27 Dec सरदार उधम सिंह की 125वीं जयंती
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 1 के अंतर्गत ‘ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास, आधुनिक भारतीय इतिहास, विरासत , भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन, बांग्ला कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ सरदार उधम सिंह , जलियांवाला बाग हत्याकांड , रॉलेट एक्ट 1919 , प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) , असहयोग आंदोलन (1920–22) , हंटर कमीशन ’ खंड से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में 26 दिसंबर को सरदार उधम सिंह की जयंती मनाई गई, जिसमें जलियाँवाला बाग हत्याकांड में न्याय पाने के लिए उनके निरंतर संघर्ष और उनकी विरासत को याद किया गया।
- सरदार उधम सिंह को जलियाँवाला बाग नरसंहार के खिलाफ न्याय की अटूट लड़ाई के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, जिन्हें 31 जुलाई, 1940 को लंदन में फाँसी दी गई थी।
सरदार उधम सिंह का जीवन परिचय और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान:
जन्म और प्रारंभिक जीवन :
- सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। बहुत कम उम्र में ही उनके माता-पिता का निधन हो गया, जिसके बाद वे अमृतसर के केंद्रीय खालसा अनाथालय में पले-बढ़े।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड :
- सरदार उधम सिंह 13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला बाग हत्याकांड के प्रत्यक्ष गवाह थे, जब ब्रिटिश जनरल डायर के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने जलियाँवाला बाग में उपस्थित हजारों निहत्थे भारतीय नागरिकों को गोली मार दी। इस घटना ने सरदार उधम सिंह के जीवन को गहरे तरीके से प्रभावित किया।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ :
- जलियाँवाला बाग नरसंहार का बदला लेने की भावना से प्रेरित होकर सरदार उधम सिंह सन 1924 में गदर पार्टी में शामिल हो गए।
- इस पार्टी का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करना और देश को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र कराना था।
गिरफ्तारी और सजा :
- सन 1927 में उधम सिंह को अवैध हथियार रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और उन्हें पाँच साल की जेल की सजा दी गई।
बदला और फाँसी :
- 13 मार्च 1940 को उधम सिंह ने लंदन में माइकल ओ’ डायर की हत्या कर दी, जो जलियाँवाला बाग हत्याकांड का प्रमुख दोषी था। यह कदम ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनके प्रतिरोध का प्रतीक था।
- ब्रिटिश शासन के खिलाफ सरदार उधम सिंह के इस प्रभावी प्रत्युत्तर के कारण उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई।
- सरदार उधम सिंह 31 जुलाई 1940 को लंदन के पेंटनविले जेल में फाँसी दे दी गई।
विरासत :
- सरदार उधम सिंह को शहीद-ए-आज़म के रूप में सम्मानित किया गया। उनके अवशेष को सन 1974 में भारत वापस लाया गया।
- उनके साहस और संघर्ष ने उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनके अडिग प्रतिरोध का प्रतीक बना दिया।
- उनके नाम पर श्रद्धांजलि के रूप में सन 1995 में उत्तराखंड के एक जिले का नाम “ उधम सिंह नगर ” रखा गया।
जलियांवाला बाग हत्याकांड :
- रॉलेट एक्ट 1919 के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा हो रही थी, जिसमें शामिल लोगों पर ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया।
- इस गोलीबारी में हजारों निहत्थे पुरुष, महिलाएं और बच्चे मारे गए।
- इस घटना के 21 साल बाद, 1940 में, सरदार उधम सिंह ने जनरल डायर की हत्या कर दी थी।
रॉलेट एक्ट 1919 :
- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान (1914-18), ब्रिटिश सरकार ने भारत में दमनकारी आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल शुरू किया।
- इन शक्तियों का उद्देश्य विध्वंसक गतिविधियों को रोकना था।
- इस संदर्भ में, सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक समिति की सिफारिशों पर रॉलेट एक्ट 1919 पारित किया गया।
- इस कानून में निहित प्रावधानों ने ब्रिटिश सरकार को भारत में किसी भी राजनीतिक गतिविधियों को दबाने के अधिकार दिए और यह कानून दो साल तक बिना किसी मुकदमे के राजनीतिक कैदियों को हिरासत में रखने की अनुमति देता था।
जलियांवाला बाग हत्याकांड की पृष्ठभूमि :
- महात्मा गांधी ने रॉलेट एक्ट 1919 जैसे अन्यायपूर्ण कानून के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया, जो 6 अप्रैल 1919 को शुरू हुआ।
- इसी बीच 9 अप्रैल 1919 को पंजाब में ब्रिटिश अधिकारियों ने दो प्रमुख राष्ट्रवादी नेताओं, सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर लिया गया।
