शहरी वनों का अस्तित्व दांव पर : कानूनी, पर्यावरणीय और विकासात्मक परिप्रेक्ष्य

शहरी वनों का अस्तित्व दांव पर : कानूनी, पर्यावरणीय और विकासात्मक परिप्रेक्ष्य

पाठ्यक्रम मानचित्रण :

सामान्य अध्ययन – 3 – विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और पारिस्थितिकी, खतरे में शहरी वन : कानूनी, पर्यावरणीय और विकासात्मक दृष्टिकोण

प्रारंभिक परीक्षा के लिए : 

पर्यावरणीय संतुलन, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, वन मानचित्रण, शहरी वनरोपण अभियान, शहरी वन क्या है? भारत में वनों की सुरक्षा के लिए मुख्य कानून कौन से हैं?

मुख्य परीक्षा के लिए : 

शहरी वनों से लोगों और पर्यावरण को क्या लाभ हैं?

 

खबरों में क्यों?

 

  • हाल ही में तेलंगाना सरकार द्वारा लिए गए निर्णय के कारण हैदराबाद के शेष बचे शहरी जंगलों में से एक — कांचा गाचीबोवली — अब अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है। इसका कारण बना तेलंगाना सरकार का यह निर्णय, जिसमें उसने औद्योगिक विकास के लिए 400 एकड़ भूमि प्रदान करने का निश्चय किया। 
  • सरकार ने जंगल पर अपने अधिकार का दावा करते हुए, विरोध कर रहे छात्रों पर आरोप लगाया कि वे रियल एस्टेट लॉबी के प्रभाव में आकर विरोध कर रहे हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रकरण में हस्तक्षेप करते हुए 100 एकड़ में की गई पेड़ों की कटाई पर चिंता जताई और राज्य सरकार को फटकार लगाई। यह मामला न केवल शहरी जंगलों की नाजुक स्थिति को दर्शाता है, बल्कि विकास की दौड़ में पर्यावरणीय संतुलन की अनदेखी और असंवेदनशीलता को भी पोल उजागर करता है।

 

शहरी वन क्यों महत्वपूर्ण है?

 

वर्ग मुख्य लाभ
पर्यावरण – प्रदूषकों (PM2.5, NOx, CO₂) को फ़िल्टर करके वायु की गुणवत्ता में सुधार करें
– शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव को कम करना
– कार्बन को अलग करना, ग्रीन हाउस गैसों को कम करना
– वर्षा जल को अवशोषित करना, शहरी बाढ़ को कम करना
स्वास्थ्य और कल्याण – श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों को कम करना
– मनोरंजन और मानसिक स्वास्थ्य के लिए स्थान प्रदान करना
– व्यस्त शहरी परिवेश में शोर को कम करने वाले बफर के रूप में कार्य करना
पारिस्थितिकी – शहरी जैवविविधता (पक्षी, कीड़े, छोटे स्तनधारी) का समर्थन करना
– लघु-पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में कार्य करना, मृदा और जल चक्र में सुधार करना
शहरी स्थिरता – जलवायु लचीलापन और आपदा तैयारी को बढ़ाना
– स्मार्ट सिटी और हरित अवसंरचना लक्ष्यों के साथ संरेखित करना

 

भारत में प्रमुख शहरी वन : 

 

शहरी वन का नाम शहर उल्लेखनीय विशेषताएँ
कांचा गाचीबोवली हैदराबाद शहर के बचे हुए अंतिम क्षेत्रों में से एक; वर्तमान में शहरी विस्तार से खतरा है।
आरे वन मुंबई विकास पर विवादों के बावजूद, जैव विविधता और वायु गुणवत्ता के लिए महत्वपूर्ण, एक पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र।
दिल्ली रिज और नीला हौज दिल्ली यह राष्ट्रीय राजधानी को हरित फेफड़ा प्रदान करता है, जो मनोरंजन और पर्यावरणीय कार्यों के लिए महत्वपूर्ण है; न्यायिक हस्तक्षेप इन क्षेत्रों को संरक्षित करने में मदद करता है।
तुरहल्ली वन बेंगलुरु तेजी से बढ़ते शहरीकरण के बीच एक मूल्यवान प्राकृतिक क्षेत्र, जो अपनी जैव विविधता और मनोरंजक उपयोग के लिए जाना जाता है।
पोल का बादली जयपुर यह शहर में एक महत्वपूर्ण हरित स्थान के रूप में कार्य करता है, तथा शहरी पारिस्थितिकी संतुलन में योगदान देता है।

 

शहरी वनों के लिए सरकारी पहल : 

 

शहरी वन संरक्षण में विधिक एवं न्यायिक पहल : 

 

