महाकुंभ मेला 2025 और वायरलेस कनेक्टिविटी : एक नए युग की शुरुआत

महाकुंभ मेला 2025 और वायरलेस कनेक्टिविटी : एक नए युग की शुरुआत

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 1 के अंतर्गत ‘ भारतीय इतिहास एवं विरासत , कला एवं संस्कृति , सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण , कुंभ मेला का महत्त्व एवं इसका ऐतिहासिक विकास – क्रम ’ खण्ड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ महाकुंभ मेला 2025 , महाकुंभ , पूर्ण कुंभ , अर्द्ध-कुंभ , शाही स्नान , आदि गुरु शंकराचार्य , सनातन धर्म जीवन – शैली , अमूर्त सांस्कृतिक विरासत, यूनेस्को , शिप्रा नदी , गोदावरी नदी , संगम – नगरी प्रयागराज  ’ खण्ड से संबंधित है।) 

 

खबरों में क्यों ? 

 

 

  • हाल ही में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक महाकुंभ मेला 2025 आयोजित होने जा रहा है, जिसमें लाखों तीर्थयात्रियों के आने की उम्मीद है। 
  • यह मेला व्यक्ति के आध्यात्मिक उन्नति, सांस्कृतिक उत्सव और सामाजिक एकता का प्रतीक माना जाता है। 
  • इस मेले को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रयागराज को 1 दिसंबर 2024 से 31 मार्च 2025 तक एक नया महाकुंभ क्षेत्र घोषित किया है।
  • इस मेले के आयोजन के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने वहां पर निर्बाध मोबाइल कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने की योजना बनाई है। 
  • महाकुंभ मेला 2025 में लगभग 40 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद जताई जा रही है, यानी हर दिन औसतन 1 करोड़ श्रद्धालु मेला क्षेत्र में उपस्थित होंगे। 
  • यह आंकड़ा मानव इतिहास में सबसे बड़ी टेली-डेंसिटी (प्रत्येक 100 व्यक्तियों पर टेलीफोन कनेक्शन की संख्या) का रिकॉर्ड बना सकता है।
  • उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचार व्यवस्था को मजबूती देने के लिए 100 किलोमीटर से अधिक ऑप्टिकल फाइबर बिछाया गया है जिसके तहत प्रत्येक मोबाइल टावर को उच्च क्षमता वाली रेडियो प्रणालियों से लैस किया जाएगा। 
  • इसके अलावा, भीड़भाड़ वाले इलाकों में संचार व्यवस्था बनाए रखने के लिए 78 परिवहन योग्य टावर और 150 छोटे सेल समाधान तैनात किए जाएंगे। स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर आपातकालीन संचार सुविधाओं का भी प्रबंध किया जाएगा।

 

कुंभ मेला का परिचय और उससे जुड़ा हुआ महत्वपूर्ण तथ्य : 


‘ कुंभ ’ शब्द का अर्थ ‘ अमरता का घड़ा ‘ से लिया गया है, जो हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं में पाया जाता है। कुंभ मेला हर 12 वर्ष में चार स्थानों पर आयोजित होता है:

  1. प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
  2. हरिद्वार (उत्तराखंड)
  3. नासिक (महाराष्ट्र)
  4. उज्जैन (मध्यप्रदेश)

यह एक विशाल धार्मिक आयोजन होता है, जहां श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। यह आयोजन खासतौर पर चार प्रमुख स्थानों पर होता है:

  1. हरिद्वार : गंगा के किनारे
  2. उज्जैन : शिप्रा नदी के तट पर
  3. नासिक : गोदावरी नदी के किनारे
  4. प्रयागराज : गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम पर

 

कुंभ के विभिन्न प्रकार :

 

  1. पूर्ण कुंभ : यह हर 12 साल में चार स्थानों पर आयोजित होता है।
  2. अर्द्धकुंभ : इसे हरिद्वार और प्रयागराज में हर 6 साल में आयोजित किया जाता है।
  3. महाकुंभ : यह 144 वर्षों में एक बार प्रयागराज में आयोजित किया जाता है।
  4. माघ कुंभ : यह हर साल माघ माह (जनवरी-फरवरी) में प्रयागराज में आयोजित होता है।

 

कुंभ मेले की उत्पत्ति से जुड़ी हुई ऐतिहासिक विकास – क्रम : 


कुंभ मेले की उत्पत्ति पुराणों से जुड़ी हुई है, जहाँ देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत घड़े के लिए संघर्ष होता है।

