भीड़ और बिलंब : विचाराधीन बंदियों की कारागार यात्रा

भीड़ और बिलंब : विचाराधीन बंदियों की कारागार यात्रा

सामान्य अध्ययन-2 

सामाजिक सशक्तिकरण, भारत में कारागार प्रशासन की स्थिति, भारत में कारागार से संबंधित मुद्दे, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 , नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे, न्यायतंत्र , संविधान दिवस, BNSS की धारा 479, CrPC की धारा 436A, सर्वोच्च न्यायालय, विचाराधीन बंदियों के लिये ज़मानत संबंधी कानून, संसद, पुलिस, न्यायालय

 

खबरों में क्यों ?

 

  • हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री ने 26 नवंबर (संविधान दिवस) तक एक तिहाई से अधिक सजा काट चुके विचाराधीन बंदियों की रिहाई में तेजी लाने की आवश्यकता पर जोर दिया। 
  • यह कदम भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के तहत पहली बार अपराधियों के लिए रियायती जमानत का प्रावधान करने के अनुरूप है।
  • विचाराधीन बंदी वह व्यक्ति है जो मुकदमे की प्रक्रिया के दौरान न्यायिक हिरासत में रहता है और जिसे दोषी नहीं ठहराया गया है।

 

भारत में विचाराधीन बंदियों की स्थिति : 

 

  • भारत में विचाराधीन बंदियों का अनुपात चिंताजनक रूप से अधिक है। 
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2022 में भारत के कारागारों में बंद 75.8% बंदी विचाराधीन थे। इनमें से 23,772 महिलाएं हैं, जिनमें 76.33% विचाराधीन हैं। 
  • इसके अलावा, 8.6% विचाराधीन बंदी तीन वर्ष से अधिक समय से कारागार में हैं।
  • भारतीय जेलों में अत्यधिक भीड़ है, जहां 131% क्षमता पर कारागार चल रहे हैं। 
  • इस स्थिति के बावजूद, भारत में विचाराधीन बंदियों को उचित विधिक सहायता नहीं मिल पाती, क्योंकि देश में अधिवक्ता और बंदी अनुपात अपर्याप्त है, जिससे उनका बचाव करना कठिन हो जाता है।

 

विचाराधीन बंदियों से संबंधित कानूनी प्रावधान : 

 

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 479 के तहत पहली बार अपराध करने वालों को एक तिहाई सजा पूरी करने पर जमानत का प्रावधान है।
  • CrPC की धारा 436A के अनुसार, जिन विचाराधीन बंदियों ने अधिकतम सजा की आधी अवधि पूरी कर ली है, उन्हें जमानत पर रिहा किया जा सकता है, सिवाय उन मामलों के जहां मृत्यु या आजीवन कारावास से संबंधित अपराधों की जांच चल रही हो।

 

न्यायपालिका के निर्देश : 

 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने 2013 में कारागार की स्थिति पर जनहित याचिका के तहत कारागारों में अत्यधिक भीड़, लंबित सुनवाई और विचाराधीन बंदियों की लंबे समय तक हिरासत जैसे गंभीर मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है। 
  • न्यायालय ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे CrPC की धारा 436A के तहत पात्र विचाराधीन बंदियों की शीघ्र पहचान और रिहाई सुनिश्चित करें।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने BNSS की धारा 479 के तहत जमानत के प्रावधानों को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने का आदेश दिया। 
  • न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई का अधिकार मौलिक है और यदि इसमें अनुचित देरी होती है, तो जमानत दी जा सकती है।

 

विचाराधीन बंदियों के संकट के निहितार्थ : 

 

  1. मौलिक अधिकारों का उल्लंघन : बिना सुनवाई के लंबी हिरासत, अनुच्छेद 21 के तहत शीघ्र सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन है।
  2. न्यायिक लंबित मामले : विचाराधीन बंदियों की संख्या न्यायिक प्रणाली में लंबित मामलों को बढ़ाती है, जिससे न्याय में विलंब होता है और जनता का विश्वास कम होता है।
  3. विलंबित न्याय का प्रभाव : लंबी हिरासत से बंदियों और उनके परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है।
  4. अमानवीय जीवन स्थितियाँ : कारागारों में भीड़-भाड़ के कारण स्वास्थ्य और मानसिक समस्याएं बढ़ जाती हैं।
  5. मानसिक स्वास्थ्य संकट : बिना दोषसिद्धि के लंबे समय तक हिरासत मानसिक समस्याओं, जैसे चिंता और अवसाद, को जन्म देती है।
  6. विश्वास का क्षरण : न्याय में देरी से लोगों का विधिक व्यवस्था पर विश्वास कम होता है।

