भारत-सऊदी अरब उर्वरक समझौता : दक्षिण एशिया में आपसी सहयोग का एक आधार स्तंभ

भारत-सऊदी अरब उर्वरक समझौता : दक्षिण एशिया में आपसी सहयोग का एक आधार स्तंभ

पाठ्यक्रम सामान्य अध्ययन -2- अंतर्राष्ट्रीय संबंध – भारत-सऊदी अरब उर्वरक समझौता : दक्षिण एशिया में आपसी सहयोग का एक आधार स्तंभ

प्रारंभिक परीक्षा के लिए : 

भारत और सऊदी अरब के बीच उर्वरक समझौता भारतीय किसानों और खाद्य सुरक्षा के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

मुख्य परीक्षा के लिए : 

सऊदी अरब से और अधिक उर्वरक लाने में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है?

 

खबरों में क्यों?

 

 

  • हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री तथा रसायन एवं उर्वरक मामलों के प्रभारी जेपी नड्डा के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने 11 से 13 जुलाई, 2025 के बीच सऊदी अरब के दम्मम और रियाद का दौरा किया। 
  • इस यात्रा का उद्देश्य भारत और सऊदी अरब के बीच रसायन, उर्वरक, स्वास्थ्य सेवाओं और फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को सुदृढ़ करना था।

 

हस्ताक्षरित महत्वपूर्ण समझौतों की रूपरेखा : 

 

  1. साझेदार संस्थाएँ : सऊदी अरब की अग्रणी खनन एवं उर्वरक कंपनी मादेन और भारत की तीन प्रमुख सार्वजनिक व सहकारी संस्थाएँ—इंडियन पोटाश लिमिटेड (आईपीएल), कृभको और कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल)—के बीच बहुवर्षीय उर्वरक आपूर्ति अनुबंधों पर सहमति बनी है।
  2. डीएपी पर विशेष जोर : इन समझौतों का केंद्रबिंदु डायम्मोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की आपूर्ति है, जो भारतीय कृषि के लिए अत्यंत आवश्यक पोषक उर्वरक है।
  3. आपूर्ति की मात्रा : अनुबंध के अंतर्गत सऊदी अरब भारत को वित्त वर्ष 2025-26 से प्रतिवर्ष 3.1 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) डीएपी उपलब्ध कराएगा।
  4. समझौते की समयावधि : ये आपूर्ति अनुबंध प्रारंभ में पाँच वर्षों तक प्रभावी रहेंगे, जिससे भारत को मध्यम अवधि में उर्वरक आपूर्ति की स्थिरता सुनिश्चित होगी।
  5. विस्तार की संभावनाएँ : अनुबंधों में पारस्परिक सहमति से पाँच वर्ष तक विस्तार का प्रावधान भी शामिल है, जो दीर्घकालिक साझेदारी को और मजबूत करता है।
  6. मात्रा की रणनीतिक भूमिका : 3.1 एमएमटी की वार्षिक आपूर्ति प्रतिबद्धता सऊदी अरब से भारत के डीएपी आयात में महत्वपूर्ण वृद्धि को दर्शाती है, जिससे उर्वरक आपूर्ति में पूर्वानुमान शीलता और सुरक्षा में सुधार होगा।
  7. पिछले आँकड़ों से तुलना : भारत ने 2023-24 में 1.6 एमएमटी और 2024-25 में 1.9 एमएमटी डीएपी का आयात सऊदी अरब से किया, जो 17% की वार्षिक वृद्धि को दर्शाता है। नई आपूर्ति व्यवस्था 63% की उल्लेखनीय बढ़त को दर्शाती है, जो सऊदी अरब को भारत का एक प्रमुख दीर्घकालिक उर्वरक आपूर्तिकर्ता बना देती है।

 

भारत के लिए रणनीतिक और सामरिक महत्व : 

 

