भारत में उच्च शिक्षा का अति-राजनीतिकरण : भविष्य और चुनौतियाँ

भारत में उच्च शिक्षा का अति-राजनीतिकरण : भविष्य और चुनौतियाँ

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के ‘ भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था, शिक्षा, भारतीय उच्च शिक्षा में राजनीतिक हस्तक्षेप, शैक्षणिक स्वतंत्रता और स्वायत्तता, विकास से संबंधित मुद्दे ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ भारतीय उच्च शिक्षा, कुलपति, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ’ खंड से संबंधित है। इसमें PLUTUS IAS टीम के सुझाव भी शामिल हैंयह लेख ‘ दैनिक करंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ भारत में उच्च शिक्षा का अति-राजनीतिकरण : भविष्य और चुनौतियाँ  से संबंधित है।)

 

ख़बरों में क्यों? 

 

 

  • भारतीय उच्च शिक्षा के अत्यधिक राजनीतिकरण की चर्चा आज कल ख़बरों में इसलिए है क्योंकि यह शैक्षिक जीवन और संस्थानों की स्वायत्तता पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। इसकी जड़ें भारतीय शिक्षा के इतिहास में गहराई से जुड़ा हुआ या समाहित हैं और हालिया वर्षों में इसकी तीव्रता में वृद्धि हुई है।
  • वर्तमान समय में भारत में अकादमिक स्वतंत्रता और बौद्धिक विमर्श में बाधाएं आ रही हैं, जिसके कारण भारत में शिक्षा प्रणाली में व्यापक सुधारों की मांग भी एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में उभर कर सामने आई है।

 

भारत में उच्च शिक्षा की वर्तमान स्थिति : 

 

  • भारत में, उच्च शिक्षा का अर्थ है 12 वर्ष की स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद प्राप्त की जाने वाली तृतीयक स्तर की शिक्षा। यहाँ, विश्व की दूसरी सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणाली है, जिसमें 58,000 से अधिक उच्च शिक्षा संस्थान शामिल हैं।
  • वर्तमान में, भारत में 43.3 मिलियन छात्र उच्च शिक्षा के लिए नामांकित हैं। इनमें से लगभग 79% छात्र स्नातक पाठ्यक्रमों में, 12% छात्र स्नातकोत्तर (मास्टर डिग्री) पाठ्यक्रमों में, और केवल 0.5% छात्र PhD पाठ्यक्रमों में नामांकित हैं। शेष अधिकांश छात्र उप-डिग्री (Sub-Degree) डिप्लोमा कार्यक्रमों में अध्ययनरत हैं।
  • स्नातक स्तर पर, कला (34%) सबसे लोकप्रिय विषय क्षेत्र है, इसके बाद विज्ञान (15%), वाणिज्य (13%), और इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी (12%) हैं। स्नातकोत्तर स्तर पर, सामाजिक विज्ञान (21%) शीर्ष विषय क्षेत्र है, उसके बाद विज्ञान (15%) और प्रबंधन (14%) हैं। PhD स्तर पर, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी (25%) में सबसे अधिक छात्र नामांकित हैं, उसके बाद विज्ञान (21%) का स्थान आता है।
  • उच्च शिक्षा भागीदारी दर (GER) बढ़कर 28.4% हो गई है, जो पिछले वर्ष 2020-21 से 1.1% अधिक है। उच्चतम GER वाले राज्य/केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़, पुडुचेरी, दिल्ली, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, केरल, और तेलंगाना हैं।
  • वर्ष 2021-22 में, भारतीय संस्थानों में विदेशी छात्रों की कुल संख्या लगभग 46,000 थी।

 

भारत में उच्च शिक्षा के अत्यधिक राजनीतिकरण के परिणाम : 

 

 

