भारत-तालिबान संबंध : दक्षिण एशिया के भू-राजनीति में नया समीकरण

भारत-तालिबान संबंध : दक्षिण एशिया के भू-राजनीति में नया समीकरण

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ भारत – तालिबान संबंध , अंतर्राष्ट्रीय संबंध , महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठन और भारत के हित्तों से संबंधित महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संधि और समझौते , भारत और उसके पड़ोसी देशों के साथ संबंध , अफगानिस्तान को लेकर भारत की रणनीति में बदलाव ’ खण्ड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ सार्क , चाबहार बंदरगाह , हमास , अफगानिस्तान – भारत मैत्री बांध , ज़रीन – डेलारम राजमार्ग , इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (MSKP) ’ खण्ड से संबंधित है। )

 

खबरों में क्यों ? 

 

  • हाल ही में, भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने दुबई में तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की। इस उच्च स्तरीय बैठक और मुलाकात ने भारत की विदेश नीति में नए बदलाव का संकेत दिया है।
  • जनवरी 2025 में भारतीय विदेश सचिव और तालिबान के विदेश मंत्री के बीच हुई यह मुलाकात अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत और तालिबान के बीच सबसे उच्च स्तरीय वार्ता थी। 
  • वर्ष 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने से दक्षिण एशियाई राजनीति में बड़ा बदलाव आया है। भारत ने इस नई परिस्थिति में मानवीय संकट और क्षेत्रीय हितों का संतुलन साधते हुए व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया, जो उसकी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं और वैश्विक राजनीति में अपनी स्थिति को मजबूत करने की दिशा में था।

 

पृष्ठभूमि :

 

  • तालिबान का पुनरुत्थान : वर्ष 2021 में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान में फिर से सत्ता संभाली, जिससे दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव आया। इस घटनाक्रम भारत सहित अन्य क्षेत्रीय देशों को अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया।
  • भारत का संतुलित दृष्टिकोण और अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करते हुए संतुलित प्रतिक्रिया देना : भारत ने इस चुनौतीपूर्ण स्थिति में संतुलित दृष्टिकोण अपनाया। भारत ने अफगानिस्तान में मानवीय संकट को देखते हुए सहायता प्रदान की, और साथ ही तालिबान शासन के साथ अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करते हुए संवाद बनाए रखा।
  • भारत द्वारा औपचारिक रूप से तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देना : भारत ने औपचारिक रूप से तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी, लेकिन काबुल में एक तकनीकी मिशन स्थापित कर अपनी उपस्थिति को बनाए रखा। इस जुड़ाव ने भारत को अफगानिस्तान में मानवीय सहायता प्रदान करते हुए अपनी रणनीतिक सुरक्षा को बनाए रखने का अवसर प्रदान किया है।

 

दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक गतिशीलता और पाकिस्तान की भूमिका :

 

  1. दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय राजनीतिक और सुरक्षा परिदृश्य में बदलाव आना : तालिबान के सत्ता में आने से क्षेत्रीय राजनीतिक और सुरक्षा परिदृश्य में बदलाव आया, जिससे भारत, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के संबंध प्रभावित हुए।
  2. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को तालिबान का समर्थन और पाकिस्तान : पाकिस्तान में सक्रिय तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को तालिबान का समर्थन प्राप्त है, जो पाकिस्तान के लिए गंभीर सुरक्षा खतरा बन चुका है। पाकिस्तान ने हाल ही में टीटीपी के ठिकानों पर हवाई हमले किए, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है।
  3. भारत की चिंता : भारत ने पाकिस्तान के हवाई हमलों की निंदा करते हुए इसे क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बताया था।
  4. तालिबान और आतंकवाद के बीच का गठजोड़ : अफगानिस्तान से संचालित 6,000 से अधिक टीटीपी लड़ाके और तालिबान का अल-कायदा के साथ संबंध क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बने हुए हैं। पाकिस्तान ने सोवियत कब्जे के दौरान तालिबान का समर्थन किया था, लेकिन आज तालिबान पाकिस्तान के लिए एक नई सुरक्षा चुनौती बन गया है।

