राज्य वित्त आयोग

राज्य वित्त आयोग

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ राजव्यवस्था और भारतीय संविधान , राज्य वित्त आयोग , संवैधानिक निकाय , अनुच्छेद 243-I , 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1992 , वित्तीय विकेंद्रीकरण में राज्य वित्त आयोगों की भूमिका ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ पंचायती राज संस्थान (PRIs) , शहरी स्थानीय निकाय (ULBs) , 15वाँ वित्त आयोग, वित्त आयोग, अनुच्छेद 280, भारत की संचित निधि, राज्य की संचित निधि, 16वाँ वित्त आयोग ’ खंड से संबंधित है। )

 

खबरों में क्यों? 

 

  • हाल ही में केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय ने बताया कि अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर सभी राज्यों ने राज्य वित्त आयोग (SFC) का गठन कर लिया है। 
  • 15वें वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में राज्य वित्त आयोगों के गठन में देरी पर चिंता जताई है।

 

राज्य वित्त आयोग (SFC) क्या होता है ? 

 

  1. राज्य वित्त आयोग (SFC) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243-I के तहत राज्य सरकारों द्वारा गठित संवैधानिक निकाय होते हैं, जिनका उद्देश्य राज्य सरकार और स्थानीय निकायों के बीच वित्तीय संसाधनों के वितरण की सिफारिश करना है। 
  2. 15वें वित्त आयोग ने कहा है कि भारत में केवल नौ राज्यों ने अपने छठे SFC का गठन किया है, जबकि 2019-20 तक यह हर राज्य द्वारा किया जाना चाहिए था। 
  3. 15वें वित्त आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि जिन राज्यों ने SFC का गठन नहीं किया, उनकी अनुदान सहायता रोक दी जाए। 
  4. भारत में पंचायती राज मंत्रालय का काम है, 2024-25 और 2025-26 के लिए अनुदान जारी करने से पहले यह सुनिश्चित करना कि राज्यों ने संवैधानिक प्रावधानों का पालन किया है अथवा नहीं किया है।

 

भारत में राज्य वित्त आयोगों (SFCs) का गठन क्यों जरूरी है? 

 

  1. वित्तीय स्थिरता और स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक आवश्यकता : अनुच्छेद 243(I) के तहत, राज्य वित्त आयोगों का गठन हर पांच साल में करना अनिवार्य है। इसका उद्देश्य स्थानीय निकायों की वित्तीय स्थिरता और स्वायत्तता सुनिश्चित करना है। 
  2. राजकोषीय हस्तांतरण का सही वितरण सुनिश्चित करना : राज्य वित्त आयोग (SFC) स्थानीय निकायों के बीच धन का सही वितरण सुनिश्चित करता है, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति मजबूत होती है। इसके परिणामस्वरूप, केंद्रीय वित्त आयोग को केंद्रीय निधियों का उचित आवंटन करने में मदद मिलती है। 
  3. सेवाओं में सुधार लाने और नागरिकों के प्रति जवाबदेही बढ़ाने के लिए प्रेरित करना : राज्य वित्त आयोग (SFC) स्थानीय निकायों को उनके वित्तीय संसाधनों का बेहतर उपयोग करने, सेवाओं में सुधार लाने और नागरिकों के प्रति जवाबदेही बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। इससे प्रदर्शन आधारित मूल्यांकन और पुरस्कार- दंड प्रणाली की स्थापना होती है, जो शासन में सुधार करती है। 
  4. स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करना : राज्य वित्त आयोग (SFC) की सिफारिशों के द्वारा, स्थानीय निकाय स्वच्छता, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी महत्वपूर्ण सेवाओं को बेहतर तरीके से प्रदान करने में सक्षम होते हैं, जिससे नागरिकों को लाभ होता है। 
  5. वित्तीय अंतराल को कम कर वित्तीय हस्तांतरण की सिफारिश करना : स्थानीय निकायों को अक्सर वित्तीय संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है। राज्य वित्त आयोग (SFC) इनकी जरूरतों के मुताबिक वित्तीय हस्तांतरण की सिफारिश करता है, जिससे स्थानीय सरकारों को पर्याप्त संसाधन मिलते हैं। 
  6. राजनीतिक और प्रशासनिक विकेंद्रीकरण सुनिश्चित करना : राज्य वित्त आयोग (SFC) केवल वित्तीय सिफारिशें ही नहीं करता, बल्कि यह स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधियों जैसे पंचायत प्रधानों और नगरपालिका पार्षदों को सशक्त बनाता है, जिससे प्रशासनिक विकेंद्रीकरण को बढ़ावा मिलता है।

 

भारत में वित्त आयोग क्या होता है?

