01 May मिथिला की दीवारों से वैश्विक मंच तक : मधुबनी चित्रकला में जीवन दर्शन सांस्कृतिक राग, लय और ताल
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 1 के अंतर्गत ‘ प्राचीन भारतीय इतिहास, विरासत, कला एवं संस्कृति ’ खण्ड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ मधुबनी चित्रकला, गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड, बौद्ध भिक्षुओं की प्रार्थना – पाठ की गायन कटोरा शैली, भारत में विभिन्न जीवन – दर्शन ’ खण्ड से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में बिहार ने अपनी सांस्कृतिक छवि को और राज्य की कीर्ति पताका को अंतरराष्ट्रीय फलक/ वैश्विक मंच पर लहराई है, जिसके ध्वज पर दो अनुपम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड जगमगा रहे हैं।
- गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड का पहला रंग जहाँ मधुबनी की चित्रकला का है, जो अपनी अद्भुत चित्रकारी से विश्व को मोहित कर रहा है, तो वहीं दूसरा स्वर बौद्ध भिक्षुओं की प्रार्थना – पाठ का है, जो गायन कटोरे के माध्यम से वैश्विक स्तर पर शांति का संदेश फैला रहा है।
- इन दोनों रिकॉर्ड्स को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की ओर से विधिवत मान्यता उस समय प्रदान किया गया, जब पटना के पाटलिपुत्र खेल प्रांगण में आयोजित एक विशेष समारोह में मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार को प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया और अभिनंदन पत्र सौंपा गया।
- यह गौरवमय क्षण बिहार की उस सांस्कृतिक आत्मा के राग, जीवन – दर्शन की लय और ताल को जीवंतता को दर्शाता है, जो अपनी प्राचीन कला और आध्यात्मिक धरोहर के बल पर वैश्विक मंच पर अपनी विशिष्ट पहचान बना रहा है।
मधुबनी चित्रकला की उत्पत्ति :
- मधुबनी चित्रकला, जिसे मधुबनी चित्रकला या मिथिला पेंटिंग के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म मिथिलांचल की सदियों पुरानी सांस्कृतिक विरासत की कोख से हुआ है।
- लोककथाओं में इसका आरंभ राजा जनक के समय से माना जाता है, जिन्होंने अपनी बेटी सीता के विवाह के अवसर पर कलाकारों को चित्र बनाने का आदेश दिया था।
- राजा जनक की नंदिनी जानकी/ सीता और भगवान राम के विवाह के इस शुभ अवसर को स्मरणीय बनाने हेतु चित्रकारों ने पूरे नगर की दीवारों को मधुबनी चित्रकला से सजाया था। यह घटना मधुबनी चित्रकला की ऐतिहासिक शुरुआत मानी जाती है, जिसने इस अनुपम चित्रकला – कला परंपरा की नींव रखी।
- प्रारंभिक रूप में, यह कला विभिन्न समुदायों की महिलाओं द्वारा पर्वों, धार्मिक अनुष्ठानों और विवाह व जन्म जैसे महत्वपूर्ण पारिवारिक आयोजनों के दौरान अपने घरों की दीवारों और आंगन में उकेरी जाती थी।
- कालांतर में यह पारंपरिक दीवारों से आगे बढ़कर कपड़े, हस्तनिर्मित कागज और कैनवास पर चित्रित की जाने लगी, जिससे इसने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त की।
मधुबनी चित्रकला की विशेषताएँ :
- प्राकृतिक रंगों का जादू : मधुबनी कलाकार प्रकृति के खजाने से प्राप्त रंगों का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, कालिख को गाय के गोबर में मिलाकर काला, हल्दी से पीला, नील के पौधे से नीला और कुसुम के फूलों से लाल रंग बनाया जाता है। ये प्राकृतिक रंग न केवल चित्रों को जीवंतता प्रदान करते हैं, बल्कि इस कला की पर्यावरण-अनुकूल प्रकृति को भी दर्शाते हैं।
