19 Mar सशस्त्र संघर्ष से भारत की आज़ादी तक : आज़ाद हिंद फौज (INA) की विरासत
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 1 के अंतर्गत ‘ आधुनिक भारतीय इतिहास, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन, आज़ाद हिंद फौज की भूमिका और विरासत ’ खण्ड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ कर्तव्य पथ,आज़ाद हिंद फौज (INA), नेताजी सुभाष चंद्र बोस, स्वतंत्र भारत की अनंतिम सरकार, रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह, INA पर अभियोग, INA का पतन, लालकिला मुक़दमा ’ खण्ड से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में, आज़ाद हिंद फौज (INA) के एक सेवानिवृत्त सैनिक और अब तक जीवित अंतिम सेनानियों में से एक, आर. माधवन पिल्लै ने राष्ट्रीय समर स्मारक और कर्तव्य पथ पर स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर अपना 100वां जन्मदिन मनाया।
- इस अवसर पर उन्होंने देश के युवाओं से नेताजी की विचारधारा—देश की एकता, विश्वास और बलिदान को अपनाने की अपील की।
- उन्होंने मात्र 17 साल की उम्र में ही, 1 नवंबर, 1943 को INA में शामिल होकर भारत के स्वतंत्रता – संग्राम में एक सच्चा सिपाही बनकर देश की सेवा की।
- वर्ष 2021 में, नेताजी की 125वीं जयंती पर उन्हें आजाद हिंद फौज और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए रजत पदक से सम्मानित किया गया था।
- भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 23 जनवरी 2024 को लालकिले पर पराक्रम दिवस समारोह में उन्हें सम्मानित किया था।
आज़ाद हिंद फौज (INA) का परिचय :
- आज़ाद हिंद फौज, जिसे इंडियन नेशनल आर्मी (INA) भी कहा जाता है, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करने के लिए गठित एक सैन्य बल था। इसका प्रमुख उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को गति देना और ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति प्राप्त करना था।
आज़ाद हिंद फौज (INA) का गठन :
- मोहन सिंह : उन्होंने भारतीय युद्धबंदियों (POWs) से एक सेना बनाने का विचार प्रस्तुत किया और जापानी समर्थन प्राप्त किया। शुरुआत में उन्होंने INA का नेतृत्व किया, जिसमें लगभग 40,000 सैनिकों को शामिल किया गया। हालांकि, जापान के साथ सैनिकों की संख्या को लेकर मतभेदों के कारण उन्हें हटा दिया गया।
- रासबिहारी बोस : रासबिहारी बोस एक प्रमुख क्रांतिकारी थे जिन्होंने INA के लिए जापान में समर्थन जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 1942 में टोक्यो में भारतीय स्वतंत्रता लीग की स्थापना की।
- सुभाष चंद्र बोस : 25 अगस्त 1943 को सुभाष चंद्र बोस को INA का सुप्रीम कमांडर नियुक्त किया गया। 21 अक्टूबर 1943 को उन्होंने सिंगापुर में “आज़ाद हिंद सरकार” की स्थापना की, जिसे जापान, जर्मनी, इटली और चीन सहित नौ देशों ने मान्यता दी।
- INA के अभियान : INA ने “चलो दिल्ली” अभियान के तहत मणिपुर के मोइरांग में भारतीय धरती पर अपना ध्वज फहराया, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के कारण यह अभियान इम्फाल में समाप्त हो गया।
- INA का पतन : जापान की हार (1944-45) के बाद INA कमजोर हो गई। 15 अगस्त 1945 को जापान के आत्मसमर्पण के बाद INA ने भी आत्मसमर्पण कर दिया। 18 अगस्त 1945 को ताइवान विमान दुर्घटना में सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की खबर सामने आई, जिसके बाद INA को भंग कर दिया गया।
- INA पर अभियोग और लाल किला मुक़दमा के खिलाफ हुए विरोध : INA की हार के बाद, कई INA सैनिकों को युद्धबंदियों के रूप में कोर्ट मार्शल किया गया, जिसके परिणामस्वरूप देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए। नवंबर 1945 में, लाल किले में तीन प्रमुख INA अधिकारियों – प्रेम कुमार सहगल (एक हिंदू), शाह नवाज खान (एक मुस्लिम) और गुरबख्श सिंह ढिल्लों (एक सिख) शामिल थे, पर मुकदमा चला, जिन्होंने INA की एकता और ब्रिटिश शासन के विरुद्ध देशभक्ति का प्रचार किया था।
- लाल किला मुक़दमा के खिलाफ बॉम्बे कॉन्ग्रेस अधिवेशन (सितंबर 1945) में INA युद्धबंदियों के समर्थन में एक प्रस्ताव पारित किया गया। इसमें प्रख्यात वकील भूलाभाई देसाई, तेज बहादुर सप्रू, जवाहरलाल नेहरू और आसफ अली ने उनका बचाव या प्रतिवाद किया।
लाल किला मुक़दमा के विरुद्ध हुए प्रमुख प्रदर्शन :
- 21 नवंबर 1945 : INA मुकदमों के खिलाफ कलकत्ता में छात्रों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया, जिसमें पुलिस ने गोलीबारी की।
- 11 फरवरी 1946 : INA अधिकारी राशिद अली की सजा के विरोध में कलकत्ता में विरोध- प्रदर्शन शुरू हो गया।
- 18 फरवरी 1946 : रॉयल इंडियन नेवी (RIN) के सैनिकों ने बॉम्बे में विद्रोह कर दिया। इन विरोध – प्रदर्शनों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष को और अधिक मजबूत किया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ पूरे देश में जन जागरूकता बढ़ाई।
