साझा भविष्य की ओर : नई दिल्ली में भारत-जर्मन 7वां अंतर सरकारी परामर्श (IGC) का आयोजन

साझा भविष्य की ओर : नई दिल्ली में भारत-जर्मन 7वां अंतर सरकारी परामर्श (IGC) का आयोजन

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ अंतर्राष्ट्रीय संबंध और संस्थाएं , अंतर्राष्ट्रीय संगठन और द्विपक्षीय समूह और समझौते , वर्तमान वैश्विक राजनीति में भारत-जर्मनी के बीच के द्विपक्षीय संबंधों का महत्व ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ सतत विकास लक्ष्य , भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) , भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद , भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा , भारत – यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौता , निवेश संरक्षण समझौता, राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR) ’ खंड से संबंधित है। )

 

खबरों में क्यों ?

 

  • हाल ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ ने 25 अक्टूबर 2024 को नई दिल्ली में आयोजित 7वीं भारत-जर्मनी अंतर-सरकारी परामर्श (IGC) की सह-अध्यक्षता की है। 
  • इस सम्मेलन का आदर्श वाक्य – “नवाचार, गतिशीलता और स्थिरता के साथ एक साथ बढ़ना” था।
  • जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ 24-26 अक्टूबर तक भारत की तीन दिवसीय यात्रा पर थे, जो उनकी 2021 में चांसलर बनने के बाद तीसरी यात्रा है। 
  • उन्होंने इससे पहले भी फरवरी 2023 में भारत का दौरा किया था और सितंबर 2023 में जी20 शिखर सम्मेलन/ बैठक में भाग लिया था।
  • भारत और जर्मनी के संबंध अब आर्थिक रूप से परिवर्तित होकर रणनीतिक रूप में बदल रहे हैं। 
  • जर्मनी ने हाल ही में “फोकस ऑन इंडिया” की नीति अपनाई है, जिससे यह संकेत मिलता है कि वह भारत के साथ अपने संबंधों को और गहरा करना चाहता है।

 

भारत और जर्मनी के बीच 7वां अंतर सरकारी परामर्श (IGC) की पृष्ठभूमि : 

 

  • भारत और जर्मनी के बीच अंतर सरकारी परामर्श 2011 में स्थापित किया गया था। 
  • इस प्रक्रिया के अंतर्गत, दोनों देशों के मंत्री अपने – अपने क्षेत्रों से संबंधित विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं और आपसी चर्चा से उत्पन्न परिणामों को अपने – अपने देश के नेताओं, चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष प्रस्तुत करते हैं।
  • हाल ही में संपन्न हुए 7वीं IGC बैठक के समापन पर दोनों देशों के नेताओं ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया। 
  • इसके तहत प्रौद्योगिकी, श्रम, प्रवासन, जलवायु परिवर्तन, और आर्थिक-सुरक्षा सहयोग के क्षेत्रों में बढ़ते संबंधों पर चर्चा हुई।

 

भारत और जर्मनी के बीच 7वें अंतर सरकारी परामर्श के प्रमुख परिणाम : 

 

 

  1. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता पर जोर देना : दोनों देशों के नेताओं ने समकालीन चुनौतियों से बेहतर ढंग से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसे बहुपक्षीय संगठनों में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।
  2. दोनों देशों के संप्रभुता का आपस में सम्मान करना : संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों का पालन करने पर जोर दिया गया, जिसमें दोनों देशों के संप्रभुता का आपस में सम्मान करना शामिल है।
  3. क्षेत्रीय परामर्श की स्थापना करना : पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के लिए क्षेत्रीय परामर्श की स्थापना की गई।
  4. स्वतंत्र और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता पर बल देना : इस सम्मेलन के दौरान स्वतंत्र और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए आपसी प्रतिबद्धता को दोनों देशों द्वारा व्यक्त किया गया।
  5. भारत और जर्मनी द्वारा प्रवासन एवं गतिशीलता साझेदारी समझौता (एमएमपीए) पर हस्ताक्षर किया जाना : इस सम्मेलन में प्रवासन एवं गतिशीलता साझेदारी समझौता (एमएमपीए) पर दोनों देशों द्वारा हस्ताक्षर किया गया, जिससे यह समझौता लोगों के लिए गतिशीलता और रोजगार के अवसरों में सुधार लाने, अनियमित प्रवासन और मानव तस्करी की समस्याओं को समाधान करने में मदद करेगा।

