लोकतंत्र के द्वार पर खड़ा विधेयक : गैर-सरकारी विधेयकों की अस्वीकृति

लोकतंत्र के द्वार पर खड़ा विधेयक : गैर-सरकारी विधेयकों की अस्वीकृति

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 के अंतर्गत ‘ भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था , भारतीय संविधान , भारतीय संसद में गैर- सरकारी विधेयकों की अस्वीकृति के मुख्य कारण ’ खण्ड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ सरकारी विधेयक, गैर-सरकारी विधेयक , संवैधानिक संशोधन , जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, संसद , PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च के आँकड़े और भारत में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था ’ खण्ड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों?

 

  • हाल ही में भारतीय संसद में कुछ गैर-सरकारी विधेयकों को सीमित समय के कारण अस्वीकृत कर दिया गया है। 
  • गैर-सरकारी विधेयक संसद में उन संसद सदस्यों द्वारा स्वतंत्र रूप से पेश किए जाते हैं, जो मंत्री नहीं होते है। 
  • 17वीं लोकसभा (जून 2019 से फरवरी 2024) में इन विधेयकों पर पर्याप्त विचार-विमर्श नहीं हो सका, जिससे भारत में सांसदों की भूमिका और भारत में संसदीय लोकतंत्र के चरित्र को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हुईं है।

 

गैर-सरकारी सदस्य विधेयक क्या होता है ? 

 

 

परिचय : भारत की संसद में गैर-सरकारी विधेयक उन सांसदों द्वारा प्रस्तुत किए जाते हैं, जो सरकार का हिस्सा नहीं होते। इन विधेयकों के माध्यम से सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर कानून या संशोधन पेश करते हैं। इन विधेयकों को निजी सदस्य विधेयक भी कहा जाता है।

मुख्य विशेषताएँ : केवल गैर-सरकारी सदस्य ही इन विधेयकों को पेश कर सकते हैं, जिससे उन्हें स्वतंत्र विधायी प्रस्ताव प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है। ये विधेयक सामान्यतः महत्वपूर्ण या विवादास्पद मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने का एक तरीका होते हैं।

 

संसद में गैर-सरकारी विधेयकों को पेश करने की प्रमुख प्रक्रिया :

  • प्रस्ताव और नोटिस : सांसद एक महीने का नोटिस देकर विधेयक का प्रस्ताव तैयार करते हैं।
  • परिचय और बहस : गैर-सरकारी विधेयक संसद में पेश होते हैं और फिर आमतौर पर शुक्रवार को सीमित समय के सत्रों में उन पर बहस होती है।
  • निर्णय : गैर-सरकारी विधेयक या तो वापस ले लिए जाते हैं या मतदान के लिए आगे बढ़ाए जाते हैं।

 

संसद में गैर-सरकारी विधेयकों का महत्त्व : 

 

  • गैर-सरकारी विधेयक सांसदों को दलीय दबाव से मुक्त होकर अपनी राय रखने का मंच प्रदान करते हैं। 
  • सन 1966 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद एच.वी. कामथ द्वारा प्रस्तुत गैर-सरकारी विधेयक था, जिसमें संविधान में संशोधन की बात की गई थी।
  • स्वतंत्रता के बाद से अब तक केवल 14 गैर-सरकारी विधेयक पारित हुए हैं, और 1970 के बाद से कोई भी विधेयक पारित नहीं हुआ। 
  • वर्ष 2014 में ट्रांसजेंडर अधिकार विधेयक, 45 वर्षों में राज्यसभा द्वारा अनुमोदित पहला गैर-सरकारी विधेयक था, लेकिन यह लोकसभा में नहीं पहुँच सका और न ही पास हो सका है।

 

सरकारी विधेयक और गैर-सरकारी विधेयक में मुख्य अंतर : 

 

प्रस्तुतकर्ता :

  • सरकारी विधेयक : इसे संसद में एक मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
  • गैर-सरकारी विधेयक : इसे किसी मंत्री के अलावा अन्य सांसद द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।

 

नीतियाँ :

  • सरकारी विधेयक : यह सरकार की नीतियों को प्रदर्शित करता है।
  • गैर-सरकारी विधेयक : यह विपक्ष की नीतियों को या सांसद के व्यक्तिगत विचारों को प्रदर्शित करता है।

 

संसद में पारित होने की संभावना :

  • सरकारी विधेयक : इस विधेयक के संसद में पारित होने की संभावना अधिक होती है।
  • गैर-सरकारी विधेयक : इस विधेयक के संसद में पारित होने की संभावना बहुत कम होती है।

 

अस्वीकृति का प्रभाव :

  • सरकारी विधेयक : यदि यह अस्वीकृत हो जाता है तो सरकार को इस्तीफा देना पड़ सकता है।
  • गैर-सरकारी विधेयक : इसके अस्वीकृत होने से सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

 

नोटिस अवधि :

  • सरकारी विधेयक : इसे संसद में पेश करने के लिए सात दिनों का नोटिस होना चाहिए।
  • गैर-सरकारी विधेयक : इसे संसद में पेश करने के लिए एक महीने का नोटिस होना चाहिए।

 

तैयारी :

  • सरकारी विधेयक : इसे संबंधित विभाग द्वारा विधि विभाग के परामर्श से तैयार किया जाता है।
  • गैर-सरकारी विधेयक : इसे संबंधित सांसद द्वारा तैयार किया जाता है।

