08 Oct भारत में मंदिरों पर राज्य का नियंत्रण बनाम धार्मिक पहचान एवं प्रशासनिक चुनौतियाँ
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ शासन एवं राजव्यवस्था , भारतीय संविधान , उच्चतम न्यायालय, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप, भारतीय संविधान में निहित केंद्र – राज्य संबंध ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ मौलिक अधिकार , अनुच्छेद 25 , धार्मिक स्वतंत्रता , पूजा स्थलों पर राज्य नियंत्रण संबंधी मुद्दे , व्यक्ति की धार्मिक पहचान और मंदिर प्रशासन की जवाबदेही ’ खंड से संबंधित है। )
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में तिरुपति लड्डू प्रसादम पर हुए विवाद ने भारत में मंदिरों पर राज्य के नियंत्रण पर एक बार फिर से बहस छेड़ दी है।
- तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर में चढ़ाए जाने वाले पवित्र प्रसाद के रूप में तिरुपति लड्डू को लेकर विवाद हुआ, जिसमें लड्डुओं में मिलावटी घी पाए जाने का आरोप लगा।
- इस घटना ने मंदिरों को सरकारी हस्तक्षेप और नियंत्रण से मुक्त करने की मांग को फिर से जोर-शोर से उठाया है।
- स्वतंत्रता के बाद, तमिलनाडु (तब मद्रास) राज्य ने मंदिरों पर राज्य के नियंत्रण के लिए कानून बनाया, जो बाद में अन्य राज्यों में भी लागू हुआ।
- वर्तमान में, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी ऐसे कानून हैं।
- भारत में कई हिंदू धार्मिक संगठन मंदिरों को दुधारू गायों और गैर-प्रतिनिधि मंदिर बोर्डों के रूप में देखते हैं। जिससे इन कानूनों की आलोचना होती रही है।
- भारत में मंदिरों पर राज्य का नियंत्रण एक विवादास्पद मुद्दा है, जिसमें धर्म और राज्य के पृथक्करण, धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक संस्थाओं के अपने मामलों का प्रबंधन करने के अधिकारों पर बहस शामिल होती है।
भारत में मंदिरों पर राज्य के नियंत्रण का ऐतिहासिक संदर्भ :
- भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान, कई मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में लाया गया। ब्रिटिश प्रशासन ने स्थानीय मंदिर प्राधिकारियों के भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन का हवाला देते हुए, मुख्यतः प्रशासनिक कारणों से हिंदू मंदिरों का प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया था।
- सन 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद भी भारत के कई राज्यों ने इस प्रणाली को जारी रखा।
- फलतः भारत के कई प्रमुख मंदिर, विशेष रूप से तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे दक्षिणी राज्यों में, प्रत्यक्ष सरकारी नियंत्रण में आ गए।
- जिससे वहां की सरकारें मंदिर के कोष का प्रबंधन करती हैं, ट्रस्टियों की नियुक्ति करती हैं और हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (एचआरसीई) विभाग के माध्यम से प्रशासनिक निर्णय लेती हैं।
- 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 30 लाख पूजा स्थलों में से अधिकांश हिंदू मंदिर हैं।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25(2) के तहत, राज्य को धार्मिक प्रथाओं से जुड़ी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों को विनियमित करने और सामाजिक कल्याण, सुधार और हिंदू धार्मिक संस्थानों को हिंदुओं के सभी वर्गों के लिए खोलने के लिए कानून बनाने की अनुमति है।
- धार्मिक बंदोबस्ती और संस्थानों को संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची के तहत सूचीबद्ध किया गया है, जो केंद्र और राज्यों दोनों को इस विषय पर कानून बनाने की अनुमति देता है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि मंदिरों पर राज्य का नियंत्रण एक ऐतिहासिक और संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा है।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय :
- भारत की न्यायपालिका ने मंदिरों के प्रबंधन के संबंध में कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न मामलों में राज्य के अधिकार को मान्यता दी है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया है कि राज्य का नियंत्रण सीमित और पारदर्शी होना चाहिए।
