भारत – यूरोपीय संघ द्विपक्षीय संबंध : एक स्थायी वैश्विक साझेदारी की ओर

भारत – यूरोपीय संघ द्विपक्षीय संबंध : एक स्थायी वैश्विक साझेदारी की ओर

पाठ्यक्रम : सामान्य अध्ययन – 2- राजनीति एवं शासन व्यवस्था – भारत और यूरोपीय संघ संयुक्त नौसेना अभ्यास। 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए : 

यूरोपीय संघ (EU), हिंद महासागर क्षेत्र, ऑपरेशन अटलांटा, UNCLOS, मुक्त व्यापार समझौता (FTA), भारत–EU व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद (TTC), कृत्रिम बुद्धिमत्ता

मुख्य परीक्षा के लिए : 

भारत और यूरोपीय संघ (EU) के बीच सहयोग के मुख्य क्षेत्र क्या है? भारत-यूरोपीय संघ (EU) द्विपक्षीय संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

 

खबरों में क्यों?

 

 

  • हाल ही में भारत और यूरोपीय संघ (EU) 1 से 3 जून तक हिंद महासागर क्षेत्र में एक संयुक्त नौसैनिक अभ्यास का आयोजन करने जा रहे हैं, जो दोनों पक्षों के बीच समुद्री सहयोग को नई दिशा देने वाला एक अहम प्रयास है। इस अभ्यास में समुद्री डकैती रोधी अभियानों, सामरिक संचालन, आपसी समन्वय क्षमता (इंटरऑपरेबिलिटी), और संचार प्रणालियों को मजबूत बनाने पर विशेष बल दिया जाएगा।
  • यह अभ्यास इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक नियम-आधारित, स्वतंत्र, खुली और समावेशी समुद्री व्यवस्था की स्थापना के प्रति भारत और EU की साझी प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। इस सहयोग की नींव संप्रभुता के सम्मान, अंतरराष्ट्रीय कानूनों (विशेषतः UNCLOS) के पालन, नौवहन की स्वतंत्रता, और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान जैसे मूल सिद्धांतों पर टिकी है।
  • इस अभियान में भारतीय नौसेना के जहाज़ों के साथ-साथ यूरोपीय संघ के दो फ्रिगेट—जो ऑपरेशन अटलांटा के तहत तैनात हैं—भी हिस्सा लेंगे, जिससे इस अभ्यास का सामरिक महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

 

भारत–यूरोपीय संघ साझेदारी : सहयोग के प्रमुख आयाम : 

 

