सुरक्षा बनाम अधिकार : AFSPA पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

सुरक्षा बनाम अधिकार : AFSPA पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के अंतर्गत ‘ भारत की आंतरिक सुरक्षा , विभिन्न सुरक्षा बल और एजेंसियाँ तथा उनके अधिदेश , AFSPA की निरंतरता एवं मानवाधिकार संबंधी निहितार्थ और AFSPA के दीर्घकालिक परिणाम ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 , आतंकवाद और संगठित अपराध , उत्तर पूर्व विद्रोह , सर्वोच्च न्यायालय , संसद , केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल , अशांत क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम , 1976 ’ खंड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ?

 

 

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने नागालैंड में नागरिकों की कथित हत्या के आरोपियों (विशेष बल के 30 सैन्य कर्मियों) के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है और इन कर्मियों को सभी कानूनी कार्यवाहियों से मुक्त कर दिया है। 
  • केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने इन सैन्य कर्मियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने की स्वीकृति देने से मना कर दिया था।
  • सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 (AFSPA) के कार्यान्वयन को मणिपुर के पहाड़ी जिलों, नागालैंड के आठ जिलों, और अरुणाचल प्रदेश के तीन जिलों में 1 अक्टूबर 2024 से छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया है। 
  • यह निर्णय इन राज्यों में कानून-व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा के बाद लिया गया है, ताकि “अशांत” क्षेत्रों में सशस्त्र बलों की कार्रवाइयों को सुविधाजनक बनाया जा सके। गृह मंत्रालय के अनुसार, पूर्वोत्तर के 70% राज्यों से AFSPA हटा लिया गया है।
  • वर्ष 2021 में नागालैंड के मोन जिले में सेना के जवानों द्वारा सही पहचान न कर पाने के कारण नागरिकों की मौत हुई थी। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 की धारा 6 के तहत केंद्र सरकार (गृह मंत्रालय) की अनुमति के अभाव में आगे की कानूनी कार्यवाही पर रोक लगा दी है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने इस घटना में शामिल सैन्यकर्मियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रोक दिया है और सरकार द्वारा आवश्यक अनुमति मिलने पर पुनः कार्यवाही शुरू करने की संभावना पर सहमति जताई है।
  • यह मामला न केवल कानूनी और प्रशासनिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सशस्त्र बलों और नागरिकों के बीच संबंधों पर भी गहरा प्रभाव डालता है।

विधिक प्रावधान : 

  • AFSPA की धारा 6 : इसके द्वारा अधिनियम के तहत की गई कार्रवाइयों के संबंध में सुरक्षा प्रदान की गई है, जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना अधिनियम के तहत की गई या की जाने वाली कार्रवाइयों के लिये किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई अभियोजन, मुकदमा या अन्य कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है। 

क्या है सैन्य बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम ? 

 

 

  • सैन्य बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (AFSPA), 1958 एक विवादास्पद कानून है, जो भारत में औपनिवेशिक काल की विरासत से उपजा है।
  • यह अधिनियम मूलतः सन 1942 में ब्रिटिश सरकार द्वारा जारी किए गए सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अध्यादेश की तर्ज पर बनाया गया, जिसका उद्देश्य भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलना था।
  • सन 1947 में भारत के विभाजन के बाद उत्पन्न अशांति को नियंत्रित करने के लिए, भारतीय सरकार ने बंगाल, असम, पूर्वी बंगाल और संयुक्त प्रांत में चार अध्यादेश जारी किए। इन अध्यादेशों को बाद में 1958 में AFSPA कानून के रूप में संसद में पारित किया गया था।

 

भारत में AFSPA के प्रमुख प्रावधान :

 

  • सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना : यह अधिनियम सशस्त्र बलों को अशांत क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की शक्ति देता है।
  • गोली मारने का अधिकार: सुरक्षा बलों को कानून तोड़ने वाले व्यक्ति को गोली मारने का अधिकार भी दिया गया है। यदि गोली चलने से उस व्यक्ति की मौत भी हो जाती है, तो भी उसकी जवाबदेही गोली चलाने वाले या गोली चलाने का आदेश देने वाले अधिकारी की नहीं होगी।
  • एकत्र होने पर रोक: सुरक्षा बलों के पास यह अधिकार होता है कि वे इस क्षेत्र में पांच या अधिक व्यक्तियों के एकत्र होने पर रोक लगा सकते हैं।
  • तलाशी और नष्ट करने का आदेश: सुरक्षा बल के सदस्य संदेह होने पर किसी भी स्थान की तलाशी ले सकते हैं, और खतरा होने पर उस स्थान को नष्ट करने का आदेश भी दे सकते हैं।
  • बिना वारंट गिरफ्तारी: सशस्त्र बलों के सदस्य किसी भी व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकते हैं और बिना किसी वारंट के किसी भी घर के अंदर जाकर तलाशी ले सकते हैं। इसके लिए आवश्यकता होने पर बल का प्रयोग भी कर सकते हैं।
  • वाहन की तलाशी : हथियार ले जाने का संदेह होने पर किसी वाहन को रोककर उसकी तलाशी ली जा सकती है।
  • संज्ञेय अपराध : कोई भी व्यक्ति जिसने एक संज्ञेय अपराध किया है, या जिसके खिलाफ एक उचित संदेह मौजूद है कि उसने एक संज्ञेय अपराध किया है, या करने वाला है, तो उस व्यक्ति को वारंट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है, और गिरफ्तारी करने के लिए आवश्यक बल का उपयोग भी किया जा सकता है। भारत में AFSPA कानून का मुख्य उद्देश्य अशांत क्षेत्रों में कानून और व्यवस्था बनाए रखना है, लेकिन इसके प्रावधानों के कारण यह अक्सर विवादों में रहता है।

 

AFSPA के अंर्तगत वर्णित अशांत क्षेत्र क्या होता है?

 

 

अशांत क्षेत्र (Disturbed Area) की परिभाषा :

  • AFSPA (सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम) की धारा 3 के तहत, किसी क्षेत्र को अधिसूचना द्वारा “अशांत क्षेत्र” घोषित किया जाता है। यह उन स्थानों पर लागू होता है जहाँ नागरिक शांति बनाए रखने के लिए सशस्त्र बलों का उपयोग आवश्यक होता है।

अधिसूचना और संशोधन :

  • अशांत क्षेत्र घोषित करने  के संदर्भ में 1972 का संशोधन : इस अधिनियम में 1972 में संशोधन किया गया, जिससे किसी क्षेत्र को “अशांत” घोषित करने की शक्तियाँ राज्यों के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी प्रदान की गईं।
  • अशांत क्षेत्र की घोषणा करने की प्रक्रिया : केंद्र सरकार, राज्य के राज्यपाल, या केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक किसी भी क्षेत्र को अशांत क्षेत्र घोषित कर सकते हैं।

अशांत क्षेत्र घोषित करने का कारण :

  • विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषायी या क्षेत्रीय समूहों, जातियों, या समुदायों के सदस्यों के बीच मतभेद या विवाद।
  • नागरिक शांति और सुरक्षा के लिए आवश्यक सशस्त्र बलों की तैनाती।

अशांत क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम, 1976 :

  • एक बार ‘अशांत’ घोषित होने के बाद, किसी क्षेत्र को लगातार तीन महीने की अवधि के लिए अशांत बनाए रखा जाता है।
  • राज्य सरकार यह सिफारिश कर सकती है कि राज्य में इस अधिनियम की आवश्यकता है या नहीं है। अतः राज्य सरकार इस अधिनियम की आवश्यकता के बारे में सिफारिश भी कर सकती है।

 

भारत में AFSPA कानून की समीक्षा के लिए बनी समितियाँ और उनकी सिफारिशें :

न्यायमूर्ति बी. पी. जीवन रेड्डी समिति की सिफारिशें : 