 

18वां एशिया-प्रशांत सम्मेलन : 

  • एशिया-प्रशांत सम्मेलन हर दो साल के बाद एशिया – प्रशांत क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर आयोजित किया जाता है। 
  • जर्मन बिजनेस का एशिया-प्रशांत सम्मेलन एक प्रमुख कार्यक्रम है जो जर्मनी और एशिया-प्रशांत के बीच आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के अवसर तलाशने के लिए जर्मन व्यापारिक नेताओं, अधिकारियों और राजनीतिक प्रतिनिधियों को एक साथ एक मंच पर लाता है। 
  • जर्मन बिजनेस का 18वां एशिया-प्रशांत सम्मेलन 24-26 अक्टूबर 2024 तक नई दिल्ली में आयोजित किया गया था।
  • जिसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ ने संयुक्त रूप से किया था। 

 

जर्मनी से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य : 

  • राजधानी : बर्लिन।
  • मुद्रा : यूरो।
  • सदस्य : यूरोपीय संघ, नाटो।
  • वर्तमान राष्ट्रपति : फ्रैंक-वाल्टर स्टीनमीयर।
  • वर्तमान चांसलर : ओलाफ स्कोल्ज़।

 

जर्मन चांसलर की भारत यात्रा की मुख्य बातें : 

वैश्विक मुद्दों पर द्विपक्षीय वार्ता :

 

  1. रूस-यूक्रेन संघर्ष : प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की शांति स्थापना की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया, जबकि चांसलर स्कोल्ज़ ने भारत से राजनीतिक समाधान का समर्थन करने की अपील की।
  2. इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष और पश्चिम एशिया में बढ़ रहे आपसी तनाव को कम करने पर जोर देना : भारत और जर्मनी दोनों देशों के नेताओं ने पश्चिम एशिया में बढ़ रहे आपसी तनाव को कम करने और इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के लिए दो-राज्य समाधान की आवश्यकता का समर्थन किया।
  3. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था और समुद्री स्वतंत्रता एवं सुरक्षा पर बल देना : मोदी और स्कोल्ज़ दोनों ही नेताओं ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में  नियम-आधारित व्यवस्था और समुद्री स्वतंत्रता एवं सुरक्षा के महत्व पर बल दिया।
  4. एक व्यापक और विस्तारित साझेदारी के दृष्टिकोण की ओर बदलाव पर जोर देना : स्कोल्ज़ और मोदी ने “संपूर्ण सरकार” से “संपूर्ण राष्ट्र” के दृष्टिकोण की ओर बदलाव पर जोर दिया गया। जो आपस में दोनों देशों के लिए एक व्यापक और विस्तारित साझेदारी एवं गहन सहयोग का प्रतीक है।  

 

प्रमुख घोषणाएं और समझौते :

 

 

  1. वीज़ा की संख्याओं में विस्तार करना : जर्मनी ने कुशल भारतीय कामगारों के लिए वार्षिक वीज़ा संख्या 20,000 से बढ़ाकर 90,000 करने की घोषणा की है।
  2. भारत के कार्यबल में निवेश और रणनीतिक सहयोग पर जोर देना : जर्मनी ने भारत के कार्यबल में निवेश और रणनीतिक सहयोग पर जोर दिया।
  3. वैश्विक भू-राजनीतिक बदलावों के तहत चीन पर निर्भरता को कम करना : वैश्विक भू-राजनीतिक बदलावों के कारण जर्मनी के चांसलर स्कोल्ज़ ने विशेष रूप से महत्वपूर्ण कच्चे माल जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में चीन पर “एकतरफा निर्भरता” से बचने पर जोर दिया। दोनों देशों के नेताओं ने आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने के लिए भारत को एक प्रमुख साझेदार के रूप में स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की।
  4. भारत को वैश्विक विनिर्माण का केंद्र बनाना : प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को व्यापार और विनिर्माण के उभरते केंद्र के रूप में प्रचारित किया तथा जर्मन कंपनियों को ” भारत में निर्माण, विश्व के लिए निर्माण “ के लिए प्रोत्साहित किया।

