भारत में बायो-बिटुमेन या जैव कोलतार का उत्पादन शुरू

भारत में बायो-बिटुमेन या जैव कोलतार का उत्पादन शुरू

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के अंतर्गत ‘ जैव विविधता, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी, पर्यावरण प्रदूषण और पर्यावरण संरक्षण , विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ राष्ट्रीय राजमार्गों का विकास, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण प्रदूषण, नवीकरणीय ऊर्जा , बायो – बिटुमेन या जैव – कोलतार ’ खंड से संबंधित है। इसमें PLUTUS IAS टीम के सुझाव भी शामिल हैंयह लेख ‘ दैनिक कर्रेंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ भारत में बायो-बिटुमेन या जैव कोलतार का उत्पादन शुरू ’ से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ? 

 

  • हाल ही में भारत ने बायोमास या कृषि अपशिष्ट से बड़े पैमाने पर बायो-बिटुमेन या जैव-कोलतार का उत्पादन शुरू करने की योजना शुरू की है।

 

बायो-बिटुमेन या जैव-कोलतार : 

 

 

  • बायो-बिटुमेन एक जैव-आधारित बिंडर (बांधक) होता है, जो वनस्पति तेलों, फसल के ठूंठ, शैवाल, लिग्निन (लकड़ी का एक घटक) या पशु खाद जैसे नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त होता है। 
  • बायो-बिटुमेन उत्पादन को पेट्रोलियम बिटुमेन के स्थानीय विकल्प के रूप में विकसित किया गया है, जिससे पर्यावरण के प्रति प्रभाव को कम किया जा सके।
  • यह सड़कों और छतों के निर्माण में उपयोग किया जाता है। इसे प्रत्यक्ष प्रतिस्थापन, संशोधक, और कायाकल्प के तौर पर उपयोग किया जाता है।
  • बायो-बिटुमेन तकनीक से सड़कें बनाने में पराली का उपयोग किया जाएगा, जिससे प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

 

उत्पत्ति और उत्पादन : 

 

  • पेट्रोलियम बिटुमेन के समान ही, बायो-बिटुमेन भी कच्चे तेल के आसवन से प्राप्त होता है। इसके उत्पादन के लिए वनस्पति तेलों और अन्य जैविक स्रोतों का उपयोग किया जाता है, जिनकी प्राकृतिक उचितता और उपलब्धता अधिक होती है। बियोमास संयंत्रों, जैवगैसिफिकेशन और अन्य तकनीकियों का उपयोग करके इसे प्राकृतिक रूप से उत्पन्न किया जा सकता है।

 

गुण और उपयोग : 

 

  • बायो-बिटुमेन का मुख्य उपयोग वायुमुक्त संरचनाओं में होता है, जैसे कि सड़क निर्माण (डामर फर्श), इमारतों, और समुद्री संरचनाओं के लिए जलरोधी बिंडर के रूप में। इसकी उच्च चिपकने और जलरोधी गुणवत्ता के कारण, यह संरचनाओं के लिए दुर्गमता और ट्रेडिशनल बिंडर के रूप में एक प्रतिस्थापन माध्यम के रूप में विकसित किया गया है।

 

बायो-बिटुमेन या जैव-कोलतार के उपयोग के तरीके : 

 

  • प्रत्यक्ष प्रतिस्थापन : पेट्रोलियम बिटुमेन को पूर्णतः बायो-बाइंडर से प्रतिस्थापित करना।
  • संशोधक : पारंपरिक बिटुमेन के गुणों में सुधार के लिए उसमें जैव-पदार्थ मिलाना।
  • कायाकल्प : पुराने डामर फुटपाथों की गुणवत्ता और कार्यक्षमता को बहाल करना।
  • बायो-बिटुमेन का पेट्रोलियम बिटुमेन के एक विकल्प के रूप में उपयोग : भारत में बायो-बिटुमेन एक समीक्षात्मक विकल्प के रूप में उपयोग किया जा सकता है जो संरचनाओं के निर्माण में पेट्रोलियम बिटुमेन के प्रयोग को प्राकृतिक और पर्यावरणीय रूप से वित्तीय वर्ष 2023-24 में राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण लगभग 12,300 किलोमीटर तक होने की उम्मीद है, जो लगभग 34 किलोमीटर प्रतिदिन के बराबर है।
  • भारत में बिटुमेन की खपत : भारत में बिटुमेन की खपत इसके  उत्पादन, आयात और उपयोग की विविधता को दर्शाती है, साथ ही राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास के साथ इसकी खपत में वृद्धि का मापन भी करती है।

 