- ज्यामितीय आकृतियों का अद्भुत संयोजन : मधुबनी चित्रकला के चित्रों की एक खास पहचान जटिल ज्यामितीय आकृतियों और सीमाओं का प्रयोग है। इन आकृतियों में अक्सर वृत्त, त्रिभुज और रेखाओं जैसे दोहराए जाने वाले रूपांकन शामिल होते हैं, जो कलाकृति को गहराई और पेचीदगी प्रदान करते हैं। उदाहरण के तौर पर, नवविवाहित जोड़ों के बीच प्रेम बढ़ाने के लिए मंडलों का विशेष रूप से उपयोग किया जाता है।
- प्रतीकों की गहरी भाषा का अपना विशिष्ट अर्थ होना : मधुबनी चित्रकला में प्रतीक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और प्रत्येक प्रतीक का अपना विशिष्ट अर्थ होता है। उदाहरण के लिए, मछली उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक है, मोर प्रेम और रोमांस का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि सूर्य और चंद्रमा को उनके जीवनदायी गुणों के लिए चित्रित किया जाता है। ये प्रतीक इस क्षेत्र की सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं में गहराई से जुड़े हुए हैं।
- पौराणिक कथाओं का चित्रांकन करना : मधुबनी चित्रों में अक्सर हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं के दृश्य दर्शाए जाते हैं, जिनमें कृष्ण, राम, शिव, दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती जैसे देवी-देवताओं की कहानियाँ शामिल हैं। इन कथाओं को समृद्ध प्रतीकात्मकता और बारीक विवरणों के साथ चित्रित किया जाता है, जो कलाकारों की भक्ति और कहानी कहने की अद्भुत क्षमता को दर्शाता है।
- मानव और पशु – आकृतियों की विशिष्ट शैली में बनाया जाना : मधुबनी कला में मानव और पशु आकृतियों को एक विशेष शैली में बनाया जाता है, जिसमें अक्सर शारीरिक विशेषताओं को थोड़ा बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। उदाहरण के लिए, चेहरे प्रोफाइल में दिखाए जाते हैं, लेकिन उनकी उभरी हुई आँखें सामने की ओर दिखती हैं। ये विशिष्ट विशेषताएँ कला के अद्वितीय सौंदर्य में योगदान करती हैं।
- रिक्त स्थान का अभाव : मधुबनी चित्रकला के चित्रों की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इनमें खाली जगह बिल्कुल नहीं छोड़ी जाती है। इसके कलाकार फूलों, जानवरों, पक्षियों और ज्यामितीय आकृतियों जैसे रूपांकनों से पूरे कैनवास को भर देते हैं, जिससे कलाकृति की दृश्य समृद्धि और बढ़ जाती है।
- जटिल भराई के साथ दोहरी रेखाओं की सीमा रेखा ( डबल लाइन बॉर्डर ) : मधुबनी चित्रों में आकृतियों और तत्वों को अक्सर दोहरी रेखाओं से घेरा जाता है, और इन रेखाओं के बीच के स्थान को क्रॉस-हैचिंग या छोटी रेखाओं जैसे जटिल पैटर्न से भरा जाता है। यह तकनीक चित्रों में गहराई और बनावट जोड़ती है, जिससे वे और भी आकर्षक और विस्तृत दिखते हैं।
मधुबनी चित्रकला के विषय-वैविध्य :
मधुबनी चित्रकला, रंगों और रेखाओं की एक जीवंत गाथा है, जिसके कैनवास पर विविध विषयों का मनोरम संसार रचा जाता है।
- आध्यात्मिक गाथाएँ और पौराणिक कथाएँ : मधुबनी चित्रकला की आत्मा में धर्म और पुराणों की गहरी छाप है। यह कला हिंदू महाकाव्यों – रामायण और महाभारत – के महत्त्वपूर्ण दृश्यों को जीवंत करती है। सीता-राम का पाणिग्रहण, कृष्ण की मनमोहक लीलाएँ, और शिव, दुर्गा, लक्ष्मी व सरस्वती जैसे देवों की महिमा इन चित्रों में साकार होती है। जटिल आकृतियों और चटख रंगों के माध्यम से, यह कला क्षेत्र की सदियों पुरानी आध्यात्मिक परंपराओं को दृश्यमान रूप देती है।