  1. न्यायालयों की सक्रिय भूमिका : शहरी हरित क्षेत्रों की रक्षा हेतु उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों ने समय-समय पर जनहित याचिकाओं के माध्यम से हस्तक्षेप किया है। नागरिकों व सामाजिक संगठनों द्वारा उठाए गए पर्यावरणीय मुद्दों पर न्यायपालिका ने न केवल सुनवाई की, बल्कि प्रभावी निर्देश भी दिए।
  2. सर्वोच्च न्यायालय की सख्ती : कांचा गाचीबोवली विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने पेड़ कटाई को गंभीरता से लिया और राज्य सरकार को पर्यावरणीय जवाबदेही सुनिश्चित करने की सख्त हिदायत दी। यह निर्णय न्यायपालिका के पर्यावरणीय सरोकारों को रेखांकित करता है।
  3. प्रशासनिक निर्णयों पर निगरानी : कार्यपालिका के ऐसे निर्णय, जो पारिस्थितिक संतुलन को प्रभावित कर सकते हैं, न्यायपालिका की सतत निगरानी में रहते हैं। यह हस्तक्षेप सार्वजनिक हित की प्राथमिकता बनाए रखने हेतु आवश्यक है।
  4. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 : प्रदूषण और अवैध विकास गतिविधियों पर नियंत्रण हेतु व्यापक कानूनी आधार प्रदान करता है।
  5. वन संरक्षण अधिनियम, 1980 : इस अधिनियम के तहत बिना केंद्रीय स्वीकृति के वन भूमि के उपयोग में बदलाव पर रोक लगाता है, जिससे वनों की रक्षा सुनिश्चित होती है।
  6. न्यायालय द्वारा जारी दिशा निर्देश और आदेश : न्यायालय ने समय-समय पर वृक्ष कटाई, अतिक्रमण और भूमि उपयोग में बदलाव को रोकने के लिए स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किए हैं, जिससे शहरी वनों को अवैध अतिक्रमण से बचाया जा सके।
  7. संवैधानिक संरक्षण : भारतीय संविधान का अनुच्छेद 48 ए राज्य को प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और संवर्धन का निर्देश देता है, जो नीतिगत ढांचे में पर्यावरण संरक्षण को केंद्र में लाता है।
  8. सतत विकास का न्यायिक समर्थन : न्यायिक हस्तक्षेपों के माध्यम से विकास और संरक्षण के बीच संतुलन की खोज की जाती है, जिससे दीर्घकालिक पारिस्थितिक स्थिरता सुनिश्चित हो सके।

 

शहरी वनों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ : 

 

  1. अनियंत्रित शहरी विस्तार : तेजी से फैलते शहरों के कारण वन भूमि को आवासीय, औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रयोजनों में बदला जा रहा है, जिससे जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  2. भारी बुनियादी ढांचा निर्माण : मेट्रो, फ्लाईओवर और औद्योगिक क्षेत्रों के निर्माण के लिए हरित क्षेत्रों की बलि दी जा रही है, जो पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ता है।
  3. अवैध – अतिक्रमण और तेजी से बढ़ती झुग्गियाँ : शहरी वनों में अनधिकृत निर्माण और झुग्गी बस्तियाँ तेजी से बढ़ रही हैं, जो न केवल स्थानिक पारिस्थितिकी को प्रभावित करती हैं, बल्कि वन क्षेत्र को भी सिकोड़ती हैं।
  4. प्रदूषण का बढ़ता स्तर : आसपास के शहरी क्षेत्रों से फैलता वायु, जल व ध्वनि प्रदूषण वन क्षेत्रों की जैविक संरचना और स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
  5. अनियंत्रित वृक्ष कटाई : भूमि उपयोग में बदलाव, ईंधन और निर्माण के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई शहरी वनों की निरंतरता पर प्रश्नचिह्न लगाती है।
  6. आक्रामक पौधों की प्रजातियों का प्रसार : गैर-देशी पौधों की अनियंत्रित वृद्धि पारिस्थितिकीय संतुलन को बाधित करती है और स्थानीय प्रजातियों को संकट में डालती है।
  7. कानूनी संरक्षण की कमी : कई शहरी वन संरक्षित वन क्षेत्र की श्रेणी में नहीं आते, जिससे उन पर नियमन और प्रवर्तन दोनों ही कमजोर पड़ जाते हैं।
  8. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव : बढ़ता तापमान, अनियमित वर्षा और मौसम की चरम घटनाएँ शहरी वनों की सहनीयता और पारिस्थितिक तंत्र को चुनौती देते हैं।
  9. भूमि मूल्य और रियल एस्टेट का बढ़ता दबाव : शहरों में भूमि की बढ़ती मांग और कीमत शहरी वनों को लाभकारी अचल संपत्ति परियोजनाओं में परिवर्तित करने के लिए निरंतर दबाव बनाती है।

 

शहरी वनों के संरक्षण की दिशा में भावी रणनीति एवं समाधान की राह : 

 