  • नवंबर 2004 में, केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में AFSPA के प्रावधानों की समीक्षा के लिए न्यायमूर्ति बी. पी. जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया। समिति की प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार थीं – 
  • AFSPA का निरसन : AFSPA को निरस्त किया जाना चाहिए और इसके प्रावधानों को गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में शामिल किया जाना चाहिए।
  • सशस्त्र बलों की शक्तियों का स्पष्टीकरण होना आवश्यक : सशस्त्र बलों और अर्द्धसैनिक बलों की शक्तियों को स्पष्ट करने के लिए गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम में संशोधन किया जाना चाहिए।
  • शिकायत प्रकोष्ठ स्थापित किया जाना : प्रत्येक जिले में जहां सशस्त्र बल तैनात हैं, शिकायत प्रकोष्ठ स्थापित किया जाना चाहिए।

 

द्वितीय ARC की सिफारिशें : 

  • लोक व्यवस्था पर द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की 5वीं रिपोर्ट में भी AFSPA को निरस्त करने की सिफारिश की गई है। हालांकि, इन सिफारिशों को अभी तक लागू नहीं किया गया है।

 

संतोष हेगड़े आयोग की सिफारिशें :

  • प्रत्येक छह महीने में समीक्षा : AFSPA की अनिवार्यता सुनिश्चित करने तथा इसके मानवीय पहलुओं को विस्तारित करने के लिए प्रत्येक 6 माह में इसकी समीक्षा की जानी चाहिए।
  • UAPA कानून में संशोधन किया जाना : आतंकवाद से निपटने के लिए केवल AFSPA पर निर्भर रहने के बजाय UAPA अधिनियम में संशोधन करना चाहिए।
  • सशस्त्र बलों द्वारा की जाने वाली ज्यादतियों की जांच की अनुमति प्रदान करना  : सशस्त्र बलों द्वारा अपने कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान की गई ज्यादतियों की जांच की अनुमति (यहां तक कि “अशांत क्षेत्रों” में भी) दी जानी चाहिए।

 

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा के कारण :

  • आर्थिक विकास का अभाव : सरकारी नीतियों के कारण इस क्षेत्र में आर्थिक विकास सीमित रहा है, जिससे रोजगार के अवसर भी सीमित रहे हैं। इस आर्थिक विपन्नता के कारण कई युवा विद्रोही समूहों में शामिल हो जाते हैं।
  • बहु-जातीय विविधता का होना : यह क्षेत्र भारत का सर्वाधिक जातीय विविधता वाला क्षेत्र है, जहां लगभग 40 मिलियन लोगों के साथ 635 जनजातीय समूहों में से 213 रहते हैं। प्रत्येक जनजाति की एक अलग संस्कृति होने के कारण आम समाज के साथ इनके एकीकरण में प्रतिरोध होता है और सांस्कृतिक पहचान के नष्ट होने की चिंता रहती है।
  • जनसांख्यिकीय परिवर्तन : बांग्लादेश से शरणार्थियों के आगमन के कारण इस क्षेत्र के जनसांख्यिकीय परिदृश्य में बदलाव आया है, जिससे असंतोष और उग्रवाद को बढ़ावा मिला है।
  • सेना द्वारा की जानेवाली कथित ज्यादतियाँ : AFSPA के कार्यान्वयन की आलोचना के कारण स्थानीय लोगों में अलगाव पैदा हुआ है और विद्रोही समूहों द्वारा इसका दुष्प्रचार किया जाता है।
  • पड़ोसी देशों में उत्पन्न राजनीतिक अस्थिरता : बांग्लादेश और म्यांमार की अस्थिरता के कारण उत्तर-पूर्व में सुरक्षा गतिशीलता और अधिक जटिल हो गई है, जिससे उग्रवाद की समस्या बढ़ी है।
  • बाह्य देशों द्वारा समर्थन दिया जाना : ऐतिहासिक रूप से पूर्वोत्तर में विद्रोही समूहों को पड़ोसी देशों से समर्थन प्राप्त होता रहा है। पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) ने 1950 और 1960 के दशक में इस क्षेत्र के उग्रवादी समूहों को प्रशिक्षण और हथियार उपलब्ध कराए, जबकि चीन ने 1967 से 1975 तक ऐसे समूहों को सहायता प्रदान की थी। 

