भारत में पवन ऊर्जा क्षेत्र के विकास के साथ जैव विविधता संरक्षण की चुनौतियाँ

भारत में पवन ऊर्जा क्षेत्र के विकास के साथ जैव विविधता संरक्षण की चुनौतियाँ

पाठ्यक्रम – मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन – 3 – पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी, पर्यावरण प्रदूषण और उसमें कमी या गिरावट 

प्रारंभिक परीक्षा केअंतर्गत – थार रेगिस्तान, खंभात की खाड़ी, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, बैटरी भंडारण प्रणाली (BESS), पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA), अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (IRENA), नवीकरणीय ऊर्जा सांख्यिकी 2025, राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान 

 

खबरों में क्यों ? 

 

 

  • हाल ही में भारत में पवन ऊर्जा विस्तार और पारिस्थितिकीय चुनौतियाँ से संबंधित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र का तेज़ी से विकास हो रहा है, और पवन ऊर्जा इसका एक प्रमुख स्तंभ बनकर उभरी है। वर्ष 2025 के मध्य तक पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता 51.3 गीगावाट तक पहुँचने की उम्मीद है। यह उपलब्धि न केवल ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन से निपटने के भारत के प्रयासों को बल देती है, बल्कि इसके साथ कुछ नई और गंभीर पारिस्थितिकीय चिंताएँ भी सामने आ रही हैं। विशेष रूप से पक्षियों की मृत्यु दर और समुद्री जैव विविधता पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर गहन मंथन की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

 

पवन ऊर्जा से पक्षियों पर पड़ने वाला प्रभाव :

 

  1. थार रेगिस्तान में पवन टर्बाइनों से पक्षियों की मृत्यु दर का चिंताजनक होना : भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा थार मरुस्थल में किए गए एक अध्ययन ने यह स्पष्ट किया है कि पवन टर्बाइनों से पक्षियों की मृत्यु दर चिंताजनक रूप से अधिक है। 90 टर्बाइनों की परिधि में 124 मृत पक्षी पाए गए, जिससे अनुमान लगाया गया कि प्रति 1,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हर वर्ष लगभग 4,464 पक्षियों की जान जाती है। यह आँकड़ा न केवल गंभीर है, बल्कि यह इस तथ्य को रेखांकित करता है कि पवन ऊर्जा के पर्यावरणीय प्रभावों को अब और अनदेखा नहीं किया जा सकता।
  2. संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए चुनौती : ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB), एक गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजाति, इस संकट का सबसे बड़ा शिकार बन रही है। यह विशाल पक्षी, जो थार के शुष्क घास के मैदानों में निवास करता है, उड़ते समय पवन टर्बाइनों से टकराने के प्रति अत्यंत संवेदनशील होता है। इसी प्रकार, शिकार करने वाले रैप्टर भी प्रभावित हो रहे हैं, क्योंकि उनकी उड़ान ऊँचाई इन्हें टरबाइनों के पथ में ला देती है।
  3. प्रवासी पक्षियों की आवाजाही पर पड़ने वाला प्रभाव : थार क्षेत्र मध्य एशियाई फ्लाईवे (CAF) का हिस्सा है, जो एशिया और यूरोप के बीच प्रवासी पक्षियों का प्रमुख मार्ग है। इस मार्ग पर पवन टर्बाइनों की उपस्थिति, पक्षियों के लिए एक अप्राकृतिक बाधा बनकर उभर रही है, जो उनके प्रवासन और आवास दोनों को प्रभावित करती है।
  4. विद्युत लाइनों से पक्षियों के प्रति उत्पन्न खतरा : पवन ऊर्जा संयंत्रों के साथ जुड़ी विद्युत लाइनों से भी पक्षियों की मृत्यु होती है। ये लाइनें विशेष रूप से GIB जैसे बड़े पक्षियों के लिए खतरनाक हैं, जो उड़ान के दौरान इनसे टकराकर मारे जाते हैं। यह एक ऐसा पहलू है, जिसे पहले के कई पर्यावरणीय आकलनों में पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया।
  5. निगरानी और आकलन की कमी होना : भारत में तटीय और थल पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिये पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) अनिवार्य नहीं है। इसके परिणामस्वरूप, बिना समुचित वैज्ञानिक मूल्यांकन के कई परियोजनाएँ पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में स्थापित हो जाती हैं।

 

