रूस-यूक्रेन संकट में भारत की रणनीतिक भूमिका और महत्वपूर्ण चुनौतियाँ

रूस-यूक्रेन संकट में भारत की रणनीतिक भूमिका और महत्वपूर्ण चुनौतियाँ

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ अंतर्राष्ट्रीय संबंध , महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठन और भारत के हित्तों से संबंधित महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संधि और समझौते ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) , कोलंबो योजना , ब्रिक्स शिखर सम्मेलन ,  वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) , क्षेत्रीय संतुलन ’ खंड से संबंधित है।) 

 

खबरों में क्यों ?

 

  • हाल ही में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल की रूस यात्रा ने कई महत्वपूर्ण द्विपक्षीय और भू-राजनैतिक प्रभाव उत्पन्न किए हैं। 
  • इस यात्रा के दौरान,अजीत डोभाल ने ब्रिक्स सुरक्षा अधिकारियों की बैठक में भाग लिया और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के विदेश मंत्री वांग यी से भी मुलाकात की। 
  • यह बैठक अक्टूबर में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पहले आयोजित की गई थी, जिसमें भारत, चीन, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, ईरान, मिस्र, और इथियोपिया के नेता शामिल होंगे। 
  • अजीत डोभाल और वांग यी की इस बैठक ने विशेष रूप से भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चल रहे सैन्य गतिरोध को हल करने के प्रयासों को दर्शाया है जो दोनों देशों के बीच के आपसी संबंधों को सुधारने और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

 

रूस-यूक्रेन संकट पर भारत की विदेश नीति : 

भारत की विदेश नीति रूस-यूक्रेन संकट के संदर्भ में कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों और रणनीतियों पर आधारित है। जो निम्नलिखित है – 

गुटनिरपेक्षता और सामरिक स्वायत्तता (Non-alignment and Strategic Autonomy) : 

  • भारत की विदेश नीति गुटनिरपेक्षता और सामरिक स्वायत्तता के सिद्धांतों पर आधारित है, जो ऐतिहासिक रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष वैश्विक दृष्टिकोण की पहचान कराते हैं। गुटनिरपेक्षता का उद्देश्य किसी भी प्रमुख शक्ति के समूह में शामिल हुए बिना स्वतंत्र और संतुलित विदेश नीति को लागू करना है। सामरिक स्वायत्तता भारत को वैश्विक शक्तियों के बीच संतुलन बनाए रखने की स्वतंत्रता प्रदान करती है, जिससे वह क्षेत्रीय विवादों और वैश्विक मुद्दों पर अपनी स्वतंत्र स्थिति बनाए रख सकता है।
  • रूस-यूक्रेन संकट के संदर्भ में, भारत का रुख इस बात की पुष्टि करता है कि वह किसी भी पक्ष का समर्थन करने के बजाय, विवादों को बातचीत के माध्यम से सुलझाने का पक्षधर है।

 

निष्पक्षता और तटस्थता (Neutrality and Abstention) : 

  • फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से ही भारत ने एक तटस्थ रुख अपनाया है। इस संकट के दौरान, भारत ने पश्चिमी देशों की आलोचना के बावजूद, जो भारत से रूस की भूमिका की निंदा करने की उम्मीद कर रहे थे, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में प्रस्तावों पर रोक लगा दी। भारत ने यह सुनिश्चित किया कि उसकी नीति पूरी तरह से तटस्थ रहे और किसी भी पक्ष को समर्थन या निंदा न करे। यह निष्पक्षता भारत की विदेश नीति के मूल सिद्धांतों की पुष्टि करती है और उसकी अंतरराष्ट्रीय स्थिति को मजबूती प्रदान करती है।

 

आर्थिक और सामरिक हित (Economic and Strategic Interests) : 

  • भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान अपने आर्थिक और सामरिक हितों को प्राथमिकता दी है। बढ़ती वैश्विक ऊर्जा कीमतों के बीच, भारत ने रियायती दरों पर रूसी तेल का आयात जारी रखा है, जिससे उसकी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। यह कदम भारत की ऊर्जा सुरक्षा के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो वैश्विक कीमतों की बढ़ती अस्थिरता के बीच एक महत्वपूर्ण पहलू है।
  • भारत ने अपनी रक्षा उपकरणों की खरीद में विविधता लाने की आवश्यकता को भी पहचाना है। रूसी सैन्य आपूर्ति पर निर्भरता कम करने के लिए, भारत ने अन्य स्रोतों से रक्षा उपकरणों की खरीद की भी  कोशिश की है, जिससे उसकी सामरिक स्वायत्तता और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। यह नीति भारत की सामरिक लचीलापन और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में संतुलन बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