 

आगे की राह : 

 

 

  1. आपसी समन्वय और आत्मविश्वास का निर्माण : स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने और सरकार तथा लोगों के बीच समन्वय के अंतराल को कम करने के लिए बॉटम टू टॉप एप्रोच का शासन मॉडल अपनाना चाहिए। यह मॉडल नीति निर्माण में स्थानीय स्तर की भागीदारी को बढ़ावा देगा।
  2. शांति समझौतों को प्राथमिकता देना : AFSPA को निरस्त करने के क्रम में विद्रोही समूहों के साथ शांति समझौते करना आवश्यक है। इनमें उचित पुनर्वास और सहायता तंत्र को शामिल किया जाना चाहिए ताकि स्थायी समाधान संभव हो सके।
  3. बुनियादी ढाँचे के विकास और कनेक्टिविटी में सुधार : पूर्वोत्तर में बुनियादी ढाँचे के विकास और कनेक्टिविटी में सुधार के साथ इस क्षेत्र की सुरक्षा और शांति को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  4. मानवाधिकारों का पालन सुनिश्चित करना : इस क्षेत्र में मानवाधिकारों का पालन सुनिश्चित करने के साथ आतंकवाद विरोधी अभियानों को मजबूत करना चाहिए, जिससे सुरक्षा उपायों की प्रभावशीलता और वैधता बढ़े।
  5. स्थानीय समर्थन और विश्वास निर्माण : सशस्त्र बलों को आतंकवाद और विद्रोही गतिविधियों का मुकाबला करने में स्थानीय समर्थन सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय आबादी के बीच विश्वास निर्माण के कदम उठाने चाहिए।
  6. त्वरित न्याय सुनिश्चित करना : सुरक्षा बलों और सरकार को मौजूदा मामलों को तेजी से सुलझाना चाहिए और दोषियों पर मुकदमा चलाकर पीड़ितों के लिए त्वरित न्याय सुनिश्चित करना चाहिए।
  7. सुरक्षा बलों को एक पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने की जरूरत : सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों से निपटने के लिए पारदर्शी प्रक्रिया अपनानी चाहिए।
  8. AFSPA का सीमित उपयोग करना : सरकार को AFSPA को पूरे राज्य में लागू करने के बजाय केवल कुछ अशांत क्षेत्रों तक सीमित करना चाहिए, जिससे इसके दुरुपयोग को रोका जा सके।
  9. निर्देशों का पालन सुनिश्चित करना : सरकार और सुरक्षा बलों को सुप्रीम कोर्ट, जीवन रेड्डी आयोग, संतोष हेगड़े समिति और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए, जिससे कानून व्यवस्था और मानवाधिकारों का संरक्षण हो सके।

 

स्त्रोत – पीआईबी एवं द हिन्दू।

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 का मुख्य उद्देश्य क्या है और इसे किस प्रकार की शक्तियाँ दी जाती हैं?

A. आतंकवादियों को खत्म करना और हत्या का अधिकार।

B. अशांत क्षेत्रों में सशस्त्र बलों को विशेष शक्तियाँ प्रदान करना और बिना वारंट के गिरफ्तारी और तलाशी करने का अधिकार।

C. नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करना और आतंकवादियों को खत्म करना।

D. आतंकवादियों के संबंध में केवल उस राज्य के पुलिस को सूचित करना।

उत्तर – B. अशांत क्षेत्रों में सशस्त्र बलों को विशेष शक्तियाँ प्रदान करना और बिना वारंट के गिरफ्तारी और तलाशी करने का अधिकार।

 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत के आंतरिक सुरक्षा एवं सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 (AFSPA) के निहितार्थों का विश्लेषण करते हुए, यह चर्चा कीजिए कि सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में इसके सुरक्षा, मानवाधिकार एवं शासन पर पड़ने वाले प्रभावों को किस प्रकार देखा है? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 ) 

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