विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट 2025 : भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में चौथी आर्थिक महाशक्ति

विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट 2025 : भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में चौथी आर्थिक महाशक्ति

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के अंतर्गत ‘ भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास, भारत की व्यापक आर्थिक स्थिरता और राजकोषीय नीति, वैश्विक स्तर पर उभरते बाजारों में आर्थिक विकास के चालक, समावेशी विकास और इससे उत्पन्न मुद्दे ’ खण्ड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ सकल घरेलू उत्पाद (GDP), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, स्मार्ट सिटी मिशन, विश्व आर्थिक परिदृश्य, मुद्रास्फीति, जनसांख्यिकीय लाभांश, मेक इन इंडिया, भारतमाला परियोजना ’ खण्ड से संबंधित है।) 

 

खबरों में क्यों?

 

 

  • हाल ही में जारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की विश्व आर्थिक परिदृश्य (WEO) अप्रैल 2025 रिपोर्ट में भारत को वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में एक प्रमुख भूमिका निभाते हुए दर्शाया गया है। 
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत वर्ष 2025 में जापान को पीछे छोड़कर, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के आधार पर विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। 
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था में यह प्रगति भारत द्वारा 2027 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है।

 

विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट 2025 के प्रमुख निष्कर्ष :

 

वैश्विक स्तर पर मुख्य निष्कर्ष :

 

  1. वैश्विक वृद्धि में मंदी का पूर्वानुमान : अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने अपनी अप्रैल 2025 रिपोर्ट में वैश्विक आर्थिक विकास दर को लेकर चिंता जताई है। वर्ष 2025 के लिए वृद्धि दर को घटाकर 2.8% कर दिया गया है, जबकि 2026 में यह 3.0% रहने की संभावना है। यह दर्शाता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था अस्थिरता और अनिश्चितताओं के दौर से गुजर रही है।
  2. विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका की धीमी गति : विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, अमेरिका, वर्ष 2025 में महज़ 1.8% की वृद्धि दर्ज कर सकती है। इसके पीछे नीति-निर्माण में अनिश्चितता और बढ़ते व्यापारिक तनाव प्रमुख कारण बताए गए हैं।
  3. उभरते एवं विकासशील बाज़ारों की स्थिति : इन देशों में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन का अनुमान है। IMF ने 2025 के लिए इन अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि दर 3.7% बताई है, जो वैश्विक औसत से अधिक है, लेकिन फिर भी यह गति पहले की तुलना में धीमी मानी जा रही है।
  4. मुद्रास्फीति में गिरावट और वित्तीय बाज़ारों की अस्थिरता : विश्व स्तर पर महँगाई दर में कमी आने की उम्मीद है, हालांकि व्यापारिक तनाव और वित्तीय बाज़ारों की अस्थिरता के चलते वैश्विक स्थिरता पर खतरे बने हुए हैं।
  5. भारत की जनसांख्यिकीय चुनौतियाँ और वृद्ध होती आबादी : दुनिया की अधिकांश अर्थव्यवस्थाएँ अब जनसंख्या के वृद्धावस्था की ओर बढ़ने से जूझ रही हैं। प्रजनन दर में गिरावट और जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के चलते आर्थिक विकास पर दबाव बढ़ रहा है। सदी के अंत तक औसत आयु में 11 वर्षों की वृद्धि का अनुमान है। 
  6. स्वस्थ जीवन प्रत्याशा में वृद्धि का अनुमान और वैश्विक GDP में वृद्धि में योगदान : स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार ने वृद्ध आबादी की जीवन गुणवत्ता में सकारात्मक बदलाव लाया है। उदाहरणस्वरूप, वर्ष 2022 में 70 वर्षीय व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्षमता वर्ष 2000 के 53 वर्षीय व्यक्ति के बराबर आंकी गई। इसी स्वस्थ दीर्घायु का वैश्विक GDP में 2025 से 2050 तक 0.4% की अतिरिक्त वृद्धि में योगदान करने की संभावना है।

 

भारत से जुड़े मुख्य निष्कर्ष :

 