- प्रकृति का अनुराग और खगोलीय वैभव का अनूठा मिश्रण : मधुबनी चित्रकला प्रकृति के प्रति गहरा प्रेम दर्शाती है। सूर्य, चंद्रमा, तारे, नदियाँ और पवित्र तुलसी के पौधे जैसे प्राकृतिक तत्व इसके अभिन्न अंग हैं। ये प्रतीक जीवन के प्रवाह, उर्वरता और मनुष्य व पर्यावरण के बीच अटूट संबंध को व्यक्त करते हैं।
- प्रेम और उर्वरता का मधुर संगम : प्रेम और प्रजनन क्षमता मधुबनी चित्रकला के हृदय में बसे हुए हैं। राधा-कृष्ण जैसे युगल प्रेम के प्रतीक के रूप में चित्रित किए जाते हैं, अक्सर मछली, कमल और बाँस के वृक्षों जैसे समृद्धि और उर्वरता के सूचकों से घिरे होते हैं। यह कला पारंपरिक रूप से विवाह और अन्य शुभ अवसरों पर अपनी रचनात्मकता का प्रदर्शन करती है।
- सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन की झलकियाँ : मधुबनी चित्रकला समाज और संस्कृति के बहुरंगी चित्र प्रस्तुत करती है। शादियों, त्योहारों और ग्रामीण जीवन के दैनिक क्रियाकलापों के दृश्य इन चित्रों में जीवंत होते हैं। रीति-रिवाजों, नृत्यों और सामुदायिक समारोहों का चित्रण समुदाय की परंपराओं और जीवनशैली का एक दृश्य अभिलेखागार प्रस्तुत करता है।
- वन्य जीवन और वनस्पतियों का मोहक संसार : मधुबनी पेंटिंग में पशु-पक्षी और पेड़-पौधे प्रचुर मात्रा में दिखाई देते हैं। हाथी, मोर, मछली और विभिन्न प्रकार के वृक्ष शक्ति, सौंदर्य और प्रचुरता जैसे गुणों के प्रतीक हैं। इन तत्वों को कलाकृति में बड़ी कुशलता से बुना जाता है, जो कलाकारों की प्रकृति के प्रति गहरी श्रद्धा को दर्शाता है।
- तांत्रिकता के गूढ़ रहस्य और प्रतीकात्मक चिंतन का अनूठा मिश्रण : मधुबनी चित्रकला में कुछ तांत्रिक प्रतीक और रूपांकन भी मिलते हैं, जो आध्यात्मिक अवधारणाओं और प्रथाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन कलाकृतियों में अक्सर ज्यामितीय आकार, मंडल और ध्यान मुद्रा में देवताओं के चित्र शामिल होते हैं, जो संस्कृति के रहस्यमय पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं।
- दार्शनिक प्रतीकवाद और द्वैत की अवधारणा और जीवन के गूढ़ अर्थ का दर्शन : मधुबनी चित्रकला द्वैतवाद जैसे दार्शनिक विचारों को भी स्पर्श करती है, जो विपरीत शक्तियों – जैसे दिन और रात, जीवन और मृत्यु, सुख और दुख – के बीच संतुलन को दर्शाती है। इन अवधारणाओं को विपरीत रंगों, सममित डिजाइनों और प्रतीकात्मक प्रस्तुतियों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है, जो कलाकृति में गहरे अर्थों की परतें खोलते हैं।
मधुबनी चित्रकला की तकनीक :
- आधार की तैयारी : पारंपरिक रूप से, दीवारें या फर्श मिट्टी और गोबर के मिश्रण से लिपाई जाती थीं। आजकल, कलाकार हाथ से बने कागज, कैनवास या कपड़े को आधार के रूप में उपयोग करते हैं, कभी-कभी बनावट के लिए भी इसका प्रयोग करते हैं।
- प्राकृतिक रंगों का निर्माण : इस चित्रकला के चित्रों में प्रयुक्त रंग प्राकृतिक स्त्रोतों से बनाए जाते हैं—जैसे हल्दी से पीला, नील से नीला, कुसुम फूल से लाल और गोबर-कालिख मिश्रण से काला रंग तैयार किया जाता है।
- चित्रण के उपकरण : कलाकार रंग भरने और रेखांकन के लिए टहनियों, बाँस की तीलियों, माचिस की तीलियों, ब्रश और यहाँ तक कि अपनी उंगलियों या निब पेन का भी सहारा लेते हैं। यही चित्रात्मक विशिष्टता चित्रों को विशिष्ट बनावट देते हैं।
- रूपरेखा और सीमांकन : आकृतियों को पहले महीन रेखाओं से खींचा जाता है, जो अक्सर दोहरी होती हैं, और फिर उनमें रंग भरा जाता है। दोहरी रेखाओं के बीच का स्थान बारीक रूपांकनों से सजाया जाता है।
