भारत बनाम वैश्विक बाज़ार : ग्लोबल मंदी की चपेट में भारत का हीरा उद्योग

भारत बनाम वैश्विक बाज़ार : ग्लोबल मंदी की चपेट में भारत का हीरा उद्योग

पाठ्यक्रम सामान्य अध्ययन – 2 – विज्ञान और प्रौद्योगिकी- वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत का हीरा उद्योग निर्यात में गिरावट

प्रारंभिक परीक्षा के लिए : 

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), यूरोपीय संघ, G7 देश, भारत के हीरा उद्योग में प्रौद्योगिकी और नवाचार, ब्लॉकचेन एकीकरण, मुद्रास्फीति, खाड़ी देश

मुख्य परीक्षा के लिए : 

भारतीय हीरा उद्योग हाल ही में मंदी का सामना क्यों कर रहा है? आज भारत के हीरा उद्योग के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

 

ख़बरों में क्यों?

 

  • हाल ही में भारत का हीरा उद्योग चर्चाओं में है, जिसकी मुख्य वजह वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान निर्यात में आई 17% की तीव्र गिरावट है। यह आंकड़ा अब घटकर 13.3 अरब डॉलर पर पहुँच गया है। इस गिरावट की प्रमुख वजह अमेरिका द्वारा भारतीय हीरों पर आयात शुल्क को 10% से बढ़ाकर 27% तक कर देना है, जिसने वैश्विक व्यापार को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
  • इसके साथ ही, वैश्विक स्तर पर महंगाई की मार और प्रयोगशाला में तैयार किए जा रहे सस्ते हीरों की बढ़ती स्वीकार्यता ने प्राकृतिक हीरों की मांग को कमज़ोर किया है। इन बाधाओं के बावजूद, भारत – खासकर सूरत – आज भी हीरों की कटिंग और पॉलिशिंग में विश्व का प्रमुख केंद्र बना हुआ है।
  • भारत के हीरा उद्योग की वर्तमान स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, भारत सरकार ने उद्योग के पुनरुत्थान के लिए कदम उठाए हैं, जिसमें लैब-ग्रोन डायमंड (प्रयोगशाला-निर्मित हीरों) के उत्पादन को प्रोत्साहन और स्थायित्व के उपायों को बढ़ावा देना शामिल है। सरकार की यह रणनीति उद्योग को न केवल मौजूदा संकट से उबारने, बल्कि भविष्य के लिए अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में एक प्रयास है।

 

भारत की चमकदार विरासत हीरा उद्योग की ऐतिहासिकता की पृष्ठभूमि : 

 

  • भारत और हीरों का संबंध सदियों पुराना है। प्राचीन काल में जब विश्व में हीरे के सीमित स्रोत थे, तब दक्षिण भारत की गोलकुंडा की खदानें विश्व भर में बेशकीमती हीरों का प्रमुख स्रोत थीं। उस समय भारत न केवल हीरों का खनन करता था, बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार का एक बड़ा केंद्र भी था। अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में हीरे की नई खदानों की खोज से पहले, भारत ही इस बहुमूल्य रत्न का प्रमुख आपूर्तिकर्ता माना जाता था।
  • वर्तमान भारतीय हीरा उद्योग की नींव 20वीं शताब्दी के मध्य में मजबूत हुई, विशेषकर 1950 के दशक के बाद, जब उदारीकृत व्यापार नीतियाँ और गुजरात के व्यापारिक समुदायों की दूरदर्शी सोच ने इस क्षेत्र को गति दी। द्वितीय विश्व युद्ध के समय एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब म्यांमार (तत्कालीन बर्मा) के हीरा शिल्पकार भारत आए और अपने साथ परिष्कृत कारीगरी और कौशल लाए। इससे भारत में हीरा तराशने और पॉलिशिंग की पारंपरिक क्षमताओं को एक नई दिशा मिली।
  • समय के साथ, विशेष रूप से गुजरात में, इस उद्योग ने विकेंद्रीकृत कारीगरी इकाइयों का एक मजबूत तंत्र खड़ा किया, जिसने भारत को वैश्विक हीरा प्रसंस्करण में अग्रणी बना दिया है।