- शिरूर मठ मामला (1954) : इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि राज्य मंदिर प्रबंधन के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को विनियमित कर सकता है, लेकिन धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। इस निर्णय ने राज्य और धर्म के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। इस प्रकार, सर्वोच्च न्यायालय ने मंदिरों के प्रबंधन में राज्य के सीमित हस्तक्षेप को स्वीकार किया है, जबकि धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा भी की है।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए प्रशासनिक पहलुओं पर राज्य की भूमिका को मान्यता दी गई है।
भारत में मंदिरों पर राज्य का नियंत्रण होने के पक्ष में तर्क :
- भारत में मंदिरों पर राज्य का नियंत्रण होने के पक्ष में कई तर्क प्रस्तुत किए जाते हैं, जो मंदिर प्रबंधन में पारदर्शिता, संसाधनों का उचित उपयोग और सामाजिक समावेशिता को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं।
- मंदिर कुप्रबंधन की रोकथाम : राज्य का नियंत्रण मंदिर निधि के प्रशासन में पारदर्शिता बढ़ाता है और दुरुपयोग तथा भ्रष्टाचार के जोखिम को कम करता है। सरकारी निगरानी से इन निधियों का जिम्मेदार और नैतिक प्रबंधन सुनिश्चित होता है।
- व्यावसायीकरण से सुरक्षा : सरकारी भागीदारी का उद्देश्य मंदिर निधियों के व्यावसायीकरण और शोषण को रोकना है, जिससे मंदिरों की पवित्रता और उद्देश्य बनाए रखा जा सके।
- लैंगिक समानता को बढ़ावा देना : राज्य द्वारा मंदिरों का प्रबंधन यह सुनिश्चित करता है कि सभी भक्तों को समान रूप से मंदिरों की सेवाएँ और संसाधन प्राप्त हों। उदाहरण के लिए, त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के समान प्रवेश का समर्थन किया था।
- संसाधनों का पुनर्वितरण : मंदिरों से उत्पन्न राजस्व को राज्य की पहलों की ओर पुनर्निर्देशित किया जाता है, जो व्यापक समुदाय को लाभान्वित करते हैं, जैसे कि बुनियादी ढांचा विकास या सामाजिक कल्याण कार्यक्रम। तमिलनाडु का HRCE विभाग मंदिर निधियों का उपयोग सामुदायिक विकास कार्यक्रमों जैसे कि स्कूल, कॉलेज और अस्पताल स्थापित करने के लिए करता है।
- धार्मिक और सांस्कृतिक समावेशिता : राज्य नियंत्रण यह सुनिश्चित करता है कि मंदिर संवैधानिक समावेशिता के सिद्धांतों का पालन करें। तमिलनाडु में, HRCE विभाग ने कई मंदिरों में दलितों और पिछड़े समुदायों के लिए प्रवेश सुनिश्चित किया है।
- भक्तों के शोषण की रोकथाम : राज्य नियंत्रण का उद्देश्य भक्तों को मंदिर अधिकारियों द्वारा शोषण से बचाना है, जैसे अनुष्ठानों के लिए अत्यधिक शुल्क लेना। तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के मंदिरों में अनुष्ठानों और प्रसाद के लिए शुल्क पर दिशा-निर्देश स्थापित किए गए हैं।
भारत में मंदिरों पर राज्य के नियंत्रण के विपक्ष में तर्क :
- भेदभावपूर्ण नीति एवं धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों के विरुद्ध होना : आलोचकों का मानना है कि सरकार कई राज्यों में हिंदू मंदिरों को नियंत्रित करती है, जबकि मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे अपने मामलों को स्वतंत्र रूप से प्रबंधित करते हैं। यह भेदभावपूर्ण नीति धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
- कुप्रबंधन और नौकरशाही की अक्षमता : सरकार द्वारा नियुक्त बोर्ड या अधिकारियों में अक्सर मंदिर के मामलों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता, प्रतिबद्धता या धार्मिक समझ की कमी होती है। इससे मंदिर के मामलों में कुप्रबंधन और नौकरशाही की अक्षमता होती है। उदाहरण के लिए – हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (HRCE) पर भ्रष्टाचार और खराब प्रशासन के आरोप लगे हैं।
- मंदिर के फंड का डायवर्जन : धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों के लिए मंदिर के फंड का डायवर्जन भक्तों द्वारा विरोध किया जाता है। यह धार्मिक फंड के अनुचित उपयोग का एक प्रमुख उदाहरण है।