- रिक्तता या शून्य स्थान का निषेध होना : इस चित्रकला की एक विशिष्ट विशेषता खाली जगह का अभाव है। खाली क्षेत्र ज्यामितीय आकृतियों, वनस्पतियों, जीवों या प्रतीकात्मक रूपांकनों से पूरी तरह भरे होते हैं।
- समरूपता और संतुलन का सामंजस्य होना : इस चित्रकला के चित्रों में मजबूत समरूपता और संतुलन बनाए रखा जाता है। रचनाएँ सुव्यवस्थित होती हैं और अक्सर एक केंद्रीय अक्ष का अनुसरण करती हैं।
- सूक्ष्म विवरण और आकर्षक बनावट का होना : इस चित्रकला शैली में बनाये जाने वाले चित्रों में बारीक रेखाओं, बिंदुओं और क्रॉस-हैचिंग का प्रयोग होता है—विशेषतः परिधानों, पृष्ठभूमियों और किनारों में—जो कलाकृति को गहराई और आकर्षण प्रदान करते हैं।
मधुबनी चित्रकला : नवोन्मेष और वैश्विक पहचान की ओर
- दीवारों से कैनवास तक : वाणिज्यिक विस्तार : मिट्टी की दीवारों और फर्शों पर सदियों से रची जा रही मधुबनी कला अब हस्तनिर्मित कागज, कैनवास, वस्त्र, मिट्टी के बर्तन, गृह सज्जा की वस्तुओं और परिधानों पर अपनी छटा बिखेर रही है। इस बदलाव ने कला के इस रूप को व्यापक बाजार तक पहुँचाया है और वैश्विक दर्शकों के लिए इसे सुलभ बना दिया है। उदाहरण के लिए, कुशल कारीगर अब शहरी और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों की मांग को पूरा करने के लिए मधुबनी प्रिंट की साड़ियाँ, स्टोल, कुशन कवर और दीवार पर टांगने वाली कलाकृतियाँ तैयार कर रहे हैं।
- समकालीन स्वरों का समावेश : आधुनिक मधुबनी कलाकार अब जलवायु परिवर्तन, महिलाओं के अधिकार और कोविड-19 जागरूकता जैसे ज्वलंत समकालीन मुद्दों को भी अपनी कला में अभिव्यक्त कर रहे हैं। पद्म श्री से सम्मानित दुलारी देवी का उदाहरण हमारे सामने है, जिन्होंने महामारी के दौरान सामाजिक दूरी और मास्क पहनने के महत्व को दर्शाती हुई चित्रों की एक श्रृंखला बनाई।
- महिला कलाकारों का वैश्विक उदय : कभी ग्रामीण परिवेश तक सीमित रहने वाली अनेक महिला कलाकारों ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। विभिन्न प्रदर्शनियों में उनकी भागीदारी, जाने-माने डिजाइनरों के साथ उनका सहयोग और प्रतिष्ठित सरकारी पुरस्कारों ने मधुबनी कला को वैश्विक पटल पर अधिक दृश्यमान बनाया है। रांती और जितवारपुर जैसे छोटे गाँवों की महिलाओं ने जापान, फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर भारत को गौरवान्वित किया है।
- सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों का संबल : भारत सरकार और विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों की सक्रिय पहलों ने मधुबनी कला को बढ़ावा देने और इसकी पारंपरिक विरासत को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कौशल विकास कार्यक्रम, 2007 में भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग की मान्यता, और खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) और भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (ट्राइफेड) जैसे मंचों के माध्यम से प्रदान की गई सहायता इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। सरकार की “एक जिला एक उत्पाद” (ओडीओपी) योजना मधुबनी जिले की पहचान के रूप में मधुबनी कला को विशेष प्रोत्साहन दे रही है।