 

भारत के प्रमुख हीरा केंद्र :

 

  1. सूरत – विश्व के लगभग 80% हीरों की कटाई और पॉलिशिंग यहीं होती है। आधुनिक तकनीकों और कुशल श्रमिकों की बदौलत यह शहर उद्योग की रीढ़ बना हुआ है।
  2. मुंबई – भारत डायमंड बोर्स (BDB) के माध्यम से यह शहर एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निर्यात केंद्र की भूमिका निभाता है।
  3. भावनगर व नवसारी – गुजरात के ये शहर सहायक इकाइयों के रूप में सूरत के उत्पादन तंत्र को मजबूती प्रदान करते हैं।
  4. जयपुर – रंगीन रत्नों और परंपरागत आभूषण शिल्प के लिए प्रसिद्ध, यह शहर निर्यात की विविधता में योगदान देता है।

 

भारत में हीरा उद्योग का आर्थिक महत्व :

 

  1. प्रमुख जीडीपी योगदानकर्ता के रूप में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान देना : भारत में हीरा उद्योग, रत्न एवं आभूषण क्षेत्र का एक प्रमुख स्तंभ है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 7% का योगदान देता है। यह न केवल मूल्य वर्धित उत्पादन में सहायक है, बल्कि भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भी इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  2. विदेशी मुद्रा अर्जन का प्रमुख स्रोत : हीरा निर्यात भारत के कुल व्यापारिक निर्यात का 10% से अधिक हिस्सा बनाता है। पेट्रोलियम उत्पादों के बाद, यह उद्योग दूसरे सबसे बड़े विदेशी मुद्रा अर्जक के रूप में स्थापित है, जिससे भारत की व्यापार संतुलन रणनीति को मजबूती मिलती है।
  3. रोजगार सृजन का विशाल आधार : यह क्षेत्र प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से 50 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देता है, जिनमें से अधिकांश कटाई, पॉलिशिंग और पैकेजिंग जैसे कार्यों में संलग्न हैं। खासकर, MSME इकाइयों की भूमिका इस रोजगार सृजन में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  4. लघु एवं मध्यम उद्यम (SMEs) का आधार स्तंभ : हीरा उद्योग में कार्यरत हज़ारों लघु एवं मध्यम उद्यम (SMEs) मूल्य श्रृंखला की रीढ़ हैं। ये इकाइयाँ समावेशी विकास को बढ़ावा देती हैं, क्षेत्रीय असंतुलन को कम करती हैं और स्थानीय उद्यमिता को सशक्त करती हैं।
  5. शहरी औद्योगिक विकास का उत्प्रेरक : सूरत, मुंबई, जयपुर जैसे शहरी केंद्रों में हीरा उद्योग ने औद्योगिक गतिविधियों, बुनियादी ढांचे और सेवा क्षेत्रों को बढ़ावा दिया है, जिससे शहरी अर्थव्यवस्था का तीव्र विस्तार हुआ है।
  6. सहायक क्षेत्रों को सहायता प्रदान करना : हीरा उद्योग ने परिशुद्धता उपकरण, डिज़ाइन, लॉजिस्टिक्स, प्रमाणन और प्रशिक्षण जैसे अनेक सहायक उद्योगों को बढ़ावा दिया है, जिससे औद्योगिक उत्पादकता और नवाचार की समग्र क्षमता में वृद्धि हुई है।
  7. लचीलापन और निर्यात अनुकूलनशीलता : वैश्विक स्तर पर आर्थिक अस्थिरताओं के बावजूद, भारत का हीरा उद्योग प्रयोगशाला-निर्मित हीरों (LGD) की ओर रुख कर रहा है और नए निर्यात बाजारों की तलाश में नवाचार और अनुकूलनशीलता का प्रदर्शन कर रहा है।

 

भारत के हीरा उद्योग में प्रौद्योगिकी और नवाचार :

 