  1. तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था : IMF ने वर्ष 2025 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर को संशोधित कर 6.2% किया है, जो पहले 6.5% थी। इसके बावजूद, भारत आज भी विश्व की सबसे तीव्र गति से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है।
  2. जापान की अर्थव्यवस्था को पछाड़ने की ओर अग्रसर : नाममात्र GDP के आधार पर भारत वर्ष 2025 में 4.187 ट्रिलियन डॉलर के आँकड़े तक पहुँच सकता है, जिससे वह जापान (4.186 ट्रिलियन डॉलर) को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
  3. चीन से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद : चीन की वृद्धि दर को घटाकर 4.0% कर दिया गया है (पहले 4.6% थी), जिससे भारत की तुलना में उसका प्रदर्शन अपेक्षाकृत कमजोर रह सकता है। यह भारत के आर्थिक नेतृत्व को और अधिक रेखांकित करता है।
  4. ग्रामीण भारत का मजबूत घरेलू खपत : निजी खपत, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, भारत की वृद्धि का एक प्रमुख कारक बनी हुई है। वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद, देश के घरेलू बाजार की मांग स्थिर और मज़बूत बनी रहने की उम्मीद है।

 

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) : 

 

  • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) एक प्रमुख बहुपक्षीय वित्तीय संगठन है, जिसकी स्थापना वैश्विक आर्थिक सहयोग को सुदृढ़ करने, वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने तथा सदस्य देशों को मौद्रिक सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी। 
  • इसका मुख्यालय संयुक्त राज्य अमेरिका के वॉशिंगटन डी.सी. में स्थित है। 
  • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का मूल कार्य वैश्विक मुद्रा विनिमय की स्थिरता बनाए रखना, अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहित करना, उच्च रोजगार और सतत आर्थिक वृद्धि को समर्थन देना तथा सदस्य देशों को वित्तीय संकट के समय आवश्यक सहायता प्रदान करना है।

 

विश्व आर्थिक परिदृश्य (World Economic Outlook – WEO) : IMF का अर्धवार्षिक प्रकाशन : 

 

 

  • अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) वर्ष में दो बार, अप्रैल और अक्टूबर के महीनों में, अपना महत्वपूर्ण प्रकाशन ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक’ (WEO) जारी करता है। 
  • यह रिपोर्ट वैश्विक अर्थव्यवस्था और विभिन्न देशों की आर्थिक स्थितियों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है, साथ ही भविष्य के लिए आर्थिक अनुमान भी व्यक्त करती है।
  • वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक का मुख्य लक्ष्य आर्थिक विकास की गति का मूल्यांकन करना, महत्वपूर्ण आर्थिक रुझानों की पहचान करना और सदस्य देशों को प्रभावी नीतिगत सुझाव देना है। 
  • इस रिपोर्ट के प्रमुख तत्वों में वैश्विक और क्षेत्रीय आर्थिक विकास के पूर्वानुमान, मुद्रास्फीति की संभावित दिशा और वित्तीय स्थिरता से जुड़े खतरों का आकलन शामिल होता है।
  • वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (WEO) रिपोर्ट नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों,  शोधकर्ताओं और निवेशकों के लिए एक अनिवार्य और महत्वपूर्ण दस्तावेज़ के साधन के रूप कार्य करती है, जो उन्हें वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को गहराई से समझने और उसके अनुसार निर्णय लेने में मदद करता है।

 

भारत की आर्थिक प्रगति को गति देने वाले मुख्य कारक और आर्थिक अनुकूलन के प्रमुख प्रेरक तत्व : 

 

