विशिष्ट अध्ययन विकलांगता पर क्षमता निर्माण कार्यक्रम का दूसरा चरण

विशिष्ट अध्ययन विकलांगता पर क्षमता निर्माण कार्यक्रम का दूसरा चरण

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 के अंतर्गत कल्याणकारी योजनाएँ, भारत में दिव्यांग व्यक्तियों के लिए संवैधानिक और विधायी ढाँचा, भारत में दिव्यांग व्यक्तियों से जुड़े मुद्दे ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) का अनुच्छेद 41, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, सुगम्य भारत अभियान, दीनदयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना, दिव्यांग छात्रों के लिए राष्ट्रीय फैलोशिप योजना ’ खंड से संबंधित है। )

 

खबरों में क्यों ?

 

 

  • शिक्षा मंत्रालय ने मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम (MMTTP) के तहत विशिष्ट अध्ययन दिव्यांगताओं (SLD) पर अपने क्षमता निर्माण कार्यक्रम के दूसरे चक्र की शुरुआत की है। 
  • इसका उद्देश्य उच्च शिक्षण संस्थानों (HEI) को विशिष्ट अध्ययन दिव्यांगताओं (SLD) वाले छात्रों को बेहतर सहायता प्रदान करने हेतु सशक्त बनाना है। 
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 उच्च शिक्षण संस्थानों को इन चुनौतियों से निपटने हेतु जागरूक एवं संवेदनशील होने का समर्थन करती है।
  • मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण और ज्ञान प्रदान करके उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाना है। इसे मौजूदा तंत्रों से पुनर्गठित किया गया है। 
  • दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत सरकार को यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि दिव्यांग व्यक्तियों को सम्मान और समानता के साथ जीवन जीने का अधिकार मिले।

 

भारत में दिव्यांग व्यक्तियों (PwD) के लिए संवैधानिक और विधायी ढाँचा :

 

संवैधानिक प्रावधान :

  • समानता, स्वतंत्रता, न्याय और गरिमा : भारतीय संविधान सभी व्यक्तियों के लिए समानता, स्वतंत्रता, न्याय और गरिमा सुनिश्चित करता है, जिसमें दिव्यांग व्यक्ति भी शामिल हैं।
  • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (DPSP) : भारतीय संविधान के अनुच्छेद 41 के तहत, राज्य को अपनी आर्थिक क्षमता और विकास की सीमाओं के भीतर कार्य, शिक्षा, बेरोजगारी, बुढ़ापा, बीमारी और अक्षमता के मामलों में सार्वजनिक सहायता के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए प्रभावी प्रावधान करने का निर्देश दिया गया है।

 

विधायी प्रावधान :

  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 : यह अधिनियम दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा और उन्हें सशक्त बनाने एवं समान अवसर प्रदान करने के लिए प्रमुख कानून है। यह अधिनियम 21 प्रकार की दिव्यांगताओं को शामिल करते हुए बेंचमार्क दिव्यांगों एवं उच्च समर्थन की आवश्यकताओं वाले लोगों को अतिरिक्त लाभ प्रदान करता है।
  • संरक्षकता प्रदान करने का प्रावधान : यह अधिनियम जिला न्यायालय या राज्य सरकार द्वारा नामित किसी प्राधिकरण की संरक्षकता प्रदान करने का भी प्रावधान करता है, जिसके तहत अभिभावक और दिव्यांग व्यक्तियों के बीच संयुक्त निर्णय लिया जाएगा।
  • इस प्रकार, भारत का संवैधानिक और विधायी ढाँचा दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और उनके समावेशी विकास को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

 

भारत में दिव्यांग व्यक्तियों से जुड़े मुद्दे : 

