भारत- फ्राँस सामरिक वार्ता : क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा की नई दिशा और प्रभाव

भारत- फ्राँस सामरिक वार्ता : क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा की नई दिशा और प्रभाव

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ अंतर्राष्ट्रीय संबंध , महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठन और भारत के हित्तों से संबंधित महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संधि और समझौते , भारत और फ्राँस के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ भारत – प्रशांत क्षेत्र, भारत और फ्राँस के बीच होने वाले प्रमुख संयुक्त रक्षा एवं सैन्य अभ्यास , भारत – फ्राँस संबंध , नीली अर्थव्यवस्था और महासागरीय शासन ’ खंड से संबंधित है। )

    

खबरों में क्यों ?

 

 

  • हाल ही में, भारत और फ्राँस के बीच एक महत्वपूर्ण सामरिक वार्ता का आयोजन किया गया, जिसमें फ्राँसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल के साथ मुलाकात की। 
  • इस महत्वपूर्ण सामरिक बैठक में भारत के शांति प्रयासों की सराहना की गई और वैश्विक कूटनीति में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी चर्चा की गई।
  • फ्राँसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने वैश्विक स्तर पर बदलती भू-राजनीति के संदर्भ में भारत के शांति प्रयासों की प्रशंसा की, जो भारत की बढ़ती कूटनीतिक स्थिति को दर्शाता है। 
  • भारत और फ्राँस के बीच हुए इस वार्ता में राफेल-एम लड़ाकू विमानों की लागत में कमी लाने और सैन्य क्षमताओं को सुदृढ़ करने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया।
  • यह सामरिक वार्ता भारत और फ्राँस के बीच संबंधों को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो दोनों देशों की रक्षा और सुरक्षा क्षमताओं को बढ़ाने में सहायक साबित होगी।

 

इस सामरिक वार्ता की मुख्य बातें : 

 

  1. होराइज़न 2047 प्रतिबद्धता : भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) ने भारत की होराइज़न 2047 पहल के प्रति प्रतिबद्धता दोहराई, जिसका उद्देश्य भारत-फ्राँस संबंधों को मज़बूत करना है।
  2. रूस-यूक्रेन संघर्ष में भारत की मध्यस्थता की भूमिका और शांति पहल को मान्यता देना : फ्राँसीसी राष्ट्रपति ने रूस-यूक्रेन संघर्ष में भारत की मध्यस्थता की भूमिका को स्वीकारते हुए शांति स्थापना में भारत-फ्राँस के प्रयासों की सराहना की।
  3. द्विपक्षीय रक्षा एवं अंतरिक्ष सहयोग : फ्राँसीसी सशस्त्र बल के साथ वार्ता में राफेल मरीन जेट, स्कॉर्पीन पनडुब्बियाँ और राफेल जेट में स्वदेशी हथियारों के एकीकरण पर चर्चा हुई। इसके साथ – ही साथ फ्रांस और भारत के साथ रक्षा संबंधों को सुदृढ़ करने और अंतरिक्ष सहयोग को और अधिक विस्तार देने पर जोर दिया गया। 
  4. होराइजन 2047 रोडमैप : यह पहल 2047 तक फ्रांस-भारत संबंधों का एक विस्तृत रोडमैप तैयार करने पर केंद्रित है। यह वर्ष भारत की स्वतंत्रता के 100 वर्ष, राजनयिक संबंधों की एक शताब्दी और भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी के 50 वर्ष पूरे होने का प्रतीक है। 
  5. वर्ष 2047 तक भारत और फ्राँस के बीच के द्विपक्षीय संबंधों के लिए रोडमैप की रूपरेखा : इस पहल से 2047 तक भारत और फ्राँस के बीच के द्विपक्षीय संबंधों के लिए उस रोडमैप की रूपरेखा तय की गई है, जिसमें रक्षा, अंतरिक्ष, असैन्य परमाणु ऊर्जा, नवीकरणीय संसाधन, साइबरस्पेस, डिजिटल प्रौद्योगिकी, आतंकवाद-रोधी, समुद्री सुरक्षा, संयुक्त रक्षा अभ्यास और नीली अर्थव्यवस्था में सहयोग बढ़ाने का उद्देश्य है।