 

सहयोग के प्रमुख क्षेत्र : 

 

  1. हरित हाइड्रोजन रोडमैप के तहत स्वच्छ ऊर्जा और सतत विकास पर समझौता : स्वच्छ ऊर्जा और सतत विकास के लिए दोनों ही देशों द्वारा हरित हाइड्रोजन रोडमैप पर समझौता किया गया।
  2. उन्नत सामग्रियों पर संयुक्त अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) में सहयोग को बढ़ावा देना : भारत और जर्मनी दोनों ही देशों द्वारा उन्नत सामग्रियों पर अनुसंधान एवं विकास में सहयोग को बढ़ावा दिया जाएगा।
  3. रक्षा एवं सुरक्षा से संबंधित आपराधिक मामलों में पारस्परिक कानूनी सहायता संधि पर हस्ताक्षर करना : दोनों देशों ने वर्गीकृत सूचनाओं के आदान-प्रदान पर समझौता किया और आपराधिक मामलों में कानूनी सहायता संधि पर हस्ताक्षर किए।
  4. वर्गीकृत सूचना का आपस में आदान-प्रदान करना : भारत और जर्मनी के बीच हुए 7वें अंतर सरकारी परामर्श सम्मेलन में इस विषय पर एक कानूनी ढांचें के निर्माण से संबंधित समझौता संपन्न हुआ, जिससे दोनों देशों के बीच आपसी सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा।

 

भारत – जर्मनी द्विपक्षीय संबंधों में मुख्य चुनौतियाँ : 

 

  1. साझेदारी में कमी होना : भारत और जर्मनी 2000 से सामरिक साझेदार हैं, लेकिन उनके संबंध अपेक्षाकृत कमजोर हैं, यह अपेक्षित स्तर पर नहीं पहुंची है। भारत-फ्रांस के मुकाबले भारत – जर्मनी सहयोग और साझेदारी कम है।
  2. स्वतंत्र द्विपक्षीय निवेश संधि और आर्थिक सहयोग का अभाव होना : स्वतंत्र द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) का अभाव निवेशकों के विश्वास को कम करता है और आर्थिक सहयोग में बाधाएँ डालता है, जिससे जर्मनी को यूरोपीय संघ के BTIA पर निर्भर रहना पड़ता है।
  3. लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति चिंतित होना : जर्मनी की भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर टिप्पणियाँ, जैसे राजनीतिक गिरफ्तारियों के संदर्भ में नई दिल्ली में नाराजगी पैदा करती हैं। जिससे दोनों देशों के बीच के द्विपक्षीय संबंधों में कमी आती है और आपसी संबंधों में कटुता पैदा करती है। 
  4. यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के प्रति मतभेद होना : यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा में भारत की अनिच्छा से जर्मनी में निराशा बढ़ी है, जो दोनों देशों के आपसी द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित कर रही है।
  5. सीमित रक्षा सहयोग का होना : जर्मनी का भारत के प्रति रक्षा सहयोग में अनिच्छा भारत के साथ गहन सहयोग में बाधा बनती है। फलतः भारत और जर्मनी का आपसी द्विपक्षीय संबंध प्रभावित होता है। 
  6. सार्वजनिक जागरूकता में कमी होना : जर्मनी में चीन के प्रति अधिक रुचि है, जो उसके मीडिया कवरेज और फंडिंग में भी दिखता है। जिसके कारण भारत और जर्मनी का आपसी द्विपक्षीय संबंध प्रभावित होता है।
  7. भारत के प्रति नकारात्मक भाषा और पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण का होना : ग्लोबल दक्षिण के संदर्भ में नकारात्मक भाषा भारत की स्थिति और योगदान को कमतर करके आंकती है, जिससे आपसी सम्मान और सहयोग प्रभावित हो सकता है। अतः भारत के प्रति नकारात्मक भाषा, सहयोग और सम्मान दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधो को प्रभावित कर सकती है।