  • शिक्षा तक पहुँच का अभाव : भारत में दिव्यांग व्यक्तियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। विशेष शिक्षा सुविधाओं की कमी और प्रशिक्षित शिक्षकों की अनुपस्थिति के कारण समावेशी शिक्षा प्रथाओं को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है। इससे शैक्षिक अवसरों की कमी होती है, जो उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास में बाधक बनती है।
  • अभिगम्यता की चिंता : भारत में सार्वजनिक स्थानों, परिवहन सुविधाओं, संरचनाओं और बुनियादी ढांचे में पहुंच की कमी दिव्यांग व्यक्तियों के लिए एक प्रमुख चुनौती है। भारत में कई स्थानों पर रैंप, लिफ्ट या सुलभ शौचालयों की अनुपस्थिति के कारण दिव्यांग व्यक्तियों के लिए स्वतंत्र रूप से घूमना और दैनिक गतिविधियों में भाग लेना कठिन हो जाता है।
  • जागरूकता की कमी और सुलभ चिकित्सा सुविधाओं का अभाव : भारत में कई दिव्यांगताओं को समय पर और उचित चिकित्सा देखभाल के माध्यम से रोका जा सकता है। इनमें जन्म के दौरान चिकित्सा समस्याएँ, मातृ स्थिति, कुपोषण, और दुर्घटनाओं के कारण चोटें शामिल हैं। लेकिन यहाँ जागरूकता की कमी और सुलभ चिकित्सा सुविधाओं की कमी इस समस्या को और बढ़ाती है।
  • सामाजिक कलंक और भेदभाव का शिकार होना : भारतीय समाज में दिव्यांगता के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण और सामाजिक कलंक व्यापक रूप से प्रचलित हैं। दिव्यांग व्यक्तियों को अक्सर भेदभाव, बहिष्करण और उपेक्षा का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके आत्म-सम्मान और सामाजिक संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • इन मुद्दों का समाधान करने के लिए व्यापक नीतिगत सुधार, जागरूकता अभियान, और समावेशी विकास की दिशा में ठोस कदम उठाना आवश्यक है।

 

भारत में दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तीकरण के लिए हाल में शुरू की गई पहलें : 

  • भारत में दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तीकरण के लिए कई महत्वपूर्ण पहलें शुरू की गई हैं, जो उनके जीवन को बेहतर बनाने और समाज में उनकी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की गई हैं। उनमें से  कुछ प्रमुख पहलें और वैश्विक सम्मेलन निम्नलिखित है – 

 

राष्ट्रीय पहलें :

  • दिव्यांग छात्रों के लिए राष्ट्रीय फैलोशिप (National Fellowship for Students with Disabilities) : यह फैलोशिप दिव्यांग छात्रों को उच्च शिक्षा में सहायता प्रदान करने के लिए दी जाती है, जिससे वे अपनी शिक्षा को बिना किसी आर्थिक बाधा के पूरा कर सकें।
  • दीनदयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना (DeenDayal Disabled Rehabilitation Scheme) : इस योजना के तहत दिव्यांग व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें।
  • सुगम्य भारत अभियान (Accessible India Campaign) : यह अभियान सार्वजनिक भवनों, परिवहन और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी को दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सुलभ बनाने के उद्देश्य से शुरू किया गया है।

 

दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और गरिमा के संरक्षण के लिए वैश्विक सम्मेलन :

  • दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और गरिमा के संरक्षण और संवर्द्धन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन : यह सम्मेलन दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और गरिमा की रक्षा और संवर्द्धन के लिए एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसे भारत ने भी हस्ताक्षरित किया है।
  • एशिया – प्रशांत क्षेत्र में दिव्यांग लोगों की पूर्ण भागीदारी और समानता पर घोषणा : यह घोषणा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में दिव्यांग व्यक्तियों की समानता और पूर्ण भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए की गई है।
  • बिवाको मिलेनियम फ्रेमवर्क : यह फ्रेमवर्क दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और उनकी सामाजिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

 

संस्थागत पहल :

भारतीय पुनर्वास परिषद : यह परिषद संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित की गई है और इसका उद्देश्य प्रशिक्षण कार्यक्रमों को मानकीकृत, विनियमित एवं मॉनिटर करना, केंद्रीय पुनर्वास रजिस्टर (Central Rehabilitation Register- CRR) को बनाए रखना एवं विशेष शिक्षा व दिव्यांगता के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देना है। इस तरह की तमाम पहलें और सम्मेलन दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तीकरण और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम हैं।