 

तालिबान के प्रति भारत का रणनीतिक दृष्टिकोण :

 

  1. भारत द्वारा अफगानिस्तान को मानवीय सहायता प्रदान करना : भारत अफगानिस्तान को महत्वपूर्ण मानवीय सहायता प्रदान करता रहा है, जिसमें COVID-19, पोलियो, तपेदिक के लिए दवाएं, टीके, शीतकालीन कपड़े, स्वच्छता किट और खाद्य सामग्री शामिल हैं। वित्तीय वर्ष 2024-25 के केंद्रीय बजट में अफगानिस्तान के लिए 200 करोड़ रुपये की मानवीय सहायता निर्धारित की गई है। मिश्री-मुत्ताकी वार्ता के बाद, भारत ने अफगानिस्तान के स्वास्थ्य और शरणार्थी पुनर्वास क्षेत्र के लिए अतिरिक्त सहायता देने का वादा किया है।
  2. भारत की क्षेत्रीय नीति में पड़ोसी देशों के साथ साझेदारी को प्राथमिकता देना : भारत की क्षेत्रीय नीति में पड़ोसी देशों के साथ साझेदारी को प्राथमिकता दी गई है। ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह के माध्यम से सहयोग किया जाता है, जो भारत को पाकिस्तान को दरकिनार कर अफगानिस्तान को सहायता और व्यापार पहुंचाने का एक रणनीतिक मार्ग प्रदान करता है। यह सहयोग अफगानिस्तान में भारत के प्रभाव को बढ़ाता है और ईरान के साथ क्षेत्रीय मध्यस्थता की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  3. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह का समर्थन किया जाना और भारत – अफगानिस्तान के बीच का आर्थिक संबंध : भारत ने अफगानिस्तान के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत करने के लिए चाबहार बंदरगाह का समर्थन किया है, जिससे अफगानिस्तान को आर्थिक विकास करने के अनेक अवसर मिलते हैं। भारत का यह कदम अफगानिस्तान और क्षेत्र के साथ आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देता है।
  4. भारत द्वारा सांस्कृतिक कूटनीति और सॉफ्ट पावर का उपयोग करना : भारत की सांस्कृतिक कूटनीति अफगानिस्तान के साथ रिश्तों को मजबूती प्रदान करती है। अफगानिस्तान में क्रिकेट की लोकप्रियता भारत के लिए युवाओं से जुड़ने का एक महत्वपूर्ण अवसर है, खासकर इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के माध्यम से। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के जरिए भारत ने 2021 से 3,000 से अधिक छात्रवृत्तियां अफगान छात्रों को दी हैं, जिससे दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंध मजबूत हुए हैं। इन पहलों से भारत की सॉफ्ट पावर बढ़ी है और अफगानिस्तान में भारत के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है।

 

भारत का तालिबान के साथ जुड़ाव से उत्पन्न चुनौतियाँ और अवसर :

 

भारत के लिए प्रमुख चुनौतियाँ :

 

  1. क्षेत्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएँ : आतंकवादी समूह जैसे अल-कायदा, टीटीपी और आईएसकेपी की उपस्थिति क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बनती है, जिससे भारत के कूटनीतिक प्रयासों में कठिनाइयाँ आती हैं।
  2. पाकिस्तान का प्रभाव : पाकिस्तान द्वारा तालिबान और अन्य आतंकवादी समूहों को समर्थन देने से क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ रही है, खासकर डूरंड लाइन के मुद्दे पर। डूरंड लाइन को तालिबान द्वारा मान्यता नहीं दी गई है, जिससे पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्तों में तनाव पैदा हो रहा है।
  3. तालिबान की आंतरिक नीतियाँ : तालिबान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों, मानवाधिकारों और सख्त इस्लामी कानून को लेकर विवाद बढ़े हुए हैं। इन नीतियों की वैश्विक आलोचना हो रही है, जिससे भारत के संबंधों पर असर पड़ सकता है।