 

भारत और फ्राँस के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्र : 

 

  1. रक्षा साझेदारियाँ : फ्राँस ने भारत को कई प्रमुख रक्षा प्रणालियाँ प्रदान की हैं, जिसमें राफेल विमानों का सौदा और 26 मरीन विमानों की खरीद शामिल हैं। इसके अलावा, फ्राँस ने तकनीकी हस्तांतरण के माध्यम से भारत को छह स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियाँ बनाने में सहायता की है, और अब तीन और पनडुब्बियों की खरीद की प्रक्रिया चल रही है।
  2. रणनीतिक साझेदारी : भारत और फ्राँस के बीच गहन सांस्कृतिक, व्यापारिक और आर्थिक संबंध हैं। वर्ष 1998 में स्थापित इस रणनीतिक साझेदारी ने विभिन्न क्षेत्रों में घनिष्ठ और बहुआयामी संबंध विकसित किए हैं।
  3. समुद्री और सामुद्रिक सहयोग : भारत और फ्राँस के बीच समुद्री सहयोग नीली अर्थव्यवस्था और महासागरीय शासन पर आधारित है, जिसे वर्ष 2022 में अपनाया गया था।
  4. भारत और फ्राँस के बीच द्विपक्षीय संयुक्त सैन्य अभ्यास : भारत और फ्राँस दोनों देशों के बीच विभिन्न संयुक्त अभ्यास आयोजित किए जाते हैं, जिसमें अभ्यास शक्ति (थल सेना), अभ्यास वरुण (नौसेना), और अभ्यास गरुड़ (वायु सेना) शामिल है।
  5. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के तहत आर्थिक सहयोग : फ्राँस भारत के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का एक प्रमुख स्रोत है, जहाँ 1,000 से अधिक फ्राँसीसी कंपनियाँ कार्यरत हैं। अप्रैल 2000 से दिसंबर 2023 तक फ्राँस ने 10.84 बिलियन अमेरिकी डॉलर का FDI योगदान दिया है। जिससे यह भारत में 11वें सबसे बड़े विदेशी निवेशक के रूप में स्थान बना रहा है।
  6. असैन्य परमाणु सहयोग : वर्ष 2008 में असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। फ्राँस जैतापुर परमाणु विद्युत परियोजना के विकास में शामिल है। इसके अतिरिक्त, दोनों देश शोर्ट मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) और उन्नत मॉड्यूलर रिएक्टर (AMR) पर साझेदारी कर रहे हैं।

 

भारत – फ्राँस संबंधों की मुख्य चुनौतियाँ : 

 

