स्वास्थ्य बनाम राजस्व : तम्बाकू नियंत्रण से जीएसटी पर पड़ने वाला आर्थिक प्रभाव

स्वास्थ्य बनाम राजस्व : तम्बाकू नियंत्रण से जीएसटी पर पड़ने वाला आर्थिक प्रभाव

पाठ्यक्रम – सामान्य अध्ययन – 3 – भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास – स्वास्थ्य बनाम राजस्व : तम्बाकू नियंत्रण में जीएसटी की छूट

प्रारंभिक परीक्षा के लिए : 

तम्बाकू कर नीति निर्धारित करने में जीएसटी परिषद की क्या भूमिका है?

मुख्य परीक्षा के लिए : 

2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से भारत में इसके मुख्य लाभ क्या हैं?

 

खबरों में क्यों?

 

 

  • हाल ही में 1 जुलाई, 2025 को भारत ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली की आठवीं वर्षगांठ मनाई है। इस अवसर पर जहां जीएसटी की उपलब्धियों की चर्चा हुई, वहीं इसकी अधूरी पहलुओं पर भी बहस ने फिर से जोर पकड़ा है। खासतौर पर तंबाकू उत्पादों पर कर दरों को लेकर चिंता जताई जा रही है। 
  • भारत में जीएसटी के लागू होने के बाद भले ही राजस्व संग्रह में वृद्धि और आर्थिक गतिविधियों के औपचारिकीकरण जैसे सकारात्मक परिणाम सामने आए हों, लेकिन तंबाकू जैसे हानिकारक पदार्थों पर कर दरों में कोई उल्लेखनीय बढ़ोतरी नहीं हुई है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि तंबाकू की खपत को नियंत्रित करने और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों के अनुरूप कार्य करने के लिए अब जीएसटी और उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी की आवश्यकता है।
  • वर्तमान में जीएसटी परिषद द्वारा दरों के पुनरीक्षण और सरलीकरण की प्रक्रिया चल रही है, जिसे तंबाकू कर नीति में सुधार के लिए एक उपयुक्त अवसर के रूप में देखा जा रहा है।

 

जीएसटी : राजकोषीय मजबूती से लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य तक

 

आर्थिक परिदृश्य में जीएसटी का योगदान : 

 

  • राजस्व में निरंतर वृद्धि : वित्त वर्ष 2024–25 में जीएसटी से कुल कर संग्रह ₹22.08 लाख करोड़ पर पहुँच गया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 9.4% अधिक है। यह वृद्धि सिर्फ आर्थिक सुधार का संकेत नहीं है, बल्कि यह बेहतर अनुपालन प्रणाली और व्यापक कर आधार की सफलता को भी रेखांकित करती है।

 

प्रणालीगत दक्षता और व्यापार सुगमता में सुधार :

 

  1. लागत में कटौती : इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के माध्यम से बहुस्तरीय कर ढांचे को तर्कसंगत बनाते हुए उत्पादन की लागत में उल्लेखनीय कमी आई है।
  2. डिजिटल पारदर्शिता : ई-इनवॉइस और ई-वे बिल जैसे उपकरणों ने टैक्स चोरी पर लगाम लगाने और पारदर्शिता को सुनिश्चित करने में सहायता की है।
  3. लॉजिस्टिक के क्षेत्र में तेजी आना : राज्यों के बीच चेक पोस्ट हटाए जाने के बाद परिवहन समय में लगभग 20% की कमी और आपूर्ति श्रृंखला की प्रभावशीलता में सुधार देखा गया है।

 

तंबाकू कराधान : जीएसटी के अंतर्गत एक अनसुलझा मुद्दा

 

  • स्वास्थ्य और आर्थिक बोझ : भारत में तंबाकू के सेवन से प्रतिदिन 3,500 से अधिक लोगों की मृत्यु होती है। इससे देश को सालाना ₹2.34 लाख करोड़ का बोझ उठाना पड़ता है — जिसमें उपचार लागत और श्रम उत्पादकता में गिरावट दोनों शामिल हैं। इसके बावजूद, तंबाकू नियंत्रण में कर नीति का पूर्ण उपयोग अब तक नहीं किया गया है।
  • कर नीतियों में स्थिरता : जीएसटी लागू होने से पहले समय-समय पर कर वृद्धि से तंबाकू की खपत में 17% तक की गिरावट दर्ज की गई थी। परंतु, जीएसटी के बाद प्रभावी कर दरों में कोई विशेष वृद्धि नहीं की गई, जिससे इसका नियंत्रणकारी प्रभाव कमजोर पड़ गया है।
  • अपर्याप्त कर बोझ और वैश्विक मानकों से विचलन : विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की अनुशंसा के अनुसार तंबाकू पर कुल कर बोझ खुदरा मूल्य के न्यूनतम 75% तक होना चाहिए। भारत में यह दरें इससे काफी नीचे हैं:
  • बीड़ी – लगभग 22%
  • सिगरेट – लगभग 54%
  • धूम्र रहित तंबाकू – लगभग 65%
  • विशुद्ध मूल्य आधारित कर व्यवस्था सस्ते उत्पादों (जैसे बीड़ी) के लिए अप्रभावी सिद्ध होती है, जिससे व्यापक उपयोग बना रहता है।