भारत के स्वतंत्रता – संग्राम में आज़ाद हिंद फौज (INA) का महत्त्व :
- ब्रिटिश शासन के खिलाफ सीधी चुनौती पेश करना : आज़ाद हिंद फौज का गठन और उसके सैन्य अभियानों ने धुरी शक्तियों, विशेषकर जापान और जर्मनी, के समर्थन से ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी। इसके माध्यम से भारत को सैन्य दृष्टिकोण से स्वतंत्रता दिलाने का प्रयास किया गया, जिससे ब्रिटिश शासन को सीधी चुनौती मिली।
- राष्ट्रवादी एकता को बढ़ावा देना : INA के अभियानों और मुकदमों ने भारतीय समाज को राजनीतिक और धार्मिक रूप से विभाजित समाज को धार्मिक विभाजन से ऊपर उठने की प्रेरणा दी। इसके परिणामस्वरूप, विभिन्न राजनीतिक दलों जैसे कांग्रेस, मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा और कम्युनिस्टों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट होकर आंदोलन चलाया।
- भारतीय सशस्त्र बलों के बीच एक नई जागरूकता का संचार होना : INA ने भारतीय सैनिकों के बीच एक नई जागरूकता और सहानुभूति का संचार किया, जिसके परिणामस्वरूप 1946 में रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह हुआ। इस विद्रोह में 20,000 से अधिक नाविकों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ बगावत की, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
- ब्रिटिश साम्राज्य की वापसी में कील ठोकने का कार्य करना : भारत की स्वतंत्रता के बाद सन 1956 में, ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया कि INA ने ब्रिटेन के लिए भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी पकड़ खोने की प्रक्रिया को तेज कर दिया था, क्योंकि अब भारतीय सेना ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति वफादार नहीं रह गई थी। इसके परिणामस्वरूप भारतीय स्वतंत्रता – संग्राम के आंदोलन को और अधिक तीव्र किया और भारतीयों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ देश की स्वतंत्रता की भावना को और अधिक बढ़ावा मिला।
- INA की विरासत और प्रतीकात्मकता : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आज़ाद हिंद फौज केवल एक सैन्य बल नहीं बल्कि एक सशस्त्र प्रतिरोध का प्रतीक बन गई। इसके संघर्ष ने आने वाली पीढ़ियों को भारत की रक्षा, रणनीतिक दृष्टिकोण और राष्ट्रीय पहचान के प्रति प्रेरित किया। INA का प्रसिद्ध नारा “जय हिंद” आज भी राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है।
निष्कर्ष :
- आज़ाद हिंद फौज (INA) ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने ब्रिटिश साम्राज्य को सीधी चुनौती दी और भारतीय राष्ट्रवाद को एक नई दिशा देकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में निर्णायक भूमिका निभाई। इसके प्रभाव ने ब्रिटिश साम्राज्य की भारत से वापसी को और अधिक तेज कर दिया और इसकी विरासत ने भारतीय सेना की संस्कृति, रणनीतिक दृष्टिकोण और राष्ट्रीय पहचान पर गहरा प्रभाव डाला। INA ने भारतीयों को एकजुट करने का काम किया और यह सिद्ध किया कि एकजुट संघर्ष से ही स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है। इसके अभियानों ने भारतीय सैनिकों में आत्मविश्वास और ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति निष्ठा में कमी पैदा की, जिससे 1946 में रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह हुआ। INA की विरासत ने भारतीय समाज और सेना की संस्कृति को प्रभावित किया, और “जय हिंद” का नारा अब राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन चुका है। इसके संघर्ष ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और अधिक तेज किया और भारतीय स्वतंत्रता की प्राप्ति में अहम भूमिका निभाई।
स्त्रोत – दैनिक ट्रिब्यून एवं भाषा एजेंसी।
Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 19th March 2025
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. ब्रिटिश शासन के दौरान शाह नवाज खान, प्रेम कुमार सहगल और गुरबख्श सिंह ढिल्लों जैसे भारतीय किस रूप में याद किए जाते हैं? ( UPSC – 2021 )
A. संविधान सभा में प्रारूप समिति के सदस्यों के रूप में।
B. आज़ाद हिंद फौज (इंडियन नेशनल आर्मी) के अधिकारियों के रूप में।
C. स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के नेता के रूप में।
D. सन 1946 में अंतरिम सरकार के सदस्यों के रूप में।
उत्तर – B
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत में अंग्रेज़ों की औपनिवेशिक महत्त्वाकांक्षाओं की ताबूत में नौसैनिक विद्रोह ने किस प्रकार अंतिम कील ठोकने का कार्य किया था? ( UPSC – 2014 ) ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
Q.2. भारत के स्वतंत्रता संग्राम संघर्ष में सुभाषचंद्र बोस और महात्मा गांधी के दृष्टिकोण में भिन्नताएँ किस प्रकार की भिन्नताएँ थीं? तर्कसंगत मत प्रस्तुत कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
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