  1. स्वचालन और मशीन-आधारित उत्पादन में उल्लेखनीय सुधार होना : भारत के हीरा उद्योग में मैनुअल प्रक्रियाओं की जगह अब लेजर कटिंग, सीएनसी मशीनें और रोबोटिक्स ले रहे हैं, जिससे गुणवत्ता, सटीकता और उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार आया है।
  2. कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डेटा विश्लेषण तकनीकों का उपयोग करना : AI और मशीन लर्निंग तकनीकों का उपयोग कच्चे हीरों की पहचान, ग्रेडिंग और गुणवत्ता नियंत्रण में हो रहा है, जिससे उपज अनुकूलन संभव हुआ है।
  3. फेनिक्स जैसी उन्नत रोबोटिक प्रणालियों का उपयोग करना : फेनिक्स जैसी उन्नत रोबोटिक प्रणालियाँ, बड़े पैमाने पर कटिंग कार्य को स्वचालित कर रही हैं, जिससे मानव-त्रुटि में कमी और तेज़ उत्पादन संभव हो पाया है।
  4. डिजिटल एकीकरण और ट्रैकिंग में आधुनिक प्रणालियों को शामिल करना : इस उद्योग में अब डिजिटल वर्कफ़्लो, इन्वेंट्री प्रबंधन और आपूर्ति श्रृंखला पर निगरानी के लिए आधुनिक प्रणालियाँ अपनाई जा रही हैं।
  5. ब्लॉकचेन के माध्यम से पारदर्शिता सुनिश्चित करना : हीरों की स्रोत-ट्रेसेबिलिटी और प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिए ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग बढ़ रहा है, जिससे उपभोक्ता विश्वास को बल मिलता है।
  6. सटीक मूल्यांकन और दोष पहचान की प्रक्रियाओं का उपयोग करना : कंप्यूटर विज़न और मशीन लर्निंग तकनीकों के उपयोग से सटीक मूल्यांकन और दोष पहचान की प्रक्रियाएं सशक्त हुई हैं।
  7. अनुसंधान में बढ़ता निवेश : हीरा कंपनियाँ अब इन-हाउस रिसर्च लैब्स और अत्याधुनिक तकनीकी नवाचारों में निवेश कर रही हैं, ताकि उत्पादन को अधिक कुशल और प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके।

 

प्रयोगशाला में विकसित हीरे (LGD) का भविष्य :

 

  1. भारत का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बनकर उभरना : भारत LGD का सबसे बड़ा निर्यातक और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। यह क्षेत्र भारत की नई व्यापार रणनीति का प्रमुख घटक बनता जा रहा है।
  2. भारत की वैश्विक हीरा आपूर्ति में तेज़ी से बढ़ती हिस्सेदारी : प्रयोगशाला में विकसित हीरे (LGD) का भारत की वैश्विक हीरा आपूर्ति में 16% योगदान है, और यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है।
  3. लागत और उपभोक्ता-हित में अत्यंत आकर्षक विकल्प बनना : प्राकृतिक हीरों की तुलना में 30–40% कम कीमत वाले ये हीरे मूल्य-संवेदनशील बाजारों के लिए अत्यंत आकर्षक विकल्प बनते जा रहे हैं।
  4. सतत विकास के लिए हरित उपभोग की ओर बढ़ता कदम : सतत विकास और नैतिक सोर्सिंग की वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप, LGD को एक पर्यावरण-मित्रवत विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
  5. अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बढ़ती मांग : पर्यावरणीय कारणों और सामर्थ्य की वजह से अमेरिका और यूरोप जैसे बाजारों में LGD की मांग तेजी से बढ़ रही है।
  6. सरकारी समर्थन और ढांचागत विकास : PLI योजनाओं, अनुसंधान अनुदानों और नीति समर्थन के माध्यम से भारत सरकार LGD उद्योग को रणनीतिक प्रोत्साहन दे रही है।
  7. निर्यात विविधीकरण और प्रतिस्पर्धी लाभ के संबंध में भविष्य की संभावना :  भारत के हीरा उद्योग के संबंध में एक अनुमान यह है कि 2030 तक LGD वैश्विक हीरा बिक्री का 25% हिस्सा ले सकते हैं, जिससे भारत को निर्यात विविधीकरण और प्रतिस्पर्धी लाभ मिल सकता है।

