27 Nov समाजवादी और पंथ – निरपेक्ष : भारतीय संविधान की संरचना के अविभाज्य स्तंभ
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 के अंतर्गत ‘ भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था ’ खंड से और यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ भारतीय संविधान के शासन का स्वरूप, समाजवादी और पंथ – निरपेक्ष, सामाजिक न्याय, 42 वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 , नीति – निर्माण में सरकारी हस्तक्षेप ’ खंड से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की प्रस्तावना में ‘ पंथ – निरपेक्ष ‘ और ‘ समाजवादी ‘ शब्दों को जोड़ने के फैसले को सही ठहराया और उन्हें संविधान की संरचना का अनिवार्य हिस्सा माना है।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए यह निर्णय 2020 में दाखिल की गई उन याचिकाओं को के संदर्भ में आया है, जिनमें 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के तहत इन शब्दों को संविधान में शामिल किए जाने को चुनौती दी गई थी।
- याचिकाकर्ताओं ने यह आरोप लगाया कि ये शब्द भारत के मूल संविधान में संशोधन के माध्यम से जोड़े गए थे और इससे भारत की आर्थिक नीतियों पर प्रतिबंध लगाते हैं और इसके साथ ही यह संविधान सभा के मूल उद्देश्य के विपरीत हैं।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति को मान्यता दी और इसे एक जीवंत दस्तावेज के रूप में देखा, जो सामाजिक परिवर्तनों के अनुरूप विकसित होता है।
समाजवादी अवधारणा क्या है?
- समाजवाद एक ऐसी राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था है, जो समता और न्याय की स्थापना के लिए प्रयासरत रहती है।
- यह अवधारणा एक ऐसे गणराज्य का समर्थन करती है, जो समाज के प्रत्येक वर्ग को समान अधिकार और अवसर प्रदान करता है।
- समाजवाद का मुख्य उद्देश्य सभी प्रकार के शोषण को समाप्त करना है—चाहे वह सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक स्तर पर हो।
- इसमें एक लोकतांत्रिक और समतामूलक समाज की स्थापना की दिशा में काम करने की प्रतिबद्धता निहित होती है, जहाँ हर व्यक्ति को न्यायपूर्ण तरीके से समान संसाधनों और अवसरों का लाभ मिल सके।
भारत में समाजवाद की प्रमुख विशेषताएं :
- लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करने में सहायक : भारतीय संविधान एक कल्याणकारी राज्य के रूप में काम करने का संकल्प करता है, जो सभी नागरिकों के सामाजिक न्याय और उत्थान को सुनिश्चित करता है। इसका उद्देश्य समाज के हर वर्ग को समान अवसर और अधिकार प्रदान करना है।
- सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों का सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था की स्थापना में सहायक होना : भारत एक मिश्रित अर्थव्यवस्था का अनुसरण करता है, जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों का सह-अस्तित्व होता है। यह मॉडल आर्थिक विकास के लिए दोनों क्षेत्रों की भूमिका को संतुलित करता है, जिससे देश की समग्र उन्नति संभव होती है।
- समानता और न्याय पर आधारित राज्य की शासन व्यवस्था का समर्थक होना : समाजवाद का मूल सिद्धांत आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को समाप्त करना है। यह सभी प्रकार के शोषण को खत्म करने और समान अवसर प्रदान करने पर जोर देता है, ताकि हर नागरिक को न्याय मिल सके।
- लोकतांत्रिक दृष्टिकोण पर आधारित होना : भारत में समाजवाद का पालन सख्त मार्क्सवादी विचारधारा के बजाय लोकतांत्रिक समाजवाद के रूप में होता है। इसका उद्देश्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करते हुए उद्यम की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की भी रक्षा करना है।
- बदलती सामाजिक और आर्थिक जरूरतों के अनुसार नीतियां बनाने की स्वतंत्रता प्रदान करना : “समाजवादी” शब्द किसी विशेष आर्थिक प्रणाली का पालन करने का आदेश नहीं देता, बल्कि यह सरकारों को समय-समय पर बदलती सामाजिक और आर्थिक जरूरतों के अनुसार नीतियां बनाने की स्वतंत्रता देता है।
भारत में समाजवाद का महत्व :