 

कर संरचना में असमानता और उसकी सामाजिक लागत : 

 

  • वित्तीय असमानता का दायरा : सिगरेट उपभोक्ताओं की संख्या कुल तंबाकू उपयोगकर्ताओं का केवल 15% है, परंतु तंबाकू कर राजस्व में इसका योगदान 80% से अधिक है। दूसरी ओर, बीड़ी जैसे उत्पादों—जो मुख्यतः गरीब, ग्रामीण और आदिवासी समुदायों में उपयोग होते हैं—पर अपेक्षाकृत कम कर लगने से स्वास्थ्य असमानता और वित्तीय अन्याय गहरा होता जा रहा है।

 

नीतिगत प्रस्ताव :

 

  • कर दरों में पुनः संरचना और बदलाव की जरूरत : सभी प्रकार के तंबाकू उत्पादों, विशेषकर बीड़ी को, 40% के उच्चतम कर स्लैब में शामिल किया जाए।
  • विशिष्ट उत्पाद शुल्क की पुनर्स्थापना : बीड़ी और धूम्र रहित उत्पादों पर स्थिर राशि आधारित करों को पुनः लागू कर उन्हें सशक्त किया जाए।
  • संकर कर मॉडल को अपनाने की आवश्यकता : संकर कर प्रणाली को अपनाया जाए, जिसमें मूल्य-आधारित और मात्रा-आधारित दोनों घटक हों, ताकि यह कर प्रभावशीलता, पूर्वानुमेयता और स्वास्थ्य प्रभाव सुनिश्चित कर सके। 

अवैध व्यापार : प्रचार और वास्तविकता के बीच अंतर : 

 

  • तथ्य बनाम भ्रांतियाँ : तंबाकू कंपनियों द्वारा अक्सर यह दावा किया जाता है कि अधिक कर दरों के कारण अवैध व्यापार फलता-फूलता है और इसकी हिस्सेदारी 25% तक हो सकती है। परंतु स्वतंत्र अध्ययनों के अनुसार यह आंकड़ा महज 2.7% से 6.6% के बीच है, जो उद्योग के दावों को असत्यापित बनाता है।
  • प्रवर्तन तंत्र की भूमिका : अवैध व्यापार का मुख्य कारण कर दरें नहीं, बल्कि निम्न स्तर की निगरानी, सीमाओं की सुरक्षा में खामियाँ और नियामक तंत्र की कमजोरियाँ हैं। भारत भले ही WHO के तंबाकू-विरोधी अवैध व्यापार प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता है, लेकिन उसका क्रियान्वयन अब तक सीमित रहा है।
  • नीतिगत निष्कर्ष : अवैध व्यापार को नियंत्रित करने का उत्तर करों में कटौती नहीं, बल्कि शासन की पारदर्शिता, प्रवर्तन क्षमता और निगरानी में सुदृढ़ता है। अतः स्पष्ट है कि समाधान कर कटौती में नहीं, बल्कि शासन व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में है।

 

विधिक, संस्थागत और वैश्विक उत्तरदायित्व : तंबाकू कराधान के व्यापक आयाम

संवैधानिक और संस्थागत परिप्रेक्ष्य : 

 

  • भारत में वस्तु एवं सेवा कर (GST) की दरों का निर्धारण संविधान के अनुच्छेद 279ए के अंतर्गत स्थापित जीएसटी परिषद के अधिकार क्षेत्र में आता है। यह परिषद देशभर में कर संरचना की समानता बनाए रखने की जिम्मेदारी निभाती है।
  • हालांकि, तंबाकू पर अब भी क्षतिपूर्ति उपकर लगाया जाता है, लेकिन जीएसटी के कार्यान्वयन के बाद विशिष्ट उत्पाद शुल्क, विशेषकर बीड़ी जैसे उत्पादों पर, लगभग समाप्त हो गया है। इससे कर संरचना में एक महत्वपूर्ण नियामक उपकरण की कमी महसूस की जा रही है, जिसने पहले तंबाकू नियंत्रण में अहम भूमिका निभाई थी।

 

अंतरराष्ट्रीय संधिबद्ध दायित्व : 

 

  • भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के तंबाकू नियंत्रण हेतु फ्रेमवर्क कन्वेंशन (FCTC) पर हस्ताक्षर कर रखे हैं, जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सदस्य देशों को तंबाकू की खपत को घटाने के लिए वित्तीय और कराधान संबंधी उपाय अपनाने चाहिएँ।
    हालांकि, वर्तमान में भारत में तंबाकू पर प्रभावी कर दरें इन अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं से पीछे हैं, जिससे संधि के अनुपालन पर प्रश्नचिह्न लगता है।