- डिजिटल विस्तार और ई-कॉमर्स का उदय : अमेज़ॅन कारीगर, फ्लिपकार्ट समर्थ जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों और गाथा, ओखाई और मेमेराकी जैसे समर्पित कला पोर्टलों ने मधुबनी के कलाकारों को सीधे वैश्विक ग्राहकों तक अपनी कलाकृतियाँ बेचने का अवसर प्रदान किया है। ट्राइफेड के आंकड़ों के अनुसार, 2020 और 2023 के बीच आदिवासी कलाओं (जिसमें मधुबनी भी शामिल है) की ऑनलाइन बिक्री में 60% से अधिक की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।
- आधुनिक डिजाइन और फैशन के साथ समन्वय : आज के डिजाइनर मधुबनी के पारंपरिक रूपांकनों को आधुनिक फैशन, आभूषण और इंटीरियर डिजाइन में कुशलतापूर्वक शामिल कर रहे हैं, जिससे यह कला युवा और शहरी दर्शकों के बीच भी तेजी से लोकप्रिय हो रही है। फैशन डिजाइनर अनीता डोंगरे ने अपने जातीय परिधान संग्रह में मधुबनी प्रिंट का उपयोग करके परंपरा और आधुनिकता के बीच एक सुंदर सामंजस्य स्थापित किया है।
- सार्वजनिक स्थलों पर मधुबनी की कला : हाल के वर्षों में, कलाकारों ने सौंदर्यीकरण के प्रयासों के साथ सांस्कृतिक प्रचार को जोड़ते हुए रेलवे स्टेशनों, सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक दीवारों को मधुबनी के मनमोहक भित्ति चित्रों से सजाया है। बिहार का मधुबनी रेलवे स्टेशन इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसे पूरी तरह से मधुबनी चित्रों से सजाया गया है और 2018 में भारत के सबसे कलात्मक स्टेशन के रूप में सराहा गया है।
निष्कर्ष :
- मधुबनी चित्रकला मिथिला क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और अद्वितीय कलात्मक प्रतिभा का जीवंत प्रमाण है। यह चित्रकला, जो कभी मिथिला के घरों की दीवारों पर जीवंत होती थी, अब एक नए युग में प्रवेश कर चुकी है। इसने अपनी पारंपरिक सीमाओं को लांघकर वाणिज्यिक जगत में एक विशिष्ट स्थान बना लिया है और समकालीन विचारों को आत्मसात करते हुए वैश्विक मंच पर अपनी पहचान मजबूत की है। इसकी विशिष्ट शैली, प्रतीकात्मक गहराई और विषयों की विविधता ने न केवल पारंपरिक कहानियों को जीवित रखा है बल्कि इसे समकालीन संदर्भों के अनुरूप भी ढाला है। जैसे-जैसे यह कला विकसित हो रही है और वैश्विक पहचान प्राप्त कर रही है, मधुबनी पेंटिंग भारत की लोक कला परंपराओं की एक गतिशील और स्थायी अभिव्यक्ति बनी हुई है। आज, यह ग्रामीण कारीगरों के लिए आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक शक्तिशाली माध्यम भी है। बढ़ते समर्थन और नवाचार के साथ, इसकी विरासत दुनिया भर के कलाकारों की भावी पीढ़ियों को प्रेरित करने के लिए तैयार है।
स्त्रोत – पी.आई . बी एवं इंडियन एक्सप्रेस।
Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 01st May 2025
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. मधुबनी चित्रकला के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- यह पारंपरिक रूप से बिहार के मिथिला क्षेत्र में प्रचलित है।
- इन चित्रकला को बनाने के लिए केवल सिंथेटिक पेंट का उपयोग किया जाता है।
- यह अपने ज्यामितीय पैटर्न और पौराणिक विषयों के लिए जाना जाता है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
A. केवल 1 और 2
B. केवल 1 और 3
C. केवल 2 और 3
D. 1, 2, और 3
उत्तर – B
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. चर्चा कीजिए कि मधुबनी चित्रकला / पेंटिंग की ऐतिहासिक उत्पत्ति, शैलीगत विशेषताओं और विषयगत विविधता क्या है और आधुनिक युग में इस कला का स्वरूप किस प्रकार विकसित हुआ है? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
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