  1. आपूर्ति सुरक्षा की गारंटी : ये दीर्घकालिक अनुबंध देश को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक उर्वरकों की निरंतर और स्थिर आपूर्ति प्रदान करेंगे।
  2. वैश्विक अस्थिरता से सुरक्षा : सऊदी अरब जैसे विश्वसनीय स्रोत से आपूर्ति मिलने से भारत को अंतरराष्ट्रीय बाजार की अस्थिरता और मूल्य झटकों से संरक्षण मिलेगा।
  3. भू-राजनीतिक जोखिमों से बचाव : चीन या यूरोपीय आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता घटाकर यह व्यवस्था आपूर्ति श्रृंखला की लचीलापन को मज़बूत करती है।
  4. कृषि क्षेत्र को संबल : डीएपी की खासकर बुआई के मौसम में समय पर उपलब्धता से किसानों को फसल की उपज बढ़ाने में सहायता मिलेगी।
  5. ‘आत्मनिर्भर भारत’ को बल : यह पहल वैश्विक साझेदारी के माध्यम से रणनीतिक स्रोतों तक पहुंच को सुरक्षित करती है और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक ठोस कदम है।
  6. किसान हितों की रक्षा : स्थिर आपूर्ति से मूल्य नियंत्रण संभव होता है, जिससे सीमांत और छोटे किसानों को किफायती दरों पर उर्वरक मिल सकेंगे।
  7. भारत की वैश्विक भूमिका में वृद्धि : इतने बड़े स्तर पर दीर्घकालिक रणनीतिक समझौते करने की भारत की क्षमता, एक निर्णायक वैश्विक कृषि शक्ति के रूप में उसकी स्थिति को सशक्त बनाती है।

 

उर्वरक क्षेत्र में सहयोग : एक व्यापक रणनीतिक विस्तार

 

  1. डीएपी से आगे – उर्वरकों की विविधता की ओर : दोनों देशों ने डायमोनियम फॉस्फेट (DAP) के अलावा यूरिया और अन्य प्रमुख उर्वरकों के आयात-निर्यात और साझा उत्पादन में सहयोग की संभावनाओं पर सहमति जताई, जिससे भारत की आपूर्ति शृंखला में विविधता लाई जा सके।
  2. रणनीतिक निवेश संवाद : चर्चा में भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों द्वारा सऊदी अरब की खनिज और उर्वरक अधोसंरचना में लंबी अवधि के निवेश की संभावना पर विचार हुआ, जिससे संसाधन समृद्ध परियोजनाओं का लाभ उठाया जा सके।
  3. भारत में सऊदी निवेश की संभावनाएँ : सऊदी पक्ष को भारत की कृषि इनपुट आपूर्ति श्रृंखला—जैसे उर्वरक विनिर्माण, वितरण और भंडारण—में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया गया।
  4. द्विपक्षीय समन्वय तंत्र का गठन : साझेदारी को सशक्त समन्वय देने हेतु भारत के सचिव (उर्वरक) और सऊदी अरब के उप मंत्री (खनन) के नेतृत्व में एक संयुक्त कार्यबल का गठन किया गया।
  5. अनुसंधान एवं नवाचार पर बल : यह संयुक्त टीम भारत की कृषि जरूरतों के अनुसार अनुकूलित उर्वरकों पर अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहन देगी, जिससे उत्पादकता में वृद्धि और पर्यावरणीय प्रभाव में कमी आएगी।
  6. सहयोग का दीर्घकालिक दृष्टिकोण : सहयोग का दायरा पारंपरिक खरीद-बिक्री तक सीमित न रहकर प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, संयुक्त निवेश और सतत विकास के मॉडल की दिशा में बढ़ रहा है।
  7. हरित लक्ष्यों में भागीदारी : पर्यावरण-सम्मत उर्वरकों के विकास और सतत कृषि को प्रोत्साहित करने वाले संयुक्त प्रयास, जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध वैश्विक प्रतिबद्धताओं में दोनों देशों की सहभागिता को दर्शाते हैं।

 

स्वास्थ्य एवं औषधि क्षेत्र : सहयोग की नई दिशा

 