 

संस्थागत तंत्र के माध्यम से निपटान (Settlement through Institutional Mechanisms) :

  • भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के माध्यम से विवादों के शांतिपूर्ण समाधान की वकालत की है। भारत का यह दृष्टिकोण जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्यों को बिना किसी राष्ट्रीय हितों का समझौता किए प्रबंधित करने की व्यापक रणनीति के अनुरूप है। रूस-यूक्रेन संकट के संदर्भ में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के माध्यम से शांति और स्थिरता की दिशा में प्रयास किया है, जो उसके लंबे समय से चले आ रहे विदेश नीति के सिद्धांतों की पुष्टि करता है।

 

भारत द्वारा मध्यस्थता की भूमिका का महत्व : 

बैलेंसिंग एक्ट (Balancing Act) : 

  • विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय प्रधानमंत्री और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल की हालिया यात्रा को एक संतुलनकारी कार्य के रूप में देखा जा सकता है, विशेषकर रूस की यात्रा के बाद, जिसने पश्चिमी शक्तियों की आलोचना को आकर्षित किया। भारत ने इस यात्रा के माध्यम से दिखाया कि वह रूस और पश्चिमी देशों के बीच एक संतुलित और निष्पक्ष भूमिका निभा रहा है और वह किसी भी पक्ष के प्रति पक्षपाती नहीं है।

 

एक तटस्थ देश के रूप में स्थिति (Positioning as a Neutral Player) :

  • रूस और यूक्रेन दोनों के साथ संवाद और संबंध बनाए रखकर, भारत ने खुद को एक तटस्थ मध्यस्थ के रूप में स्थापित किया है। यह स्थिति भारत की वैश्विक जिम्मेदारी और शांति तथा स्थिरता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है। इससे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को मजबूती मिलती है और यह एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में उसकी पहचान को मजबूत करता है।

 

मध्यस्थ के रूप में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की व्यापक रणनीति (Broader Strategy to Play a More Active Role as a Mediator) :

  • भारत की कोरियाई युद्ध के युद्धविराम वार्ता और कोलंबो योजना में अंतरराष्ट्रीय संघर्षों में मध्यस्थ के रूप में भारत की ऐतिहासिक भूमिका के संतुलन दृष्टिकोण साथ संरेखित है। भारत एक ऐसा देश बनना चाहता है जो मास्को और वाशिंगटन दोनों के साथ मजबूत संबंध बनाए रखकर एक अधिक सक्रिय मध्यस्थ की भूमिका निभा सके। यह रणनीति भारत की अनूठी स्थिति का लाभ उठाने और वैश्विक संघर्षों में सकारात्मक भूमिका निभाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

 

ग्लोबल साउथ के नेतृत्व को मजबूत करना (Reinforcing the Leadership of the Global South) :

  • भारत का मध्यस्थता के रूप आने का प्रस्ताव वैश्विक दक्षिण देशों के पहले से चल रहे प्रयासों को महत्व देता है। भारत का यह दबाव वैश्विक दक्षिण में उसकी प्रमुखता को मजबूत करता है और वैश्विक मंच पर उसकी स्थिति को सुदृढ़ करता है। भारत के इस प्रयास से ग्लोबल साउथ देशों के नेतृत्व को भी बढ़ावा मिलता है और वे वैश्विक संवाद में अधिक प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं।
  • भारत की विदेश नीति रूस-यूक्रेन संकट के संदर्भ में एक संतुलित, निष्पक्ष, और रणनीतिक दृष्टिकोण को अपनाते हुए, वैश्विक शक्ति संतुलन को बनाए रखने और अंतरराष्ट्रीय शांति एवं स्थिरता को सुदृढ़ करने का प्रयास कर रही है।

 

रूस-यूक्रेन संघर्ष में शांति का वैश्विक स्तर पर महत्त्व :

रूस-यूक्रेन संघर्ष, जो फरवरी 2022 में रूसी आक्रमण के साथ शुरू हुआ था, वैश्विक भू-राजनीति, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है। यह संघर्ष न केवल यूक्रेन और रूस के लिए, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए भी गहरे प्रभाव और जटिलताएँ लेकर आया है। शांति की दिशा में प्रयास केवल दोनों देशों के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर सभी प्रमुख शक्ति केंद्रों के लिए महत्वपूर्ण हैं।