 

  1. एक संवैधानिक निकाय होना : वित्त आयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत एक संवैधानिक निकाय है, जिसे राष्ट्रपति हर पाँच साल में नियुक्त करते हैं, या आवश्यक समझे जाने पर पहले भी नियुक्त कर सकते हैं।
  2. वित्त आयोग की संरचना : भारत में इस आयोग में एक अध्यक्ष और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त चार अन्य सदस्य होते हैं। इसके अध्यक्ष को सार्वजनिक मामलों का अनुभव होना चाहिए।
  3. कार्य और कर्तव्य : वित्त आयोग का मुख्य कार्य राष्ट्रपति को वित्तीय मामलों पर सिफारिशें करना है। 
  4. कर वितरण की सिफारिश करना : यह संघ और राज्यों के बीच कर आय के वितरण की सिफारिश करता है, जिसमें राज्यों का हिस्सा तय करना शामिल है।
  5. राज्यों को सहायता अनुदान देने का सुझाव देना : यह केंद्र से राज्यों को सहायता अनुदान देने के सिद्धांतों पर सुझाव देता है।
  6. राज्य की समेकित निधि में वृद्धि के उपायों की सिफारिश करना : यह राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों पर आधारित राज्य की समेकित निधि में वृद्धि के उपायों की सिफारिश करता है।
  7. सार्वजनिक वित्त को सुदृढ़ करने से संबंधित अतिरिक्त मामलों पर विचार करना : वित्त आयोग राष्ट्रपति द्वारा सौंपे गए अन्य मामलों पर भी विचार कर सकता है, जो सार्वजनिक वित्त को सुदृढ़ बनाने में मदद करें।
  8. स्थानीय निकायों की वित्तीय क्षमता को मजबूत करने के उपायों की सिफारिश करना : वित्त आयोग संघ और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों के साथ-साथ स्थानीय निकायों की वित्तीय क्षमता को मजबूत करने के उपायों की सिफारिश भी करता है। यह सुनिश्चित करता है कि स्थानीय सरकारों के पास जरूरी सेवाएं प्रदान करने के लिए पर्याप्त धन हो, जिससे शासन और सत्ता का विकेंद्रीकरण और जन-केंद्रित नीतियाँ शामिल हो। 
  9. भारत में 16वां वित्त आयोग : 16वें वित्त आयोग का गठन दिसंबर 2023 में किया गया था , जिसके अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया हैं। यह आयोग 1 अप्रैल 2026 से शुरू होकर पाँच वर्ष की अवधि तक काम करेगा।

 

राज्य वित्त आयोगों (SFC) की मुख्य समस्याएँ :

 

  1. राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी होना : भारत में 73वें और 74वें संविधान संशोधनों के तहत स्थानीय निकायों को स्वायत्तता और संसाधन हस्तांतरित करने के प्रति राज्य सरकारों में दृढ़ इच्छा शक्ति की कमी है, जिससे इस प्रक्रिया में बाधाएं आती हैं।
  2. संसाधनों की कमी के कारण कार्यक्षमता का प्रभावित होना : राज्य वित्त आयोग को डेटा संग्रहण की शुरुआत में ही समस्याओं का सामना करना पड़ता है, क्योंकि कई बार आवश्यक जानकारी व्यवस्थित और उपलब्ध नहीं होती, जो उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित करती है। 
  3. सार्वजनिक वित्त विशेषज्ञ की कमी का सामना करना : कई राज्य वित्त आयोगों का नेतृत्व नौकरशाहों या राजनेताओं के हाथों में होता है, जिनमें डोमेन विशेषज्ञों और सार्वजनिक वित्त के पेशेवरों की कमी होती है। इसका परिणाम यह होता है कि आयोग की सिफारिशों की गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर असर पड़ता है। 
  4. पारदर्शिता और जवाबदेही में कमी होना : राज्य सरकारें अक्सर राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों पर कार्रवाई रिपोर्ट (ATR) पेश नहीं करतीं, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही में कमी आती है। 
  5. सिफारिशों की अनदेखी करना : राज्य सरकारें राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों का पालन करने में असफल रहती हैं, जिससे स्थानीय शासन के लिए राजकोषीय नीतियों में आयोग की भूमिका कमजोर पड़ जाती है। 
  6. राजकोषीय विकेंद्रीकरण और जन प्रतिरोध का सामना करना : शहरी स्थानीय निकायों को अक्सर उपेक्षा का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वहां की राजनीतिक जागरूकता कम होती है और जनता की भागीदारी सीमित होती है, जिससे राजकोषीय विकेंद्रीकरण में अड़चनें आती हैं।