  1. घरेलू मांग और निजी उपभोग : भारत की आर्थिक प्रगति का एक केंद्रीय स्तंभ निजी उपभोग है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी स्थिरता ने आर्थिक लचीलापन सुनिश्चित किया है। वर्ष 2024 में निजी खपत बढ़कर 1.83 लाख करोड़ रुपये हो गई, जो 7.2% की चक्रवृद्धि वार्षिक दर से आगे बढ़ रही है। इसके चलते भारत अमेरिका, चीन और जर्मनी जैसे देशों को भी पीछे छोड़ते हुए, 2026 तक विश्व का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाज़ार बनने की ओर अग्रसर है। मध्यम वर्ग का दायरा भी तीव्र गति से फैल रहा है, जिससे उपभोग की प्रवृत्तियों में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है। अनुमान है कि 2030 तक प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 3.49 लाख रुपये से अधिक हो जाएगी।
  2. मजबूत आर्थिक बुनियाद और राजकोषीय प्रबंधन : भारत की व्यापक आर्थिक स्थिरता, विशेष रूप से अनुशासित राजकोषीय प्रबंधन के कारण, इसकी मजबूती का आधार बनी हुई है। 2024-25 में देश का ऋण-से-जीडीपी अनुपात 56.8% रहा है, जो अमेरिका (124%) जैसे विकसित देशों की तुलना में काफी संतुलित है।
  3. आधारभूत संरचना का विकास और डिजिटलीकरण : भारत में बढ़ती बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं – जैसे भारतमाला, सागरमाला, और स्मार्ट सिटी मिशन ने दीर्घकालिक आर्थिक विकास को सशक्त किया है। इसके साथ ही, डिजिटल परिवर्तन ने उत्पादकता बढ़ाई है। भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था अब GDP का लगभग 11.74% हिस्सा बन चुकी है, जो आगे और अधिक विस्तारित होने की संभावना है।
  4. वित्तीय समावेशन नीति सुधार और सरकारी पहल : जनधन योजना के माध्यम से वित्तीय समावेशन को गति मिली है, वहीं उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं और ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों ने विनिर्माण क्षेत्र को सशक्त बनाया है। इन पहलों ने भारत की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को वैश्विक मंच पर मज़बूत किया है।
  5. जनसांख्यिकीय लाभ और तेजी से बढ़ती कार्यबल / श्रम शक्ति : भारत की युवा और तेजी से बढ़ती कार्यबल जनसंख्या उसकी सबसे बड़ी पूँजी है। महिला श्रम भागीदारी में वृद्धि (23.3% से 41.7% तक) ने समावेशी विकास को गति दी है। अनुमान है कि 2028 तक भारत का कार्यबल 457.62 मिलियन तक पहुँच जाएगा, जिससे मुख्यतः खुदरा, टेक्नोलॉजी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में 33.89 मिलियन नए रोज़गार के अवसर सृजित होंगे।
  6. नवाचार और तकनीकी प्रगति : कृत्रिम बुद्धिमत्ता, नवीकरणीय ऊर्जा और डिजिटल तकनीकों को अपनाने की बढ़ती प्रवृत्ति से भारत की उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। स्टार्टअप क्षेत्र के तेजी से विकास के चलते वर्ष 2030 तक लगभग 50 मिलियन नए रोजगार और 1 ट्रिलियन डॉलर की अतिरिक्त अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान है।
  7. वैश्विक व्यापारिक मांग और व्यापार का विविधीकरण : वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं और व्यापार समझौतों में भारत का बढ़ता जुड़ाव विकास के नए अवसर खोलता है और वैश्विक अस्थिरता से सुरक्षा प्रदान करता है। वैश्विक सेवा निर्यात में भारत की हिस्सेदारी वर्ष 2005 के 1.9% से बढ़कर वर्ष 2023 में 4.3% हो गई है, जो वैश्विक बाज़ार में इसकी बढ़ती हुई भूमिका को दर्शाता है और यह लगातार आगे बढ़ रही है।

 

निष्कर्ष : 

 

 

  • भारत की आर्थिक प्रगति, जो सशक्त घरेलू मांग, गहरे संरचनात्मक परिवर्तनों और दूरदर्शी निवेश पहलों पर आधारित है, उसे विश्व अर्थव्यवस्था में एक निर्णायक शक्ति के रूप में उभरने में सक्षम बनाती है। इसकी अनुकूल जनसांख्यिकीय संरचना और नीति-निर्माण में स्थिरता, दीर्घकालिक विकास की संभावना को और भी मज़बूत करती है। वर्तमान वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद, भारत की दिशा सकारात्मक और आशाजनक बनी हुई है। इन आधारभूत तत्वों के प्रभावी दोहन के माध्यम से भारत आने वाले वर्षों में वैश्विक आर्थिक संतुलन को आकार देने में एक केंद्रीय भूमिका निभाने की ओर अग्रसर है। अतः अनुकूल जनसांख्यिकी से समर्थित, भारत का भविष्य उज्जवल दिखाई देता है।

 

स्त्रोत – पी. आई. बी एवं द हिन्दू। 

Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 10th May 2025

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. विश्व आर्थिक परिदृश्य (WEO) रिपोर्ट के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। 

  1. यह रिपोर्ट वर्ष में एक बार प्रकाशित होती है। 
  2. इसका मुख्य लक्ष्य वैश्विक अर्थव्यवस्था का विश्लेषण करना और भविष्य के आर्थिक अनुमान व्यक्त करना है। 
  3. यह केवल विकसित देशों की आर्थिक स्थितियों पर ध्यान केंद्रित करती है। 
  4. यह नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और निवेशकों के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है। 
  5. यह सदस्य देशों को सैन्य सहायता प्रदान करती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से कथन सही हैं? 

A. केवल 1, 2 और 4  

B. केवल 2 और 4 

C. केवल 1, 2, 3 और 5 

D. 1, 2, 3, 4 और 5 सभी।

उत्तर – B 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. चर्चा कीजिए कि विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट 2025 के अनुसार, भारत के दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर होने का प्रमुख कारण क्या है? भारत की आर्थिक प्रगति को गति प्रदान करने वाले प्रमुख कारक और प्रेरक तत्व कौन से हैं, जिनके परिणामस्वरूप वह वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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