 

भारत की संसद में गैर-सरकारी विधेयकों को प्रस्तुत करने में कमी होने का मुख्य कारण : 

 

समय की कमी :

  • PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च के आँकड़ों के अनुसार, 17वीं लोकसभा में गैर-सरकारी विधेयकों पर केवल 9.08 घंटे, जबकि राज्यसभा में 27.01 घंटे ही चर्चा हुई, जो कुल सत्र के समय का एक छोटा हिस्सा था।
  • 18वीं लोकसभा के दो सत्रों में निचले सदन में इन विधेयकों पर केवल 0.15 घंटे और राज्यसभा में 0.62 घंटे का समय व्यतीत हुआ, और प्रस्तावों पर चर्चा के लिए सबसे कम समय दिया गया।
  • शुक्रवार को गैर-सरकारी विधेयकों पर चर्चा का समय निर्धारित होने से समय और भी सीमित हो जाता है, क्योंकि इस दिन कई सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लौट जाते हैं।

गैर-सरकारी विधेयकों के प्रति सांसदों की कम गंभीरता और सक्रियता की कमी होना :

  • गैर-सरकारी विधेयकों की लोकप्रियता में गिरावट का एक प्रमुख कारण सांसदों का इस विधेयक के प्रति कम गंभीरता का होना है, क्योंकि कई सांसद चर्चाओं में भाग नहीं लेते हैं।

 

समाधान की राह :

 

 

  1. समय का उचित आवंटन सुनिश्चित करना : गैर-सरकारी विधेयकों के लिए संसद में अधिक समय निर्धारित किया जाना चाहिए, ताकि इन पर पर्याप्त चर्चा हो सके। विशेष दिनों पर इन पर बहस की जाए, जैसे सप्ताह के मध्य में, ताकि सांसदों की उपस्थिति बढ़ सके।
  2. सांसदों की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करना : सांसदों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास दिलाना आवश्यक है। उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्रों के मुद्दों को उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि वे चर्चाओं में सक्रिय रूप से भाग लें।
  3. गैर-सरकारी विधेयकों को प्राथमिकता देना : इन विधेयकों को संसद के एजेंडे में अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इससे इन पर अधिक समय और विचार-विमर्श हो सकेगा।
  4. सांसदों को गैर-सरकारी विधेयकों को प्रोत्साहन देने की अत्यंत आवश्यकता : सांसदों को अपने विधेयकों पर सक्रिय रूप से काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए संसाधन और प्रशिक्षण प्रदान किए जा सकते हैं, ताकि वे अपने मुद्दों को बेहतर तरीके से प्रस्तुत कर सकें।
  5. कार्यपालिका और विधायिका के बीच समन्वय स्थापित होना आवश्यक : सरकारी और गैर-सरकारी विधेयकों के बीच बेहतर समन्वय से इन विधेयकों को संसद में अधिक अवसर मिल सकते हैं, और कामकाजी संबंध मजबूत हो सकते हैं।
  6. संशोधन और सुधार की दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत : यदि एक गैर-सरकारी विधेयक अस्वीकृत होता है, तो उसे संसद में पुनः प्रस्तुत करने के लिए सुधारों के साथ पेश किया जा सकता है। इससे विधेयक को मंजूरी मिलने के अवसर बढ़ सकते हैं। इसके लिए संसद में एक प्रणाली विकसित की जा सकती है, जहां अस्वीकृत विधेयकों को पुनः पेश करने के लिए विशेष प्रक्रियाएं हों, जो विधेयक को सुधारने और पुनः प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करें।
  7. जनता को गैर-सरकारी विधेयकों की भूमिका के बारे में जागरूक करने की जरूरत : जनता को गैर-सरकारी विधेयकों की भूमिका के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए, ताकि वे अपने प्रतिनिधियों से इन पर चर्चा करने और उनका समर्थन करने की उम्मीद करें।

 

निष्कर्ष :

  • संसद में गैर-सरकारी विधेयकों की अस्वीकृति को कम करने के लिए समय का सही आवंटन, सांसदों की सक्रिय भागीदारी, विधेयकों की प्राथमिकता बढ़ाना और संसदीय प्रक्रियाओं में सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। इसके माध्यम से सांसदों को स्वतंत्र रूप से अपनी राय और विचार व्यक्त करने का अधिक अवसर मिलेगा, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और मजबूत किया जा सकेगा।

 

स्रोत – पीआईबी एवं द हिन्दू।

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. ‘गैर-सरकारी विधेयक’ किसे कहा जाता है?

A. वह विधेयक जो मंत्री पेश करते हैं।

B. वह विधेयक जो सरकारी योजनाओं से संबंधित होते हैं।

C. वह विधेयक जो मंत्री नहीं होने वाले सांसद पेश करते हैं।

D. वह विधेयक जो सिर्फ चुनावी सुधार से संबंधित होते हैं।

उत्तर – C

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत की संसद में गैर-सरकारी विधेयकों का महत्त्व क्या है और उन्हें अस्वीकृत होने के मुख्य कारण क्या हैं? चर्चा कीजिए कि इन विधेयकों पर अधिक विचार-विमर्श के लिए संभावित समाधान क्या हो सकते हैं? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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