अपतटीय पवन ऊर्जा का समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर असर : 

 

  1. समुद्री जैव विविधता के लिए खतरा : अपतटीय पवन फार्म ऐसे क्षेत्रों में स्थापित किए जा रहे हैं जो कई समुद्री प्रजातियों के प्रजनन स्थल हैं, जैसे मछलियाँ, कछुए, डॉल्फ़िन और समुद्री स्तनधारी। इन स्थानों में अवांछनीय हस्तक्षेप जैव विविधता के लिए विनाशकारी हो सकता है।
  2. निर्माण गतिविधियाँ और ध्वनि प्रदूषण : पाइलिंग और ड्रेजिंग जैसी गतिविधियाँ पानी के भीतर अत्यधिक शोर उत्पन्न करती हैं। यह शोर डॉल्फ़िन और व्हेल जैसी प्रजातियों की इकोलोकेशन क्षमता को बाधित करता है, जिससे उनकी संचार और मार्गदर्शन प्रणाली प्रभावित होती है।
  3. प्रदूषण और रिसाव का समुद्री पारिस्थितिकी पर पड़ने वाला दीर्घकालिक प्रभाव : टरबाइनों और उनकी सहायक गतिविधियों में उपयोग होने वाले ईंधन और स्नेहक के रिसाव का खतरा हमेशा बना रहता है। यह रिसाव समुद्री पारिस्थितिकी पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है।
  4. महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक कारकों की अनदेखी करना : हाल ही में खंभात की खाड़ी में एक अपतटीय पवन फार्म के लिये की गई EIA रिपोर्ट में डॉल्फिन, शार्क और समुद्री सरीसृप की उपस्थिति तो दर्ज की गई, लेकिन इनकी पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता और परिचालन प्रभावों को बहुत ही कम करके आँका गया।
  5. तकनीकी और संरचनात्मक चुनौतियाँ : गहरे समुद्र में पवन टर्बाइनों की स्थापना भारत के लिये अब भी एक चुनौती है, क्योंकि न तो तकनीकी विशेषज्ञता पर्याप्त है और न ही समुद्री परिस्थितियों में संचालन का अनुभव। इससे टर्बाइनों की स्थिरता और रखरखाव पर असर पड़ सकता है।

 

भारत में पवन ऊर्जा की वर्तमान स्थिति : 

 

  • जून 2025 तक, भारत की कुल नवीकरणीय ऊर्जा में पवन ऊर्जा की भागीदारी 21.78% रही।
  • अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (IRENA) के अनुसार, भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा पवन ऊर्जा उत्पादक देश है।
  • वर्ष 2014 में जहाँ भारत की पवन क्षमता लगभग 21 GW थी, वहीं जून 2025 तक यह 51.3 GW तक पहुँच चुकी है।
  • राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के अनुसार, भारत में 150 मीटर ऊँचाई पर 1164 GW की संभावित पवन ऊर्जा क्षमता है।
  • यह आँकड़े भारत में पवन ऊर्जा के अपार भविष्य की ओर संकेत करते हैं, लेकिन इसके साथ ही यह जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है कि इसका विकास स्थायी और पर्यावरण-सम्मत तरीके से हो।

 

समाधान की राह :

 

