सर्वोच्च न्यायालय की चेतावनी : CBI अन्वेषण में संतुलन अनिवार्य

सर्वोच्च न्यायालय की चेतावनी : CBI अन्वेषण में संतुलन अनिवार्य

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ शासन एवं राजव्यवस्था , भारतीय संविधान , उच्चतम न्यायालय , भारतीय संविधान का संघीय चरित्र और केंद्र – राज्य संबंध , विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप , दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) , भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम ,  भ्रष्टाचार निवारण पर संथानम समिति , भारत में CBI से संबंधित मुद्दे और सिफारिशें ’ खंड से संबंधित है। )

 

खबरों में क्यों ? 

 

 

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कलकत्ता उच्च न्यायालय की आलोचना की है, क्योंकि उसने राज्य पुलिस की जाँच को CBI को हस्तांतरित करने के लिए पर्याप्त तर्क नहीं दिए थे। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि CBI जाँच का आदेश केवल असाधारण परिस्थितियों में ही दिया जाना चाहिए, जब स्पष्ट साक्ष्य हों कि राज्य पुलिस निष्पक्ष जाँच नहीं कर सकती है।
  • कलकत्ता उच्च न्यायालय ने गोरखालैंड प्रादेशिक प्रशासन (GTA) क्षेत्र में भर्ती में कथित अनियमितताओं के संदर्भ में CBI जाँच के आदेश दिए थे, जिसे पश्चिम बंगाल सरकार ने चुनौती दी थी। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने इस आदेश को रद्द करते हुए न्यायालयों से न्यायिक संयम बरतने और CBI जाँच का आदेश देने के लिए स्पष्ट और बाध्यकारी कारण बताने के लिए कहा।
  • इस निर्णय ने न्यायिक संयम के महत्त्व को रेखांकित किया है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि CBI का उपयोग केवल असाधारण परिस्थितियों में ही हो।

 

भारत में CBI के उपयोग से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय : 

 

CBI के उपयोग के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण निर्णय निम्नलिखित हैं – 

  • CBI बनाम राजेश गांधी केस, 1997 : सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि CBI को मामले तभी सौंपे जाने चाहिए जब स्थानीय पुलिस की जाँच असंतोषजनक हो। आरोपी यह निर्णय नहीं कर सकता कि कौन सी एजेंसी जाँच करेगी।
  • विनीत नारायण बनाम भारत संघ मामला, 1997 : इस मामले में, जिसे जैन हवाला कांड भी कहा जाता है, सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार और CBI की जवाबदेही पर फैसला सुनाया। न्यायालय ने केंद्र सरकार के 1969 के “सिंगल डायरेक्टिव” को अमान्य कर दिया, जिससे जाँच एजेंसियों की स्वतंत्रता मज़बूत हुई और राजनीतिक हस्तक्षेप के बिना कार्य करने के दिशानिर्देश दिए गए।
  • CBI बनाम डॉ. आरआर किशोर मामला, 2023 : सर्वोच्च न्यायालय ने DSPE अधिनियम की धारा 6A को असंवैधानिक और शून्य घोषित किया, जिससे विधि को असंवैधानिक घोषित करने के पूर्वव्यापी प्रभाव पर निर्णय हुआ।
  • CPIO CBI बनाम संजीव चतुर्वेदी केस, 2024 : दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि CBI को RTI अधिनियम की धारा 24 से पूरी तरह छूट नहीं है। CBI को “संवेदनशील जाँच” को छोड़कर भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित जानकारी प्रदान करनी होगी। ये निर्णय CBI की कार्यप्रणाली और उसकी स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

 

भारत में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) का प्रमुख कार्य और दायित्व :  

 

  • केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) भारत सरकार की प्रमुख जांच एजेंसी है, जो भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराध और पारंपरिक अपराधों की जांच करती है। 
  • इसकी स्थापना 1941 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान विशेष पुलिस प्रतिष्ठान के रूप में हुई थी, जिसका उद्देश्य युद्ध और आपूर्ति विभाग में भ्रष्टाचार की जांच करना था। 
  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सन 1946 में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम लागू किया गया, जिसके तहत इसका कार्यक्षेत्र बढ़ा दिया गया।
  • सन 1963 में गृह मंत्रालय, भारत सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की स्थापना की गई। इस प्रस्ताव के माध्यम से ही दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (डीएसपीई) को सीबीआई में विलय कर दिया गया और उसे सीबीआई का एक प्रभाग बना दिया गया। 
  • बाद में, सीबीआई को गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र से कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय को हस्तांतरित कर दिया गया। 
  • केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की स्थापना गृह मंत्रालय के एक प्रस्ताव द्वारा की गई है, इसलिए यह न तो संवैधानिक निकाय है और न ही वैधानिक निकाय है। 
  • सीबीआई को अपनी शक्तियां दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 से प्राप्त होती हैं । 
  • इसकी स्थापना की सिफारिश भ्रष्टाचार निवारण पर गठित संथानम समिति ने की थी। 
  • CBI, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE ) अधिनियम, 1946 के तहत कार्य करता है। 
  • CBI का आदर्श वाक्य “उद्योग, निष्पक्षता और अखंडता” है। 
  • यह एजेंसी रिश्वतखोरी, सरकारी भ्रष्टाचार, केंद्रीय कानूनों के उल्लंघन, बहु-राज्य संगठित अपराध और अंतर्राष्ट्रीय मामलों की जांच करती है।
  • CBI के निदेशक की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और मुख्य न्यायाधीश की समिति द्वारा की जाती है। 
  • CBI को केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ जांच करने से पहले केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करनी होती है, हालांकि 2014 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने इस आवश्यकता को अवैध घोषित कर दिया।
  • CBI को राज्य सरकार की सहमति की आवश्यकता होती है, जो विशिष्ट या सामान्य हो सकती है। 
  • सामान्य सहमति के तहत, CBI को हर बार नई मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन विशिष्ट सहमति के बिना CBI अधिकारियों को पुलिस कर्मियों के समान शक्तियाँ प्राप्त नहीं होतीं हैं।
  • CBI भ्रष्टाचार, सरकारी अपराध, बहु-राज्य संगठित अपराध, और अंतर्राष्ट्रीय मामलों की जांच करती है। इसकी कार्यप्रणाली प्रभावी और व्यापक है, जिससे यह देश में कानून व्यवस्था बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