 

संयुक्त राज्य अमेरिका (United States) : 

  • रूस-यूक्रेन संकट में शांति से अमेरिका को पश्चिम एशियाई भू-राजनीतिक चुनौतियों जैसी अन्य महत्वपूर्ण विदेश नीति के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलेगा। इससे अमेरिका अपनी विदेश नीति को अधिक प्रभावी ढंग से लागू कर सकेगा और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर सकेगा। पश्चिम एशिया में चल रही भू-राजनीतिक चुनौतियों और चीन के बढ़ते प्रभाव जैसे मुद्दों पर ध्यान देने के लिए अमेरिका को एक स्थिर यूरोपीय क्षेत्र की आवश्यकता है। संघर्ष की समाप्ति अमेरिका को वैश्विक स्थिरता और सुरक्षा के लिए अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने का अवसर दे सकती है।

 

यूरोपीय देश (European countries) : 

  • यूरोपीय देशों के लिए, शांति का स्थायित्व आर्थिक पुनर्निर्माण और ऊर्जा असुरक्षा को दूर करने में मदद करेगा। रूस-यूक्रेन संघर्ष ने ऊर्जा की कमी और मुद्रास्फीति के दबाव को बढ़ा दिया है। शांति से यूरोपीय देशों को इन आर्थिक दबावों से राहत मिलेगी और वे अपने ऊर्जा स्रोतों की स्थिरता को सुनिश्चित कर सकेंगे। इसके अतिरिक्त, शांति यूरोपीय नीति निर्माताओं को लंबी अवधि के लिए सुरक्षा और समृद्धि की दिशा में काम करने की अनुमति देगी।

 

रूस (Russia) : 

  • भारत जैसे निष्पक्ष देश के माध्यम से वार्ता में शामिल होना रूस को पश्चिमी दबाव के सामने आत्मसमर्पण किए बिना संघर्ष से सम्मानजनक निकास की पेशकश कर सकता है। इससे रूस को अपनी अंतरराष्ट्रीय स्थिति को बनाए रखने और अपने हितों की रक्षा करने का अवसर मिलेगा।

 

भारत (India) : 

  • रूस और यूक्रेन संघर्ष के समाधान में मध्यस्थ के रूप में भारत की सफलता “विश्वामित्र” के रूप में भारत के व्यापक दृष्टिकोण के अनुरूप होगी। इससे भारत की अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा में केंद्रीय भूमिका को बल मिलेगा और वैश्विक स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। भारत की यह भूमिका उसे एक महत्वपूर्ण वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करेगी।

 

शांति प्रक्रिया में मध्यस्थ के रूप में भारत की चुनौतियाँ : 

अधिकतमवादी स्थिति (Maximalist position) : 

  • रूस और यूक्रेन दोनों ही अपने-अपने सैन्य लाभ पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जिससे शांति की दिशा में प्रगति की संभावना कम हो जाती है। रूस की ओर से लगातार आक्रमण और यूक्रेन की ओर से रूसी सैनिकों की पूरी तरह से वापसी की मांग शांति प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करती है। दोनों पक्षों का अधिकतमवादी रुख शांति समझौते को साकार करना मुश्किल बना देता है।

 

प्रतिस्पर्धी मांगें (Competing Demands) : 

  • यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की यूक्रेन से रूस की पूरी तरह से वापसी की मांग कर रहे हैं, जबकि रूसी राष्ट्रपति पुतिन चाहते हैं कि यूक्रेन अपने कब्जे वाले क्षेत्रों से वापस लौट जाए और नाटो की सदस्यता के लिए अपनी दावेदारी छोड़ दे। इन प्रतिस्पर्धी मांगों के कारण स्थिति जटिल हो गई है। दोनों पक्षों की प्रतिस्पर्धी मांगें समझौते के लिए एक साझा आधार तैयार करने में कठिनाई उत्पन्न कर रही हैं।

 

कई देशों के परस्पर विरोधी हित (Conflicting interests) : 

  • इस युद्ध में विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय महाशक्तियों की भागीदारी, रूस-यूक्रेन संकट में शांति के लिए किसी भी बातचीत की प्रक्रिया को अत्यधिक जटिल बनाती है। विभिन्न देशों के परस्पर विरोधी हित शांति प्रक्रिया को और भी कठिन बना देते हैं।

 

गहराई से जुड़े हित (Deeply entrenched interests) : 