भारत में उच्च शिक्षा के अत्यधिक राजनीतिकरण के परिणाम निम्नलिखित हुए हैं – 

  • शैक्षणिक स्वतंत्रता में कमी : राजनीतिक प्रभाव के कारण शैक्षणिक स्वतंत्रता पर असर पड़ा है, जिससे संकाय और छात्रों पर विशेष राजनीतिक विचारधारा को अपनाने का दबाव बढ़ा है।
  • वैश्विक स्तर पर भारतीय शिक्षण संस्थानों की प्रतिष्ठा पर प्रभाव : उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राजनीतिकरण होने से भारतीय शैक्षणिक संस्थानों की वैश्विक प्रतिष्ठा प्रभावित हुई है या हो सकती है, जिससे प्रतिभाशाली छात्र और शिक्षक इन संस्थानों से दूर हो सकते हैं।
  • विचारों की विविधता में कमी : भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राजनीतिक एजेंडा के चलते अकादमिक चर्चाओं में विविधता कम हो गई है, जिससे खुली बहस और वैकल्पिक दृष्टिकोणों की खोज में बाधा आई है।
  • छात्र का शोध के प्रति सक्रियता का कम होना : उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राजनीतिकरण के बढ़ने से छात्र सक्रियता में वृद्धि हुई है, जो कभी-कभी शैक्षणिक जीवन को बाधित कर शोध के प्रति छात्रों की सक्रियता का कम कर सकती है।
  • शिक्षा क्षेत्र में सार्वजनिक विश्वास का ह्रास : भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राजनीतिक दलों द्वारा राजनीतिक प्रपंचों का विश्वविद्यालयों के स्तर पर इस्तेमाल से शैक्षिक शोध की निष्पक्षता और मूल्य में जनता का विश्वास निरंतर कम हुआ है।
  • शोध के होने वाले वित्तपोषण में कमी होना : भारत में उच्च शिक्षा में राजनीतिक दलों द्वारा अपने राजनीतिक एजेंडा को चलने या बढ़ाने के कारण दीर्घकालिक शोध परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण में कमी आई है, जिससे नवाचार और वैश्विक ज्ञान अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा करने की भारत के छात्रों की  क्षमता भी प्रभावित हुई है।
  • रोजगार प्राप्ति में कमी होना : भारत में उच्च शिक्षा के अति-राजनीतिक शिक्षा ने स्नातकों को आलोचनात्मक सोच, समस्या-समाधान और अनुकूलनशीलता जैसे महत्वपूर्ण कौशलों के विकास में बाधा पहुंचाई है, जिससे उनकी रोजगार सृजन करने और रोजगार प्राप्त करने की क्षमता भी प्रभावित हुई है।

 

राजनीति का भारतीय उच्च शिक्षा पर प्रभाव :

 

 

  • राजनीतिक प्रेरणा : भारतीय उच्च शिक्षा के संस्थान अक्सर राजनीतिक उद्देश्यों से प्रभावित होते हैं, जहाँ राजनेता अपने राजनीतिक करियर को बढ़ाने के लिए कॉलेजों की स्थापना करते रहे हैं।
  • मतदाता आधारित निर्माण : सामाजिक-सांस्कृतिक मांगों के अनुरूप कई शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की गई है, जो भारतीय समाज की विविधता को प्रतिबिंबित करते हैं।
  • स्थानीयकरण : शैक्षणिक संस्थानों को राजनीतिक रूप से लाभकारी स्थानों पर स्थापित किया गया है, जो अक्सर सामाजिक-सांस्कृतिक जरूरतों को पूरा करते हैं।
  • नामकरण और पुनर्नामकरण : भारत में विश्वविद्यालयों के नामकरण और पुनर्नामकरण अक्सर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित होते हैं, जैसे कि UPTU, लखनऊ का नाम परिवर्तन करना।
  • नियुक्तियाँ और पदोन्नतियाँ : भारत के विश्वविद्यालयों में होनेवाली शैक्षणिक नियुक्तियाँ और पदोन्नतियाँ कभी-कभी योग्यता के बजाय राजनीतिक विचारों से प्रभावित होने के कारण ही होती हैं।
  • शैक्षणिक स्वतंत्रता प्रदान करना : भारत के विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में खासकर सामाजिक विज्ञान और मानविकी के विषयों में अक्सर शैक्षणिक स्वतंत्रता के मानदंडों का सख्ती से पालन नहीं होता है। ऐसी स्थिति में जहां सेल्फ-सेंसरशिप प्रचलित है और अक्सर वहां विवादास्पद सामग्री के प्रकाशन से हानिकारक परिणाम हो सकते हैं।