 

भारत के लिए प्रमुख अवसर :

 

  1. भारत के द्वारा अफगानिस्तान के साथ अपनी पारंपरिक संबंधों को सुदृढ़ करने का महत्वपूर्ण अवसर : अफगानिस्तान और भारत के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध हैं। भारत अफगानिस्तान के साथ अपनी परियोजनाओं और मानवीय सहायता को बढ़ाकर इन संबंधों को और मजबूत कर सकता है।
  2. अफगानिस्तान में पाकिस्तान तथा चीन के प्रभाव को संतुलित करने का अवसर प्राप्त कर क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान देना : तालिबान के साथ जुड़कर, भारत क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है और अफगानिस्तान में पाकिस्तान तथा चीन के प्रभाव को संतुलित करने का अवसर प्राप्त कर सकता है।
  3. भारत की “एक्ट वेस्ट” नीति के विस्तार करने का अवसर : अफगानिस्तान का भौगोलिक स्थान भारत की “एक्ट वेस्ट” नीति के लिए महत्वपूर्ण है। इस नीति के तहत अफगानिस्तान को शामिल करने से भारत की मध्य एशिया और पश्चिम एशिया में उपस्थिति और प्रभाव बढ़ेगा।
  4. भारत द्वारा अफगानिस्तान के बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण निवेश किया जाना : भारत ने अफगानिस्तान के बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण निवेश किया है, जिसने अफगानिस्तान के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है। इसमें शामिल प्रमुख परियोजनाएँ निम्नलिखित है – 
  5. सलमा बांध : इसे अफगान-भारत मैत्री बांध के रूप में जाना जाता है, 2016 में उद्घाटित इस परियोजना से अफगानिस्तान की बिजली उत्पादन क्षमता बढ़ती है और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा मिलता है। 
  6. ज़रंज-देलाराम राजमार्ग : भारत के सीमा सड़क संगठन द्वारा निर्मित, यह राजमार्ग अफगानिस्तान को ईरान के चाबहार बंदरगाह से जोड़ता है, एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग प्रदान करता है। यह बुनियादी ढांचा परियोजना वैश्विक बाजारों के साथ अफगानिस्तान की कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है।

 

अफगानिस्तान के साथ भारत का जुड़ाव क्यों महत्वपूर्ण है?

 

  • भारत को मध्य एशिया तक अपनी पहुँच को सुनिश्चित करना तथा भू – राजनीतिक हित : भारत को अफगानिस्तान में अपने प्रभाव को बनाए रखना आवश्यक है ताकि पाकिस्तान के क्षेत्रीय प्रभाव का मुकाबला किया जा सके और मध्य एशिया तक अपनी पहुँच को सुनिश्चित किया जा सके।
  • अफगानिस्तान में बढ़ती अस्थिरता से पूरे दक्षिण एशिया में अशांति फैलने का खतरा : भारत अफगानिस्तान में स्थिरता को महत्वपूर्ण मानता है, क्योंकि इससे पूरे दक्षिण एशिया में शांति बनाए रखने में मदद मिलती है।
  • निवेशों का संरक्षण और उसे सुरक्षित रखने की कोशिश : भारत ने अफगानिस्तान में विभिन्न बुनियादी ढाँचे और विकास परियोजनाओं में निवेश किया है। इन निवेशों को भविष्य में सुरक्षित रखना भारत के दीर्घकालिक हितों के लिए जरूरी है।

 

आगे की राह :

 

 