 

वैश्विक अनुभवों से सीख प्राप्त करना : 

 

  • भारत के अतिरिक्त अन्य देशों के अनुभव यह दर्शाते हैं कि उच्च कर और मजबूत नीतियाँ किस तरह जन स्वास्थ्य में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती हैं।
  • थाईलैंड और फिलीपींस जैसे देशों ने तंबाकू और मद्य पर ‘पाप कर’ (sin tax) लगाकर न केवल उपभोग घटाया है, बल्कि उससे अर्जित राजस्व से अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों का वित्तपोषण भी किया है।
  • ऑस्ट्रेलिया ने वार्षिक कर वृद्धि और सादे पैकेजिंग कानूनों के ज़रिए दुनिया की सबसे कम धूम्रपान दरों में से एक हासिल की है।
  • भारत भी इन उदाहरणों से प्रेरणा लेकर, विशिष्ट करों को नियमित रूप से बढ़ाने, और उस राजस्व को आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं में निवेश करने की दिशा में ठोस कदम उठा सकता है।

 

पर्यावरणीय और नैतिक पक्ष : 

 

  • तंबाकू की खेती केवल स्वास्थ्य पर ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
  • यह वनों की कटाई, मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट, और कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग में योगदान देती है।
    यह विशेष रूप से बीड़ी उद्योग, सामाजिक दृष्टिकोण से भी चिंताजनक है, जहाँ अक्सर बाल श्रम, कम मजदूरी और असुरक्षित कार्य स्थितियाँ देखी जाती हैं।
  • नैतिक दृष्टिकोण से, एक ऐसा उत्पाद जो जनस्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक हो, उस पर आधारित राजस्व नीति विकास की नैतिक अवधारणा से मेल नहीं खाती। अतः बीड़ी निर्माण क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों को वैकल्पिक एवं सुरक्षित आजीविका की ओर स्थानांतरित करने की दिशा में तत्परता आवश्यक है।

 

निष्कर्ष :

 

  1. भारत इस समय जीएसटी दरों के पुनर्मूल्यांकन और तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया में है। यह एक नीतिगत अवसर है, जिसमें तंबाकू कराधान को बहुआयामी लक्ष्यों के अनुरूप ढाला जा सकता है। इसके तहत उच्चतम कर स्लैब में तंबाकू उत्पादों को शामिल करना,विशिष्ट उत्पाद शुल्क की पुनर्स्थापना और उसमें वृद्धि और प्रवर्तन प्रणाली को सशक्त बनाना शामिल है। 
  2. इस तरह के सभी उपाय तंबाकू कर नीति को स्वास्थ्य सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही के साथ संगत बनाएंगे।
  3. तंबाकू कराधान को अब केवल राजस्व स्रोत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह संवैधानिक जिम्मेदारी, नैतिक उत्तरदायित्व और जनस्वास्थ्य की प्राथमिकता का संवेदनशील बिंदु है।
  4. अतः तंबाकू कराधान अब सिर्फ आर्थिक निर्णय नहीं है, यह संविधान सम्मत जिम्मेदारी, नैतिक अनिवार्यता, और स्वास्थ्य नीति का मूल स्तंभ बन चुका है।
  5. एक न्यायपूर्ण और सशक्त कर नीति न केवल लाखों लोगों के जीवन को सुरक्षित कर सकती है, बल्कि दीर्घकालिक सामाजिक और आर्थिक कल्याण की आधारशिला भी रख सकती है।

 

स्त्रोत – पी. आई. बी एवं द हिन्दू। 

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

Q.1. जीएसटी के तहत भारत में तम्बाकू कराधान के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. सभी तम्बाकू उत्पादों पर वर्तमान में 40% की उच्चतम जीएसटी स्लैब पर कर लगाया जाता है।
2. भारत में तम्बाकू कर राजस्व में बीड़ी का योगदान सबसे अधिक है।
3. भारत तंबाकू नियंत्रण पर विश्व स्वास्थ्य संगठन फ्रेमवर्क कन्वेंशन का एक पक्षकार के रूप में  है।
4. जीएसटी कार्यान्वयन के बाद तम्बाकू उत्पादों पर विशिष्ट उत्पाद शुल्क पूरी तरह बरकरार रखा गया है।
उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
A. केवल 1 और 2
B. केवल 3
C. केवल 1, 3 और 4
D. केवल 2 और 4

उत्तर: B

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

Q.1. भारत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली के तहत तंबाकू कराधान की वर्तमान सीमाओं का मूल्यांकन करते हुए चर्चा कीजिए कि सार्वजनिक स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को ध्यान में रखते हुए तंबाकू कराधान को अधिक प्रभावी बनाने हेतु कौन-से नीतिगत सुधार आवश्यक है? ( शब्द सीमा – 250  अंक – 15 )

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