भारत और अमेरिका : द्विपक्षीय संबंधों में नीतिगत परिवर्तनों का असर

भारत और अमेरिका : द्विपक्षीय संबंधों में नीतिगत परिवर्तनों का असर

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ भारत – अमेरिकी द्विपक्षीय संबंध , अंतर्राष्ट्रीय संबंध , महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठन और भारत के हित्तों से संबंधित महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संधि और समझौते , वैश्विक अर्थव्यवस्था और वैश्विक जलवायु कार्यवाही , अमेरिकी नीति में परिवर्तन और भारत पर इसका प्रभाव ’ खण्ड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ यूरोपीय संघ और BRICS सदस्य देश , विश्व स्वास्थ्य संगठन , पेरिस समझौता , जीवाश्म ईंधन , H-1B वीज़ा , टैक्स हेवेन , क्वाड गठबंधन, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन , ग्रीनहाउस गैस ’ खण्ड से संबंधित है। )

 

खबरों में क्यों ? 

 

  • हाल ही में, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने पद पर बैठते ही कई कार्यकारी आदेशों पर दस्तखत किए हैं। 
  • अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा जारी आदेशों में प्रमुख रूप से जन्मसिद्ध नागरिकता का अंत करना, पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को बाहर करना, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से अमेरिका का बाहर जाना और वैश्विक कॉर्पोरेट न्यूनतम कर (GCMT) समझौते को अस्वीकार करना शामिल है।
  • अमेरिकी राष्ट्रपति के इन निर्णयों का प्रभाव भारत पर प्रत्यक्ष रूप से तो पड़ेगा ही, इसके साथ – ही – साथ वैश्विक जलवायु नीति और अमेरिका में भारतीय पेशेवरों के जीवन पर भी इसका महत्वपूर्ण रूप से प्रभाव पड़ेगा।

 

अमेरिका में जन्मसिद्ध नागरिकता निरसन के प्रभाव : 

  • अमेरिका में जन्मसिद्ध नागरिकता की दो श्रेणियाँ हैं: वंश-आधारित और जन्मस्थान-आधारित। कार्यपालक आदेश के तहत, गैर-नागरिक माता-पिता से जन्मे बच्चे अब स्वचालित रूप से नागरिक नहीं माने जाएंगे। इसका मुख्य उद्देश्य ” बर्थ टूरिज्म “ को नियंत्रित करना है, जो विशेष रूप से भारत और मैक्सिको जैसे देशों में प्रचलित है।

 

प्रभाव :

  • H-1B वीज़ा धारक परिवारों पर असर : भारतीय पेशेवरों और उनके बच्चों की नागरिकता पर अनिश्चितता उत्पन्न हो सकती है।
  • कानूनी चुनौतियाँ : यह निर्णय अमेरिकी संविधान के 14वें संशोधन के खिलाफ है, जो सभी जन्मे व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करता है। अदालत में चुनौती की संभावना।
  • आव्रजन नीतियाँ : भारतीय नागरिक अन्य देशों जैसे कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में प्रवास कर सकते हैं।
  • अर्थव्यवस्था पर प्रभाव : कुशल श्रमिकों की कमी से अमेरिका के IT और स्वास्थ्य क्षेत्रों में बाधा उत्पन्न  हो सकता है।

 

पेरिस समझौते से अमेरिका की वापसी के प्रभाव : 

  • पेरिस समझौता 2015 में जलवायु परिवर्तन पर किया गया एक वैश्विक समझौता था, जिसका उद्देश्य वैश्विक तापमान को 1.5°C तक सीमित करना था। अमेरिका की वापसी से इस समझौता पर निम्नलिखित प्रभाव पर सकता है – 
  1. वैश्विक जलवायु लक्ष्य पर गंभीर प्रभाव पड़ना : अमेरिका के उत्सर्जन कम करने के प्रयासों में कटौती से वैश्विक जलवायु लक्ष्य प्रभावित होंगे।
  2. जलवायु शमन और अनुकूलन के लिए वित्तीय सहायता में कमी आना और विकसित देशों द्वारा समर्थन न करना : विकासशील देशों को जलवायु शमन और अनुकूलन के लिए वित्तीय सहायता में कमी आ सकती है और इसके साथ – ही – साथ इसमें विकसित देशों के समर्थन में कमी आ सकती है।
  3. नवीकरणीय ऊर्जा और हरित परियोजनाओं को समर्थन देने में कमी आना : अमेरिका द्वारा जलवायु नीति से पीछे हटने से नवीकरणीय ऊर्जा और हरित परियोजनाओं को समर्थन में कमी हो सकती है।

 

WHO से अमेरिका के अलग होने से उत्पन्न होने वाला मुख्य प्रभाव : 

