वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक 2024

वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक 2024

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के अंतर्गत ‘ पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी, वन्यजीव और जैव विविधता, पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी और जलवायु परिवर्तन से संबंधित महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक, 2024 , विश्व बैंक , IUCN ( प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ ), सतत विकास लक्ष्य 14 (जल के नीचे जीवन) और 15 (भूमि पर जीवन) ’ खंड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ? 

 

 

  • हाल ही में प्रकाशित ‘ वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक ( Nature Conservation Index: NCI ), 2024 ’ के अनुसार, भारत को पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में सबसे कमजोर प्रदर्शन करने वाले देशों में से एक माना गया है। 
  • यह सूचकांक पहली बार 24 अक्टूबर, 2024 को जारी किया गया था , जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर प्रकृति संरक्षण की स्थिति का विस्तृत आकलन करना था। 
  • इस सूचकांक में भारत को 100 में से केवल 45.5 अंक मिले हैं और उसे 176वां स्थान प्राप्त हुआ है। 
  • प्रकृति संरक्षण के प्रति जागरूकता के लिए कुल 180 देशों के इस मूल्यांकन में भारत की स्थिति बेहद कमजोर रही है। 
  • प्रकृति संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए एक ओर जहाँ लक्ज़मबर्ग को शीर्ष स्थान मिला है, वहीं इसके विपरीत, प्रशांत महासागर में स्थित किरिबाती नामक देश को इस सूची में सबसे निचला स्थान मिला है।

 

वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक : 

  1. वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक (NCI) का निर्माण गोल्डमैन सोनेनफेल्ड स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी एंड क्लाइमेट चेंज, बेन-गुरियन यूनिवर्सिटी ऑफ द नेगेव, इज़राइल और गैर-लाभकारी वेबसाइट BioDB.com ने संयुक्त रूप से मिलकर इस सूचकांक को तैयार और जारी किया है। 
  2. इस सूचकांक को पहली बार अक्टूबर 2024 में पहली बार प्रकाशित किया गया था।

 

वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक ( Nature Conservation Index: NCI ) : 

 

  1. यह सूचकांक डेटा-आधारित एक उपकरण है, जिसका उद्देश्य संरक्षण और विकास के बीच संतुलन स्थापित करने में देशों की प्रगति का मूल्यांकन करना है। 
  2. NCI का मुख्य उद्देश्य यह है कि यह वैश्विक स्तर पर सरकारों, शोधकर्ताओं और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठनों को प्रमुख पर्यावरणीय चिंताओं को पहचानने में मदद करे, ताकि जैव विविधता के संरक्षण के लिए दीर्घकालिक नीतियों के निमार्ण में सुधार किया जा सके।

 

NCI चार प्रमुख मानदंडों पर आधारित होता है:

 

  1. भूमि प्रबंधन : यह मूल्यांकन करता है कि पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित रखने और उसे टिकाऊ बनाने के लिए भूमि का प्रबंधन कितना प्रभावी है।
  2. जैव विविधता के लिए खतरों की पहचान करना : यह विभिन्न स्थानीय वनस्पतियों और जीवों को उत्पन्न होने वाले खतरों की पहचान करता है और उनकी गंभीरता को मापता है।
  3. संरक्षण प्रयासों से संबंधित संस्थागत क्षमता और शासन तंत्र के बीच का तालमेल : यह इस बात पर विचार करता है कि संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए संस्थागत क्षमता और शासन तंत्र कितने मजबूत हैं।
  4. जैव विविधता और संरक्षण की दिशा में भविष्य की प्रवृत्तियाँ : यह संभावित भविष्य में होने वाले विकास और परियोजनाओं के असर को भी ध्यान में रखता है, जो जैव विविधता और संरक्षण की दिशा को प्रभावित कर सकते हैं।
  • इस सूचकांक के माध्यम से देशों की रैंकिंग इस आधार पर की जाती है कि वे अपने प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण की रक्षा कैसे कर रहे हैं। 
  • यह सूचकांक खतरे में पड़ी प्रजातियों, संरक्षित क्षेत्रों के आकार और गुणवत्ता, आवासों की स्थिति और संरक्षण कार्यक्रमों की प्रभावशीलता जैसे कई कारकों पर आधारित होता है।
  • इस सूचकांक का मूल्यांकन 25 प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों के माध्यम से किया जाता है। 
  • वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक को जारी करने के लिए डेटा विश्व बैंक तथा IUCN (प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ) से प्राप्त किया गया है।

 

वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक 2024 में भारत की स्थिति :

 