  1. आर्थिक सहयोग और निवेश संबंध : यूरोपीय संघ भारत के प्रमुख व्यापारिक भागीदारों में से एक है, और द्विपक्षीय व्यापार लगातार नए शिखर छू रहा है। मुक्त व्यापार समझौता (FTA), निवेश संरक्षण, और भौगोलिक संकेतकों पर जारी वार्ताएं पारस्परिक आर्थिक संबंधों को अधिक संतुलित, पारदर्शी और संरक्षित बनाने की दिशा में अग्रसर हैं।
  2. प्रौद्योगिकी एवं नवाचार सहयोग : भारत–यूरोपीय संघ (EU) व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) एक ऐसा मंच है, जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता, 5G/6G, क्वांटम कंप्यूटिंग तथा उभरती तकनीकों के लिए वैश्विक मानकों के सामंजस्य पर काम कर रही है। दोनों पक्ष डिजिटल शासन और भरोसेमंद तकनीकी तंत्र के निर्माण में सहयोग बढ़ा रहे हैं।
  3. हरित विकास और जलवायु परिवर्तन : स्वच्छ ऊर्जा, सतत विकास और हरित औद्योगिक नीति के तहत भारत और यूरोपीय संघ मिलकर शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हैं। इसमें सौर ऊर्जा, जैव ईंधन और आपदा-प्रतिरोधी अवसंरचना जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
  4. सुरक्षा एवं रणनीतिक सहयोग : समुद्री सुरक्षा, साइबर रक्षा, और खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान के माध्यम से दोनों पक्ष वैश्विक और क्षेत्रीय खतरों का सामना करने हेतु साझेदारी को सशक्त बना रहे हैं। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए EU, भारत की ‘हिंद-प्रशांत महासागर पहल’ का समर्थक है।
  5. भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) और आधारभूत संरचना का विकास : भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) संपर्क सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो आधुनिक, लचीले और टिकाऊ अवसंरचना निर्माण को प्राथमिकता देता है। यह गलियारा वैश्विक आपूर्ति शृंखला को नया आयाम दे सकता है।
  6. जन–जन के स्तर पर संवाद : शिक्षा, शोध, संस्कृति, पर्यटन और खेलों के माध्यम से लोगों के बीच संपर्क को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कानूनी और सुव्यवस्थित प्रवास के लिए नीतियां बनाई जा रही हैं, जिससे कुशल पेशेवरों का आदान-प्रदान आसान हो सके।
  7. वैश्विक शासन में सहयोग : भारत और यूरोपीय संघ (EU), लोकतंत्र, बहुपक्षवाद और नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के पक्षधर हैं। दोनों जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और AI के नैतिक उपयोग जैसे वैश्विक मुद्दों पर सहयोग की भावना से कार्य कर रहे हैं।

 

भारत के लिए यूरोपीय संघ का रणनीतिक महत्व : 

 

  1. व्यापारिक विश्वसनीयता और निवेश का स्रोत : यूरोपीय संघ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है, जिसकी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 2000 से 2022 के बीच 87 बिलियन यूरो तक पहुँच चुकी है। यह संबंध एक परिपक्व आर्थिक भागीदारी का संकेत है।
  2. तकनीकी के क्षेत्र में आपसी सहयोग : होराइजन यूरोप, डिजिटल साझेदारी, और AI, 5G, साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग भारत की युवा जनसंख्या की क्षमताओं को यूरोपीय तकनीकी नेतृत्व से जोड़ता है।
  3. स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में साझेदारी : यूरोपीय संघ द्वारा 2.5 बिलियन यूरो का जलवायु समर्थन भारत के ऊर्जा बदलाव और वैश्विक नेतृत्व को सशक्त करता है। इसके मूल में सौर ऊर्जा, स्वच्छ प्रौद्योगिकी और स्थायी समाधान इस सहयोग शामिल हैं।
  4. समुद्री रणनीतिक संवाद और गहरा जुड़ाव : हिंद-प्रशांत में संयुक्त नौसैनिक अभ्यास और ऑपरेशन अटलांटा जैसे अभियानों में साझेदारी से दोनों देशों के बीच समुद्री रणनीतिक संवाद और गहरा हुआ है।
  5. बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की दिशा में अग्रसर होना : भारत और EU, संयुक्त राष्ट्र में सुधार, बहुपक्षवाद और सत्ता संतुलन के समर्थन में एकजुट हैं। यह साझेदारी एक निष्पक्ष और न्यायसंगत वैश्विक शासन प्रणाली की वकालत करती है।
  6. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में विविधता : भारत–यूरोपीय संघ (EU) व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) के अंतर्गत अर्धचालक, फार्मास्युटिकल और महत्वपूर्ण खनिज क्षेत्रों में सहयोग भारत को एक विश्वसनीय आपूर्ति केंद्र के रूप में स्थापित कर रहा है।
  7. शैक्षिक और मानव संसाधन सहयोग : यूरोपीय संघ में 1 लाख से अधिक भारतीय छात्र अध्ययनरत हैं, और कार्यक्रम जैसे ‘इरास्मस+’ भारत–EU जनसंवाद को सशक्त बना रहे हैं। इससे दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी को सामाजिक आधार मिलता है।
  8. चीन की साम्राज्य विस्तारवादी और आक्रामक नीतियों के प्रभाव को संतुलित करना : चीन की आक्रामक नीतियों और अनुचित व्यापार व्यवहारों के बीच, भारत EU के लिए  एक स्थिर, लोकतांत्रिक और तकनीकी रूप से सक्षम साझेदार के रूप में एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में उभर रहा है।