  1. कानूनी मान्यता और सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता : शहरी हरित क्षेत्रों को संरक्षित वन क्षेत्र का दर्जा देकर उन्हें मौजूदा वन एवं पर्यावरण कानूनों के दायरे में लाना आवश्यक है, ताकि उनकी दीर्घकालिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
  2. समग्र शहरी नियोजन में  शहरी वनों को रणनीतिक रूप से समाहित करने की आवश्यकता : शहरों की विकास योजनाओं जैसे मास्टर प्लान और ज़ोनिंग नीतियों में शहरी वनों को रणनीतिक रूप से समाहित करना चाहिए, जिससे अनियंत्रित निर्माण और अतिक्रमण रोके जा सकें।
  3. पर्यावरण संरक्षण कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन करने की जरूरत : पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और वन संरक्षण अधिनियम, 1980 सहित सभी संबंधित विधियों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु संस्थागत निगरानी और जवाबदेही को मजबूत किया जाना चाहिए।
  4. स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने की आवश्यकता : शहरी वन प्रबंधन को तभी सफलता मिलेगी जब स्थानीय नागरिक, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) और छात्र समूह प्रत्यक्ष रूप से संरक्षण व निगरानी कार्यों में सहभागी बनें।
  5. देशी प्रजातियों का वृक्षारोपण करने की जरूरत : बंजर, उपेक्षित या क्षतिग्रस्त शहरी क्षेत्रों में देशज वृक्षों के माध्यम से संगठित वृक्षारोपण अभियान चलाए जाएं ताकि जैव विविधता और पारिस्थितिकीय संतुलन बहाल किया जा सके।
  6. तकनीकी – सहायता के द्वारा वनों के अतिक्रमण की पहचान करके वनों की सीमा निर्धारण और निगरानी करने की आवश्यकता : GIS मैपिंग, उपग्रह चित्रण और ड्रोन निगरानी जैसे तकनीकी साधनों का उपयोग अतिक्रमण की पहचान, वनों की सीमा निर्धारण और निगरानी के लिए किया जा सकता है।
  7. शहरी परियोजनाओं में हरित निवेश को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता : शहरी परियोजनाओं में हरित बुनियादी ढांचे को अपनाने तथा वन क्षेत्र के संरक्षण के लिए निजी क्षेत्र और डेवलपर्स को आर्थिक प्रोत्साहन देने की नीति अपनाई जाए।
  8. जन-जागरूकता और पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम चलाए जाने की जरूरत : स्कूलों, कॉलेजों और आवासीय कॉलोनियों में शहरी वनों के लाभों को लेकर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं, जिससे नागरिकों में संरक्षण की भावना उत्पन्न हो।

 

निष्कर्ष :  

 

  1. कांचा गाचीबोवली की घटना न केवल एक स्थानीय विवाद थी, बल्कि इसने भारत के शहरी विकास के वर्तमान मॉडल / प्रारूप की सीमाओं को उजागर किया है, जहाँ क्षणिक आर्थिक लाभ को दीर्घकालिक पारिस्थितिकीय संतुलन पर तरजीह दी जाती है। यह स्पष्ट संकेत है कि शहरी नियोजन में प्रकृति को केवल एक बाधा नहीं, बल्कि एक मूलभूत घटक के रूप में पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता है।
  2. शहरी वन केवल हरियाली के टुकड़े भर नहीं हैं, बल्कि वे हमारे शहरों की फेफड़े हैं, जो जलवायु अनुकूलन, जैव विविधता संरक्षण, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा और मानसिक संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे हमारे कंक्रीट-प्रधान जीवन में प्रकृति की अंतिम शरणस्थली है।
  3. इस प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किया गया हस्तक्षेप यह दर्शाता है कि न्यायपालिका पर्यावरणीय जवाबदेही सुनिश्चित करने में एक प्रमुख स्तंभ है। फिर भी, स्थायी समाधान केवल विधिक हस्तक्षेप से नहीं, बल्कि नीतिगत दूरदर्शिता, सामुदायिक संलग्नता और प्रकृति-केन्द्रित शहरी दृष्टिकोण से ही संभव है।
  4. शहरी वनों का संरक्षण अब किसी वैकल्पिक विकल्प का विषय नहीं रह गया है। यह भारत के उभरते शहरों की सतत, सुरक्षित और समावेशी भविष्य की बुनियाद है। 
  5. अब समय आ गया है कि हम अपने शहरों के विकास की परिभाषा में प्रकृति को स्थान दें, जो केवल शहरी वनों को संरक्षित करने के लिए नहीं हो, बल्कि यह मानव और पर्यावरण को साथ लेकर चलने के लिए हो। 
  6. आज शहरी वनों की सुरक्षा कोई वैकल्पिक विकल्प नहीं, बल्कि भावी भारत के स्वस्थ और सतत शहरों की पूर्वापेक्षा है।

 

स्त्रोत – पी. आई. बी. एवं द हिन्दू।

Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 23rd May 2025

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. भारत में शहरी वनों के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. शहरी वन शहरी ऊष्मा द्वीप प्रभाव को कम करने में मदद करते हैं।
  2. वन संरक्षण अधिनियम, 1980 केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना किसी भी उद्देश्य के लिए वन भूमि के उपयोग की अनुमति देता है।
  3. शहरी वन शहरों में बाढ़ की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर – (c)

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. भारतीय शहरों में शहरी वन पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, फिर भी वे विकास के दबाव और कमजोर कानूनी संरक्षण के कारण खतरे में हैं। इस संदर्भ में शहरी वनों के महत्व, उनके सामने मौजूद प्रमुख खतरों और उनके संरक्षण के लिए किए जा सकने वाले उपायों पर चर्चा कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

No Comments

Post A Comment