  1. वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक 2024 में भारत ने 100 में से 45.5 अंक हासिल किए हैं, और 180 देशों की सूची में 176वां स्थान प्राप्त किया है। 
  2. भारत को यह निम्न स्थान अकुशल भूमि प्रबंधन और जैव विविधता को लेकर बढ़ते खतरों के कारण मिला है।
  3. भूमि प्रबंधन के क्षेत्र में भारत को 42 अंक प्राप्त हुए हैं, जिससे वह 154वें स्थान पर है। 
  4. जैव विविधता के लिए खतरे की श्रेणी में भारत को 54 अंक मिले हैं, जिससे वह वैश्विक स्तर पर प्रकृति संरक्षण के प्रति 177वें स्थान पर है। 
  5. जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण के प्रति क्षमता और प्रशासन संबंधी प्रयासों में भारत को 60 अंक मिले हैं, और इस श्रेणी में वह 115वें स्थान पर है। 
  6. भविष्य की प्रवृत्तियों के संदर्भ में भारत को 35 अंक मिले हैं, जिससे वह 133वें स्थान पर है।

 

वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक 2024 में सर्वश्रेष्ठ और सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देश :

वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक 2024 में सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले देश और उनके अंक निम्नलिखित हैं:

 

  1. लक्ज़मबर्ग – 70.8 अंक
  2. एस्टोनिया – 70.5 अंक
  3. डेनमार्क – 69 अंक
  4. फिनलैंड – 66.9 अंक
  5. यूनाइटेड किंगडम – 66.6 अंक

इन देशों ने पर्यावरण संरक्षण प्रयासों और पारिस्थितिकी तंत्र के रखरखाव में अत्यधिक प्रभावी नीतियों और कार्यों के माध्यम से उच्च रैंकिंग प्राप्त की है।

 

भारत में प्रकृति संरक्षण से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ :

 

  1. अकुशल भूमि प्रबंधन : भारत की लगभग 53% भूमि शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और कृषि उपयोग के लिए समर्पित है। इस अत्यधिक उपयोग के कारण असंयमित और असंधारणीय प्रथाएँ बढ़ रही हैं, जो जैव विविधता की क्षति का कारण बन रही हैं।
  2. मृदा स्वास्थ्य और जैव विविधता के लिए बढ़ते खतरे : देश में कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग मृदा प्रदूषण को बढ़ावा दे रहा है, जिसके कारण मृदा की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। इस संकट को रोकने और मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए त्वरित और प्रभावी उपायों की अत्यंत आवश्यकता है।
  3. समुद्री संरक्षण की कमी : भारत के राष्ट्रीय जलमार्गों का केवल 0.2% हिस्सा संरक्षित है, और इनमें से कोई भी हिस्सा अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में नहीं आता है। यह समुद्री जैव विविधता के संरक्षण में बड़ी कमी को दर्शाता है। जबकि भारत के कुल स्थलीय क्षेत्र का 7.5% हिस्सा संरक्षित है। अतः भारत के लिए  समुद्री संरक्षण से संबंधित प्रमुख चुनौतियों की दिशा में सख्त सुधार की अत्यंत जरूरत है।
  4. आवासों का नुकसान होना : वर्ष 2001 से  2019 के बीच, भारत में वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण लगभग 23,300 वर्ग किलोमीटर वनक्षेत्र नष्ट हो गया। इसका प्रभाव वन्यजीवों के आवासों पर पड़ा है, जिससे उनके जीवन चक्र और संरक्षण पर प्रतिकूल असर हुआ है।
  5. जनसंख्या का बढ़ता दबाव : भारत दुनिया के सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाले देशों में से एक है, और 1970 के दशक के बाद से इसकी जनसंख्या दोगुनी हो चुकी है। इस तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण देश के पारिस्थितिकीय संसाधनों पर लगातार दबाव बढ़ रहा है, जो संरक्षण प्रयासों के लिए एक बड़ी चुनौती है।
  6. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव : जलवायु परिवर्तन से विशेष रूप से संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र, जैसे अल्पाइन क्षेत्रों और प्रवाल भित्तियों, को खतरा उत्पन्न हो रहा है। यह जैव विविधता संबंधी मौजूदा समस्याओं को और भी जटिल बना रहा है, और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है।
  7. जैव विविधता में गिरावट से जैव विविधता संकट का गहराना : भारत में हालांकि 40% समुद्री प्रजातियाँ और 65% स्थलीय प्रजातियाँ संरक्षित क्षेत्रों में पाई जाती हैं, फिर भी इनकी जनसंख्या में लगातार गिरावट आ रही है। वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक के अनुसार, 67.5% समुद्री प्रजातियाँ और 46.9% स्थलीय प्रजातियाँ महत्वपूर्ण संख्या में गिरावट का सामना कर रही हैं, जो जैव विविधता संकट को और बढ़ा रही हैं।
  8. सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में उत्पन्न होने वाली कठिनाइयाँ : भारत को सतत विकास लक्ष्य 14 (जल के नीचे जीवन) और 15 (भूमि पर जीवन) को हासिल करने में महत्वपूर्ण चुनौतियाँ पेश आ रही हैं, जो जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए दीर्घकालिक और समग्र प्रयासों की आवश्यकता है। भारत को इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए अपने संरक्षण प्रयासों में व्यापक सुधार करने की आवश्यकता है, ताकि पर्यावरणीय स्थिरता और जैव विविधता को संरक्षित किया जा सके।