 

वर्तमान समय में भारत में उच्च शिक्षा के लिए नियामक ढाँचा :

 

 

भारत में उच्च शिक्षा के लिए नियामक ढाँचा विभिन्न वैधानिक निकायों द्वारा संचालित होता है, जिनका उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता और मानकों को सुनिश्चित करना है। इसके मुख्य निकायों में निम्नलिखित संस्था शामिल हैं – 

  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) : सन 1956 में स्थापित, यह निकाय विश्वविद्यालय शिक्षा के मानकों को समन्वयित और बनाए रखने के साथ-साथ अनुदान जारी करने का कार्य करता है। इसके छह क्षेत्रीय कार्यालय बंगलूरू, भोपाल, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता और पुणे में हैं।
  • अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) : सन 1945 में स्थापित, यह निकाय तकनीकी शिक्षा के मानदंड और मानक निर्धारित करता है तथा यह भारत में नए संस्थानों और पाठ्यक्रमों को अनुमोदित करता है, और विभिन्न योजनाओं के माध्यम से तकनीकी शिक्षा को प्रोत्साहित करता है। वर्ष 1987 में इसे वैधानिक दर्ज़ा प्रदान किया गया है। यह नए तकनीकी संस्थानों, पाठ्यक्रमों और प्रवेश क्षमता को अनुमोदित करता है तथा डिप्लोमा स्तर के संस्थानों के लिये राज्य सरकारों को कुछ विशिष्ट शक्तियाँ प्रदान करता है।
  • AICTE का मुख्यालय नई दिल्ली में है तथा इसके क्षेत्रीय कार्यालय कोलकाता, चेन्नई, कानपुर, मुंबई, चंडीगढ़, भोपाल, बंगलूरू और हैदराबाद में हैं।
  • वास्तुकला परिषद (COA) : सन 1972 में वास्तुविद् अधिनियम के तहत स्थापित, यह निकाय वास्तुकला शिक्षा और व्यवसाय के मानकों को नियंत्रित करता है।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुसार, चिकित्सा और विधिक शिक्षा को छोड़कर, सभी प्रकार की उच्च शिक्षा के लिए एक एकल व्यापक निकाय के रूप में भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) की स्थापना को प्रस्तावित किया गया है। 
  • भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) में चार स्वतंत्र कार्यक्षेत्र शामिल हैं। जिनमें विनियमन के लिए NHERC, मानक निर्धारण के लिए GEC, वित्तपोषण के लिए HEGC, और मान्यता प्रदान करने के लिए NAC जैसी स्वतंत्र संस्था की व्यवस्था है। 
  • भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) भारत में प्रौद्योगिकी आधारित हस्तक्षेप के माध्यम से कार्य करेगा और इसके द्वारा तय किए गए मानदंडों एवं मानकों का पालन नहीं करने वाले संस्थानों को दंडित करने का इसे अधिकार प्राप्त है। सार्वजनिक और निजी, दोनों प्रकार के उच्च शिक्षण संस्थान समान विनियमन, मान्यता एवं शैक्षणिक मानकों के अधीन होंगे।

समाधान / आगे की राह : 

 

 