  1. द्विपक्षीय स्वास्थ्य संवाद : केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने सऊदी उप मंत्री अब्दुलअजीज अल-रुमैह के साथ उच्च स्तरीय बैठक कर स्वास्थ्य क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की रूपरेखा तैयार की।
  2. डिजिटल स्वास्थ्य तकनीक में भागीदारी : दोनों देशों ने टेलीमेडिसिन, ई-हेल्थ प्लेटफ़ॉर्म और स्वास्थ्य सेवाओं में डिजिटल गवर्नेंस जैसे क्षेत्रों में अनुभवों का साझा करने पर चर्चा की।
  3. औषधीय अनुसंधान में सहभागिता : जेनेरिक दवाओं, बायोसिमिलर्स और नैदानिक अनुसंधान में द्विपक्षीय सहयोग की संभावनाओं को बल मिला, जिससे दोनों देश फार्मा नवाचार में संयुक्त रूप से योगदान दे सकें।
  4. स्वास्थ्य सेवाओं का आपसी आदान-प्रदान : चिकित्सा प्रशिक्षण, स्वास्थ्य सेवा प्रबंधन, और सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति में सर्वोत्तम अभ्यासों के आदान-प्रदान को लेकर सहमति बनी।
  5. स्वास्थ्य एमओयू की प्रभावशीलता : प्रधानमंत्री मोदी की हाल की यात्रा के दौरान हुए स्वास्थ्य समझौता ज्ञापन को कार्यान्वित करने और उसके माध्यम से स्थायी सहयोग ढांचे को मजबूत करने पर बल दिया गया।
  6. भारतीय फार्मा को नए अवसर : नियामक समन्वय और मान्यता समझौतों के माध्यम से भारत की फार्मा कंपनियों को सऊदी बाजार तक बेहतर पहुँच मिलने की संभावना खुली है।
  7. आपदा प्रबंधन में समन्वय : महामारी की तैयारी, स्वास्थ्य आपातकाल प्रतिक्रिया और संकट प्रबंधन में जानकारी और तकनीकी संसाधनों के साझा उपयोग के लिए संयुक्त रणनीति पर विचार हुआ।

 

रणनीतिक संबंधों को सशक्त आधार

 

  1. उच्च – स्तरीय नेतृत्व के साथ संवाद : जेपी नड्डा ने सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अज़ीज़ बिन सलमान अल सऊद से भेंट कर रणनीतिक साझेदारी परिषद के ढांचे को आगे बढ़ाने पर चर्चा की।
  2. रणनीतिक साझेदारी परिषद (SPC) की सुदृढ़ता : यह बैठक आर्थिक एवं निवेश समिति के कार्यों को मजबूती प्रदान करती है, जो SPC के अंतर्गत एक प्रमुख इकाई है।
  3. ऊर्जा और संसाधन कूटनीति का समन्वय : उर्वरक, तेल, गैस, नवीकरणीय ऊर्जा और खनन के क्षेत्रों में सहयोग ऊर्जा सुरक्षा और आपूर्ति विविधता के साझा दृष्टिकोण को दर्शाता है।
  4. मल्टी-डोमेन सहयोग : SPC ढांचा डिजिटल, स्वास्थ्य, रक्षा, अवसंरचना और रणनीतिक निवेश जैसे क्षेत्रों में भी द्विपक्षीय तालमेल को सशक्त करता है।
  5. द्विपक्षीय व्यापार में उछाल : उर्वरक और स्वास्थ्य क्षेत्रों के नए समझौते 50 अरब डॉलर से अधिक के वार्षिक व्यापार संबंधों में ठोस योगदान करते हैं।
  6. कार्य प्रगति की निगरानी : ऐसे उच्चस्तरीय दौरे समझौतों के कार्यान्वयन, समीक्षा और मूल्यांकन के लिए संस्थागत ढांचे को सक्रिय करते हैं।
  7. बहुध्रुवीय विश्व में साझा दृष्टिकोण : यह रणनीतिक सहयोग क्षेत्रीय स्थिरता, आर्थिक एकजुटता और नवोदित बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था में भारत-सऊदी साझेदारी को एक नई ऊँचाई पर ले जाता है।

 

भारत-सऊदी औद्योगिक और तकनीकी सहभागिता : सहयोग के नए आयाम

 