- सामाजिक न्याय और संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करना : समाजवाद अमीर और गरीब के बीच की खाई को पाटने और संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने पर जोर देता है। उदाहरण के रूप में, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), 2005, जो आय असमानताओं को कम करके ग्रामीण परिवारों को रोजगार प्रदान करता है, और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, जो हाशिए पर मौजूद समूहों को शोषण से बचाता है और समानता को बढ़ावा देता है।
- समावेशी विकास सुनिश्चित करना : समाज के हाशिए पर रहने वाले कमजोर वर्गों का प्रतिनिधित्व और उसके लिए समावेशी विकास सुनिश्चित करना समाजवादी दृष्टिकोण का महत्वपूर्ण पहलू है। नीतियाँ जैसे आरक्षण, प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY), और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 समाजवादी विचारधारा के तहत कमजोर समुदायों के लिए अवसर, किफायती आवास और खाद्य सुरक्षा प्रदान करती हैं।
- वित्तीय समावेशन और आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देना : समाजवादी नीतियाँ संतुलित आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करती हैं, जो सार्वजनिक कल्याण और निजी उद्यम दोनों के लाभ को सुनिश्चित करती हैं। जैसे औद्योगिक नीति संकल्प (मिश्रित अर्थव्यवस्था), सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), और प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY), जो वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देती हैं।
- संवैधानिक आदेश के तहत हाशिए पर रहने वाले वर्गों के आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की रक्षा करना : भारतीय संविधान में प्रस्तावना और विभिन्न अनुच्छेदों के माध्यम से समाजवाद के सिद्धांतों को सुदृढ़ किया गया है, जो आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की रक्षा करते हैं। एससी, एसटी और ओबीसी के लिए राष्ट्रीय आयोगों की स्थापना भी समाजवाद के विचारों से प्रेरित है, जो हाशिए पर रहने वाले वर्गों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए काम करता है।
भारतीय समाजवाद के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ :
- आर्थिक असमानताएँ : कल्याणकारी नीतियों के बावजूद, धन की असमान वितरण लगातार बढ़ रही है। पुनर्वितरण उपायों का प्रभावी ढंग से कार्यान्वयन न होने के कारण अमीर और गरीब के बीच की खाई और गहरी हो रही है।
- बेरोजगारी और गरीबी : उच्च बेरोजगारी दर और व्यापक गरीबी समाजवाद के उद्देश्यों को पूरा करने में रुकावट डालते हैं। विशेषकर हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ और आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं की पहुँच बेहद सीमित हो जाती है।
- क्षेत्रीय असमानताएँ : राज्यों के बीच असमान आर्थिक विकास समाजवाद के समग्र विकास के सिद्धांत को कमजोर करता है, जिससे देश के विभिन्न हिस्सों में असमानता बनी रहती है।
- निजीकरण और उदारीकरण : बाजार-आधारित नीतियों के बढ़ते प्रभाव से कल्याणकारी योजनाओं का ध्यान कम हो गया है। निजी क्षेत्र का प्रभाव बढ़ने से प्रमुख सार्वजनिक सेवाओं पर सरकारी नियंत्रण घट रहा है, जिससे सामाजिक कल्याण प्रभावित हो रहा है।
- भ्रष्टाचार और शासन के मुद्दे : कल्याणकारी योजनाओं में कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार के कारण कार्यान्वयन में अक्षमता उत्पन्न होती है। जवाबदेही की कमी से सरकारी संस्थाओं में जनता का विश्वास कम होता जा रहा है।
- सामाजिक भेदभाव : जाति, लिंग और समुदाय आधारित भेदभाव समाज में सामाजिक न्याय की प्राप्ति में बड़ी चुनौती बने हुए हैं। यह भेदभाव समाजवाद के समग्र लक्ष्यों के साथ संघर्ष करता है।
भारतीय संविधान में समाजवादी सिद्धांत को बनाए रखने के प्रमुख उपाय :
- कमजोर वर्गों के लिए सशक्तिकरण के उपायों को लागू करना : महिलाओं को स्थानीय निकायों, शिक्षा और रोजगार में समान अवसर प्रदान करने के लिए तिहाई आरक्षण लागू करना, और हाशिए पर रहने वाले समूहों के लिए सशक्तिकरण के उपायों को लागू करना, यह सामाजिक न्याय को बढ़ावा देता है और समाज में समानता की दिशा में कदम बढ़ाता है।
