भारत : प्लास्टिक प्रदूषण में सबसे आगे

भारत : प्लास्टिक प्रदूषण में सबसे आगे

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के अंतर्गत ‘ पर्यावरण और जैव विविधता , प्लास्टिक अपशिष्ट प्रदूषण और पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ प्लास्टिक अपशिष्ट, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए विधिक आदेश, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2024 ’ खंड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ?

 

 

  • हाल ही में नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन यह बताता है कि वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण में भारत का योगदान सबसे अधिक है। 
  • इस अध्ययन के अनुसार, विश्वभर में उत्पन्न कुल प्लास्टिक अपशिष्ट का लगभग 20 प्रतिशत (या एक-पाँचवाँ हिस्सा) भारत में उत्पन्न होता है। 
  • यह आंकड़ा भारत की वर्तमान पर्यावरणीय चुनौतियों और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित वर्तमान नीतियों की प्रभावशीलता पर महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े करता है और इस दिशा में तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

 

भारत में उच्च प्लास्टिक प्रदूषण के मुख्य कारण : 

भारत में उच्च प्लास्टिक प्रदूषण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं – 

  • खुले में प्लास्टिक अपशिष्ट का दहन : भारत में हर साल लगभग 5.8 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट/ कचरा को खुले में जलाया जाता है, जिससे प्रदूषण और विषैले पदार्थ उत्सर्जित होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों ही दृष्टिकोण से हानिकारक हैं।
  • तेजी से बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण : भारत में जनसंख्या और शहरीकरण के तेज विकास के कारण प्लास्टिक की खपत और अपशिष्ट उत्पादन में भी बढ़ोतरी हो रही है। इससे प्लास्टिक उत्पादों और पैकेजिंग की मांग में वृद्धि हो रही है, जिससे प्रदूषण की समस्या बढ़ रही है।
  • अपशिष्ट संग्रहण आँकड़ों में विसंगतियाँ : सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 95% अपशिष्ट का संग्रहण होता है, जबकि शोध से पता चलता है कि वास्तविक संग्रहण दर लगभग 81% है। इससे भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की दक्षता में बड़े अंतर का पता चलता है।
  • अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना : भारत का प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना अपशिष्ट की बड़ी मात्रा के प्रबंधन के लिये अपर्याप्त है, जिसमें सैनिटरी लैंडफिल की तुलना में अनियंत्रित डम्पिंग स्थल अधिक हैं, जो निम्न स्तरीय निपटान उपायों और प्रथाओं को दर्शाता है
  • अपशिष्ट संग्रहण आँकड़ों में विसंगतियाँ : भारत की आधिकारिक अपशिष्ट संग्रहण दर 95% बताई गई है, जबकि शोध से पता चलता है कि वास्तविक दर लगभग 81% है, जिससे प्रबंधन दक्षता में बहुत बड़े अंतर का पता चलता है
  • अनौपचारिक क्षेत्र पुनर्चक्रण : भारत में बहुत सारा प्लास्टिक कचरा अनौपचारिक क्षेत्र में पुनर्चक्रित किया जाता है, जिसका आधिकारिक आंकड़ों में उल्लेख ही नहीं होता है। इससे भारत में प्लास्टिक प्रदूषण से संबंधित आंकड़ों का सही आकलन करना मुश्किल हो जाता है।

 

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रबंधन से जुड़े मुख्य मुद्दे : 

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रबंधन से संबंधित मुख्य मुद्दे निम्नलिखित हैं – 

पर्यावरणीय प्रभाव :

  • जलमार्गों की अवरुद्धता : प्लास्टिक अपशिष्ट जलमार्गों को अवरुद्ध करता है, जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है और समुद्री प्रदूषण बढ़ता है। इससे समुद्री जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और प्लास्टिक जल में घुलकर समुद्री जीवन को हानि पहुँचाता है।
  • वायु प्रदूषण और श्वसन स्वास्थ्य को प्रभावित करना : प्लास्टिक का दहन जहरीले प्रदूषकों को मुक्त करता है, जो वायु की गुणवत्ता को खराब करता है और श्वसन स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