- इससे भारतीयों में गहरा आक्रोश पैदा हो गया और 10 अप्रैल को हज़ारों लोग अपने नेताओं के समर्थन में सड़कों पर उतर आए।
इस विरोध को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने पंजाब में मार्शल लॉ लागू किया और कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी ब्रिगेडियर जनरल डायर को सौंप दी थी।
घटना का दिन :
- 13 अप्रैल 1919 को, बैसाखी के दिन, अमृतसर में निषेधाज्ञा से अनजान ज़्यादातर पड़ोसी गाँव के लोगों की एक बड़ी भीड़ जालियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए जमा हो गई।
- जब ब्रिगेडियर जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ जालियांवाला बाग नामक घटनास्थल पर पहुंचे, तो उन्होंने सभा को घेरकर एकमात्र निकासी द्वार को बंद कर दिया और निहत्थी भीड़ पर गोलीबारी शुरू कर दी। इस हमले में 1000 से ज्यादा निहत्थे लोग मारे गए।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना का महत्त्व :
- जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक दुखद घटना और एक दुखद त्रासदी के रूप में जाना जाता है।
- 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश जनरल डायर के आदेश पर निहत्थे भारतीय नागरिकों पर अंधाधुंध गोलीबारी की गई, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों लोग घायल हो गए।
- जलियांवाला बाग में घटी इस घटना ने भारतीय जनमानस को गहरे रूप से झकझोर दिया और भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह की लहर को और अधिक तेज कर दिया।
रवींद्रनाथ टैगोर का विरोध :
- जलियांवाला बाग हत्याकांड ने न केवल भारतीयों को प्रभावित किया, बल्कि पूरे विश्व में इसका विरोध हुआ।
- बांग्ला कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने इस कृत्य के विरोध में 1915 में ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा दी गई नाइटहुड की उपाधि को लौटा दिया।
- ब्रिटिश साम्राज्य की निंदा करते हुए उनके द्वारा नाइटहुड की उपाधि को लौटाना, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रति उनके गहरे समर्थन को दर्शाता है।
ब्रिटिश सरकार द्वारा इस घटना के प्रत्युत्तर में हंटर आयोग का गठन किया जाना:
- इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने हंटर आयोग का गठन किया, जिसका उद्देश्य जलियांवाला बाग हत्याकांड की जाँच करना था।
- सन 1920 में हंटर आयोग ने डायर के आदेशों की कड़ी निंदा की और उसे अपनी सेना से इस्तीफा देने का आदेश दिया।
- ब्रिटिश सरकार ने हालांकि, जनरल डायर को बचाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन इस जांच ने भारतीयों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ और अधिक गुस्से को जन्म दिया।
निष्कर्ष :
- जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम था, जिसने भारतीयों को ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के खिलाफ और अधिक जागरूक और संघर्षशील बना दिया।
- इस घटना ने महात्मा गांधी को अहिंसक सत्याग्रह के माध्यम से स्वतंत्रता की लड़ाई को और तेज़ करने की प्रेरणा दी और भारतीय जनता को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एकजुट किया।
- रवींद्रनाथ टैगोर जैसे बड़े नेताओं ने इसका विरोध किया और हंटर आयोग की जाँच ने ब्रिटिश अत्याचार को सार्वजनिक रूप से उजागर किया, जिससे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा मिली और अंततः सन 1947 में भारत ब्रिटिश गुलामी से मुक्त होकर एक स्वतंत्र, लोकतंत्रात्मक और संप्रभु देश बना।
स्रोत- पीआईबी एवं द हिंदू।
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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान रॉलेट एक्ट ने भारतीय लोगों में किस कारण से सार्वजनिक रोष को उत्पन्न किया था?
A. इसने धर्म की स्वतंत्रता को कम किया था।
B. इसने भारतीय पारंपरिक शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया था।
C. इसने ट्रेड यूनियन गतिविधियों पर अंकुश लगाया था।
D. इसने सरकार को बिना मुकदमे के लोगों को कैद करने के लिये अधिकृत किया था।
उत्तर – D
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. “जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण त्रासदी थी जिसके परिणामस्वरूप हुए आंदोलनों और प्रतिक्रियाओं ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय संघर्ष को और अधिक तीव्र किया।” इस कथन के संदर्भ में आप जलियांवाला बाग हत्याकांड के कारणों, इसकी पृष्ठभूमि, इसके परिणामस्वरूप उठे आंदोलनों, रवींद्रनाथ टैगोर के विरोध, हंटर आयोग की भूमिका और इस घटना के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर प्रभाव को विस्तार से चर्चा करें। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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