  1. दीर्घकालिक और महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर वित्तीय निवेश करना : भारत को अफगानिस्तान की दीर्घकालिक सहायता के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और मानवीय राहत जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इन परियोजनाओं का रणनीतिक मूल्यांकन करके उनका सही तरीके से कार्यान्वयन किया जाना चाहिए।
  2. अल्पसंख्यकों के अधिकारों और लोकतांत्रिक नेतृत्व को बढ़ावा देना : भारत को अफगान नागरिक समाज के साथ सक्रिय रूप से जुड़कर महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को बढ़ावा देना चाहिए। भारत द्वारा उठाया जाने वाला यह कदम अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने में मदद करेगा।
  3. व्यापार पहुँच के लिए सार्क मंच का उपयोग करना : भारत को सार्क मंच का उपयोग करके अफगानिस्तान तक व्यापार पहुँच बढ़ाने के विकल्प तलाशने चाहिए। इससे दोनों देशों को आर्थिक लाभ होगा और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
  4. विमर्श को बढ़ावा देने पर जोर देने की आवश्यकता : अफगानिस्तान के लोगों की चिंताओं को समझते हुए, भारत को शैक्षिक वीजा को फिर से शुरू करने के प्रयास करने चाहिए। इससे भारत और अफगानिस्तान के बीच अच्छे रिश्ते और शिक्षा के अवसर बढ़ेंगे।

 

निष्कर्ष :

  1. भारत का तालिबान के साथ जुड़ाव एक जटिल भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में व्यावहारिक प्रतिक्रिया के रूप में है।
  2. भारत ने तालिबान को कभी भी औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है, लेकिन इसकी बहुआयामी नीति – मानवीय सहायता, क्षेत्रीय साझेदारी और सांस्कृतिक कूटनीति – भारत की अफगानिस्तान के प्रति प्रतिबद्धता और क्षेत्रीय हितों को दर्शाती है।
  3. आतंकवादी समूहों, पाकिस्तान के प्रभाव और तालिबान की विवादास्पद नीतियों के बावजूद, भारत की सक्रिय कूटनीति एक रचनात्मक जुड़ाव का ढांचा तैयार करती है।
  4. भारत अफगानिस्तान के कल्याण और क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान देने के साथ अपने रणनीतिक हितों को सुरक्षित रखना चाहता है।
  5. अफगानिस्तान में तालिबान शासन के स्थायित्व के लिए भारत को अपनी “एक्ट वेस्ट” नीति के तहत कूटनीतिक, आर्थिक और मानवीय पहुँच का विस्तार करना चाहिए।
  6. भारत को क्षेत्रीय और वैश्विक चुनौतियों का सामना करते हुए एक संतुलित और स्थिर दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

 

स्त्रोत – पीआईबी एवं द हिन्दू। 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत का तालिबान के साथ जुड़ाव किस कारण से महत्वपूर्ण है? 

  1. भारत को अफगानिस्तान में अपने प्रभाव को बनाए रखने की आवश्यकता है।
  2. अफगानिस्तान में स्थिरता से पूरे दक्षिण एशिया में शांति बनी रहती है।
  3. भारत ने अफगानिस्तान में अपने निवेशों को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है।
  4. तालिबान का समर्थन भारत के लिए चीन के प्रभाव को बढ़ाने का अवसर है।

निम्नलिखित विकल्पों में से कौन सा विकल्प सही है?

A. केवल 1 और 2 

B. केवल 2 और 4 

C. केवल 1 और 3 

D. केवल 2 और 3

उत्तर – A

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत और तालिबान के बीच के संबंधों के संदर्भ में, भारत की विदेश नीति में हुए बदलाव, अफगानिस्तान में भारत के मानवीय सहायता, क्षेत्रीय साझेदारी, और सांस्कृतिक कूटनीति के उपायों को ध्यान में रखते हुए, भारत अपने दीर्घकालिक रणनीतिक हितों को कैसे सुनिश्चित कर सकता है और तालिबान शासन के साथ अपने संबंधों को कैसे संतुलित रख सकता है? तर्कसंगत व्याख्या कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 ) 

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