  1. दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता (FTA) में ठहराव उत्पन्न होना : भारत और फ्राँस के बीच मुक्त व्यापार समझौते का अभाव उनकी व्यापारिक क्षमता को पूरी तरह से उपयोग करने में बाधा उत्पन्न करता है।
  2. रक्षा और सुरक्षा प्राथमिकताओं में भिन्नता का होना : भारत और फ्राँस दोनों ही देशों में मजबूत रक्षा साझेदारी के बावजूद, दोनों देशों के बीच की विभिन्न प्राथमिकताएँ कभी-कभी एक दूसरे के दृष्टिकोण में मतभेद उत्पन्न कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, भारत का गुटनिरपेक्ष रुख और क्षेत्रीय दृष्टिकोण फ्राँस के वैश्विक हितों के साथ टकरा सकता है, जैसा कि रूस-यूक्रेन संघर्ष पर उनके भिन्न दृष्टिकोण से स्पष्ट होता है।
  3. बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) संबंधी चिंताएँ :  फ्राँस ने भारत में बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण की कमी पर चिंता व्यक्त की है। यह स्थिति फ्राँसीसी व्यवसायों के लिए असहज माहौल उत्पन्न करती है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। फलतः भारत और फ्राँस के बीच  द्विपक्षीय व्यापार के लिए अनुकूल माहौल नहीं बनाता है। 
  4. मानव तस्करी की चिंताएँ : हाल की घटनाओं में , जैसे निकारागुआ विमान द्वारा मानव तस्करी जैसे संगठित अपराध ने अंतरराष्ट्रीय अपराधों से निपटने के लिए मजबूत सहयोग की आवश्यकता को उजागर किया है। यह व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए भी चिंता का विषय है।
  5. वीज़ा संबंधी बाधाएँ उत्पन्न होना : भारतीय संवाददाताओं ने हाल के वर्षों में सख्त वीज़ा प्रतिबंधों की शिकायत की है। इससे उनकी रिपोर्टिंग और कवरेज में कठिनाइयाँ उत्पन्न हो रही हैं, जो दोनों देशों के बीच संवाद को प्रभावित कर सकती हैं।
  6. फ्राँस में भारतीय उत्पादों के लिए बाधाएँ और अवरोध उत्पन्न होना : भारत को सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी (SPS) उपायों के कारण फ्राँस को निर्यात करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जो भारतीय उत्पादों को फ्राँसीसी बाजार में प्रवेश करने से हतोत्साहित कर सकता है। जिससे इन दोनों देशों के बीच के द्विपक्षीय  व्यापार में रुकावट आती है। इन चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है ताकि भारत-फ्राँस संबंधों को और अधिक मजबूत बनाया जा सके और द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके।

 

समाधान / आगे की राह : 

 

  • अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को संतुलित करने में योगदान देना : भारत और फ्राँस मिलकर अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को संतुलित करने और आपस में द्विपक्षीय निर्भरताओं को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में आपसी सहयोग को और मजबूत करना : भारत और फ्राँस दोनों ही देशों के बीच बढ़ता इंडो-पैसिफिक ढाँचा उनके द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत कर रहा है, खासकर हिंद महासागर में फ्राँस के ठिकानों और क्षेत्रों के कारण, जो इस क्षेत्र की स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • रक्षा उत्पादन में आपसी साझेदारी को विकसित और सुदृढ़ करना : फ्राँस भारत की घरेलू हथियार उत्पादन की योजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिससे निजी और विदेशी निवेश में वृद्धि हो रही है।
  • नए सहयोग क्षेत्र को विकसित करना : कनेक्टिविटी, जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा, और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे नए क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है। इस प्रकार, भारत और फ्राँस के बीच विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग से दोनों देशों को लाभ होगा और अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता में योगदान मिलेगा।
  • इन पहलों के माध्यम से, दोनों देश न केवल अपने सामरिक हितों को सुदृढ़ कर सकते हैं, बल्कि वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में भी सक्षम होंगे। इस प्रकार, भारत और फ्राँस का सहयोग केवल द्विपक्षीय नहीं, बल्कि वैश्विक स्थिरता को भी बढ़ावा देगा।

 

स्रोत – पीआईबी एवं द हिंदू। 

Download plutus ias current affairs Hindi med 7th Oct 2024

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत और फ्राँस के बीच सामरिक वार्ता का मुख्य उद्देश्य क्या है और इसमें किस क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दे पर विशेष ध्यान दिया गया है? 

  1. व्यापारिक संबंधों को बढ़ाना और साइबर सुरक्षा।
  2. क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा को मजबूत करना और समुद्री सुरक्षा।
  3. मानवाधिकार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान करना।
  4.  जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण।

उत्तर-  क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा को मजबूत करना और समुद्री सुरक्षा। 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत – फ्राँस सामरिक वार्ता का दक्षिण एशिया और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा पर प्रभाव का विश्लेषण करते हुए यह चर्चा कीजिए कि यह सामरिक वार्ता कैसे क्षेत्रीय शक्तियों के संतुलन को प्रभावित कर रही है? इसके साथ ही, भारत और फ्राँस के बीच सामरिक सहयोग को वैश्विक सुरक्षा के संदर्भ में आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, और साइबर सुरक्षा जैसी चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में कैसे देखा जा सकता है? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 ) 

No Comments

Post A Comment