रूसी तेल पर 50% आयात शुल्क : अमेरिका की टैरिफ नीति बनाम भारत की ऊर्जा कूटनीति

रूसी तेल पर 50% आयात शुल्क : अमेरिका की टैरिफ नीति बनाम भारत की ऊर्जा कूटनीति

पाठ्यक्रम – मुख्य परीक्षा के अंतर्गत प्रश्नपत्र – 2 – अंतर्राष्ट्रीय संबंध, महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठन

मुख्य परीक्षा के अंतर्गत प्रश्नपत्र – 3 – भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास

प्रारंभिक परीक्षा के लिए – आयात शुल्क, भारत का विदेश मंत्रालय, विश्व व्यापार संगठन (WTO), डेटा संरक्षण कानून, ‘ मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम’, ASEAN      

 

ख़बरों में क्यों ? 

 

 

  • हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ताज़ा कार्यकारी आदेश के माध्यम से भारतीय आयातों पर टैरिफ यानी सीमा शुल्क दरों में भारी वृद्धि कर दी है। 
  • इस निर्णय ने न केवल दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में तनाव बढ़ा दिया है, बल्कि अमेरिका के द्वारा लिया गया यह निर्णय वैश्विक व्यापार संतुलन को भी प्रभावित किया  है, जिससे भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापारिक रिश्तों में एक विवाद उत्पन्न हो गया है।
  • इस आदेश के अनुसार अब भारत से अमेरिका में निर्यात होने वाले उत्पादों पर कुल मिलाकर 50% शुल्क लगेगा। इसमे पहले से लागू 25% टैरिफ के अलावा 25% की अतिरिक्त ड्यूटी जोड़ी गई है। 
  • ट्रंप प्रशासन के इस निर्णय को भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने के जवाब में लिया गया कदम बताया गया है।

 

टैरिफ वृद्धि का मूल कारण : भारत का रूस से तेल आयात करना : 

 

 

  • व्हाइट हाउस द्वारा जारी आदेश में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीद—चाहे वह प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष—अमेरिका की उस विदेश नीति के विरुद्ध जाती है जो यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद रूस की आर्थ‍िक ताकत को कमज़ोर करने के उद्देश्य से बनाई गई है।
  • अमेरिका के कार्यकारी आदेश 14024 और 14066, जिनके तहत रूस पर व्यापक प्रतिबंध लगाए गए थे, उनके अनुपालन को भारत की यह नीति नुकसान पहुँचा रही है। ट्रंप प्रशासन का दावा है कि रूस से तेल खरीदने वाले देशों को रोकने के लिए कड़े आर्थिक कदम आवश्यक हो गए हैं, और यह टैरिफ वृद्धि उसी का हिस्सा है।
  • व्हाइट हाउस ने यह भी कहा कि यह कदम केवल भारत तक सीमित नहीं रहेगा। यदि अन्य देश भी रूस से ऊर्जा स्रोतों का आयात जारी रखते हैं, तो उन्हें भी इसी तरह की सख्त कार्रवाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

 

कार्यकारी आदेश के प्रमुख बिंदु : 

 

  1. अतिरिक्त शुल्क – वृद्धि से टैरिफ में वृद्धि होना : पहले से लागू 25% आयात शुल्क के अलावा 25% अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा, जिससे कुल टैरिफ 50% हो जाएगा।
  2. लागू होने की तिथि : यह निर्णय कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर के 21 दिन बाद से प्रभावी होगा।
  3. दायरा : यह सभी प्रकार की भारतीय वस्तुओं पर लागू होगा — चाहे वे उपभोक्ता सामान हों, तकनीकी उपकरण हों या कच्चा माल। हालांकि इस आदेश में यह स्पष्ट किया गया है कि जो सामान पहले से जहाज पर लद चुका होगा, उसे छूट दी जा सकती है, लेकिन उसके बाद से हर भारतीय उत्पाद पर यह नया शुल्क लागू होगा।