  1. प्राचीन इतिहास : इसके तहत यह माना जाता है कि भारत में प्राचीन राजवंशों के शासन के दौरान मौर्य और गुप्त काल में कुंभ मेले की शुरुआत हुई थी।
  2. हर्षवर्द्धन का योगदान : राजा हर्षवर्द्धन ने भी प्रयागराज में कुंभ मेला को आयोजित किया था।
  3. मध्यकालीन भारतीय राजवंशों में : चोल, विजयनगर, दिल्ली सल्तनत और मुगलों ने भी इस कुंभ मेले का समर्थन किया था।
  4. अकबर का योगदान : अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने के क्रम में वर्ष 1565 में नागा साधुओं को मेले में शाही प्रवेश का नेतृत्व करने का सम्मान दिया था।
  5. औपनिवेशिक काल : इस काल में कुंभ मेले के महत्त्व और विविधता से प्रभावित होकर ब्रिटिश अधिकारियों ने इस मेले का सबसे पहले दस्तावेजीकरण किया और 19वीं सदी में जेम्स प्रिंसेप ने इसके धार्मिक और सामाजिक पहलुओं का विवरण प्रस्तुत किया था।
  6. स्वतंत्रता के बाद : कुंभ मेला भारत की सांस्कृतिक धरोहर और एकता का प्रतीक बन गया। 2017 में इसे यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।

 

कुंभ 2019 के गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड :

 

  1. सबसे बड़ी यातायात और भीड़ प्रबंधन योजना।
  2. सबसे बड़ी सार्वजनिक चित्रकला प्रक्रिया (पेंट माई सिटी योजना)।
  3. सबसे बड़ा स्वच्छता और अपशिष्ट निपटान तंत्र।

 

कुंभ मेला का आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ज्योतिषीय महत्त्व :

  

आध्यात्मिक महत्त्व :

 

  1. कुंभ मेला विशेष रूप से त्रिवेणी संगम (गंगा, यमुना, और सरस्वती) के पवित्र जल में स्नान को पापों से मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग के रूप में देखा जाता है। 
  2. कुंभ में स्नान करने को आध्यात्मिक महत्त्व के दृष्टिकोण से व्यक्ति को मोक्ष की दिशा में अग्रसर करने के संदर्भ में देखे जाने की मान्यता है।

 

सांस्कृतिक महत्त्व :

 

  1. कुंभ मेला न केवल धार्मिक गतिविधियों का केंद्र भर ही नहीं है, बल्कि इसमें भक्ति कीर्तन, भजन, और पारंपरिक नृत्य जैसे कथक, भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी भी प्रस्तुत किए जाते हैं। 
  2. धार्मिक गतिविधियों से जुड़े ये नृत्य व्यक्ति में आध्यात्मिक एकता और दिव्य प्रेम की भावना को प्रकट करते हैं।

 

ज्योतिषीय महत्त्व :

 

  1. कुंभ मेला विशेष रूप से सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की स्थिति के आधार पर तय किया जाता है, और यह ज्योतिष के दृष्टिकोण से अत्यधिक शुभ माना जाता है। 
  2. नासिक और उज्जैन में जब कोई ग्रह सिंह राशि में होता है, तब इसे ‘ सिंहस्थ कुंभ ‘ कहा जाता है।

 

महाकुंभ मेला से संबंधित अनुष्ठान और विभिन्न गतिविधियाँ :

 

  1. शाही स्नान : यह आयोजन महाकुंभ मेले की शुरुआत का प्रतीक है, जिसमें संत और अखाड़े के लोग जुलूस के साथ औपचारिक स्नान करते हैं।
  2. अखाड़े : ‘अखाड़ा’ शब्द का अर्थ ‘अखंड’ से है, और इसे समाज की एकता, नैतिकता और संस्कृति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन जीवनशैली को बचाने के लिए तपस्वियों को एकत्रित किया। अखाड़े समाज में सद्गुण, नैतिकता, आत्म-संयम और करुणा को बढ़ावा देते हैं।
  3. अखाड़ों को उनके इष्ट देवता के आधार पर वर्गीकृत किया गया है
  4. शैव अखाड़े : इस अखाड़े से संबंधित व्यक्ति भगवान शिव की विभिन्न रूपों में पूजा करते हैं।
  5. वैष्णव अखाड़े : इस अखाड़े से संबंधित व्यक्ति भगवान विष्णु की विभिन्न रूपों में पूजा करते हैं।
  6. उदासीन अखाड़ा : यह अखाड़ा गुरु नानक के पुत्र चंद्र देव द्वारा स्थापित किया गया था।
  7. पेशवाई जुलूस : यह एक भव्य पारंपरिक जुलूस होता है, जिसमें हाथी, घोड़े और रथों पर श्रद्धालु शामिल होते हैं।
  8. आध्यात्मिक प्रवचन : इसके तहत विभिन्न श्रद्धेय संतों और आध्यात्मिक नेताओं द्वारा जीवन की गूढ़ और गहरी शिक्षाओं तथा धार्मिक संगीत-नृत्य का आयोजन होता है।

