में 42वें संविधान संशोधन के दौरान, इसे समवर्ती सूची में डाल दिया गया, जिससे अब केंद्र और राज्य दोनों मिलकर शिक्षा से संबंधित कानून बना सकते हैं।
  2. वर्ष 2002 में किए गए 86वें संविधान संशोधन ने 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षा को अनुच्छेद 21A के तहत एक मौलिक अधिकार बना दिया। 
  3. इस संशोधन के बाद, 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिला।
  4. इसके अतिरिक्त, राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों (DPSP) में, अनुच्छेद 45 को बदलकर 6 वर्ष तक बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा और देखभाल देने की जिम्मेदारी राज्य पर डाली गई। 
  5. इसके साथ – ही – साथ , अनुच्छेद 51A में बदलाव किया गया, जिसके तहत माता-पिता या अभिभावकों को यह कर्तव्य सौंपा गया कि वे अपने बच्चों को 6 से 14 वर्ष की आयु में शिक्षा का अवसर प्रदान करें।
  6. इसके बाद, सन 2009 में संसद ने “शिक्षा का अधिकार अधिनियम” (RTE) पारित किया, जिससे यह शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार के रूप में लागू हुआ।

 

भारत में शैक्षिक सुधारों से संबंधित सरकारी पहलें :

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020
  • राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संवर्धित शिक्षा कार्यक्रम
  • सर्व शिक्षा अभियान
  • प्रज्ञाता
  • मध्याह्न भोजन योजना
  • PM श्री स्कूल योजना
  • समग्र शिक्षा योजना 2.0

 

निष्कर्ष :

 

 

  1. नो-डिटेंशन पॉलिसी समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने और बच्चों को स्कूल छोड़ने से बचाने में एक सकारात्मक कदम थी। हालांकि, इसके लागू होने के दौरान कुछ चुनौतियाँ और आलोचनाएँ सामने आईं थी। 
  2. इस नीति का उद्देश्य बच्चों के लिए एक आसान और सहायक शिक्षा प्रणाली बनाना था, लेकिन इससे शैक्षणिक गुणवत्ता और जिम्मेदारी में कमी आई। 
  3. केंद्र सरकार द्वारा इस पुराणी नीति को खत्म करना और उसके स्थान पर “निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियम, 2024” को लागू करना भारत के शैक्षणिक दृष्टिकोण में बदलाव को दर्शाता है, जो समावेशिता और जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाने का प्रयास कर रहा है। 
  4. “निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियम, 2024” का उद्देश्य कक्षा 5 और 8 के छात्रों के लिए ‘नो-डिटेंशन’ नीति को समाप्त करना है, ताकि शैक्षणिक उत्तरदायित्व और गुणवत्ता में सुधार हो सके। इस संशोधन से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि विद्यार्थी केवल शैक्षिक मानकों को पूरा करके ही अगली कक्षा में पदोन्नत हों, जिससे समग्र शिक्षा प्रणाली में सुधार की संभावना बढ़ेगी।
  5. केंद्र सरकार द्वारा संशोधित और नो-डिटेंशन पॉलिसी की समाप्ति का लक्ष्य भारत में स्कूली स्तर पर शिक्षा के परिणामों में सुधार करना है, लेकिन “निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियम, 2024” की सफलता उसके अच्छे तरीके से और सावधानीपूर्वक कार्यान्वयन करने के साथ -ही – साथ कमजोर छात्रों को निरंतर समर्थन देने पर भी निर्भर करेगा।

 

स्त्रोत – पीआईबी एवं द हिन्दू। 

 

Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 31st Dec 2024

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. केंद्र सरकार द्वारा “निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियम, 2024” के तहत कौन से बदलाव किए गए हैं?

  1. इसके तहत कक्षा में अनुतीर्ण छात्रों को पुनः परीक्षा का अवसर दिया जाएगा।
  2. कक्षा 5 और 8 के छात्रों को अगली कक्षा में प्रमोट किया जाएगा, चाहे उनका प्रदर्शन कैसा भी हो।
  3. कमजोर छात्रों के लिए विशेष मार्गदर्शन दिया जाएगा।
  4. कक्षा 5 और 8 के छात्रों के लिए ‘नो-डिटेंशन’ नीति को समाप्त किया जाएगा।

उपर्युक्त कथनों में से कितने कथन सही है ? 

A. केवल एक 

B. केवल दो 

C. केवल तीन 

D. उपरोक्त सभी।

उत्तर – C

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. केंद्र सरकार द्वारा “नो-डिटेंशन पॉलिसी” की समाप्ति के निर्णय के पक्ष और विपक्ष में उठाए गए तर्कों का विश्लेषण करते हुए, यह समझाइए कि “निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) नियम, 2024” के तहत शिक्षा की गुणवत्ता, समावेशिता और जिम्मेदारी के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जा सकता है? इस निर्णय के दीर्घकालिक परिणामों पर विचार करें। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 ) 

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