 

भारत में कारागारों का विनियमन : 


संवैधानिक प्रावधान :

  • अनुच्छेद 21 : यह बंदियों को अमानवीय व्यवहार और यातना से सुरक्षा देता है, साथ ही समय पर सुनवाई का अधिकार सुनिश्चित करता है।
  • अनुच्छेद 22 : गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के कारण से अवगत कराना और उसे अपना अधिवक्ता चुनने का अधिकार देना अनिवार्य है।
  • अनुच्छेद 39A : यह सुनिश्चित करता है कि जो लोग विधिक प्रतिनिधित्व का खर्च वहन नहीं कर सकते, उन्हें निःशुल्क विधिक सहायता मिले।

 

विधिक ढाँचा :

 

  • कारागार अधिनियम, 1894 : यह अधिनियम कारागार प्रबंधन के लिए आधारभूत ढाँचा प्रदान करता है, हालांकि इसमें पुनर्वास और सुधार के प्रावधानों का अभाव है।
  • बंदी शनाख्त अधिनियम, 1920 : यह कानून बंदियों की पहचान प्रक्रिया और बायोमेट्रिक डेटा संग्रहण को नियंत्रित करता है।
  • बंदी अंतरण अधिनियम, 1950 : यह अधिनियम बंदियों के अंतरण के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करता है।

 

निरीक्षण तंत्र :

  • न्यायिक निगरानी : भारतीय न्यायपालिका जनहित याचिकाओं और बंदियों के अधिकारों से संबंधित मामलों के माध्यम से कारागार की स्थिति पर निगरानी रखती है, जैसे डी.के. बसु केस (1997), जिसमें गिरफ्तारी और हिरासत के लिए सख्त नियम तय किए गए थे।

 

भारत में कारागार से संबंधित सुधार की प्रमुख पहलें :

 

  1. कारागार आधुनिकीकरण योजना (2002-03) : इसका उद्देश्य कारागारों और बंदियों की स्थिति में सुधार लाना था।
  2. कारागार आधुनिकीकरण परियोजना (2021-26) : इस परियोजना के तहत कारागारों में आधुनिक सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल और सुधारात्मक प्रशासन की दिशा में वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है।
  3. ई-कारागार परियोजना : इसका उद्देश्य डिजिटलीकरण के माध्यम से कारागार प्रबंधन में सुधार करना है।
  4. मैनुअल कारागार मॉडल अधिनियम, 2016 : यह अधिनियम बंदियों को विधिक सेवाओं, विशेष रूप से निःशुल्क सेवाओं, के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
  5. राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) : भारत में सन 1987 में गठित यह प्राधिकरण समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त विधिक सेवाएं प्रदान करने के लिए एक नेटवर्क स्थापित करता है।

 

आगे की राह : 

 

 

  1. कारागारों को सुधारात्मक संस्थान में बदलना : कारागारों को “सुधारात्मक संस्थान” के रूप में विकसित करने के लिए आवश्यक नीतिगत ढाँचा तब ही संभव है, जब पुलिस की लापरवाही, बजट की कमी, और सुरक्षा उपायों की समस्याओं का समुचित समाधान किया जाए।
  2. कार्यान्वयन समिति की सिफारिशें : सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2018 में न्यायमूर्ति अमिताव रॉय (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता में गठित समिति ने कारागारों में भीड़-भाड़ से निपटने के लिए निम्नलिखित सिफारिशें कीं:
  3. त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करना : यह कारागारों में भीड़-भाड़ कम करने का एक प्रभावी तरीका है।
  4. विधिक सहायता की व्यवस्था करना : हर 30 बंदियों के लिए कम से कम एक वकील की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  5. फास्ट-ट्रैक न्यायालयों की स्थापना करना :  पाँच साल से अधिक समय से लंबित छोटे अपराधों के मामलों के लिए विशेष अदालतें बनाई जानी चाहिए।
  6. अपराध को स्वीकार करने की प्रक्रिया को बढ़ावा देना :  अभियुक्तों को कम सजा के बदले अपने अपराध को स्वीकार करने की प्रक्रिया को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  7. कारागार प्रबंधन में सुधार : इसमें कारागार कर्मियों को बेहतर प्रशिक्षण देना, संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाना और निगरानी तंत्र को मजबूत करना शामिल है। साथ ही, बंदियों को आवश्यक बुनियादी सुविधाएँ जैसे स्वच्छ पानी, स्वच्छता और चिकित्सा सेवाएं प्रदान करना आवश्यक है।

 

स्रोत- पीआईबी एवं इंडियन एक्सप्रेस।

 

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