- समाज के पिछड़े वर्गों की सुरक्षा और विकास सुनिश्चित करना (राष्ट्रीय आयोग) : राष्ट्रीय आयोगों, जैसे राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एससी), अनुसूचित जनजाति आयोग (एसटी), और महिला आयोग को सशक्त करना, ताकि उनकी सिफारिशों और अधिकारों को सरकार द्वारा सक्रिय रूप से लागू किया जा सके, समाज के पिछड़े वर्गों की सुरक्षा और विकास सुनिश्चित हो सके।
- क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने में योगदान देना : सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों, जैसे कोयला, इस्पात, और ऊर्जा के माध्यम से क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना, विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देना, ताकि समग्र राष्ट्र में आर्थिक समानता स्थापित हो।
- गरीबी उन्मूलन के लिए नीतियों का निर्माण करना ( जैसे, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम ) : राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के द्वारा गरीबों को रियायती दरों पर खाद्यान्न प्रदान करना, जो भूख और कुपोषण से निपटने में मदद करता है और गरीबी कम करने तथा आर्थिक समानता सुनिश्चित करने में योगदान करता है।
- गरीब और हाशिए पर रहने वाले समूहों की सहायता करना : प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (PM Kisan) जैसे उपायों के माध्यम से किसानों को प्रत्यक्ष आय सहायता प्रदान करना, साथ ही दैनिक वेतनभोगी श्रमिकों के लिए कल्याणकारी योजनाओं का संचालन, जिससे सामाजिक सुरक्षा और आर्थिक सहायता मिलती है, और उनकी जीवनस्तर में सुधार होता है।
- सभी वर्गों के लिए समान अवसर सुनिश्चित कर सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देना : शिक्षा और रोजगार में आरक्षण जैसी नीतियाँ, साथ ही सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ, आर्थिक रूप से वंचित वर्गों, एससी/एसटी, ओबीसी और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करती हैं, और सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देती हैं।
- समावेशी विकास के लिए जिम्मेदार पूंजीवाद सामाजिक जिम्मेदारी के साथ काम करना : एक मिश्रित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना, जिसमें पूंजीवाद सामाजिक जिम्मेदारी के साथ काम करता है। उदाहरण के लिए, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के माध्यम से यह सुनिश्चित करना कि व्यवसाय न्यायसंगत तरीके से काम करें और सतत विकास में योगदान दें, ताकि समाज के हर वर्ग को लाभ पहुंचे।
निष्कर्ष :
- संविधान की प्रस्तावना में ‘ पंथ – निरपेक्ष ‘ और ‘ समाजवादी ‘ शब्दों का समावेश भारत की समाज में समानता और सामाजिक कल्याण की ओर उसकी दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाता है। सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्याओं ने इन सिद्धांतों को संविधान के अभिन्न और अपरिहार्य तत्वों के रूप में स्वीकार किया गया है , जिससे यह सुनिश्चित होता है कि देश के संविधान में निहित ये मूलभूत मूल्य दृढ़ता से स्थापित करें।
स्त्रोत -पीआईबी एवं द हिन्दू।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q. 1. निम्नलिखित में से कौन से संवैधानिक प्रावधान भारत में समाजवाद से जुड़े हैं?
- मौलिक कर्तव्य
- अनुसूची नौ
- प्रस्तावना
- संविधान का भाग 15.
नीचे दिए गए कोड का उपयोग करके सही उत्तर चुनें:
A. केवल एक
B. केवल दो
C. केवल तीन
D. चारों
उत्तर: C
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. “सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले में कहा गया है कि समाजवाद संविधान का हिस्सा है।” इस संदर्भ में भारत में समाजवाद की विशेषताओं और प्रमुख चुनौतियों पर तर्कसंगत चर्चा करें। (शब्द सीमा – 250 अंक – 15)
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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