 

अमेरिका के पीछे हटने का मुख्य कारण : 

  • अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कोविड-19 महामारी पर WHO की लापरवाही, सुधारों में विफलता, और चीन के प्रति नर्म रुख को इसके पीछे के कारणों के रूप में बताया। अमेरिका ने WHO को वित्तीय योगदान में 20% हिस्सा दिया था, जो पोलियो उन्मूलन और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य पहलों में अहम था।

 

महत्वपूर्ण प्रभाव :

 

  1. WHO पर असर : अमेरिका के जाने से WHO की वित्तीय स्थिति कमजोर होगी, जिससे पोलियो और महामारी के लिए किए जा रहे प्रयास प्रभावित हो सकते हैं।
  2. वैश्विक स्वास्थ्य नीतियों पर पड़ने वाला प्रभाव : अमेरिका के बाहर जाने से वैश्विक स्वास्थ्य नीतियों पर प्रभाव और WHO की भूमिका में कमी आएगी।
  3. अमेरिका की वैश्विक स्वास्थ्य खुफिया जानकारी पर पड़ने वाला प्रभाव : अमेरिका की वैश्विक स्वास्थ्य खुफिया जानकारी पर असर पड़ेगा, और उसके वैश्विक स्वास्थ्य निर्णयों पर प्रभाव घट सकता है।
  4. भारत के स्वास्थ्य कार्यक्रमों पर पड़ने वाला प्रभाव : WHO से अमेरिका की विदाई से भारत जैसे देशों के स्वास्थ्य कार्यक्रमों में देरी हो सकती है, विशेष रूप से HIV और तपेदिक जैसी बीमारियों पर।
  5. वैश्विक दक्षिण में बदलाव और भारत को वैश्विक नेतृत्व करने का अवसर मिलने की संभावना : अमेरिका के बाहर होने से भारत जैसे देशों को अधिक वैश्विक नेतृत्व का अवसर मिल सकता है और वे विकासशील देशों के बीच सहयोग बढ़ाने की दिशा में सक्रिय हो सकते हैं।

 

भारत उभरती अमेरिकी नीतियों के तहत सामंजस्य कैसे स्थापित कर सकता है ?

 

  1. भारत – अमेरिकी नीतियों में द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत कर समावेशी और प्रभावी कूटनीतिक रणनीतियाँ अपनाने की आवश्यकता : भारत को अपने अप्रवासी समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रभावी कूटनीतिक रणनीतियाँ अपनानी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारतीय नागरिक और प्रवासी अमेरिकी नीतियों के तहत संरक्षित रहें। द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत कर भारत अमेरिकी नीतियों में ऐसे बदलाव की वकालत कर सकता है, जो भारतीय प्रवासियों के लिए अधिक समावेशी और सहायक हों, जिससे न्यायपूर्ण और संतुलित वातावरण सुनिश्चित हो।
  2. भारत को अपने सामरिक और कूटनीतिक हितों के लिए क्वाड सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने की जरूरत : अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड गठबंधन को मजबूत करने से न केवल क्षेत्रीय स्थिरता में वृद्धि होगी, बल्कि चीन के बढ़ते प्रभाव को भी संतुलित किया जा सकेगा, जो भारत के सामरिक और कूटनीतिक हितों के लिए फायदेमंद होगा।
  3. भारत को अपने हरित परियोजनाओं के लिए वैकल्पिक वित्तपोषण एवं जलवायु परिवर्तन संकट से निपटने में नेतृत्व प्रदान करने आवश्यकता : भारत को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपनी भूमिका को बढ़ाते हुए, राष्ट्रीय सौर मिशन और पवन-सौर हाइब्रिड नीति जैसे कार्यक्रमों के तहत नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में तेज़ी लानी चाहिए। यूरोपीय संघ, जापान और पेरिस समझौते के अन्य सदस्य देशों के साथ सहयोग करके, भारत हरित परियोजनाओं के लिए वैकल्पिक वित्तपोषण सुरक्षित कर सकता है, जिससे जलवायु संकट से निपटने में मदद मिलेगी।
  4. भारत को वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता का उपयोग करने की जरूरत : भारत अपनी फार्मास्युटिकल और स्वास्थ्य सेवाओं के अनुभव का लाभ उठा सकता है, जैसा कि कोविड-19 वैक्सीन वितरण में देखा गया। अमेरिका की WHO में कम भागीदारी से उत्पन्न अंतराल को भरने के लिए, भारत अपनी विशेषज्ञता का उपयोग कर सकता है और WHO में प्रमुख पदों पर भारतीय पेशेवरों की नियुक्ति को बढ़ावा दे सकता है। इससे वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन में भारत की स्थिति मजबूत होगी।
  5. भारत को यूरोपीय संघ और BRICS के सदस्य देशों के साथ बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता : अमेरिका की नीतियों के बदलाव से प्रभावित देशों (जैसे यूरोपीय संघ और BRICS सदस्य) के साथ साझेदारी स्थापित कर, भारत सामूहिक कार्यवाही के लिए प्रभावी गठबंधन बना सकता है, जिससे वैश्विक मंचों पर उसका प्रभाव बढ़ेगा।