 

भारत का हीरा निर्यात : वर्तमान रुझान और प्रमुख चुनौतियाँ :

 

  1. निर्यात मूल्य में गिरावट : वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का हीरा निर्यात 13.3 बिलियन डॉलर तक सिमट गया, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में करीब 17% की गिरावट को दर्शाता है। यह मंदी वैश्विक मांग में ठहराव और आपूर्ति शृंखला में चुनौतियों का परिणाम है।
  2. वैश्विक बाजार में कीमत प्रतिस्पर्धा को कमजोर होना : 10% से लेकर 27% तक के अमेरिकी आयात शुल्कों ने भारतीय हीरों की वैश्विक बाजार में कीमत प्रतिस्पर्धा को कमजोर किया है, जिससे निर्यातकों के लाभ पर सीधा प्रभाव पड़ा है।
  3. भू-राजनीतिक संकट से आपूर्ति में व्यवधान उत्पन्न होना : रूसी हीरों पर यूरोपीय संघ और G7 देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने आपूर्ति स्रोतों में बड़ी कटौती की है। रूस, जो भारत का प्रमुख कच्चा हीरा आपूर्तिकर्ता था, अब अप्रत्याशित संकट का केंद्र बन चुका है।
  4. मुद्रास्फीति के कारण वैश्विक उपभोक्ता बाजारों में हीरे की मांग का प्रभावित होना : मुद्रास्फीति, बदलती उपभोक्ता प्राथमिकताएँ और आर्थिक अनिश्चितताओं ने अमेरिका और यूरोप जैसे प्रमुख बाजारों में हीरे की मांग को प्रभावित किया है। यह गिरावट मांग-आपूर्ति संतुलन को अस्थिर कर रही है।
  5. भविष्य की आशंकाएँ : ICRA के अनुसार, वित्त वर्ष 2026 तक भारत के हीरा निर्यात में और 7-10% की गिरावट की संभावना है, जो वैश्विक स्तर पर अनुकूल वातावरण की कमी का संकेत देती है।
  6. प्राकृतिक बनाम प्रयोगशाला में बने हीरों के बीच मूल्य दबाव का होना : एलजीडी (Laboratory-Grown Diamonds) के बढ़ते बाजार ने पारंपरिक हीरा उद्योग पर मूल्य दबाव बना दिया है। उपभोक्ताओं की पसंद में हो रहे बदलाव से प्राकृतिक हीरों की मांग कम हो रही है।
  7. मुद्रा उतार-चढ़ाव और बढ़ती रसद लागत : रुपये में अस्थिरता और लाल सागर जैसे महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों में तनावपूर्ण स्थिति ने शिपिंग लागत को बढ़ाया है, जिससे निर्यात मार्जिन पर और दबाव पड़ा है।

 

सुधार और नवाचार की दिशा में आगे की राह : 

 

