भारत के अंतरिक्ष मिशनों की नई उड़ान : इसरो के तीसरे लॉन्च पैड को केन्द्रीय कैबिनेट की मंजूरी

भारत के अंतरिक्ष मिशनों की नई उड़ान : इसरो के तीसरे लॉन्च पैड को केन्द्रीय कैबिनेट की मंजूरी

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 के अंतर्गत ‘ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी , अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी , विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ ’ खण्ड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान , सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) , भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन , SHAR (श्रीहरिकोटा रेंज) ’ खण्ड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ? 

 

 

  • हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में तीसरे लॉन्च पैड (Third Launch Pad – TLP) की स्थापना करने के लिए स्वीकृति दे दी है। 
  • इस तीसरे लॉन्च पैड की क्षमता ऐसी होगी कि यह निम्न भू कक्षा में 30,000 टन वजन वाले अंतरिक्ष यानों को प्रक्षिप्त कर सकेगा। 
  • इसे विशेष रूप से NGLV, अर्ध-क्रायोजेनिक चरणों वाले LVM3 यानों और स्केल-अप NGLV विन्यासों को सहायता करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  • भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के अनुसार यह परियोजना राष्ट्रीय महत्व की है।

 

भारतीय अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली की वर्तमान स्थिति :

 

  1. लॉन्च पैड्स पर निर्भरता : वर्तमान में, भारतीय अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली मुख्यतः दो प्रमुख लॉन्च पैड्स पर ही निर्भर करती है।
  2. प्रथम लॉन्च पैड (FLP) : इसे लगभग 30 वर्ष पहले PSLV के लिए स्थापित किया गया था और यह PSLV एवं SSLV को लॉन्च करने में सहायक है।
  3. द्वितीय लॉन्च पैड (SLP) : यह विशेष रूप से GSLV और LVM3 के लिए निर्मित किया गया था, लेकिन इसको PSLV के लिए वैकल्पिक समर्थन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
  4. SLP की परिचालन क्षमता : यह पैड पिछले 20 वर्षों से कार्यरत है और इसी लॉन्च पैड पर ही चंद्रयान-3 जैसे महत्वपूर्ण मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था। इसके साथ – ही – साथ, भारत की आगामी गगनयान मिशन को प्रमोचन करने की तैयारियाँ भी इसी लॉन्च पैड से की जा रही हैं।

 

सतीश धवन का परिचय :

 

  • सतीश धवन, जो श्रीनगर में जन्मे थे, भारत के प्रसिद्द रॉकेट वैज्ञानिक थे और उन्हें ‘ प्रायोगिक द्रव गतिकी के जनक ( Father of Experimental Fluid Dynamics ) ’ के रूप में भी जाना जाता है। 
  • सन 1972 ई. में उन्होंने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक विक्रम साराभाई के बाद इसरो के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली थी। 
  • उनके मार्गदर्शन में इसरो ने INSAT, IRS और PSLV जैसी प्रमुख प्रणालियाँ स्थापित कीं, जिससे भारत का स्थान अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में अग्रणी राष्ट्र के रूप में स्थापित हुआ।

 

सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC SHAR) :

 

  • सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित है, जो पुलिकट झील और बंगाल की खाड़ी के बीच एक द्वीप पर स्थित है।
  • यह इसरो का प्रमुख अंतरिक्ष बंदरगाह है और अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों के लिए उपग्रह एवं प्रक्षेपण यान मिशनों हेतु विश्वस्तरीय प्रक्षेपण सुविधाएँ प्रदान करता है।
  • नाम परिवर्तन : SHAR जिसे पहले (श्रीहरिकोटा रेंज) के नाम से जाना जाता था, इसका नाम 2002 में इसरो के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सतीश धवन के सम्मान में बदल दिया गया।
  • प्रारंभिक परिचालन : SDSC SHAR ने 9 अक्टूबर, 1971 को अपना पहला मिशन ‘ रोहिणी-125 ’ साउंडिंग रॉकेट लॉन्च करके संचालन की शुरुआत की थी।
  • प्रक्षेपण स्थल चयन : इस स्थान का चयन 1960 के दशक में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक विक्रम साराभाई के मार्गदर्शन में किया गया था।