 

टैरिफ विवाद पर भारत की प्रतिक्रिया :

 

 

  • भारत सरकार ने इस निर्णय पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय ने इस कदम को “अविवेकपूर्ण, अन्यायसंगत और एकतरफा” बताया है। 
  • भारत ने यह भी सवाल उठाया है कि अमेरिका क्यों केवल भारत को ही निशाना बना रहा है, जबकि यूरोप जैसे कई देश अब भी रूस से ऊर्जा संसाधन खरीद रहे हैं।
  • भारत के MEA के बयान में यह कहा गया है कि अमेरिका का यह कदम द्विपक्षीय संबंधों को गंभीर नुकसान पहुँचा सकता है। 
  • यह निर्णय न केवल भारत की आर्थिक संप्रभुता को चुनौती देता है, बल्कि इसके राजनीतिक संदेश भी गहरे हैं। भारत ने इस मुद्दे को विश्व व्यापार संगठन (WTO) में उठाने का संकेत भी दिया है।

 

भारत पर पड़ने वाला आर्थिक प्रभाव : 

 

 

  1. डेटा संरक्षण और आईपीआर क्षेत्र से संबंधित विवाद : भारत-अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार पहले से ही कई बार टैरिफ, डेटा संरक्षण और आईपीआर जैसे मुद्दों के कारण तनावपूर्ण रहा है। 2024 में यह व्यापार $190 बिलियन से अधिक का रहा है, जिसमें भारत का निर्यात $118 बिलियन से अधिक था, लेकिन यह टैरिफ वृद्धि अब विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है। 
  2. टेक्सटाइल और परिधान उद्योग : अमेरिका भारत का प्रमुख निर्यात बाज़ार है। 50% शुल्क लगने के बाद भारतीय उत्पाद अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा खो सकते हैं।
  3. इंजीनियरिंग और मैकेनिकल उत्पाद : ऑटो पार्ट्स, मशीन उपकरण आदि पर अतिरिक्त शुल्क लागत बढ़ा देंगे।
  4. फार्मास्युटिकल उद्योग : भारत अमेरिका को बड़ी मात्रा में जेनेरिक दवाएं निर्यात करता है। नए शुल्क से इनकी कीमतें प्रभावित हो सकती हैं।
  5. आईटी हार्डवेयर और इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र : लैपटॉप, मोबाइल पार्ट्स आदि जैसे उत्पादों पर लागत बढ़ने से निर्यात प्रभावित होगा।

 

व्यापारिक रणनीतियों में बदलाव की संभावना और भारत के पास उपलब्ध अन्य विकल्प :

 

  • भारत को अपने व्यापारिक संबंधों को और अधिक विविधता देने की जरूरत : विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका के इस निर्णय से भारत अपने व्यापारिक संबंधों को और अधिक विविधता देने की दिशा में सोच सकता है।
  • रूस और चीन के साथ गहरे व्यापारिक संबंध : अगर अमेरिका लगातार दबाव बनाए रखता है, तो भारत इन देशों के साथ नए समझौते कर सकता है।
  • ASEAN और अफ्रीकी बाजारों का विस्तार : भारतीय उद्योग अब दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में नए अवसर तलाश सकते हैं।
  • मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत को गति देने की जरूरत : यह संकट घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन देने का अवसर भी बन सकता है।

 

टैरिफ वृद्धि का भूराजनीतिक परिप्रेक्ष्य :

 