 

सार्वजनिक स्वास्थ्य :

  • माइक्रोप्लास्टिक्स का जोखिम : जल और खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक्स का प्रवेश दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है, जिससे मानव स्वास्थ्य के प्रति खतरा बढ़ता है।
  • रोगवाहकों का प्रसार : प्लास्टिक अपशिष्ट रोगवाहकों के प्रजनन के लिए आदर्श वातावरण प्रदान करता है, जिससे डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियाँ फैलने की संभावना बढ़ जाती है।

 

आर्थिक चुनौतियाँ : 

  • वित्तीय नुकसान : FICCI की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को वर्ष 2030 तक प्लास्टिक पैकेजिंग में प्रयुक्त 133 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य की सामग्री का नुकसान हो सकता है
  • ई-कॉमर्स और पैकेजिंग अपशिष्ट : ई-कॉमर्स के द्रुत गति से विकास होने के कारण प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट में वृद्धि हुई है, जिनमें से अधिकांश को पुनर्चक्रित करना कठिन है

 

विनियामक और प्रवर्तन चुनौतियाँ :

  • असंगत प्रवर्तन : प्लास्टिक अपशिष्ट विनियमों का असंगत प्रवर्तन और विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी प्रणाली से संबंधित मुद्दे अपशिष्ट के प्रभावी प्रबंधन में बाधा डालते हैं
  • वैश्विक योगदान : भारत वैश्विक प्लास्टिक अपशिष्ट में सबसे अधिक योगदान देने वाले देशों में से एक प्रमुख देश है

 

कृषि में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण :

  • मृदा स्वास्थ्य पर प्रभाव : कृषि में प्लास्टिक के प्रयोग और अपर्याप्त अपशिष्ट जल शोधन के कारण मृदा में माइक्रोप्लास्टिक संचित हो जाता है, जिससे मृदा स्वास्थ्य एवं खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है

 

तकनीकी और बुनियादी ढाँचा की कमी :

  • अपर्याप्त सुविधाएँ : अपशिष्ट पृथक्करण और प्रसंस्करण सुविधाओं की कमी और उन्नत रीसाइक्लिंग तकनीक की कमी प्रभावी प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन में बाधा डालती है। अपशिष्ट ट्रैकिंग की व्यापक कमी भी प्रबंधन प्रयासों को जटिल बनाती है। इन समस्याओं के प्रभावी समाधान के लिए समग्र दृष्टिकोण, मजबूत विनियामक ढाँचा और तकनीकी नवाचार की आवश्यकता है।

 

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष : 

प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन :

  • भारत में प्रतिवर्ष लगभग 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक प्रदूषण उत्पन्न होता है।
  • इसमें से 5.8 मिलियन टन अपशिष्ट का दहन कर दिया जाता है, जबकि 3.5 मिलियन टन मलबे के रूप में पर्यावरण में उत्सर्जित कर दिया जाता है।
  • भारत में अपशिष्ट उत्पादन की दर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन लगभग 0.12 किलोग्राम है।

 

वैश्विक उत्तर-दक्षिण विभाजन :

  • प्लास्टिक अपशिष्ट उत्सर्जन दक्षिणी एशिया, उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में सर्वाधिक है।
  • ग्लोबल साउथ में भारत जैसे देश खुले में अपशिष्ट दहन पर निर्भर रहते हैं, जबकि ग्लोबल नॉर्थ नियंत्रित तंत्रों के तहत अपशिष्ट प्रबंधन करता है।

 

उच्च और निम्न आय वाले देशों के बीच असमानता :

  • वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष 69% या 35.7 मीट्रिक टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्सर्जन 20 देशों में होता है।
  • ग्लोबल साउथ में प्लास्टिक प्रदूषण मुख्य रूप से निम्न स्तरीय अपशिष्ट प्रबंधन के कारण होता है, जबकि ग्लोबल नॉर्थ में यह अधिकतर अनियंत्रित मलबे से होता है।
  • उच्च आय वाले देशों में प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन दर अधिक है, लेकिन 100% अपशिष्ट संग्रहण कवरेज और नियंत्रित निपटान के कारण वे शीर्ष 90 प्रदूषकों में शामिल नहीं हैं।