 

तीसरे लॉन्च पैड (TLP) का परिचय :

 

  • उद्देश्य : TLP का मुख्य उद्देश्य श्रीहरिकोटा में एक उन्नत लॉन्च अवसंरचना स्थापित करना है, जो ISRO के आगामी उन्नत प्रक्षेपण वाहनों (NGLV) को समर्थन प्रदान करेगा।
  • भविष्य में भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान एवं अंतरिक्ष अन्वेषण मिशनों के लिए अतिरिक्त लॉन्च क्षमता प्रदान करने में सहायक : यह पैड दूसरा लॉन्च पैड के बैकअप के रूप में कार्य करेगा और भविष्य में भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान एवं अंतरिक्ष अन्वेषण मिशनों के लिए अतिरिक्त लॉन्च क्षमता प्रदान करेगा।

 

श्रीहरिकोटा को प्रक्षेपण स्थल के रूप में चुनने का मुख्य कारण : 

 

  1. पूर्वी तट पर अवस्थिति : श्रीहरिकोटा का पूर्वी तट पर स्थित होना रॉकेटों को पूर्व दिशा में प्रक्षेपित करने के लिए आदर्श बनाता है। इससे पृथ्वी के घूर्णन का लाभ उठाकर रॉकेट को अतिरिक्त वेग प्राप्त होता है, जिससे प्रक्षेपण में लगभग 450 मीटर/सेकंड की वृद्धि होती है, जो पेलोड की क्षमता को बढ़ाता है।
  2. भूमध्य रेखा के निकट होना : भूस्थिर उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए यह स्थल उपयुक्त है, क्योंकि पृथ्वी के भूमध्य रेखा के निकट होने से प्रक्षेपण और अधिक कुशल बनता है। प्रक्षेपण स्थल का भूमध्य रेखा के करीब होना, प्रक्षेपण की गति और क्षमता को बेहतर बनाता है।
  3. निर्जन क्षेत्र और समुद्र के पास स्थित होना : श्रीहरिकोटा का स्थान समुद्र के निकट और कम जनसंख्या वाले क्षेत्र में होने के कारण रॉकेट के गिरने के बाद सुरक्षित रूप से समुद्र में गिरने की संभावना रहती है। इससे उड़ान के दौरान किसी भी दुर्घटना के खतरे से बचाव होता है, क्योंकि रॉकेट के अलग हुए हिस्से महासागर में गिरते हैं, जो श्रीहरिकोटा नामक जगह पर न केवल सुरक्षित है, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी जोखिम मुक्त है।

 

इसरो के तीसरे लॉन्च पैड कार्यक्रम की कार्यान्वयन रणनीति :

 

  1. सार्वभौमिक डिज़ाइन : TLP को विभिन्न वाहन विन्यासों का समर्थन देने के लिए डिज़ाइन किया जाएगा, जिसमें NGLV, LVM3 के सेमिक्रायोजेनिक स्टेज और NGLV के उन्नत संस्करण शामिल हैं।
  2. परियोजना में उद्योग की भागीदारी को सुनिश्चित किया जाना : इस परियोजना में इसरो के पिछले अनुभवों का उपयोग करते हुए उद्योग को अधिकतम सहयोग दिया जाएगा।
  3. मौजूदा सुविधाओं का पूर्ण रूप से उपयोग करना : TLP मौजूदा लॉन्च कॉम्प्लेक्स की सुविधाओं का पूर्ण रूप से लाभ उठाएगा।
  4. परियोजाना को पूरा करने की समय सीमा : इस परियोजना को 4 वर्षों  या (48 महीनों) में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
  5. परियोजना की लागत और वित्तीय संसाधनों की पूर्ति : इसरो के इस महत्वकांक्षी परियोजना के लिए ₹3,984.86 करोड़ की लागत का अनुमान है, जिसमें लॉन्च पैड और अन्य संबंधित सुविधाओं की स्थापना करना शामिल है।
  6. लाभार्थियों की संख्या : यह परियोजना उच्च प्रक्षेपण आवृत्तियों को सक्षम करके तथा मानव अंतरिक्ष उड़ान और अंतरिक्ष खोज अभियानों को शुरू करने की राष्ट्रीय क्षमता को सक्षम करके भारतीय अंतरिक्ष इकोसिस्‍टम को बढ़ावा देगी।

