04 Sep भारत की जीडीपी वृद्धि दर का सबसे निचले स्तर 6.7% पर पहुँचना
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के अंतर्गत ‘ भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास, समावेशी और सतत विकास , सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) , केन्द्रीय वित्त मंत्रालय , भारतीय रिजर्व बैंक , भारतीय अर्थव्यवस्था का प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र , मुद्रास्फीति , आर्थिक सुधारों की आवश्यकता ’ खंड से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में, 30 अगस्त 2024 को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि कृषि, सरकारी खर्च और सेवाओं में धीमी वृद्धि के कारण अप्रैल-जून 2024-25 में भारत की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर पांच तिमाहियों के निचले स्तर 6.7 प्रतिशत पर आ गई है।
- भारत की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की यह वृद्धि दर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के 7.1 प्रतिशत के अनुमान और पिछली तिमाही में देखी गई 7.8 प्रतिशत वृद्धि से बहुत ही कम है।
- अप्रैल-जून 2024 की अवधि में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.7% पर पहुँच गई है, जो कि पिछले कुछ वर्षों की तुलना में सबसे निचले स्तर पर है। इस मंदी का आर्थिक स्थिरता और विकास पर गहरा प्रभाव पड़ा है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी आंकड़ों से संबंधित प्रमुख तथ्य :
- भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था : पहली तिमाही में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है, जबकि चीन की अर्थव्यवस्था वर्तमान समय में धीमी हो गई है।
- केन्द्रीय वित्त मंत्रालय का रूख : पहली तिमाही में विकास की गति मजबूत बनी हुई है। मध्यम अवधि में, भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले दशक में किए गए संरचनात्मक सुधारों के आधार पर 7% से अधिक की दर से बढ़ सकती है।
- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का अनुमान : RBI ने 2024-25 के लिए GDP वृद्धि का अनुमान 7.2% से घटाकर 7.1% कर दिया है, जो मौजूदा आर्थिक अस्थिरता और संभावित जोखिमों को ध्यान में रखते हुए किया गया है।
- मजबूत घरेलू मांग के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था का मजबूत गति से बढ़ना : भारत में घरेलू मांग और पूंजीगत व्यय पर सरकारी खर्च से प्रेरित होकर, भारतीय अर्थव्यवस्था धीमी वैश्विक अर्थव्यवस्था और भू-राजनीतिक चुनौतियों के बावजूद मजबूत गति से बढ़ी है।
- द्वितीयक क्षेत्र में वृद्धि होना : वित्तीय वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में द्वितीयक क्षेत्र में 8.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसमें निर्माण (10.5 प्रतिशत), बिजली, गैस, जलापूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवाएं (10.4 प्रतिशत) और विनिर्माण (7.0 प्रतिशत) क्षेत्र शामिल हैं।
- कृषि क्षेत्र में कमजोरी का होना : चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 2% रही, जो पिछले वर्ष की पहली तिमाही के 3.7% से कम है। हालांकि, भारत में मानसून की अच्छी बारिश और खरीफ की अधिक बुवाई के कारण ग्रामीण मांग और कृषि उत्पादन के लिए अच्छा संकेत है।
- सार्वजनिक व्यय में कमी आना : भारत में लोकसभा के आम चुनाव के समय में सार्वजनिक व्यय धीमा रहा, जिसके परिणामस्वरूप अप्रैल-जून में सरकारी अंतिम उपभोग व्यय में 0.2 प्रतिशत की कमी आई है। सरकार के पूंजीगत व्यय में 35 प्रतिशत की कमी के कारण, अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकार को आगे चलकर विकास को बढ़ावा देने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे।
- उपभोग मांग में वृद्धि होना : निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) ने पहली तिमाही में 7.4 प्रतिशत की सात-तिमाही उच्च वृद्धि दर्ज की है। मुख्य आर्थिक सलाहकार के अनुसार, ग्रामीण उपभोग मांग में सुधार के साथ वृद्धि में तेजी आने की उम्मीद है और यह इस वित्त वर्ष में 6.5-7 प्रतिशत रहेगी।
भारत की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) प्रमुख चुनौतियाँ :
- आर्थिक सुधारों की आवश्यकता : वर्तमान में, आर्थिक सुधारों की गति धीमी है और इसे तेजी से लागू करने की आवश्यकता है। खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ संरचनात्मक समस्याएँ अभी भी बनी हुई हैं। सुधारों की दिशा में अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है ताकि आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहन मिल सके और दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित की जा सके। इसमें भूमि सुधार, श्रम कानूनों में सुधार, और वित्तीय क्षेत्र में सुधार शामिल हैं। इन सुधारों से निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा और रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी।
- निजी उपभोग व्यय का उच्चतम स्तर पर होना : निजी उपभोग व्यय 7.4% के उच्चतम स्तर पर है। यह अर्थव्यवस्था की प्रमुख चालक शक्ति है, और इसके स्थायित्व से आर्थिक वृद्धि को समर्थन मिलता है। हालांकि, इसे स्थिर और निरंतर बनाए रखने की आवश्यकता है, ताकि आर्थिक विकास की गति को बनाए रखा जा सके। इसके लिए रोजगार सृजन, आय में वृद्धि, और उपभोक्ता विश्वास को बढ़ावा देने वाली नीतियों की आवश्यकता है। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा विशेष योजनाओं और सब्सिडी देने का प्रावधान भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- मुद्रास्फीति : खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतें और असमान मानसून के कारण कृषि क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इससे मुद्रास्फीति में वृद्धि हो सकती है, जो उपभोक्ताओं और समग्र अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए आपूर्ति श्रृंखला में सुधार, कृषि उत्पादकता बढ़ाने के उपाय, और आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकारी हस्तक्षेप जैसे उचित नीतियों की अत्यंत आवश्यकता है।