 

समाधान / आगे की राह :

 

 

  1. समावेशी और सहायक नीतियाँ बनाने के लिए कूटनीतिक उपाय अपनाने की जरूरत : भारत को अमेरिका के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में बदलती नीतियों के तहत भारतीय समुदाय और पेशेवरों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। भारत को वैश्विक मंचों पर सक्रिय रूप से अमेरिकी नीतियों में बदलाव के लिए आवाज उठानी चाहिए, ताकि समावेशी और सहायक नीतियाँ बनाई जा सकें।
  2. अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर विचार करने और द्विपक्षीय आर्थिक और व्यापारिक रिश्तों को बढ़ावा देने की जरूरत : भारत को व्यापारिक संबंधों को प्रगाढ़ करने के लिए अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौतों पर विचार करना चाहिए, जिससे भारतीय कंपनियाँ और उत्पाद अमेरिकी बाजार में बेहतर स्थिति में आ सकें।
  3. भारत को हरित परियोजनाओं के लिए जलवायु परिवर्तन में सक्रिय नेतृत्व करने की जरूरत : भारत को पेरिस समझौते के तहत अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को तेज़ी से पूरा करने के लिए अतिरिक्त कदम उठाने चाहिए। अमेरिका के बाहर होने के बावजूद, भारत को यूरोपीय संघ, जापान और अन्य देशों के साथ हरित परियोजनाओं के लिए साझेदारी बढ़ानी चाहिए।
  4. भारत को अपनी फार्मास्युटिकल और स्वास्थ्य सेवा क्षमताओं का अधिकतम उपयोग कर वैश्विक नेतृत्व करने की जरूरत : भारत को अपनी फार्मास्युटिकल और स्वास्थ्य सेवा क्षमताओं का अधिकतम उपयोग करना चाहिए। वैश्विक स्वास्थ्य नीति में सक्रिय रूप से भाग लेकर, विशेष रूप से WHO के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर सकता है।
  5. भारत को बहुपक्षीय साझेदारी को बढ़ावा देने की जरूरत : भारत को बहुपक्षीय मंचों जैसे BRICS, G20, और संयुक्त राष्ट्र में सक्रिय रहना चाहिए। इन मंचों के माध्यम से, भारत अमेरिका के बिना भी वैश्विक सहयोग और प्रभाव बढ़ा सकता है।

 

निष्कर्ष :

  • अमेरिका की बदलती नीतियाँ भारत के लिए चुनौतियाँ तो उत्पन्न कर सकती हैं, लेकिन यदि भारत इन परिस्थितियों का सही तरीके से सामना करता है, तो वह न केवल इन नीतियों के प्रभाव से उबर सकता है, बल्कि अपनी वैश्विक भूमिका को भी मजबूत कर सकता है।

 

स्त्रोत – पी. आई. बी एवं द हिन्दू।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. अमेरिका की हालिया नीतियों के बदलाव के बावजूद भारत किस प्रकार अपनी भूमिका को वैश्विक स्तर पर मजबूत कर सकता है?

  1. क्वाड सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देकर।
  2. जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैकल्पिक वित्तपोषण प्राप्त करके।
  3. WHO में अपनी विशेषज्ञता का अधिकतम उपयोग करके।
  4. बहुपक्षीय साझेदारी को बढ़ाकर।

नीचे दिए गए कूट के माध्यम से सही उत्तर का चयन करें।

A. केवल 1 और 3 

B. केवल 2 और 4 

C. इनमें से कोई नहीं।

D. उपरोक्त सभी।

उत्तर – D   

व्याख्या : भारत को इन सभी क्षेत्रों में सक्रिय रूप से भूमिका निभाने की जरूरत है, ताकि वह अमेरिकी नीतियों के बदलाव के बावजूद वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति को मजबूत कर सके।

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. चर्चा कीजिए कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा हाल ही में किए गए कार्यकारी आदेशों से भारत – अमेरिकी द्विपक्षीय संबंधों के तहत भारतीय पेशेवरों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ सकते हैं, और भारत इन बदलती नीतियों के तहत कैसे सामंजस्य स्थापित कर सकता है ? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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