 

इसरो के तीसरे लॉन्च पैड कार्यक्रम का महत्व और भविष्य की कार्यनीति :

 

  1. यह भारत की लॉन्च क्षमता को बढ़ाकर अधिक बार और अधिक प्रभावशाली मिशनों के लिए तैयार करेगा।
  2. यह मानव अंतरिक्ष उड़ान और उन्नत अंतरिक्ष अन्वेषण मिशनों के लिए आवश्यक राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ करेगा।
  3. भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर और बढ़ावा मिलेगा, साथ ही प्रौद्योगिकी विकास में तेजी आएगी।
  4. भारत के भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों में, जैसे कि 2040 तक चंद्रमा पर मानव लैंडिंग और 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) की स्थापना, भारी प्रक्षेपण यानों की आवश्यकता होगी, जिन्हें मौजूदा लॉन्च पैडों पर समायोजित नहीं किया जा सकता है।
  5. 2024 में वाणिज्यिक और छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए ISRO के दूसरे रॉकेट लॉन्चपोर्ट की नींव रखी जाएगी, जो तमिलनाडु के कुलसेकरपट्टिनम में स्थित होगा, और इससे श्रीलंका के ऊपर डॉगलेग पैंतरेबाज़ी से बचने में मदद मिलेगी।

 

आगे की राह :

 

 

  • भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र और उन्नत अंतरिक्ष अन्वेषण मिशन निरंतर उन्नति की ओर अग्रसर है, और श्रीहरिकोटा में तीसरे लॉन्च पैड का निर्माण इस दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा। यह कदम आगामी अंतरिक्ष अभियानों को तेज़ी से प्रक्षिप्त करने की क्षमता प्रदान करेगा, जिससे भारत के आगामी मानव अंतरिक्ष उड़ान और उन्नत अंतरिक्ष अन्वेषण मिशनों की सफलता और गति में और अधिक वृद्धि करेगा।

 

स्रोत – पीआईबी एवं इंडियन एक्सप्रेस। 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. इसरो के तीसरे लॉन्च पैड (TLP) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. इसरो के तीसरे लॉन्च पैड (TLP) को भविष्य में भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान और अंतरिक्ष अन्वेषण मिशनों के लिए अतिरिक्त लॉन्च क्षमता प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
  2. TLP केवल PSLV और GSLV वाहनों के लिए बनाए गए हैं।
  3. तीसरे लॉन्च पैड (TLP) का निर्माण 10 वर्षों में पूरा होने का अनुमान है।
  4. यह लॉन्च पैड NGLV, अर्ध-क्रायोजेनिक चरणों वाले LVM3 यानों और उनके उन्नत संस्करणों का समर्थन करेगा।

उपर्युक्त में से कौन सा कथन सही है?

A. केवल 1 और 3 

B. केवल 1 और 4 

C. केवल 2 और 3 

D. केवल 2 और 4 

उत्तर – B

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. इसरो के तीसरे लॉन्च पैड (TLP) के मुख्य उद्देश्य, इसकी विशेषताएँ, कार्यान्वयन रणनीति और संभावित लागत को रेखांकित करते हुए, यह चर्चा कीजिए कि इस परियोजना का भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के भविष्य के मिशनों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 ) 

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