  1. मादेन की अत्याधुनिक सुविधा का अवलोकन : केंद्रीय मंत्री जे.पी. नड्डा के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने रास अल खैर में स्थित मादेन के विश्वस्तरीय फॉस्फेट संयंत्र का दौरा कर सऊदी अरब की उन्नत उत्पादन क्षमताओं और तकनीकी दक्षता का प्रत्यक्ष अवलोकन किया।
  2. प्रौद्योगिकीय साझेदारी की संभावनाएं : यह यात्रा दाना निर्माण, मिश्रण तकनीक, और प्रक्रिया स्वचालन जैसे क्षेत्रों में तकनीकी सहयोग की संभावनाओं को खोलने में सहायक रही, जिससे उर्वरक निर्माण में आधुनिक तकनीक हस्तांतरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।
  3. भारतीय मानव संसाधन का कौशल संवर्धन : मादेन की औद्योगिक इकाइयों में भारतीय इंजीनियरों और तकनीशियनों को प्रशिक्षण देने की योजनाएँ बनाई जा रही हैं, जिससे भारत की तकनीकी प्रतिभा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्नत किया जा सके।
  4. खनन एवं रसायन उद्योग में संयुक्त संभावनाएं : उर्वरकों के अतिरिक्त, खनिज संसाधनों, पेट्रोकेमिकल्स और औद्योगिक रसायनों के क्षेत्र में संयुक्त निवेश व परियोजनाओं पर विचार हुआ, जिससे भारत और सऊदी अरब के बीच औद्योगिक सहयोग का विस्तार होगा।
  5. संयुक्त अवसंरचना विकास की दिशा में पहल : दोनों देशों ने लॉजिस्टिक्स, पोर्ट्स और वेयरहाउसिंग नेटवर्क को उन्नत बनाने की संभावनाओं पर चर्चा की, जिससे द्विपक्षीय व्यापार और आपूर्ति शृंखला की कुशलता में वृद्धि हो सके।
  6. मेक इन इंडिया को बाह्य स्रोतों से समर्थन : फॉस्फेट रॉक, सल्फर और अन्य कच्चे माल की सुरक्षित आपूर्ति के लिए औद्योगिक साझेदारी, भारत में उर्वरक उत्पादन को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को समर्थन दे सकती है।
  7. औद्योगिक सहयोग के लिए एक संस्थागत मंच : मादेन के साथ संवाद से एक दीर्घकालिक, तकनीकी सहयोग आधारित औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण की नींव रखी गई, जो भारत-सऊदी औद्योगिक रिश्तों को टिकाऊ बनाएगा।

 

भू-राजनीतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से साझेदारी का महत्व : 

 

  1. आपूर्ति स्रोतों में विविधता : चीन और मोरक्को जैसे सीमित आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करने हेतु, सऊदी अरब के साथ दीर्घकालिक अनुबंध भारत की रणनीतिक प्राथमिकता के अनुरूप है।
  2. सऊदी अरब की एशिया-केंद्रित नीति : यह सहयोग सऊदी अरब के ‘पूर्व की ओर झुकाव’ की नीति का संकेत देता है, जिसमें भारत को एक प्रमुख भागीदार के रूप में स्वीकार किया गया है।
  3. ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा की कूटनीति : भारत खाद्य उत्पादन के लिए आवश्यक इनपुट्स की सुरक्षा हेतु, उसी प्रकार कूटनीतिक संसाधनों का उपयोग कर रहा है जैसे वह ऊर्जा क्षेत्र में करता रहा है।
  4. राजनीतिक विश्वास और रणनीतिक एकता : बहु-आयामी समझौतों से राजनयिक भरोसा गहराता है और भारत को विजन 2030 जैसे सऊदी विकास लक्ष्यों से रणनीतिक रूप से जोड़ता है।
  5. स्थिर आपूर्ति मार्गों का निर्माण : लाल सागर और यूरोप में जारी भू-राजनीतिक तनावों के बीच, यह साझेदारी स्थिर, सुलभ और सुरक्षित आपूर्ति मार्ग सुनिश्चित करने में सहायक होगी।
  6. आर्थिक पूरकता का लाभ : भारत की उर्वरक मांग और सऊदी अरब की कच्चे माल की समृद्धता एक-दूसरे के पूरक हैं, जिससे दोनों देशों को पारस्परिक लाभ होगा।
  7. दक्षिण-दक्षिण सहयोग का आदर्श : यह सहयोग वैश्विक दक्षिण में रणनीतिक और आर्थिक एकता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है, जो उभरती अर्थव्यवस्थाओं की सशक्त आवाज़ बनता जा रहा है।

 

प्रमुख चुनौतियाँ और आगे की राह : 

 