 

आगे की राह :

 

 

  1. संवैधानिक समय-सीमा का अनुपालन सुनिश्चित करना : संविधान के अनुसार, प्रत्येक राज्य को हर पाँच साल में राज्य वित्त आयोग का गठन करना अनिवार्य है। जो राज्य इस समय-सीमा का पालन नहीं करते, उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए नियमित निगरानी होनी चाहिए।
  2. राजनीतिक प्रतिरोध कम करना : राज्य सरकारों को स्थानीय निकायों को वित्तीय स्वायत्तता देने के फायदों के बारे में जागरूक करना चाहिए, ताकि नागरिकों को बेहतर सेवाएं, संतुष्टि और जवाबदेह शासन मिल सके।
  3. सार्वजनिक वित्त विशेषज्ञों और अन्य प्रासंगिक पेशेवरों की नियुक्ति करना : राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य वित्त आयोग का नेतृत्व अर्थशास्त्रियों, वित्तीय विशेषज्ञों और अन्य प्रासंगिक पेशेवरों द्वारा किया जाए, न कि केवल नौकरशाहों या राजनेताओं द्वारा, ताकि आयोग की कार्यकुशलता और सिफारिशों की गुणवत्ता बढ़ सके।
  4. स्थानीय डेटा प्रणालियों में सुधार करना : स्थानीय निकायों को वित्तीय रिपोर्टिंग के लिए आधुनिक डेटा प्रणालियाँ अपनानी चाहिए, जिससे राज्य वित्त आयोग को सटीक और सूचित सिफारिशें करने में मदद मिले।
  5. पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए कार्रवाई रिपोर्ट (ATR) प्रस्तुत करना : राज्य सरकारों को विधायिका में कार्रवाई रिपोर्ट (ATR) प्रस्तुत करनी चाहिए, जिसमें राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों के लागू होने के लिए समयसीमा और उपायों की स्पष्ट रूपरेखा हो, ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़े।
  6. एक स्वतंत्र मूल्यांकन निकाय का गठन किया जाना : वित्तीय हस्तांतरण की प्रभावशीलता और राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन का मूल्यांकन करने के लिए एक स्वतंत्र निकाय का गठन किया जा सकता है।
  7. राज्यों को सुधार के लिए प्रोत्साहित करने के लिए प्रोत्साहन ढांचा को सुदृढ़ करना : पंचायती राज मंत्रालय को राज्य वित्त आयोग अनुपालन में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले राज्यों के लिए पुरस्कार प्रणाली बनानी चाहिए और अन्य राज्यों को सुधार के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

 

स्रोत- पीआईबी एवं इंडियन एक्सप्रेस।

 

Download Plutus IAS current Affairs (HINDI) 19th Nov 2024

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत के वित्त आयोग के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।

  1. भारत में वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय है जिसका गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
  2. वित्त आयोग में एक अध्यक्ष और छह  अन्य सदस्य शामिल होते हैं जिनकी नियुक्ति भारत के प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।
  3. भारत का वित्त आयोग केंद्र सरकार के शुद्ध कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी की सिफारिश करता है।
  4. नीति आयोग के पूर्व अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया को सोलहवें वित्त आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।

उपरोक्त कथन / कथनों में कौन सा कथन सही है ? 

A. केवल 1और 4 

B. केवल 1 और 3 

C. इनमें से कोई नहीं। 

D. उपरोक्त सभी।

उत्तर – B

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत के वित्त आयोग की संरचना और कार्य को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि भारत में लोकलुभावनवादी नीतियां कैसे भारत के राजकोषीय घाटा, सहकारी संघवाद और केंद्र – राज्य संबंध  को प्रभावित करता है ? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15) 

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