 

यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची :

 

  • यूनेस्को की यह सूची उन सांस्कृतिक तत्त्वों को पहचान कर प्रदान किया जाता है जो विभिन्न समाजों की सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करते हैं। 
  • इस सूची का उद्देश्य इन विरासतों के महत्त्व के प्रति जागरूकता बढ़ाना और उनकी सुरक्षा करना है।
  • भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत में कुंभ मेला को 2017 में मान्यता प्राप्त हुई, जो इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व को वैश्विक स्तर पर मान्यता देती है।

 

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत :

 

  1. अमूर्त सांस्कृतिक विरासत वे प्रथाएँ, कौशल और ज्ञान हैं जिन्हें लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर के रूप में पहचानते हैं। 
  2. यह प्रायः मौखिक परंपराओं, कला प्रदर्शनों, सामाजिक प्रथाओं, उत्सवों, प्रकृति से संबंधित ज्ञान और पारंपरिक शिल्प कौशल के रूप में व्यक्त होती है।

 

निष्कर्ष :

 

 

  • महाकुंभ मेला भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का अद्वितीय प्रतीक है, जो हर 12 वर्ष में एक बार आयोजित होता है। यह मेला लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, जो पवित्र नदियों में स्नान करने और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति के लिए यहाँ आते हैं। 
  • महाकुंभ का महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं है, बल्कि यह भारत की सामाजिक एकता, सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक भी है। विभिन्न अखाड़ों और संत समाज के माध्यम से समाज में नैतिकता, करुणा और आत्म-संयम को बढ़ावा मिलता है।
  • महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति के समृद्ध रूपों जैसे कथक, भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी के प्रदर्शन के माध्यम से सांस्कृतिक समागम को उजागर करता है। 
  • यह मेला न केवल धार्मिक आयोजनों का स्थल है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता का भी महत्वपूर्ण मंच है। 
  • महाकुंभ मेला को यूनेस्को द्वारा भारत की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसके आयोजन से जुड़ी व्यवस्थाएँ और प्रशासनिक कौशल आधुनिकता और तकनीकी विकास का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
  • अंततः, महाकुंभ मेला भारत की सांस्कृतिक समृद्धि, विविधता और सामाजिक एकता का प्रतीक है, जो हजारों वर्षों पुरानी परंपराओं और आधुनिकता का अद्वितीय संगम है।

 

स्त्रोत – उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग की आधिकारिक वेबसाईट एवं द हिन्दू। 

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. महाकुंभ मेला के आयोजन से जुड़े हुए ऐतिहासिक तथ्यों पर विचार कीजिए 

  1. राजा हर्षवर्धन ने प्रयागराज में कुंभ मेला को आयोजित किया था।
  2. ब्रिटिश अधिकारियों ने कुंभ मेला का दस्तावेजीकरण किया था।
  3. अकबर ने वर्ष 1665 में नागा साधुओं को शाही प्रवेश का सम्मान दिया था।
  4. कुंभ मेला का आयोजन 16वीं सदी में शुरू हुआ था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा कथन सही है ?

A. केवल 1 और 3 

B. केवल 1 और 2 

C. केवल 2 और 4 

D. केवल 2 और 3 

उत्तर – B 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. महाकुंभ मेला 2025 के आयोजन से जुड़ी प्रशासनिक तैयारियों, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ज्योतिषीय महत्त्व इस मेले में उपयोग की जा रही तकनीकी व्यवस्थाओं, जैसे मोबाइल कनेक्टिविटी और आपातकालीन संचार सुविधाओं, का विवरण देते हुए कुंभ मेला की उत्पत्ति, प्रकार और यूनेस्को द्वारा इसे अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता देने के महत्व को स्पष्ट भी स्पष्ट करें। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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