- मंदिर की विरासत और परंपराओं का क्षरण : राज्य द्वारा लागू प्रशासनिक मानदंड मंदिर प्रबंधन के आध्यात्मिक और अनुष्ठानिक पहलुओं के साथ संरेखित नहीं होते, जिससे मंदिर की विरासत और परंपराओं का क्षरण होता है। उदाहरण के लिए – सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश का समर्थन मंदिर की अनुष्ठानिक परंपराओं के विपरीत है।
- भक्तों के भरोसे और भागीदारी में कमी : नौकरशाही नियंत्रण के कारण मंदिर प्रबंधन में भक्तों की भागीदारी कम हो जाती है, जिससे भक्तों का भरोसा भी घटता है।
- मंदिर की संपत्तियों का आर्थिक कुप्रबंधन : तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों में निजी व्यक्तियों या सरकारी संस्थाओं द्वारा मंदिर की भूमि पर अतिक्रमण के कई मामले सामने आए हैं, जिससे मंदिर के संसाधनों का आर्थिक कुप्रबंधन होता है।
- निजी ट्रस्टों के माध्यम से बेहतर प्रबंधन : आलोचकों का तर्क है कि महाराष्ट्र में शिरडी साईं बाबा मंदिर ट्रस्ट जैसे राज्य के नियंत्रण में नहीं आने वाले मंदिर सफलतापूर्वक धर्मार्थ अस्पताल, स्कूल और सामुदायिक कार्यक्रम चलाते हैं। इन तर्कों के आधार पर, मंदिरों पर राज्य के नियंत्रण को समाप्त करने की मांग की जाती है ताकि धार्मिक स्वतंत्रता और मंदिरों की स्वायत्तता सुनिश्चित की जा सके।
समाधान / आगे की राह :
- सरकार को केवल निगरानी से संबंधित कार्य करने की जरूरत : स्थानीय धार्मिक नेताओं, समुदाय के प्रतिनिधियों और कानूनी या वित्तीय विशेषज्ञों से युक्त स्वतंत्र मंदिर ट्रस्टों की स्थापना की जानी चाहिए। सरकार को केवल निगरानी कार्य करना चाहिए। उदाहरण के लिए, स्वर्ण मंदिर का प्रबंधन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) द्वारा किया जाता है, जो राज्य के नियंत्रण से स्वतंत्र है।
- मंदिर के धन में पारदर्शिता और जवाबदेही : एक स्वतंत्र लेखा परीक्षा निकाय द्वारा मंदिरों का नियमित वित्तीय लेखा परीक्षण किया जाना चाहिए और मंदिर के धन का सार्वजनिक प्रकटीकरण अनिवार्य होना चाहिए।
- भक्त परिषदों का गठन : मंदिर के प्रबंधन, अनुष्ठानों और त्योहारों पर सलाह देने के लिए भक्तों और समुदाय के नेताओं से युक्त स्थानीय परिषदों का गठन किया जा सकता है। इससे समुदाय को मंदिर की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं की रक्षा करने का अधिकार मिलेगा।
- सरकार की भूमिका : राज्य की भूमिका प्राचीन मंदिरों की विरासत और वास्तुकला को संरक्षित करने के लिए जिम्मेदार संरक्षक की होनी चाहिए। अतः सरकार को प्रबंधक नहीं, बल्कि प्राचीन मंदिरों की विरासत की संरक्षक के रूप में कार्य करना चाहिए।
- धार्मिक नेताओं के साथ सहयोग : धार्मिक नेताओं के साथ सहयोग से मंदिर के धन का उपयोग सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों में किया जा सकता है, जिससे उस धन का उपयोग सार्वजानिक स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और गरीबी उन्मूलन के लिए हो सके।
स्त्रोत – पीआईबी एवं इंडियन एक्सप्रेस।
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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत में मंदिरों पर राज्य के नियंत्रण और धार्मिक पहचान के बीच संतुलन बनाने के लिए किन तरीकों को अपनाया जा सकता है?
- स्थानीय निकायों को अधिक स्वायत्तता देना।
- सरकार के हस्तक्षेप को बढ़ावा देना।
- पारदर्शी नीतियों का निर्माण करना।
- आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
उपरोक्त में से कौन सा कूट सही है ?
A. केवल 1 और 3
B. केवल 2 और 4
C. केवल 1 और 4
D. केवल 2 और 3
उत्तर- A
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारतीय संविधान में धर्म और राज्य के बीच के संबंधों से संबंधित प्रावधानों और मंदिरों पर राज्य के नियंत्रण की वैधता पर टिप्पणी करते हुए, यह चर्चा कीजिए कि मंदिरों की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान एवं राज्य के नियंत्रण के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जा सकता है? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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