  • अमेरिका और रूस के भू-राजनीतिक हित गहराई से जुड़े हुए हैं और दोनों ही शक्तियों के एक-दूसरे द्वारा प्रस्तावित शांति समझौते पर सहमत होने की संभावना नहीं के बराबर है। इससे शांति प्रक्रिया में और भी बाधाएं उत्पन्न हो रही है, क्योंकि इन दोनों शक्तियों के हित अक्सर एक-दूसरे के विपरीत होते हैं।

 

भारतीय विदेश नीति के प्रभावी और व्यापक दृष्टिकोण से समाधान की राह : 

 

  1. यथार्थवादी मूल्यांकन : भारतीय विदेश नीति प्रतिष्ठान को एक यथार्थवादी मूल्यांकन करने की आवश्यकता है कि क्या यूक्रेन और उसके पश्चिमी साझेदार भारत को शांति प्रक्रिया में एक सक्रिय मध्यस्थ के रूप में स्वीकार करने के इच्छुक हैं। इस मूल्यांकन में भारत की वैश्विक भूमिका, उसकी कूटनीतिक स्थिति और शांति प्रक्रिया में उसकी संभावित प्रभावशीलता की पहचान की जानी चाहिए। यह भी जांचना आवश्यक है कि क्या भारत की मध्यस्थता प्रस्ताव सभी प्रमुख दलों द्वारा स्वीकार्य है या नहीं।
  2. प्रभावी संघर्ष मध्यस्थता : भारत को युद्धविराम और स्थायी शांति के लिए अपने स्वयं के सिद्धांतों और दृष्टिकोणों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, भारत को “ब्लैक सी ग्रेन इनिशिएटिव” और हाल ही में हुए कैदीयों के आदान-प्रदान जैसी प्रभावी मध्यस्थता की घटनाओं से सीखना चाहिए। इन घटनाओं के अनुभव और रणनीतियों का विश्लेषण कर, भारत को अपने मध्यस्थता दृष्टिकोण को मजबूत और प्रभावी बनाना चाहिए।
  3. ऐतिहासिक मध्यस्थता की सफलताओं से सीख लेने की जरूरत : भारत को अपने ऐतिहासिक सफल मध्यस्थताओं का गहराई से अध्ययन करना चाहिए, जैसे 1950 में ऑस्ट्रिया-सोवियत संकट, कोरियाई युद्ध के युद्धविराम वार्ता, और कोलंबो योजना में मध्यस्थता। इन घटनाओं से भारत को यह सीखने को मिलेगा कि किस प्रकार की रणनीतियाँ और दृष्टिकोण ने सफलता दिलाई और कैसे ऐसी ही रणनीतियों को वर्तमान और भविष्य के संघर्षों में लागू किया जा सकता है।
  4. पक्षपात की धारणाओं पर काबू पाना : रूस और यूक्रेन संघर्ष के समाधान के तहत प्रभावी संघर्ष मध्यस्थता के लिए, भारत को मॉस्को के प्रति संभावित पक्षपात की धारणाओं पर काबू पाना होगा। इसके लिए, भारत को एक निष्पक्ष और संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है ताकि सभी पक्षों को यह विश्वास हो कि भारत एक ईमानदार और निष्पक्ष मध्यस्थ है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए, भारत को अपनी कूटनीतिक रणनीतियों और मध्यस्थता प्रयासों में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखनी होगी।

स्त्रोत – पी आई बी एवं द हिन्दू।

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. भारत ने रूस-यूक्रेन संकट के दौरान किस क्षेत्रीय संगठन के साथ मिलकर सहयोग बढ़ाने की कोशिश की और इस संकट के बाद भारत की सुरक्षा और रक्षा नीति में कौन सी प्राथमिकताएं उभर कर आईं?

A. शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और रूस के साथ अधिक गहरे सैन्य संबंध।

B. शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और पश्चिमी देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाना।

C. दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (SAARC) और केवल घरेलू रक्षा उन्नति पर ध्यान केंद्रित करना।

D. गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) और सभी देशों के साथ समान स्तर पर संबंध बनाए रखना।

उत्तर: B शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और पश्चिमी देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाना। 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. रूस और भारत के ऐतिहासिक संबंधों, वर्तमान भू-राजनीतिक दृष्टिकोण और अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष मध्यस्थता में भारत के पिछले अनुभवों को ध्यान में रखते हुए, रूस-यूक्रेन संघर्ष में भारत की संभावित भूमिका पर एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करें। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 ) 

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