सरकारी स्तर पर किया जाने वाला प्रयास :
- निजी निवेश से नवाचार और उत्पादकता में सुधार होना : उच्च मांग के कारण निजी कंपनियों द्वारा नई क्षमताओं में निवेश की प्रवृत्ति बढ़ेगी। इससे उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी और अर्थव्यवस्था में सकारात्मक योगदान देने की उम्मीद है। निजी निवेश से नवाचार और उत्पादकता में सुधार होगा, जो दीर्घकालिक आर्थिक विकास में सहायक होगा।
- सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय को बढ़ाने का लक्ष्य रखना : सरकार ने पूंजीगत व्यय को 17% बढ़ाकर 11.11 लाख करोड़ रुपये करने का लक्ष्य रखा है। इस वृद्धि का उद्देश्य अवसंरचना निर्माण, रोजगार सृजन, और समग्र आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना है। इस प्रकार के प्रयास से बुनियादी ढांचे में सुधार होगा और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी।
भविष्य की संभावनाएँ :
- अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक परिस्थितियों और वैश्विक बाजारों के संदर्भ में नीतिगत निर्णय लेने की आवश्यकता : भारत वित्तीय वर्ष 2024-25 में 6.5% से 7% तक की विकास दर प्राप्त कर सकता है। हालांकि, 2025-26 में विकास दर घटकर 6.5% रह सकती है। भविष्य में वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों और घरेलू नीतियों का इस पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा। अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक परिस्थितियों और वैश्विक बाजारों की गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए नीतिगत निर्णय लेने की आवश्यकता होगी।
- नीतिगत स्तर पर तत्काल सार्थक सुधार करने की आवश्यकता : अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की गीता गोपीनाथ के अनुसार, नीति निर्माताओं को तत्काल सार्थक सुधार करने की आवश्यकता है। इससे आर्थिक स्थिरता और विकास की संभावनाओं को बढ़ावा मिलेगा। नीतिगत सुधारों के माध्यम से भारत में संरचनात्मक समस्याओं को हल किया जा सकता है और आर्थिक वृद्धि की दिशा को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
समाधान और आगे की राह :
- प्रशासनिक ढांचे में सुधार और भ्रष्टाचार का उन्मूलन करना : प्रशासनिक ढांचे में सुधार और भ्रष्टाचार उन्मूलन से आर्थिक वातावरण में सुधार होगा और निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा। फलतः आर्थिक गतिविधियों में सुधार होगा।
- नवाचार और तकनीकी विकास : अनुसंधान और विकास (R&D) में निवेश और तकनीकी नवाचार से उत्पादकता में वृद्धि होगी और नई औद्योगिक संभावनाओं के द्वार खुलेंगे।
- नीतिगत स्तर पर सुधार करना : आर्थिक नीतियों में सुधार, जैसे कि सरल कर प्रणाली, निवेश प्रोत्साहन योजनाएँ और व्यापार में सुधार, से विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- न्यायपालिका की दक्षता में सुधार करना : न्यायपालिका की गति और कार्यकुशलता को बढ़ाने से कानूनी विवादों के निपटारे में सुधार होगा और व्यापारिक वातावरण में सुधार होगा।
निष्कर्ष :
- भारत की अर्थव्यवस्था वर्तमान में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी है। जीडीपी वृद्धि दर का गिरना और इसके प्रभावों को ध्यान में रखते हुए, सुधार की आवश्यकता स्पष्ट है। आर्थिक स्थिरता और दीर्घकालिक विकास के लिए, नीति सुधार, न्यायपालिका की दक्षता में सुधार और बेहतर प्रशासनिक ढांचे की आवश्यकता है। इन सुधारों से विकास की संभावनाओं को बढ़ावा मिलेगा और युवाओं के लिए लाभकारी रोजगार के अवसर पैदा होंगे। आर्थिक नीति में सुधार और निवेश के सही दिशा-निर्देश से भारत की अर्थव्यवस्था को स्थिर और संतुलित विकास की ओर अग्रसर किया जा सकता है। वर्तमान समय में सकारात्मक संकेतों के बावजूद, चुनौतियाँ और अनिश्चितताएँ मौजूद हैं। ऐसे में, उचित आर्थिक नीतियों और नवाचार सुधारों के माध्यम से इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है और भारत के दीर्घकालिक आर्थिक विकास को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
स्त्रोत – द हिन्दू एवं पीआईबी।
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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- अंतिम उपभोग व्यय में 0.2 प्रतिशत की कमी का मुख्य कारण सार्वजनिक व्यय का धीमा होना है।
- खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमत और असमान मानसून के कारण कृषि क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने से मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है।
- सरल कर प्रणाली, निवेश प्रोत्साहन योजनाएँ और व्यापार नीतियों में सुधार करने से अर्थव्यवस्था को स्थिर और संतुलित कर बढ़ाया जा सकता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
A. केवल 1 और 3
B. केवल 2 और 4
C. इनमें से कोई नहीं।
D. उपरोक्त सभी।
उत्तर – D
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. हाल ही में जारी त्रैमासिक सकल घरेलू उत्पाद रिपोर्ट के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान घट रहा है। इसे देखते हुए कैबिनेट ने डिजिटल कृषि मिशन को मंजूरी दी है, डिजिटल कृषि मिशन की विशेषताओं पर चर्चा करते हुए यह बताईए कि डिजिटल कृषि मिशन भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र के योगदान को बढ़ाने में कैसे मदद करेगा ? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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