  1. संवेदनशील क्षेत्रों का मानचित्रण और ओपन-सोर्स टूल्स का उपयोग करने की जरूरत : बर्डलाइफ इंटरनेशनल द्वारा विकसित AVISTEP (Avian Sensitivity Tool for Energy Planning) जैसे ओपन-सोर्स टूल्स का उपयोग करके पवन परियोजनाओं के लिए उपयुक्त स्थानों का चयन किया जा सकता है। इससे पक्षियों के संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करके “नो-गो जोन” निर्धारित किए जा सकते हैं।
  2. नवीकरणीय परियोजनाओं की क्षेत्रीय योजना बनाने की आवश्यकता : दीर्घकालिक डेटा, उपग्रह ट्रैकिंग और संरक्षण अनुसंधान के आधार पर नवीकरणीय परियोजनाओं की क्षेत्रीय योजना बनाई जानी चाहिए। विशेष रूप से GIB के आवास क्षेत्रों में, बिजली लाइनों को भूमिगत करने या वैकल्पिक मार्ग अपनाने जैसी रणनीतियाँ अपनाई जानी चाहिए।
  3. संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम को अपनाने एवं प्रोत्साहित करने की जरूरत : ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की आबादी को पुनर्जीवित करने के लिए “जंप-स्टार्ट” पद्धति के तहत अंडों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित कर, वहाँ चूजों को पालना एक व्यावहारिक रणनीति है, जिसे राजस्थान में अपनाया गया है।
  4. प्रौद्योगिकीय समाधान : पवन टरबाइन ब्लेड को रंगने से पक्षियों को उन्हें देखने में मदद मिलती है, जिससे टक्कर की संभावना कम होती है। प्रवास के समय टरबाइनों को अस्थायी रूप से बंद करना भी पक्षी-संरक्षण की दृष्टि से लाभकारी हो सकता है।
  5. सभी पवन परियोजनाओं में EIA अनिवार्यता सुनिश्चित करने की जरूरत : सिर्फ अपतटीय ही नहीं, बल्कि सभी भूमि आधारित पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए भी EIA को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए ताकि इनके प्रभावों का समय रहते मूल्यांकन हो सके।
  6. एकीकृत ऊर्जा दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत : पवन ऊर्जा को सौर ऊर्जा और बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) के साथ जोड़कर न केवल ग्रिड स्थिरता सुनिश्चित की जा सकती है, बल्कि 24×7 बिजली आपूर्ति का लक्ष्य भी पूरा किया जा सकता है।
  7. वैज्ञानिक अध्ययन के साथ निरंतर निगरानी और अनुसंधान पर जोर देने की जरूरत : पवन ऊर्जा का जैव विविधता पर दीर्घकालिक प्रभाव समझने के लिए थार जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में सतत निगरानी और वैज्ञानिक अध्ययन आवश्यक हैं। इससे भविष्य में नीतिगत निर्णयों को अधिक पारिस्थितिकी-समर्थ बनाने में मदद मिलेगी।

 

निष्कर्ष : 

 

  • भारत में पवन ऊर्जा का विस्तार निस्संदेह जलवायु संकट से निपटने और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। लेकिन इस प्रगति की राह में पारिस्थितिकीय चुनौतियाँ भी हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। 
  • देश में जैव विविधता संरक्षण एवं पारिस्थितिकीय चुनौतियों के संदर्भ में विशेष रूप से पक्षियों और समुद्री जीवन पर इसके प्रभावों को गंभीरता से लेते हुए नीति-निर्माताओं को ऐसा संतुलन बनाना होगा, जहाँ विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों साथ-साथ चलें।
  • पवन ऊर्जा परियोजनाओं की योजना और क्रियान्वयन में वैज्ञानिक अनुसंधान, क्षेत्रीय पारिस्थितिकी की समझ और सतत निगरानी के लिए यह आवश्यक है कि इसे केंद्रीय स्थान दिया जाए। तभी भारत ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते हुए जैव विविधता की रक्षा भी सुनिश्चित कर सकेगा और यही सतत विकास की सच्ची दिशा होगी।
  • भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों और पारिस्थितिकीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना होगा। इसके लिए कुछ व्यावहारिक और वैज्ञानिक उपायों पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक है। 

 

स्त्रोत – पी. आई. बी एवं द हिंदू।

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में पवन ऊर्जा विस्तार को पारिस्थितिकीय रूप से अधिक अनुकूल बनाने के लिए किन उपायों की सिफारिश की गई है?

  1. सभी परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) अनिवार्य करना।
  2. AVISTEP जैसे टूल्स का उपयोग करके उपयुक्त स्थानों का चयन।
  3. केवल समुद्र में टरबाइन लगाना।
  4. एकीकृत ऊर्जा दृष्टिकोण को अपनाना।

नीचे दिए गए कूट के माध्यम से सही उत्तर का चयन कीजिए : 

A. केवल 1, 2 और 3 

B. केवल 1, 2 और 4 

C. इनमें से कोई नहीं।

D. उपरोक्त सभी।

उत्तर – B

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. चर्चा कीजिए कि भारत में पवन ऊर्जा के तेजी से विस्तार के कारण विशेषकर पक्षियों और समुद्री जैव विविधता पर इसके प्रभाव के संदर्भ से जुड़ी प्रमुख पारिस्थितिकीय चुनौतियाँ क्या हैं, और इनके समाधान के लिए कौन-से वैज्ञानिक और नीति-आधारित उपाय आवश्यक हैं? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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