 

भारत में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के समक्ष मुख्य चुनौतियां : 

 

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के समक्ष कई महत्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं, जो इसकी कार्यक्षमता और विश्वसनीयता को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए – 

  • राजनीतिक हस्तक्षेप और दबाव में काम करने के आरोप लगना : सीबीआई पर अक्सर राजनीतिक दबाव में काम करने के आरोप लगते हैं, जिससे इसकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे “पिंजरे में बंद तोता” कहा है, जो राजनीतिक मालिकों की आवाज में बोलता है।
  • केंद्र सरकार द्वारा इसका दुरुपयोग करना : भारत के संविधान के विशेषज्ञ और आलोचकों का मानना है कि केंद्र सरकारें सीबीआई का उपयोग राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने और राज्य सरकारों को नियंत्रित करने के लिए करती हैं।
  • विशिष्ट मामलों में पक्षपात करने का आरोप लगना : सीबीआई पर कुछ मामलों में पक्षपात करने और राजनीतिक दलों या व्यक्तियों का पक्ष लेने के आरोप लगते रहे हैं, जिससे इसकी निष्पक्षता पर संदेह होता है।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता की कमी : सीबीआई की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और निगरानी की कमी के कारण इसकी जवाबदेही पर प्रश्न उठते हैं।
  • पर्याप्त कर्मचारियों और संसाधनों की कमी : सीबीआई को पर्याप्त कार्मिक कर्मचारियों , बुनियादी ढांचे और वित्तीय संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे इसकी जांच क्षमता प्रभावित होती है।
  • अप्रभावी होने की धारणा : हाई-प्रोफाइल मामलों में सीबीआई की कार्रवाई को अक्सर अपर्याप्त माना जाता है, जिससे इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं और जनता का विश्वास कम होता है।
  • विलंबित जांच प्रक्रिया : सीबीआई की धीमी जांच प्रक्रिया के कारण न्याय में देरी होती है, जिससे जनता का विश्वास कम होता है।

 

भारत में सीबीआई की स्वायत्तता बढ़ाने के लिए सुझाए गए उपाय : 

 

  • वैधानिक समर्थन की आवश्यकता : डीएसपीई अधिनियम के स्थान पर एक नया सीबीआई अधिनियम लाया जाए, जिसमें सीबीआई की भूमिका, अधिकार क्षेत्र और कानूनी शक्तियों को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया जाए।
  • कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि : सीबीआई को अधिक मानव संसाधन उपलब्ध कराने के लिए कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि की जाए।
  • प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए संसाधनों में वृद्धि करने की आवश्यकता : सीबीआई के वित्तीय संसाधनों में वृद्धि और एजेंसी के बुनियादी ढांचे में सुधार किया जाए ताकि यह अधिक प्रभावी ढंग से कार्य कर सके।
  • प्रशासनिक सशक्तिकरण, जवाबदेही में वृद्धि और इसके अधिकार क्षेत्र में वृद्धि करना : संघ, राज्य और समवर्ती सूचियों में सीबीआई की जांच शक्तियों को बढ़ाया जाए ताकि इसे और अधिक सशक्त बनाया जा सके।

 

निष्कर्ष : 

 

  • केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। इसके प्रभावी कामकाज में कई चुनौतियाँ हैं, जिनका समाधान आवश्यक है। सीबीआई को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार, संसाधनों की वृद्धि और राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होकर निष्पक्षता से काम करने की आवश्यकता है। इन सुधारों को लागू करने से सीबीआई की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता में वृद्धि होगी, जिससे यह भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण संस्था के रूप में और मजबूत हो सकेगा। इससे यह न केवल भारत की न्यायिक प्रणाली को मजबूत करेगा, बल्कि यह अपने आदर्श वाक्य “ उद्योग, निष्पक्षता और अखंडता ” को सही अर्थों में चरितार्थ करते हुए नागरिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी बढ़ाएगा।

 

स्त्रोत – पीआईबी एवं द हिन्दू।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. सर्वोच्च न्यायालय की चेतावनी के संदर्भ में, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) हाल के दिनों में विश्वसनीयता और विश्वास के संकट का सामना क्यों कर रहा है?

  1. राजनीतिक दबाव के कारण
  2. कानूनी प्रक्रियाओं में लापरवाही के कारण
  3. अन्वेषण में पारदर्शिता की कमी के कारण
  4. अन्वेषण में संतुलन सुनिश्चित करने और जन विश्वास में कमी के कारण

उपरोक्त कथनों में से कितने कथन सही है ? 

A. केवल एक 

B. केवल दो 

C. केवल तीन 

D. उपरोक्त सभी।

उत्तर – D.

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. सर्वोच्च न्यायालय की चेतावनी के संदर्भ में, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) हाल के दिनों में विश्वसनीयता और विश्वास के संकट का सामना क्यों कर रहा है? इस संकट के कारणों एवं परिणामों का विश्लेषण करते हुए, CBI के प्रति आम लोगों के विश्वास और प्रतिष्ठा को बढ़ाने हेतु कुछ सकारात्मक उपाय सुझाइए। ( शब्द सीमा – 250 अंक 15 )

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