  1. एलजीडी क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने की जरूरत : देश में प्रयोगशाला में बने हीरों के उत्पादन को सशक्त करने हेतु अनुसंधान एवं विकास में निवेश आवश्यक है। आयातित बीजों पर निर्भरता घटाकर स्वदेशी तकनीक को प्राथमिकता देना चाहिए।
  2. ब्रांड की नैतिक और हरित पहचान का निर्माण करने की आवश्यकता : जिम्मेदार स्रोतों से प्राप्त हीरे, पर्यावरणीय प्रमाणन और ब्लॉकचेन आधारित ट्रेसेब्लिटी के माध्यम से भारत को वैश्विक उपभोक्ताओं के बीच भरोसेमंद और टिकाऊ ब्रांड के रूप में स्थापित करना होगा।
  3. व्यापारिक बाधाओं को दूर करने हेतु सक्रिय वार्ता करने और बाजार विस्तार करने की आवश्यकता : भारत को अमेरिका, यूरोपीय संघ, G7 और खाड़ी देशों के साथ टैरिफ में छूट और व्यापारिक बाधाओं को दूर करने हेतु सक्रिय वार्ता करनी चाहिए, जिससे नए बाजारों तक पहुंच सुनिश्चित हो सके।
  4. घरेलू खपत को प्रोत्साहन देना : भारतीय उपभोक्ताओं के बीच आभूषणों की मांग को सशक्त करने के लिए वित्तीय योजनाएं (जैसे EMI) और जागरूकता अभियान शहरों और टियर-2 क्षेत्रों में चलाए जाने चाहिए।
  5. डिजाइन और निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का विकास करने की आवश्यकता : “प्लग एंड प्ले” ज्वेलरी पार्क, डिज़ाइन इनक्यूबेशन सेंटर और निर्यात-आधारित क्लस्टर स्थापित कर मूल्य श्रृंखला को संपूर्ण रूप में विकसित किया जा सकता है।
  6. कौशल निर्माण और समावेशिता पर ज़ोर देने की आवश्यकता : पॉलिशिंग, गुणवत्ता नियंत्रण और रिटेल जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देते हुए, IDI जैसे संस्थानों के माध्यम से प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रमों का विस्तार जरूरी है।
  7. कार्बन-तटस्थ तकनीक तथा हरित और वृत्ताकार उत्पादन मॉडल को अपनाने की आवश्यकता :  कार्बन-तटस्थ तकनीकों, नवीकरणीय ऊर्जा और हीरे के अपशिष्ट के पुनर्चक्रण को बढ़ावा देकर भारत को एक पर्यावरण-अनुकूल हीरा उत्पादक के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

 

निष्कर्ष : भारत का हीरा उद्योग एक उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर

 

  • भारत का हीरा उद्योग आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ परंपरा और नवाचार के बीच संतुलन साधना अनिवार्य हो गया है। युगों से चली आ रही इसकी शिल्प-परंपरा और वैश्विक प्रतिष्ठा अब तकनीकी उन्नयन, नैतिक व्यापार और पर्यावरणीय संवेदनशीलता के साथ कदम मिलाने को बाध्य है।
  • वर्तमान वैश्विक परिदृश्य, जिसमें आपूर्ति श्रृंखला की अस्थिरता, उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव और भू-राजनीतिक तनाव जैसी चुनौतियाँ विद्यमान हैं—एक ओर जहाँ जोखिम प्रस्तुत करता है, वहीं दूसरी ओर भारत के लिए नेतृत्व स्थापित करने का एक अभूतपूर्व अवसर भी है। 
  • वैश्विक स्तर पर विशेषकर, प्रयोगशाला-निर्मित हीरों की ओर बढ़ते रुझान और पारदर्शी व सतत प्रक्रियाओं की माँग को देखते हुए भारत के पास अपनी भूमिका को फिर से परिभाषित करने का समय है।
  • यदि नीति- निर्माता, उद्योग जगत और निवेशक समन्वय पूर्वक कार्य करें, तो भारत इस क्षेत्र में न केवल प्रतिस्पर्धी बना रह सकता है, बल्कि वैश्विक रत्न एवं आभूषण उद्योग को नैतिकता, गुणवत्ता और नवाचार के नए मानकों की ओर भी ले जा सकता है।

 

स्त्रोत – पी. आई. बी एवं इंडियन एक्सप्रेस। 

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. भारत में हीरा उद्योग के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें :
1. सूरत भारत में हीरा व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र है।
2. भारत प्रयोगशाला में विकसित हीरों (एलजीडी) का विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक है।
3. हीरा उद्योग में ट्रेसेबिलिटी और प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिए ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है।
उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर – (c)

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. वैश्विक उथल-पुथल और प्रयोगशाला में विकसित हीरों के बढ़ते प्रचलन के बीच, भारत का हीरा उद्योग किन प्रमुख चुनौतियों का सामना कर रहा है ? इसके साथ ही चर्चा कीजिए कि इस उद्योग में स्थिरता एवं प्रतिस्पर्धात्मकता बनाए रखने के लिए कौन-कौन से आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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