  1. लॉजिस्टिक्स अवसंरचना का सुदृढ़ीकरण : 3.1 एमएमटी डीएपी के वार्षिक प्रबंधन के लिए भारत को अपने बंदरगाहों और अंतर्देशीय लॉजिस्टिक्स ढांचे में संरचनात्मक सुधार करने होंगे।
  2. समयबद्ध आपूर्ति प्रणाली : बुवाई के महत्वपूर्ण मौसमों को ध्यान में रखते हुए, समय पर शिपमेंट और क्लीयरेंस प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  3. मूल्य स्थिरता हेतु रणनीतिक मूल्य निर्धारण : भारत को वैश्विक बाजारों में फॉस्फेट एवं गैस मूल्यों में अस्थिरता से बचने के लिए दीर्घकालिक मूल्य निर्धारण अनुबंधों पर बातचीत करनी होगी।
  4. स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप अनुसंधान : फसल-विशिष्ट एवं जलवायु-अनुकूल उर्वरकों के विकास हेतु, भारत-सऊदी संयुक्त अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं की आवश्यकता है।
  5. अनुबंधों की पारदर्शी निगरानी : प्रगति की समीक्षा, समयबद्ध निष्पादन और जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु मजबूत संस्थागत निगरानी प्रणाली का निर्माण जरूरी है।
  6. स्वदेशी उत्पादन बनाम आयात संतुलन : नीति निर्धारण में भारत को घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन और आयात की निर्भरता को संतुलित रखने की रणनीति अपनानी होगी।
  7. नियामक प्रक्रियाओं में समरूपता : सीमा शुल्क और नियामक प्रक्रियाओं के सरलीकरण से द्विपक्षीय औद्योगिक सहयोग अधिक सुचारु और लागत प्रभावी बनेगा।

 

निष्कर्ष : 

 

  • केंद्रीय मंत्री जे.पी. नड्डा की जुलाई 2025 में सऊदी अरब यात्रा ने भारत-सऊदी संबंधों को विशेषकर उर्वरक, रसायन, स्वास्थ्य और फार्मास्यूटिकल्स जैसे प्राथमिक क्षेत्रों में सहयोग को गहरा करने की दिशा में एक नई रणनीतिक ऊँचाई प्रदान किया है।
  • 3.1 मिलियन मीट्रिक टन DAP की वार्षिक आपूर्ति हेतु हुए दीर्घकालिक समझौतों ने कृषि इनपुट की सुनिश्चित, स्थिर और पूर्वानुमान योग्य आपूर्ति की दिशा में भारत के दृष्टिकोण को अधिक सुदृढ़ और विविध बनाया है। 
  • यह साझेदारी न केवल भारत की खाद्य सुरक्षा और उर्वरक आत्मनिर्भरता को मजबूत करती है, बल्कि ऊर्जा और संसाधन कूटनीति के क्षेत्र में भी भारत की रणनीतिक परिपक्वता को दर्शाती है।
  • यह बहु-क्षेत्रीय सहयोग, भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ नीति के अनुरूप, वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में स्थायित्व, लचीलापन और साझा समृद्धि की दिशा में एक निर्णायक कदम है।
  • इसके माध्यम से भारत और सऊदी अरब एक दीर्घकालिक, समानता-आधारित और रणनीतिक साझेदारी की ओर अग्रसर हैं, जो आने वाले वर्षों में और अधिक विस्तार और गहराई प्राप्त करेगी।

 

स्त्रोत – डी.डी न्यूज। 

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. जुलाई 2025 में हस्ताक्षरित भारत-सऊदी अरब उर्वरक सहयोग के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. इस समझौते के तहत पांच वर्षों तक प्रतिवर्ष 3.1 मिलियन मीट्रिक टन डायम्मोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी।
2. इस सौदे में एक प्रावधान शामिल है जो अतिरिक्त पांच वर्षों के लिए पारस्परिक विस्तार की अनुमति देता है।
3. 2024-25 में सऊदी अरब से भारत का कुल डीएपी आयात पहले से ही 3 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक था।
उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
A. केवल 1 और 2
B. केवल 2 और 3
C. केवल 1 और 3
D. 1, 2 और 3

उत्तर – A

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. भारत की खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा-संसाधन कूटनीति और दक्षिण-दक्षिण सहयोग के संदर्भ में इस समझौते के महत्व पर चर्चा करें। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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