भारत में उच्च शिक्षा की संस्थागत स्वायत्तता को मजबूत करने और राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  1. संस्थागत स्वायत्तता को मजबूत करना : भारत में उच्च शिक्षा की संस्थागत स्वायत्तता को मजबूत करने और राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करने के लिए तथा अनुचित प्रभावों का विरोध करने के लिए विश्वविद्यालयों को अधिक स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिए। इसके लिए, वित्तपोषण के विविध स्रोतों की तलाश करने और सरकारी निधियों पर निर्भरता कम करने के उपाय किए जा सकते हैं।
  2. शैक्षिक स्वतंत्रता की रक्षा सुनिश्चित करना : भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षिक स्वतंत्रता को एक अटूट सिद्धांत के रूप में बनाए रखना और स्वतंत्र विचार-विमर्श तथा अनुसंधान को सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  3. स्वायत्त विश्वविद्यालय बोर्ड की स्थापना करना : भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उच्च शोध गुणवत्ता को बढ़ावा देने और राजनीतिक प्रभाव से संवेदनशील विषयों की रक्षा के लिए स्वायत्त विश्वविद्यालय बोर्ड की स्थापना की जा सकती है।
  4. भारत में शिक्षण संस्थानों को स्वायत्त दर्जा प्राप्त करने का प्रयास करना : उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों से तुलना करने के लिए भारत के प्रयासों के अनुरूप, संस्थानों को स्वायत्त दर्जा प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
  5. राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की सिफारिशों का कार्यान्वयन करना : शैक्षिक, प्रशासनिक और वित्तीय मामलों में संस्थानों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिए NKC और यशपाल समिति की सिफारिशों को लागू करना अनिवार्य होना चाहिए।
  6. शासी निकायों का राजनीतिकरण कम करना : शैक्षणिक योग्यता और अनुभव के आधार पर कुलपति और अन्य प्रमुख पदों के चयन के लिए एक स्वतंत्र चयन प्रक्रिया को अपनाना चाहिए।
  7. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की सिफारिशों का पालन सुनिश्चित करना : भारत के उच्च शिक्षा के क्षेत्र में NEP 2020 में दी गई सिफारिशों के अनुसार, स्वतंत्र और पारदर्शी भर्ती, पाठ्यक्रम डिजाइन की स्वतंत्रता, और संकाय की प्रेरणा और क्षमता निर्माण के लिए उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करना अत्यंत आवश्यक है।
  8. असहमति और आलोचनात्मक जाँच की रक्षा के लिए स्पष्ट नीतियाँ और सुरक्षा उपाय लागू करना : भारत में शोध, अनुसंधान और छात्रों द्वारा अपने विचार को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने के संकाय के अधिकारों की रक्षा के लिए स्पष्ट नीतियाँ और सुरक्षा उपाय लागू करना अत्यंत आवश्यक है।
  9. छात्र संघ की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना : भारत के विश्वविद्यालयों में छात्र संघों को स्वायत्त निकाय के रूप में बनाए रखना और उनके चुनाव या कार्यप्रणाली में राजनीतिक दलों या प्राधिकारियों का हस्तक्षेप नहीं होने देना चाहिए।
  10. सशक्त लोकपाल की स्थापना करना : भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप, शैक्षणिक स्वतंत्रता के उल्लंघन, या किसी भी हितधारक से राजनीतिक रूप से प्रेरित उत्पीड़न की शिकायतों की जाँच और समाधान के लिए एक स्वतंत्र लोकपाल तंत्र की स्थापना करना अत्यंत जरूरी है।
  11. इन कदमों को उठाकर, भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप को कम किया जा सकता है और शैक्षिक स्वतंत्रता और उत्कृष्टता को बढ़ावा दिया जा सकता है।

 

स्रोत – द हिंदू एवं पीआईबी।

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q. 1. भारत में शिक्षा का प्रावधान संविधान के किस प्रावधान पर आधारित है? ( UPSC –  2019)

  1. भारतीय संविधान की पाँचवीं अनुसूची में। 
  2. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत के द्वारा।  
  3.  भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में ।  
  4. ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों के द्वारा। 
  5. भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए : 

A. केवल 1, 2 और 5

B. 1, 2, 3, 4 और 5 सभी।

C. केवल 1, 3 और 4 

D. केवल 1 , 3, 4 और 5

उत्तर- B

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में उच्च शिक्षा के राजनीतिकरण को रेखांकित करते हुए इसके परिणामों का विश्लेषण तथा शैक्षणिक संस्थाओं की संस्थागत स्वायत्तता, अखंडता और स्वतंत्रता को बनाए रखने के समाधानों पर तर्कसंगत चर्चा कीजिए। ( UPSC CSE – 2017 शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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