 

अनुसंधान की आलोचना :

  • संकीर्ण फोकस : अध्ययन में अपशिष्ट प्रबंधन पर अत्यधिक ज़ोर दिया गया तथा प्लास्टिक उत्पादन को कम करने की आवश्यकता की उपेक्षा की गई।
  • गलत प्राथमिकताएँ : यह एकल-उपयोग प्लास्टिक को समाप्त करने जैसे समाधानों से ध्यान हटा सकता है।
  • उद्योग समर्थन : प्लास्टिक उद्योग समूहों द्वारा समर्थन से व्यापक पर्यावरणीय लक्ष्यों के बजाय उद्योग हितों के साथ तालमेल स्थापित करने की चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • व्यापक समाधानों को कमज़ोर करना : अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करके, अध्ययन ने उत्पादन और पुनर्चक्रण संबंधी मुद्दों को हल करना और भी कठिन बना दिया है।

 

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित नियम और पहल : 

 

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित नियम और पहल निम्नलिखित है – 

  1. प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 : यह नियम प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रबंधन और नियंत्रण के लिए प्राथमिक रूपरेखा प्रस्तुत करता है। इसमें प्लास्टिक अपशिष्ट के संग्रहण, परिवहन, और पुनर्चक्रण के लिए दिशा-निर्देश शामिल हैं।
  2. प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2018 : इस संशोधन ने बहुस्तरीय प्लास्टिक (MLP) के चरणबद्ध उन्मूलन की व्यवस्था की। यह उन सामग्रियों पर लागू होता है जिन्हें पुनर्चक्रित, ऊर्जा में परिवर्तित या पुनः उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता। इसके अतिरिक्त, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों के लिए एक केंद्रीय पंजीकरण प्रणाली की स्थापना की गई।
  3. प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2021 : इस संशोधन ने वर्ष 2022 तक एकल-उपयोग वाली विशिष्ट प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव दिया था। इसके अंतर्गत, प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट के संग्रहण और प्रबंधन के लिए विस्तारित उत्पाद जिम्मेदारी (EPR) को लागू किया गया। इसके साथ ही, प्लास्टिक कैरी बैग की मोटाई को सितंबर 2021 तक 50 माइक्रोन से बढ़ाकर 75 माइक्रोन और दिसंबर 2022 तक 120 माइक्रोन कर दिया गया।
  4. प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022 : इस संशोधन ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की प्रक्रिया में और सुधार किया, जिसमें अपशिष्ट की रोकथाम और पुनर्चक्रण की प्रथाओं को मजबूत किया गया।
  5. प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2024 : हाल के संशोधन ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के दिशा-निर्देशों को और भी सख्त किया, जिससे प्रदूषण नियंत्रण और प्लास्टिक के प्रभावी प्रबंधन में सुधार हुआ।

 

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित अन्य पहल :

 

  • स्वच्छ भारत मिशन : भारत में यह राष्ट्रीय स्तर एक व्यापक स्वच्छता अभियान है, जिसका उद्देश्य प्लास्टिक अपशिष्ट को नियंत्रित करना और स्वच्छता के मानकों को बढ़ावा देना है।
  • इंडिया प्लास्टिक पैक्ट : यह एक पहल है जो प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करने और प्लास्टिक प्रबंधन में सुधार के लिए उद्योग, सरकार और नागरिक समाज के बीच सहयोग को बढ़ावा देती है।
  • प्रोजेक्ट रिप्लान : यह परियोजना प्लास्टिक अपशिष्ट के पुनर्चक्रण और प्रबंधन पर केंद्रित है, और इसके माध्यम से अपशिष्ट प्रबंधन की नई विधियाँ लागू की जाती हैं।
  • गोलिटर भागीदारी परियोजना : यह एक साझेदारी परियोजना है जो प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौतियों के समाधान के लिए विभिन्न हितधारकों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करती है।