 

मुख्य अनुशंसाएँ और समाधान की राह :

 

 

  1. प्रकृति संरक्षण के लिए प्रभावी रणनीतियाँ लागू करना : प्रकृति संरक्षण के लिए प्रभावी रणनीतियाँ लागू करने के लिए एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति का होना अनिवार्य है। इसमें सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी कानूनों की स्थापना और पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए पर्यावरण पहलों के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन जुटाना शामिल है।
  2. सतत विकास को प्रोत्साहित करना तथा पारिस्थितिकी संरक्षण को प्राथमिकता देना : वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक (NCI) एक मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता पर जोर देता है और ऐसे कानूनों को बढ़ावा देता है जो सतत विकास को प्रोत्साहित करें तथा पारिस्थितिकी संरक्षण को प्राथमिकता दें। भारत की वर्तमान संरक्षण चुनौतियों से निपटने और एक स्थिर एवं टिकाऊ भविष्य के निर्माण के लिए वित्तीय संसाधनों का सुनिश्चित करना और रणनीतिक सुधार लागू करना जरूरी है।
  3. पर्यावरणीय समस्याओं के प्रति संवेदनशील और प्रतिबद्ध दृष्टिकोण अपनाना : वर्तमान समय में भारत को कई गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन NCI इस बात पर बल देता है कि यदि सरकार और समाज मिलकर प्रतिबद्धता के साथ कार्य करें, तो भारत अपने पर्यावरणीय संकटों का समाधान कर सकता है और एक अधिक टिकाऊ और पारिस्थितिकी अनुकूल भविष्य की दिशा में कदम बढ़ा सकता है।
  4. पर्यावरणीय स्थिरता से संबंधित संरक्षण नीतियों और जैव विविधता कार्यक्रमों में व्यापक सुधार करने की आवश्यकता : भारत को अपनी पर्यावरणीय स्थिरता से संबंधित संरक्षण नीतियों और जैव विविधता कार्यक्रमों में व्यापक सुधार करने की अत्यंत आवश्यकता है, ताकि पर्यावरणीय स्थिरता और जैव विविधता को दीर्घकालिक रूप से बचाया जा सके। इन समस्याओं के समाधान के लिए एक समन्वित, सशक्त और समूह-आधारित प्रयास की आवश्यकता है, ताकि हम प्रकृति के संरक्षण में वास्तविक प्रगति कर सकें और पर्यावरण की दिशा में सकारात्मक बदलाव ला सकें। अतः एक समन्वित और सशक्त प्रयास से ही भारत में प्रकृति के संरक्षण की दिशा में प्रगति संभव है।

 

स्त्रोत – पीआईबी एवं डाउन टू अर्थ। 

 

Download Plutus IAS Current Affairs HINDI 14 Nov 2024 pdf

 

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. ‘ वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक, 2024 ‘ के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। 

  1. इस सूचकांक को पहली बार अक्टूबर 2024 में प्रकाशित किया गया था।
  2. इसे गोल्डमैन सोनेनफेल्ड स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी एंड क्लाइमेट चेंज और BioDB.com ने मिलकर तैयार किया है।
  3. भारत को इस सूचकांक में 176वां स्थान प्राप्त हुआ है, जबकि लक्ज़मबर्ग को सबसे निचला स्थान प्राप्त हुआ है।
  4. भारतीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस सूचकांक को जारी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

निम्नलिखित कथनों में से कितने कथन सही है?

A. केवल एक 

B. केवल दो 

C. केवल तीन 

D. उपरोक्त सभी।

उत्तर – B

व्याख्या:

  • कथन 1 सही है। क्योंकि, वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक, 2024 को पहली बार अक्टूबर 2024 में प्रकाशित किया गया था।
  • कथन 2 सही है। इसे गोल्डमैन सोनेनफेल्ड स्कूल और BioDB.com ने संयुक्त रूप से मिलकर तैयार और प्रकाशित किया था।
  • कथन 3 गलत है। क्योंकि इस सूचकांक में भारत को 176वां स्थान प्राप्त हुआ है, जबकि लक्ज़मबर्ग को शीर्ष स्थान प्राप्त हुआ है।
  • कथन 4 गलत है। क्योंकि गोल्डमैन सोनेनफेल्ड स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी एंड क्लाइमेट चेंज, बेन-गुरियन यूनिवर्सिटी और BioDB.com ने मिलकर तैयार किया है। भारतीय पर्यावरण मंत्रालय इसमें शामिल नहीं था।

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक 2024 के प्रमुख पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, भारत की स्थिति का विश्लेषण करें। चर्चा करें कि इस संदर्भ में भारत के समक्ष कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं और उसका प्रभावी समाधानात्मक उपाय क्या हो सकता है? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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