भारत में बायो-बिटुमेन या जैव कोलतार उत्पादन पहल का मुख्य उद्देश्य :

 

भारत में बायो-बिटुमेन या जैव कोलतार का उत्पादन का निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है- 

  1. आयात निर्भरता कम करना : इसका प्राथमिक उद्देश्य आगामी दशक में आयातित बिटुमेन के स्थान पर घरेलू स्तर पर उत्पादित जैव-बिटुमेन का उपयोग करना है, जिससे विदेशी मुद्रा व्यय में कमी आएगी। 
  2. पर्यावरण संबंधी चिंताओं का समाधान : जैव-बिटुमेन उत्पादन का उद्देश्य बायोमास और कृषि अपशिष्ट को फीडस्टॉक के रूप में उपयोग करके पराली जलाने से जुड़े पर्यावरणीय मुद्दों को कम करना है।
  3. सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देना : जैव-आधारित सामग्रियों का उपयोग करके, यह पहल टिकाऊ सड़क निर्माण प्रथाओं का समर्थन करती है और वैश्विक पर्यावरण मानकों के अनुरूप है।
  4. तकनीकी विकास एवं प्रायोगिक अध्ययन : केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (CRRI) जैव-बिटुमेन का उपयोग करके 1 किलोमीटर की सड़क पर एक पायलट अध्ययन करने के लिये भारतीय पेट्रोलियम संस्थान के साथ सहयोग कर रहा है।

 

भारत में जैव-बिटुमेन के उत्पादन की प्रमुख चुनौतियाँ :

 

 

भारत में जैव-बिटुमेन के उत्पादन और उपयोग से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं। जो निम्नलिखित है – 

  1. लागत प्रभावशीलता :
    • वर्तमान में जैव-बिटुमेन उत्पादन पारंपरिक तरीकों की तुलना में अधिक महंगा हो सकता है।
  2. दीर्घकालिक प्रदर्शन :
    • जैव-ऐस्फाल्ट के दीर्घकालिक प्रदर्शन और स्थायित्व का आकलन करने के लिए अधिक व्यापक क्षेत्रीय परीक्षणों की आवश्यकता होती है।
  3. मानकीकरण :
    • जैव-बिटुमेन को व्यापक रूप से अपनाने हेतु इसके लिए स्पष्ट मानक और विनिर्देश स्थापित करना आवश्यक है।
  4. अन्य नवाचार विधियाँ :
    • स्टील स्लैग रोड प्रौद्योगिकी:
      • स्टील स्लैग, स्टील उत्पादन के दौरान उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट का उपयोग करके अधिक मजबूत और टिकाऊ सड़कें बनाने की एक नई विधि है।
      • जर्मनी के हैम्बर्ग में कंपनियों ने लागत कम करने, ऊर्जा बचाने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए 100% पुनर्नवीनीकरण डामर फुटपाथ (RAP) विकसित किया।
    • प्लास्टिक सड़कें:
      • भारत ने कुल 2,500 किलोमीटर से अधिक विस्तृत प्लास्टिक सड़कों का निर्माण किया है।
      • वैश्विक स्तर पर भी 15 से अधिक देशों में प्लास्टिक की सड़कों का निर्माण किया जा रहा है।
      • उदाहरण के लिए लद्दाख में सड़क निर्माण के लिये कम-से-कम 10% प्लास्टिक कचरे का उपयोग किया जाना अनिवार्य है।

 

स्रोत –  द हिन्दू एवं इकॉनोमिक टाइम्स। 

 

Download plutus ias current affairs Hindi med 01st July 2024

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. पर्यावरण की दृष्टि से कार्बन पदचिह्न को कम करने के लिए भारत में सडकों के निर्माण के लिए निम्नलिखित में से किसका उपयोग किया जाता है ? ( UPSC – 2020)

  1. जियोटेक्सटाइल्स ।
  2. शीत मिश्रित एस्फाल्ट प्रौद्योगिकी ।
  3. कॉपर स्लैग ।
  4. शीत मिश्रित एस्फाल्ट प्रौद्योगिकी ।  
  5. ऊष्ण मिश्रित एस्फाल्ट प्रौद्योगिकी ।
  6. पोर्टलैंड सीमेंट ।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर का चुनाव कीजिए।
A. केवल 2, 3 और 4

B. केवल 3, 4 और 5

C.  केवल 1, 2  और 5

D. केवल 1, 2 और 3

उत्तर – D

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में बायो-बिटुमेन या जैव कोलतार के उत्पादन के मुख्य उद्देश्यों को रेखांकित करते हुए इसके प्रमुख चुनौतियों विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए। ( UPSC CSE – 2021 शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )  

No Comments

Post A Comment