 

भारत–यूरोपीय संघ द्विपक्षीय संबंधों की प्रमुख चुनौतियाँ : 

 

  1. व्यापारिक तकनीकी अड़चनों का मौजूद होना : यूरोपीय कंपनियों को भारत में तकनीकी मानकों (TBT) और स्वच्छता-संबंधी उपायों (SPS) के अनुपालन में कठिनाइयाँ आती हैं। फार्मास्यूटिकल उत्पादों को EU की जटिल प्रमाणीकरण प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, जिससे निर्यात बाधित होता है।
  2. गैर-शुल्कीय (Non-Tariff) नीतिगत बाधाओं का होना :  EU द्वारा लगाए गए नियम—जैसे आईटी कंपनियों के लिए स्थानीय उपस्थिति की अनिवार्यता—से भारतीय सेवा प्रदाताओं के लिए लागत और अनुपालन का बोझ बढ़ जाता है, जिससे डिजिटल सेवाओं का विस्तार प्रभावित होता है।
  3. सीमित बाजार पहुंच का होना : यूरोपीय ऑटोमोबाइल और मद्य उत्पादों पर भारत द्वारा लगाया गया उच्च शुल्क तथा सार्वजनिक खरीद प्रक्रियाओं में विदेशी भागीदारी की सीमाएँ व्यापारिक संतुलन को प्रभावित करती हैं।
  4. बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) पर मतभेद होना : एक तरफ जहाँ यूरोपीय संघ पेटेंट नियमों को कड़ा करने और डेटा एक्सक्लूसिविटी की वकालत करता है, वहीं दूसरी तरफ भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता को प्राथमिकता देता है।
  5. हरित व्यापार अवरोध : कार्बन बॉर्डर समायोजन तंत्र (CBAM) का प्रभाव : यूरोपीय संघ का कार्बन बॉर्डर समायोजन तंत्र (CBAM) भारत के इस्पात और एल्युमीनियम उत्पादों के लिए प्रतिस्पर्धा में असमानता पैदा कर रहा है, जिससे निर्यातकों की चिंता बढ़ी है।
  6. तरजीही व्यापार दर्जे का निलंबन : GSP सुविधा के समाप्त होने के बाद भारतीय वस्त्र और चमड़े के उत्पाद यूरोपीय बाजार में शुल्क छूट से वंचित हो गए हैं, जिससे प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हुई है।
  7. निवेश सुरक्षा व्यवस्था पर असहमति का होना : भारत और EU के बीच निवेशक–राज्य विवाद समाधान (ISDS) तंत्र और निवेश की पारदर्शिता से जुड़ी शर्तों पर मतभेद अब तक सुलझ नहीं पाए हैं।
  8. प्रवासन – संबंधी और वीज़ा नियमों में जटिलताओं का होना : भारतीय छात्रों और पेशेवरों के लिए EU वीज़ा प्रक्रिया जटिल बनी हुई है, जबकि EU देशों को पारस्परिक पहुंच की अपेक्षा है।
  9. भू राजनीतिक दृष्टिकोण में असमानता : रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत की तटस्थता की नीति और EU की स्पष्ट आलोचना के बीच असहजता बनी हुई है, जिससे रणनीतिक सहमति प्रभावित हो रही है।
  10. डिजिटल नीति में अंतर होना : डेटा सुरक्षा, साइबर अपराधों की रोकथाम (जैसे बुडापेस्ट कन्वेंशन) जैसे विषयों पर भारत और यूरोपीय संघ के दृष्टिकोण में अंतर सहयोग की गहराई को सीमित करता है।