 

आगे की राह :

 

 

  1. वैश्विक शक्तियों के रूप में आपसी सहयोग के माध्यम से अपनी भूमिका को सुदृढ़ करना अत्यंत आवश्यक : स्वास्थ्य, सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों पर मिलकर कार्य करना और जिम्मेदार वैश्विक शक्तियों के रूप में अपनी भूमिका को सुदृढ़ करना आवश्यक है।
  2. लोकतांत्रिक सहभागिता को बढ़ावा देना : सतत राजनीतिक संवाद को प्रोत्साहित करने के लिए नियमित उच्च-स्तरीय बैठकों का आयोजन किया जाए। ट्रैक 1.5 संवाद का विस्तार करके इसमें व्यापारिक प्रतिनिधियों, शिक्षाविदों और नागरिक समाज के सदस्यों को शामिल किया जाए।
  3. रक्षा संबंधों को बढ़ावा देना : भारत और जर्मनी दोनों को ही सह-उत्पादन समझौतों, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संयुक्त सैन्य अभ्यासों के माध्यम से रक्षा सहयोग के लिए एक संरचित ढाँचा विकसित करना चाहिए।
  4. भारत और जर्मनी दोनों को ही आपसी संप्रभुता का सम्मान करना जरूरी : जर्मनी को बाहरी आलोचना से उत्पन्न टकरावों को रोकने के लिए भारत के आंतरिक मामलों में उसकी संप्रभुता का सम्मान किया जाए। जर्मनी को चाहिए कि वह इन चर्चाओं में अधिक सहयोगात्मक रुख अपनाए और भारत के संदर्भ को समझते हुए उसकी चिंताओं का समाधान करे।

 

निष्कर्ष : 

  • भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ की आपसी बैठक और उसके बाद हुए समझौतों ने भारत-जर्मनी द्विपक्षीय संबंधों में एक नए युग का आगाज़ किया है। इससे उन्नत व्यापार और रक्षा सहयोग से लेकर स्वच्छ ऊर्जा में साझा लक्ष्यों तक, दोनों देशों ने आपसी विकास और वैश्विक प्रभाव के लिए एक मजबूत आधार स्थापित किया है, जिससे विश्व मंच पर उनकी स्थिति और मजबूत हुई है। परिणामस्वरूप भारत और जर्मनी का आपसी द्विपक्षीय संबंधों ने एक नए युग का आगाज किया है जिसे बचाकर रखना भारत और जर्मनी दोनों के लिए अपने द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। 

 

स्त्रोत – पीआईबी एवं द हिन्दू।

 

Download plutus ias current affairs (HINDI) 4nd Nov 2024

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. कभी-कभी समाचारों में दिखने वाला ‘व्यापक व्यापार और निवेश समझौता (बीटीआईए)’ भारत और किसके बीच हुई वार्ता के संदर्भ में समाचारों में देखा जाता है? ( UPSC – 2017) 

A. ब्रिक्स के अर्थव्यवस्था के संदर्भ में।  

B. खाड़ी सहयोग परिषद के संदर्भ में। 

C. शंघाई सहयोग संगठन के संदर्भ में।

D. यूरोपीय संघ के संदर्भ में। 

उत्तर – D

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. चर्चा कीजिए कि भारत-जर्मनी द्विपक्षीय संबंधों में अगले दशक में नई प्रौद्योगिकियाँ, स्वास्थ्य और डिजिटल अर्थव्यवस्था में सहयोग और साझेदारियों के लिए किन क्षेत्रों की अत्यंत आवश्यकता होगी और इनका आर्थिक एवं सामाजिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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