 

आगे की राह :

 

 

  • जागरूकता अभियान (Awareness Campaigns) प्रारंभ करना : राष्ट्रीय स्तर पर कई भाषाओं में जागरूकता अभियान शुरू करने चाहिए। स्कूलों में प्लास्टिक अपशिष्ट शिक्षा को एकीकृत करना चाहिए, सामुदायिक कार्यशालाएँ आयोजित करनी चाहिए और प्लास्टिक मुक्त जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिए प्रभावशाली लोगों की सहायता लेनी चाहिए।
  • स्मार्ट अपशिष्ट प्रबंधन (Smart Waste Management) प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना : अपशिष्ट प्रबंधन में स्मार्ट प्रौद्योगिकी का उपयोग करना चाहिए, जैसे IIoT-इनेबल बिन्स और AI सोर्टिंग। अवैध डंपिंग की रिपोर्टिंग और रीसाइक्लिंग केंद्रों का पता लगाने के लिए मोबाइल ऐप्स का उपयोग करना चाहिए।
  • अपशिष्ट से ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में निवेश करना (Investing in waste-to-energy technologies) : गैर-पुनर्चक्रणीय प्लास्टिक के लिए पायरोलिसिस और गैसीकरण जैसी उन्नत अपशिष्ट-से-ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में निवेश करना चाहिए। एक कठोर और सख्त उत्सर्जन नियंत्रण सुनिश्चित कर अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं को संचालित करने के लिए उत्पादित ऊर्जा का उपयोग करना चाहिए।
  • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) को शुरू करना : EPR को सुदृढ़ करने के लिए श्रेणीबद्ध शुल्क, प्लास्टिक क्रेडिट ट्रेडिंग प्रणाली लागू करनी चाहिए और कूड़ा बीनने वालों की स्थिति सुधारने के लिए अनौपचारिक क्षेत्र तक EPR का विस्तार करना चाहिए।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy) को बढ़ावा देना : चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए RRR (Reduce, Reuse, Recycle – न्यूनीकरण, पुनःउपयोग और पुनर्चक्रण) को डिज़ाइन में शामिल करना आवश्यक है। इसके तहत पुनर्प्राप्ति सुविधाएँ स्थापित करनी चाहिए, पुनर्चक्रित प्लास्टिक को प्रोत्साहन देना चाहिए और उत्पादों में पुनर्चक्रित सामग्री को अनिवार्य रूप से शामिल करने योग्य बनाना चाहिए।
  • हरित खरीद (Green Procurement) मॉडल को अपनाना : सरकारी खरीद में प्लास्टिक अपशिष्ट न्यूनीकरण मानदंड लागू करने और सरकारी भवनों को मॉडल के रूप में उपयोग करना चाहिए।

स्रोत – पीआईबी एवं इंडियन एक्सप्रेस।

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. निम्नलिखित स्थितियों पर विचार कीजिए।

  1. राष्ट्रीय स्तर पर प्लास्टिक के उपयोग करने से होने वाले प्रभावों के संबंध में  जागरूकता अभियान प्रारंभ करना।
  2. स्मार्ट अपशिष्ट प्रबंधन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना।
  3. अपशिष्ट से ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में निवेश करना।
  4. चक्रीय अर्थव्यवस्था के तहत न्यूनीकरण, पुनःउपयोग और पुनर्चक्रण प्रणाली को बढ़ावा देना।

उपर्युक्त में से कौन सी प्रणाली भारत में अत्यधिक प्रदूषण को रोकने में सहायक है ?

A. केवल 1 और 3 

B. केवल 2 और 4 

C. इनमें से कोई नहीं 

D. उपरोक्त सभी। 

उत्तर – D 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. नेचर जर्नल द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत सबसे अधिक प्लास्टिक प्रदूषण करने वाला देश है। चर्चा कीजिए कि भारत में प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या को हल करने के लिए सरकार को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाएँ इस प्रदूषण को कम करने में कैसे मदद करेंगी ? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15) 

 

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