 

समाधान / आगे की राह :

 

  1. व्यापक व्यापार समझौते को चरणबद्ध रूप से आगे बढ़ाने की आवश्यकता :  FTA वार्ता को चरणबद्ध रूप से आगे बढ़ाना, और कृषि, फार्मा, मदिरा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में सहमति के बिंदु तलाशना महत्वपूर्ण है।
  2. नीतिगत लचीलेपन की भावना विकसित करना : एक-दूसरे की संवेदनशीलताओं का सम्मान करते हुए विचार-विमर्श को मूल्य-तटस्थ बनाना आवश्यक है, जिससे रणनीतिक विश्वास को ठेस न पहुँचे।
  3. हरित सहयोग को संतुलित करने की आवश्यकता : भारत और यूरोपीय संघ दोनों को जलवायु वित्त, तकनीक हस्तांतरण और क्षमता निर्माण पर जोर देते हुए CBAM जैसे विवादास्पद उपायों पर खुला संवाद स्थापित करना होगा।
  4. संस्थागत रणनीतिक संवाद को विस्तार देने की जरूरत : कृत्रिम बुद्धिमत्ता, सेमीकंडक्टर, साइबर सुरक्षा और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में TTC जैसे मंचों का उपयोग करके कार्यनीतिक समन्वय को गति दी जा सकती है।
  5. त्रिपक्षीय व बहुपक्षीय स्तर पर भागीदारी को सुनिश्चित करना : अफ्रीका और हिंद-प्रशांत में साझे बुनियादी ढांचा प्रकल्पों द्वारा चीन के BRI का संतुलन बनाया जा सकता है।
  6. शैक्षणिक और सांस्कृतिक पुलों को सुदृढ़ करने की आवश्यकता :  इरास्मस+ और व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से युवा और पेशेवर आदान-प्रदान को बढ़ावा देना चाहिए।
  7. साइबर और समुद्री क्षेत्र में सहयोग जैसे क्षेत्रों में नीतिगत तालमेल आवश्यकता :  समुद्री स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए नियमित संयुक्त अभ्यास और डेटा संरक्षण जैसे क्षेत्रों में नीतिगत तालमेल आवश्यक है।

 

निष्कर्ष : 

 

  • भारत–यूरोपीय संघ द्विपक्षीय संबंध वैश्विक शक्ति संतुलन के बीच एक निर्णायक मोड़ पर खड़े हैं। जहाँ गहन व्यापारिक, प्रौद्योगिकीय और रणनीतिक सहयोग की संभावनाएँ हैं, वहीं विविध राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मतभेद इन संभावनाओं की राह में बाधा बन सकते हैं। पारस्परिक समझ, विनम्र राजनयिक संवाद और व्यावहारिक सहयोग से ही इस साझेदारी को एक लचीली, न्यायसंगत और स्थायी वैश्विक व्यवस्था में परिवर्तित किया जा सकता है।

 

स्रोत –  पी.आई.बी. एवं द हिन्दू। 02 जून 2025 – पृष्ठ- 06.

Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 2nd June 2025

https://chintan.indiafoundation.in/articles/india-eu-ties-emerging-opportunities-persisting-challenges/.

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. निम्नलिखित में से किस संगठन ने कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम) लागू किया है?

A. विश्व व्यापार संगठन (WTO)

B. यूरोपीय संघ (EU)

C. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC)

D. G20

उत्तर – B

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. चर्चा कीजिए कि वैश्विक भू-राजनीति के संदर्भ में भारत और यूरोपीय संघ की हालिया साझेदारी का क्या महत्व है? भारत-यूरोपीय संघ के बीच एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को अंतिम रूप देने में कौन-कौन सी प्रमुख चुनौतियाँ सामने आ रही हैं, और इस रणनीतिक साझेदारी को और अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

No Comments

Post A Comment