  • इस टैरिफ वृद्धि को केवल आर्थिक निर्णय मानना सही नहीं होगा। यह अमेरिका की “अमेरिका फर्स्ट” नीति का ही विस्तार है, जिसे ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में जोर-शोर से लागू किया था।
  • चीन, मैक्सिको, यूरोपीय संघ — सभी को टैरिफ के हथियार से झेला है। अब भारत भी इस रणनीति में आ गया है। 
  • अमेरिका अपने हितों की रक्षा के नाम पर दुनिया को एकतरफा निर्णयों के माध्यम से नियंत्रित करना चाहता है। लेकिन भारत जैसे उभरते हुए देश इन कदमों का अब खुलकर विरोध कर रहे हैं।
  • भारत ने रूस से तेल खरीद को पूरी तरह एक रणनीतिक और आर्थिक निर्णय बताया है, जिसके पीछे राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा और किफायती दरों पर खरीद संबंधी प्राथमिकता हैं। 
  • भारत ने बार-बार कहा है कि वह किसी भी तीसरे देश के दबाव में नहीं आएगा।

 

समाधान / आगे की राह : 

 

  1. एक उच्च स्तरीय राजनयिक संवाद की आवश्यकता : विश्लेषकों का मानना है कि इस संकट को टालने के लिए भारत और अमेरिका के बीच एक उच्च स्तरीय राजनयिक संवाद आवश्यक है। अगर दोनों देश बातचीत के माध्यम से एक स्वीकार्य समाधान निकाल पाते हैं, तो यह न केवल द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर बनाएगा, बल्कि वैश्विक व्यापार पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेगा।
  2. विशेष व्यापार वार्ता की जरूरत : भारत और अमेरिका दोनों ही पक्ष एक नई व्यापारिक समझौता प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं।
  3. सीमित छूट की पेशकश : अमेरिका कुछ उत्पादों पर छूट देने को तैयार हो सकता है, यदि भारत कुछ रियायतें देता है।
  4. ऊर्जा नीति पर सहमति : भारत रूस से ऊर्जा खरीदने की अपनी रणनीति को अमेरिका को बेहतर ढंग से समझा सकता है।

 

निष्कर्ष : 

 

 

  • अमेरिका द्वारा भारतीय आयातों पर टैरिफ बढ़ाने का निर्णय केवल एक व्यापारिक कदम भर नहीं है, बल्कि यह वैश्विक राजनीति, ऊर्जा सुरक्षा, राष्ट्रीय संप्रभुता और बहुपक्षीयता की जटिल परतों से जुड़ा है।
  • भारत इस समय एक ऐसे दोराहे पर है जहाँ उसे अपने आर्थिक हितों, रणनीतिक साझेदारियों और वैश्विक प्रतिष्ठा के बीच संतुलन बनाना होगा।
  • दूसरी ओर, अमेरिका को भी यह समझना होगा कि एकतरफा कदम उठाने से वह अपने पुराने मित्रों को दूर कर सकता है।
  • अतः, द्विपक्षीय व्यापार संबंध के लिए यह समय संयम, संवाद और समझदारी का है, नहीं तो अमेरिका द्वारा भारतीय आयातों पर टैरिफ बढ़ाने का यह निर्णय और दोनों देशों के मध्य के आर्थिक युद्ध की यह चिंगारी एक बड़ी वैश्विक आग बन सकती है।

 

स्त्रोत – पी. आई. बी एवं द हिन्दू। 

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. टैरिफ वृद्धि के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :

  1. यह केवल एक आर्थिक निर्णय है।
  2. यह अमेरिका की “अमेरिका फर्स्ट” नीति का हिस्सा है।
  3. यह भारत की ऊर्जा नीति पर दबाव बनाने की कोशिश है।
  4. इसका वैश्विक व्यापार पर कोई अंतरराष्ट्रीय प्रभाव नहीं पड़ेगा।

उपरोक्त कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

A. केवल 1 और 3 

B. केवल 2 और 3 

C. केवल 3 और 4 

D. केवल 1 और 4

उत्तर – B  

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. चर्चा कीजिए कि अमेरिका द्वारा भारत से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ को 50% तक बढ़ाने के हालिया निर्णय के पीछे क्या मुख्य कारण हैं? इस कदम का भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार, भारत की ऊर्जा नीति और वैश्विक व्यापार एवं राजनीतिक परिदृश्य पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? इस स्थिति से निपटने हेतु भारत और अमेरिका के बीच किन संभावित समाधान या रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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