 

आगे की राह : 

 

दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति समाज में समावेशन/ स्वीकार्यता को बढ़ावा देकर : 

  • सभी सार्वजनिक स्थान और भवन तक दिव्यांग व्यक्तियों के लिए पहुँच सुलभ हों : रैंप, लिफ्ट, टैक्टाइल वॉकवे, ऑडियो अनाउंसमेंट और ब्रेल संकेत जैसी सुविधाओं का निर्माण कर यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सभी सार्वजनिक स्थान और भवन तक दिव्यांग व्यक्तियों के लिए पहुँच सुलभ हों।
  • दिव्यांग व्यक्तियों के ट्रांज़िट नेटवर्क को विकसित करना : सार्वजनिक परिवहन में सुलभता सुनिश्चित करना, जैसे कि लो-फ्लोर बसें और सुलभ मेट्रो स्टेशन। यह दिव्यांग व्यक्तियों को स्वतंत्र रूप से यात्रा करने में मदद करेगा।

 

अत्याधुनिक समाधानों के साथ क्षमताओं को सशक्त बनाना : 

  • सस्ती और स्थानीय तकनीक का उपयोग करना : प्रोस्थेटिक्स, गतिशीलता उपकरण, श्रवण यंत्र और संचार उपकरणों का विकास से यह सुनिश्चित करना कि ये उपकरण सस्ते और स्थानीय रूप से उपलब्ध हों।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता और उन्नत प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना : 3D प्रिंटिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग। यह तकनीकें दिव्यांग व्यक्तियों के लिए अनुकूलित समाधान प्रदान कर सकती हैं।

 

ज्ञान और समानता के अवसर प्रदान करके : 

  • समावेशी शिक्षा नीतियाँ : दिव्यांग छात्रों के लिए सहायक उपकरण, विशेष प्रशिक्षण, सुलभ शिक्षण सामग्री और समावेशी पाठ्यक्रम के माध्यम से यह सुनिश्चित करना कि दिव्यांग छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुँच मिल सकें।
  • शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण देकर : शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण देना ताकि वे दिव्यांग छात्रों की आवश्यकताओं को समझ सकें और उन्हें बेहतर शिक्षा प्रदान कर सकें।

जन – जागरूकता और संवेदनशीलता के माध्यम से सामाजिक कलंक का समाधान करना : 

  • जागरूकता अभियान : समुदायों, नियोक्ताओं, शिक्षकों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों और क्षमताओं के बारे में संवेदनशील बनाना। यह समावेशिता को बढ़ावा देगा और दिव्यांगता संबंधी सामाजिक कलंक को कम करेगा।
  • समावेशिता को बढ़ावा : दिव्यांगता संबंधी सामाजिक कलंक को कम करने के लिए जागरूकता अभियान चलाना। यह समाज में दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देगा।

 

स्त्रोत – पीआईबी एवं द हिन्दू। 

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए ।

कथन I : 

भारत में कई दिव्यांगताओं को समय पर और उचित चिकित्सा देखभाल के माध्यम से रोका जा सकता है।

कथन II : 

इसके लिए व्यापक नीतिगत सुधार, जागरूकता अभियान और समावेशी विकास की दिशा में ठोस कदम उठाना आवश्यक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा कथन सही है ?

A. कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं और कथन-II कथन-I की सही व्याख्या है।

B. कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं और कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या नहीं है।

C. कथन-I सही है लेकिन कथन II गलत है।

D. कथन-I गलत है लेकिन कथन-II सही है।

उत्तर – A

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 विकलांग व्यक्तियों के गरिमा और समानता के साथ जीने के अधिकार के लिए मील का पत्थर है, लेकिन यह अधिनियम कई मुद्दों से घिरा हुआ है। उन मुद्दों पर चर्चा करें और उक्त अधिनियम के मुख्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के उपायों को सुझाएँ ? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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